Tuesday, 8 December 2020

मॉड्यूल 15 : गतिविधि 1: अपने बचपन की यादों को साझा करें

एक पल रूकें और अपने बचपन के दिनों की यादों के बारे में सोचें।अब एक सुखद और एक दुखद स्मृति की सूची बनाएँ । इसके अलावा, अपने शुरुआती वर्षों में सीखी गई दो कहानियाँ/ कविताएँ साझा करें।

चिंतन के लिए कुछ समय लें और कमेंट बॉक्स में अपनी टिप्पणी दर्ज करें ।


731 comments:

  1. वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
    हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
    ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
    वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
    सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
    तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
    वीर तुम बढ़े चलो।धीर तुम बढ़े चलो।

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    1. दीप जलाओ दीप जलाओ आज दिवाली आई रे मैं तो लूंगा खेल खिलौने तुम भी लेना भाई नाचो गाओ खुशी मनाओ आज दिवाली आई रे आज दुकान में खूब सजी हैं घर भी जगमग करते हैं नाचो गाओ खुशी मनाओ आज दिवाली आई रे

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    2. वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
      हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
      ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
      वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
      सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
      तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
      वीर तुम बढ़े चलो।धीर तुम बढ़े चलो।

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  2. आ रे बादल काले बादल
    गरमी दूर भगा रे बादल
    तन से बहुत पसीना बहता
    हाथ सभी के पंखा रहता
    टिप टिप बूंदें बरसा बादल
    झम झम पानी बरसा बादल
    ले कर अपने साथ दिवाली
    सरदी आई बड़ी निराली
    शाम सवेरे सरदी लगती
    पर स्वेटर से है वह भागती
    रात और दिन हुए बराबर
    सोते लोग निकल कर बाहर
    सरदी बिलकुल नहीं सताती
    सरदी जाती गरमी आती।
    Md Afzal Hussain. Urdu P.S.Manjhladih,Shikaripara. Dumka.

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  3. हवा हू हवा मै, बसंती हवा हू, सुनो बात मेरी अनोखी हवा हू|

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    1. हवा हू हवा मैं बसंती हवा हूं सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूं

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  4. खड़ा हिमालय बता रहा है
    डरो न आंधी पानी में,
    खड़े रहो तुम अविचल होकर
    हर संकट तूफानी में।

    डिगो न अपने पथ से,
    तो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे।
    तुम भी ऊंचा उठ सकते हो
    छू सकते हो नभ के तारे।

    अचल रहा जो अपने पथ पर
    लाख मुसीबत आने में,
    मिली सफलता जग में उसको
    जीने में मर जाने में ।

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  5. Machli jal ki rani hai jivan uska pani hai hath lagao dar jayegi bahar nikalo mar jayegi

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  6. लकड़ी की काठी काठी पर घोड़ा
    घोड़े की दुम पर जो मारा हथोड़ा
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
    लकड़ी की काठी काठी पर घोड़ा
    घोड़े की दुम पर जो मारा हथोड़ा
    घोड़ा पहुंचा चौक में चौक में था नाई
    घोड़े जी की नाई ने हजामत जो बनाई
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
    घोड़ा था घमंडी पहुंचा सब्जी मंडी
    सब्जी मंडी में थे बर्फ जमी बर्फ पर लग गई ठंडी
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
    लकड़ी की काठी काठी पे घोड़ा
    घोड़े की दुम पर जो मारा हथोड़ा
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
    घोड़ा अपना तगड़ा है देखो कितनी चर्बी है
    चलता है नेहरू जी का घोड़ा अपना अरबी है
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
    लकड़ी की काठी काठी पर घोड़ा
    घोड़े की दुम पर जो मारा हथोड़ा
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा





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  7. Bachpan ke din bahut hi achha hota hai kyoki us samay ham apne mutabik khel sakte hai sararat kar sakte hai par dukhad samay ye hai ki jab sararat karne par day aur mar padti hai


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    1. hawa hoon hawa mai avanti hawa hoon and khadafy himalaya bata raha h faro n Gandhi pani se

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  8. बचपम में दुखद अनुभूति तब हुई जब मैं कुछ दिनों के लिए शारीरिक अश्वस्थता के कारण विद्यालय छोड़ी थी।पुनः सुखद अनुभति तब हुई जब मैं स्वस्थ हो कर विद्यालय जाने लगी ।
    मेरी सीखी गयी दो कहानियां
    1 राम चरित मानस के राम की कहानी।
    2 भक्त प्रह्लाद की कहानी।

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  9. दुखद अनुभूति : एक बार मेरा नया कलम जो मैंने काफी जिद करके खरीदवाया था वो खो गया था।
    सुखद अनुभूति : जब मेरी बनायीं हुई चित्र की कक्षा में काफी प्रसंसा हुई थी और पुरस्कार मिला था।
    कविता ; १. हवा हूँ हवा मैं बसंती हवा हूँ २. झाँसी की रानी
    कहानी : १. चाचा छक्कन ने केले ख़रीदे। २. पांच परमेश्वर

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  10. अकबर-बीरवल की कहानियाँ।
    पंचतंत्र की कहानियाँ । ये दो कहानी हमने अपने बचपन में बहुत सुना और पढ़ा है ।
    बचपन की पढ़ी दो कविता जो याद आती है -
    1]खूब लड़ी मर्दानी,वो तो झांसी वाली रानी थी ।
    2]वीर तुम बढ़े चलो,धीर तुम बढ़े चलो ।

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  11. बचपम में दुखद अनुभूति तब हुई जब मैं कुछ दिनों के लिए शारीरिक अश्वस्थता के कारण विद्यालय छोड़ी थी।पुनः सुखद अनुभति तब हुई जब मैं स्वस्थ हो कर विद्यालय जाने लगी ।
    मेरी सीखी गयी दो कहानियां
    1 राम चरित मानस के राम की कहानी।
    2 भक्त प्रह्लाद की कहानी।

    From-UMS PALARPUR NIRSA DHANBAD JHARKHAND

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  12. भालुवाला
    देखो भालुवला आया
    काला काला भालू लाया।
    डुग-डुग-डुग-दुग-डुगी बाजे
    जमा हुई लड़कों की टोली।
    भालू नाच दिखाएगा
    पैसा लेकर जाएगा।
    आमवाला
    आओ लड़कों लाया आम
    सभी फ्लॉ का राजा आम।
    मीठा-मीठा ताजा आम
    नहीं अधिक पैसे का काम
    ले लो ले लो खालो आम।
    कमल चंपिया
    गोइलकेरा।

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  13. Bachpan ke din bahut hi achha hota hai kyoki us samay ham apne mutabik khel sakte hai sararat kar sakte hai par dukhad samay ye hai ki jab sararat karne par aur mar padti hai

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  14. फूल की अभिलाषा
    माखनलाल चतुर्वेदी मुझे तोड़ लेना वरमाली उस पर पर तू देना फेक

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  15. jugnu hai naam mera
    Raton kahun chamakta
    ud ud kahun chamakta
    jugnu hai naam mera
    jugnu hai naam mera
    ,, Allama sir iqbal,,

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  16. बचपन बहुत प्यारा होता है साथ ही उस की खट्टी मीठी यादे। जब विद्यालय मे मेरा नामांकन हुआ वो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है। एक दिन विद्यालय विलंब से पहुंची वो दुखद अनुभूति। शुरुआती वर्षो मे सीखी गई कविता _ वसंती हवा, हम सब सुमन एक उपवन के ।

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  17. बचपन में बारिश में भींगना सुखद अनुभव था और घर पहुँचने के बाद अपनी माता की भरपूर डांट मिलना।

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  18. Sumitra Mahato:Mere father jis din salary receive karte the us din mere liyae Kalakand sweet late the,yae har month karte the jo ak sukhad anubhab hai mere liyae.
    Dukhad anubhab yae hai ke jo bhi cheej pyara laga hai mujhe wo cheej mujh se chhin liya jata hai,mere karibe logo k dwara.
    Do Kahaniyan me Ranga siyaar & Khargosh kachua ke race ki kahani.
    Gho gho rani.....
    Shararti bandar....

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  19. हवा हूँ हवा मैं बसंती हवा हूँ सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ

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  20. मछली जल की रानी है जीवन उसका पानी है हाथ लगाओ डर जाएगी बाहर निकालो मर जाएगी 2 दिन रखो सड़ जाएगी

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  21. This content is very useful for us which encourage to learn more about children

    Goutam Saha Annada High School Hazaribag

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  22. पहली कविता आ रे बादल कारे बादल गर्मी दूर भगा रे बादल झम झम पानी बरसा बादल
    दूसरी कविता वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो

    बचपन में पानी में भीगना गधों और नालियों में छपाक छपाक उछलना की सुखद अनुभूति

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  23. Bachpan ka samay swachchhanda hota hai us sama ka parents ka pyar dular aur dant ka alag anubhuti hoti thi

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  24. बचपन बहुत प्यारा होता है साथ ही उस की खट्टी मीठी यादें। जब विद्यालय मे मेरा नामांकन हुआ वो मेरा बचपन का सबसे सुखद अनुभूति था। एक दिन विद्यालय विलंब से पहुंचा वो दुखद अनुभूति। शुरुआती वर्ष में सिखी गई कविता-वसंती हवा,हम सब सुमन एक उपवन के।
    एन.टुडु(झारखंड)

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  25. यज्ञ हो रहा यमुना पार,तेज बह रही है जलधार।
    योगी होकर नाव सवार, उतरेगा यमुना के पार।

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  26. खड़ा हिमालय बता रहा है
    डरो न आंधी पानी में,
    खड़े रहो तुम अविचल होकर
    हर संकट तूफानी में।

    डिगो न अपने पथ से,
    तो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे।
    तुम भी ऊंचा उठ सकते हो
    छू सकते हो नभ के तारे।

    अचल रहा जो अपने पथ पर
    लाख मुसीबत आने में,
    मिली सफलता जग में उसको
    जीने में मर जाने में ।

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  27. पहली कविता भालूवाला देखो भालूवाला आया काला काला भालू लाया डुग डुग डुग डुग डुगिया बाजे जमा हुई लड़कों की टोली.|दूसरी कविता ये जानवर भालू चीता बाघ ,लोमड़ी गीदड़ या खरगोश जंगल में सब देख सकोगे जाने का हो जोश

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  28. मेरे बचपन की दुखद घटना-एक दिन बहुत जोरों की बारिश हो रही थी और मैं अपनी दीदी के साथ विद्यालय जा रही थी ।तब मेरा छाता हवा से बहुत दूर उड़ गया और फिर नहीं मिला। मुझे भीगते हुए विद्यालय जाना पड़ा।
    मेरे बचपन की सुखद घटना-पूर्व प्राथमिक विद्यालय को मेरे समय लिटिया क्लास कहा जाता था ।उस समय पेन पेंसिल से लिखने के बजाय शिक्षिका हमें नदी किनारे ले जाती थी और मिट्टी के खिलौने बनाकर हम सुखाते थे और उसे रंगते थे तब बहुत मजा आता था।
    बचपन की मेरी सबसे प्रिय कविता थी सूरज ने दी जब खिड़की खोल
    उठी कोकिला कू कू बोल
    जाग उठे सब चिड़िया तोते
    तुम फिर क्यों आलस में सोते
    जो अच्छे बच्चे होते हैं
    सोकर समय ना खोते हैं
    तुम भी उठो ना देर लगाओ
    उठो चलो पाठशाला जाओ।
    हमारे समय में एक हिंदी की किताब थी रानी मदन अमर_जब मैं पढ़ना सीख रही थी तब मेरी चाची मुझे पढ़ाती थी और मेरे बड़े चाचा का नाम था मदन तो पढ़ाते समय चाची बोलती थी_ रानी बड़े भैया अमर ।स्कूल में पूछा गया कि तुम्हें कौन पढ़ाता है मैंने कहा _मेरी चाची ,तो बोले ठीक है उसे बुला कर के लाना ।जब वह ऑफिस गई तब पूछने पर उसने बताया कि मेरे भ़ैसुर का नाम हम कैसे लें यह घटना मुझे अभी भी याद है।गांव में अभी लोग अपने पति तथा बड़े बुजुर्ग का नाम जल्दी नहीं लेती है विशेषकर महिलाएं।

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  29. बचपन के सुखद सुखद अनुभूति जनसंख्या के संवाद में मेडल का मिलना था और दुखद अनुभूति एक बार विद्यालय में प्रिय शिक्षक के द्वारा पीटे जाने का था जो बार-बार स्मृति में आती है बचपन के दो बड़ी कविताएं जो आज भी स्मृति में है डुग डुग डुग डुग डुग या बोली जमा हुए लड़कों की टोली भालू नाच दिखाएगा पैसा लेकर जाएगा दूसरा यह कदंब का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे मैं भी उस पर बैठकर नहीं आ बनता धीरे धीरे

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  30. बचपन बहुत प्यारा होता है साथ ही उस की खट्टी मीठी यादे। जब विद्यालय मे मेरा नामांकन हुआ वो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है। एक दिन विद्यालय विलंब से पहुंची वो दुखद अनुभूति। शुरुआती वर्षो मे सीखी गई कविता _ वसंती हवा, हम सब सुमन एक उपवन के ।

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  31. बचपन की यादे बहुत प्यारी होती है। जब विद्यालय मे नामकन हुआ मेरा वो मेरे बचपन का सुखद अनुभूति है।
    एक दिन शिक्षाक से डाँट मिली थी वो दुखद अनुभूति।
    शुरुआती बर्षो मे सीखी गई कविता -
    1. वीर तुम बढे चलो, धीर तुम बढे चलो।
    2.खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।
    कहानिया -
    1.पञ्चतरत्र की काहिनिया।
    2.अकबर बीरबल की कहानी।

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  32. बालू में अंगुलियों से लिखना।बारिश के पानी में छपाक से कूदना।

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  33. बचपन की सारी यादें सुखद ही होती हैं। काश , वह फिर से लौट आए।

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  34. Mahendra saw, UMS Ukharsal jamua giridih
    फूलों से नीत हँसना सीखो
    भोरो से नीत गाना,
    तरू की झुकी डालियों से सीखो
    सीखो शीश झुकना।

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  35. )15 December 2020 at 21:07
    खड़ा हिमालय बता रहा है
    डरो न आंधी पानी में,
    खड़े रहो तुम अविचल होकर
    हर संकट तूफानी में।

    डिगो न अपने पथ से,
    तो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे।
    तुम भी ऊंचा उठ सकते हो
    छू सकते हो नभ के तारे।

    अचल रहा जो अपने पथ पर
    लाख मुसीबत आने में,
    मिली सफलता जग में उसको
    जीने में मर जाने में

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  36. आटा पाटा
    झूम-झूमाटा
    कल की छुट्टी
    टाटा टाटा

    बालपन की सुखद और दु:खद कोई स्मृति याद नही है।

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  37. सवेरा,कविता
    नही हुआ है अभी सवेरा,
    पूरब की लाली पहचान
    चिड़ियों के जगने से पहले
    खाट छोड़ उठ गया किसान
    खिला पिला कर बैलों को
    ले चला खेत पर काम

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  38. हवा हूँ हवा मैं,
    बसंती हवा हू,
    सुनो बात मेरी अनोखी,
    बड़ी निराली हू,बड़ी मस्तमौला
    हवा हूँ हवा मैं ।

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  39. Twinkle Twinkle little star.How I wonder what you are.Up above the world so high.

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  40. लकड़ी की काठी काठी पर घोड़ा
    घोड़े की दुम पर जो मारा हथोड़ा
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
    लकड़ी की काठी काठी पर घोड़ा
    घोड़े की दुम पर जो मारा हथोड़ा
    घोड़ा पहुंचा चौक में चौक में था नाई
    घोड़े जी की नाई ने हजामत जो बनाई
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
    घोड़ा था घमंडी पहुंचा सब्जी मंडी
    सब्जी मंडी में थे बर्फ जमी बर्फ पर लग गई ठंडी
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
    लकड़ी की काठी काठी पे घोड़ा
    घोड़े की दुम पर जो मारा हथोड़ा
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
    घोड़ा अपना तगड़ा है देखो कितनी चर्बी है
    चलता है नेहरू जी का घोड़ा अपना अरबी है
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
    लकड़ी की काठी काठी पर घोड़ा
    घोड़े की दुम पर जो मारा हथोड़ा
    दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा

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  41. Chanda. Mama. Gol. Gol
    Mami ki. Roti. Gol gol

    Papa ka paisa. Gol. Gol

    Ham. Vi. Gol. Tum. Vi. Gol
    Sari. Duniya. Gol. Gol

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  42. Fly fly my kite u.
    Up in the sky e

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  43. मदारी
    डुगडुग डुंगडुंग करता आया
    बंदरवाला बंदर लाया
    बंदर है मोटा सा बंदर
    क्या क्या है झोले के अंदर
    इसके साथ है एक बंदरिया
    जो पहनी है लाल घंघरिया
    लेकर डंडा और झोला
    बंदरवाला हॅसकर बोला
    नाचो बेटा नाचो बेटा
    वाह बहादुर ले लो डंडा
    बंदर ने कुल्हा मटकाया
    थिरक थिरक कर नाच दिखलाया
    तेरी है ससुराल कहाॅ पर
    ले आ जोरु को तू जाकर
    बड़ी खुशी से दौड़ा बंदर
    टेड़ी टोपी रखकर सर पर
    चली बंदरिया भी शर्माती
    छम छम करती ओ बल खाती
    किए तमाशे ऐसे ऐसे
    सब लोगों से माॅगे पैसे
    एस के ठाकुर
    यू एम एस मानिकपुर
    बोआरीजोर ,गोड्डा

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  44. बालू में अंगुलियों से लिखना।बारिश के पानी में छपाक से कूदना।

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  45. Bachman bahut pyara hota hai.

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  46. वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
    हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
    ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
    वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
    सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
    तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
    वीर तुम बढ़े चलो।धीर तुम बढ़े चलो।

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  47. विद्यालय में प्रतिदिन उपस्थित होना और पढ़ाई के साथ-साथ classmates से मिलना-जुलना एवं खेलना कूदना सुखद अनुभूति था और जिस दिन विद्यालय किसी कारण से जा पाने में असमर्थ रहता था वो दुखद अनुभूति था ।

    कविता
    आ रे बादल काले बादल
    गरमी दुर भगा रे बादल
    तन से बहुत पसीना बहता
    हाथ सभी के पंखा रहता
    पिट-पिट बूंदें बरसा बादल
    झक झक पानी बरसा बादल।।


    ले कर अपने साथ दिवाली
    सर्दी आई बड़ी निराली
    शाम सवेरे सर्दी लगती
    पर स्वेटर से वह भागती
    रात और दिन हुए बराबर
    सोते लोग निकल कर बाहर
    सर्दी बिलकुल नहीं बताती
    सर्दी जाती गरमी आती ।।

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  48. प्यासा कौआ का कहानी पढ़ना अच्छा लगता था।स्कूल नही जाने पर डांट खाना बहुत दुखद होता था।

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  49. विद्यालय में प्रतिदिन उपस्थित होना और पढ़ाई के साथ-साथ classmates से मिलना-जुलना एवं खेलना कूदना सुखद अनुभूति था और जिस दिन विद्यालय किसी कारण से जा पाने में असमर्थ रहता था वो दुखद अनुभूति था ।

    कविता
    आ रे बादल काले बादल
    गरमी दुर भगा रे बादल
    तन से बहुत पसीना बहता
    हाथ सभी के पंखा रहता
    पिट-पिट बूंदें बरसा बादल
    झक झक पानी बरसा बादल।।


    ले कर अपने साथ दिवाली
    सर्दी आई बड़ी निराली
    शाम सवेरे सर्दी लगती
    पर स्वेटर से वह भागती
    रात और दिन हुए बराबर
    सोते लोग निकल कर बाहर
    सर्दी बिलकुल नहीं बताती
    सर्दी जाती गरमी आती

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  50. खरगोश और कछुआ की कहानी

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  51. खड़ा हिमालय बता रहा है
    डरो न आंधी पानी में,
    खड़े रहो तुम अविचल होकर
    हर संकट तूफानी में।

    डिगो न अपने पथ से,
    तो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे।
    तुम भी ऊंचा उठ सकते हो
    छू सकते हो नभ के तारे।
    प्यासा कौवा कहानी में कौवा अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग कर अपनी प्यास बुझाता है|

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  52. वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
    हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
    ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
    वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
    सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
    तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
    वीर तुम बढ़े चलो।धीर तुम बढ़े चलो।

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  53. बचपन का वो दिन!जब मैं ने छात्रवृत्ति की परीक्षा पास की। मेरी हर ख्वाहिश पूरी हो रही थी।
    कहानी:-दो बैलों की कथा-झूरी के पास दो बैल थे......।

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  54. खड़ा हिमालय बता रहा है
    डरो न आंधी पानी में,
    खड़े रहो तुम अविचल होकर
    हर संकट तूफानी में।

    डिगो न अपने पथ से,
    तो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे।
    तुम भी ऊंचा उठ सकते हो
    छू सकते हो नभ के तारे।

    अचल रहा जो अपने पथ पर
    लाख मुसीबत आने में,
    मिली सफलता जग में उसको
    जीने में मर जाने में ।

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  55. बचपन के सुखद सुखद अनुभूति जनसंख्या के संवाद में मेडल का मिलना था और दुखद अनुभूति एक बार विद्यालय में प्रिय शिक्षक के द्वारा पीटे जाने का था जो बार-बार स्मृति में आती है बचपन के दो बड़ी कविताएं जो आज भी स्मृति में है डुग डुग डुग डुग डुग या बोली जमा हुए लड़कों की टोली भालू नाच दिखाएगा पैसा लेकर जाएगा दूसरा यह कदंब का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे मैं भी उस पर बैठकर नहीं आ बनता धीरे धीरे

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  56. मेरे पापा पास एक रेडियो था जिसे मैंने पानी से भरी बाल्टी में डूबा कर बजाने की कोशिश कर रहा था जिससे रेडियो खराब हो गई ।उस समय मेरे पिताजी का गुस्सा देखने लायक थी जो पुरे गाँव में चर्चा का विषय बन गया था ।

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  57. Bachpan ke din bahut sukhad or anokhe hote hai kyuki apni echha anusar hum koibhi kam karte hai lekin dukhad tab hota hai jub koi galti karne par dat or Mar padti hai






    bachpan ke kavita _Hawa hu hawa mein basanti hawa hu,Vir Tum badhe chalo,Jhasi ke rani etc.



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  58. बचपन में बारिश में भीगना सुखद अनुभव होता था और घर आते ही माता की काफी डांट फटकार सुनकर अपना गम दिखाना होता था जब तक माता की गुस्सा शांत ना होता तब तक उसी रूप में रहता था पुनः दूसरा दिन वही शुरू हो जाता था।

    Rakesh Kumar Ranjan
    Ms Ranibahal

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  59. बचपन सभी का बहुत प्यारा होता है साथ ही उस समय की कुछ खट्टी तथा कुछ मीठी बातें आज भी मेरे स्मृति पटल मे चलचित्र की तरह यादगार बने हुए हैं । जब विद्यालय मे मेरा नामांकन हुआ वो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है। क्यों उस दिन मेरे बहुत सारे बच्चों से मित्रता हो गया था। एक दिन विद्यालय विलंब से पहुंची वो दुखद अनुभूति। क्यों उस दिन मुझे सभी के सामने शिक्षक का डाँट मिला था। शुरुआती वर्षो मे सीखी गई कविता _ वीर तुम बढ़े चलो तथा हम सब सुमन एक उपवन के ।

    * दयामय माजि (स.शिक्षक)
    * उ.म.वि.चौका (कुकड़ू)
    * सरायकेला-खरसावां ।

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  60. बचपन मैं जंगल पहाड़ों में घूमता था ग्रामीण परिवेश में पला बढ़ा हूँ
    आ रे बादल काले बादल
    गरमी दूर भगा रे बादल
    तन से बहुत पसीना बहता
    हाथ सभी के पंखा रहता
    टिप टिप बूंदें बरसा बादल
    झम झम पानी बरसा बादल
    ले कर अपने साथ दिवाली
    सरदी आई बड़ी निराली
    शाम सवेरे सरदी लगती
    पर स्वेटर से है वह भागती
    रात और दिन हुए बराबर
    सोते लोग निकल कर बाहर
    सरदी बिलकुल नहीं सताती
    सरदी जाती गरमी आती।

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  61. 1 .Hans Kiska . Is kahani mein Dikhai Gaya hai ki Marne Wale se bada bachane wala hota Hai. 2 Kabutar aur jaal .is kahani me miljulkar kaam Karne me safalta milti Hai aur lalach me nahi padna chahiae.

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  62. बचपन बहुत प्यारा होता है साथ ही उस की खट्टी मीठी यादे। जब विद्यालय मे मेरा नामांकन हुआ वो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है। एक दिन विद्यालय विलंब से पहुंची वो दुखद अनुभूति। शुरुआती वर्षो मे सीखी गई कविता _ वसंती हवा, हम सब सुमन एक उपवन के

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  63. बचपन बहुत प्यारा होता है साथ ही उस की खट्टी मीठी यादे। जब विद्यालय मे मेरा नामांकन हुआ वो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है। एक दिन विद्यालय विलंब से पहुंची वो दुखद अनुभूति। शुरुआती वर्षो मे सीखी गई कविता _ वसंती हवा, हम सब सुमन एक उपवन के

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  64. वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
    हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
    ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
    वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
    सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
    तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
    वीर तुम बढ़े चलो।धीर तुम बढ़े चलो।

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  65. Johny Johny Yes Papa Eating Sugar No Papa Telling Lie No Papa Open Your Mouth hahaha

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  66. पिकी पुकारती रही पुकारते धरा गगन मगर कहीं रुके नहीं बसन्त के चपल चरण|

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  67. बचपन बहुत प्यारा होता है साथ ही उस की खट्टी मीठी यादे। जब विद्यालय मे मेरा नामांकन हुआ वो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है। एक दिन विद्यालय विलंब से पहुंची वो दुखद अनुभूति। शुरुआती वर्षो मे सीखी गई कविता :-वसंती हवा,हम सब सुमन एक उपवन केI

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  68. बचपन, बचपन बहुत प्यारा होता है साथ ही अच्छे अच्छे
    खट्टी-मिट्ठी यादें जो स्कूलों में अपने दोस्तों के साथ स्कूल
    जाना, साथ में पढ़ाई करना, भोजन करना, खेलना आदि
    जो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है और जब स्कूल
    समय पर नहीं पहुंचकर खेल में ध्यान देना, वर्ग में नटखट करना, गृहकार्य पूरा न करना साथ में दंड मिलना जो बचपन
    का दुखद अनुभूति है इसी तरह के कई और सुखद तथा दुखद अनुभूति होते हैं ।
    इसके अलावा अपने शुरुआती वर्षों में सीखी गई दो कहानियां या कविताएँ का अंश निम्न हैं:-
    | 1, झांसी की रानी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी
    कविताएँ | वाली रानी थी।
    | 2, वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो।
    |
    कहानियां | 1, राजा रानियों की कहानी
    | 2, अकबर-बीरबल की कहानी

    Manki Samad
    N.P.S Chhota Sargidih
    District- Saraikela Kharsawan (Jharkhand)

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  69. बचपन, बचपन बहुत प्यारा होता है साथ ही अच्छे अच्छे
    खट्टी-मिट्ठी यादें जो स्कूलों में अपने दोस्तों के साथ स्कूल
    जाना, साथ में पढ़ाई करना, भोजन करना, खेलना आदि
    जो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है और जब स्कूल
    समय पर नहीं पहुंचकर खेल में ध्यान देना, वर्ग में नटखट करना, गृहकार्य पूरा न करना साथ में दंड मिलना जो बचपन
    का दुखद अनुभूति है इसी तरह के कई और सुखद तथा दुखद अनुभूति होते हैं ।
    इसके अलावा अपने शुरुआती वर्षों में सीखी गई दो कहानियां या कविताएँ का अंश निम्न हैं:-
    👇👇👇 कविताएँ 👇👇👇
    1, झांसी की रानी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी। 2, वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो।
    👇👇👇कहानियाँ👇👇👇
    1, राजा रानियों की कहानी 2, अकबर-बीरबल की कहानी

    Manki Samad
    N.P.S Chhota Sargidih
    District- Saraikela Kharsawan (Jharkhand)

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  70. नही हुआ है अभी सवेरा‌‌‌‌‌‌ ‌‌ ‌ ‌ ‌‌ ‌‌‌ पूरव की लाली पहचान ‌‌ ‌ ‌ चिडियों के जगने से पहले। ‌‌‌‌‌‌‌ खाट छोड उठ गया किसान ।

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  71. मेरे बचपन के वो दिन काश फिर लौट कर आ जाता! हिलोगे सभी साथी विद्यालय से छुट्टी होते ही निकल जाते गावं के बगीचे में अमरूद तोड़ने ।उसके बाद कई तरह के खेल खेलते और अंत में घर आते संध्या होने पर।कभी-कभी घर वालों से मार भी खानी पड़ती अपनी इन हरकतों के कारण जो कि दुखद होता ।

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  72. बचपन की यादों में सिर्फ खेल ही खेल मेरे दिमाग़ में चित्रित होता है । दादी द्वारा कही गयी कहानियाँ तो पूरी तरह याद नहीं हैं परन्तु धुंधली तस्वीरों में काफ़ी डरावने और काल्पनिक कहानियाँ ही थी ।
    सुखद अनुभूति -सुबह उठकर खेलना खाने के समय घर आना और फिर खेलने जाना
    दुखद अनुभूति -खेलते खेलते अंधेरा हो जाना । सोचता सूरज क्यों डूब जाता है ।
    कविता जो मेरेदिमाग़ में अभी तक है वो है -झाँसी की रानी और बसंती हवा ।
    कहानी में नचिकेता बहुत अच्छा लगा ।
    राजेंद्र प्रसाद
    उ. म. वि. ईचातु

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  73. सुखद याद:
    सुबह सूबह नदी की ओर जाते हुए रास्ते पर पड़ा दो पैसे का सिक्का पाया था .
    दुःखद यादः
    दादा जी की मृत्यु पर सब को रोते हुए देखकर काफी दुखी हुआ था और यह प्रश्न जो उस दिन दिमाग में आया है अभी तक चल रहा है -
    "क्यों मरते हैं लोग ?"
    बचपन की कविता :
    गिटपिट साहब इनका नाम
    इनके अजब अजब हैं काम
    टाई टोपी कोट कमीज
    इनके अपने एक न चीज
    मुंह में चुरुट पैर में बूट
    सदा डटाए रहते सूट
    एक रोज की है यह बात
    बना हुआ था घर में भात
    गिटपिट आए होते शाम
    आते ही बोले -घनश्याम !
    खाना लाओ कपो न देर
    जो कुछ हो लाओ दो सेर
    कुर्सी पर यूं बैठे कूद
    जैसे तोड़ेंगे अमरूद
    लिया हाथ में चमचा एक
    दिया भात को मुँह में फेक
    गरम भात थी जली जुबान
    लगा निकलने इनका जान
    बाहर भागे गिटपिट नाथ
    धरा मेम ने इनका हाथ
    नाचो गिटपिट नाचो आज
    छोड़ो गुस्सा छोड़ो लाज
    गुस्सा भागा आया प्रेम
    नाचे गिटपिट नाची मेम .😂

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  74. हमारे राज्य झारखंड में झारखंड डीजी स्कूल app एवं learnetic app के माध्यम से बच्चे अपने सीधा एवं समय अनुसार ऑनलाइन कंटेंट से सीख रहे हैं।

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  75. Happiest moment result of B SC.Saddest moment death of my father.Two story Nanak Ka Daroga and Akhbar me Nam

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  76. बचपन की कहानियों में पंचतंत्र की कथाएं मुझे बहुत अच्छी लगती थी| कविता में वीर तुम बढ़े चलो अच्छी लगती थी

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  77. बचपन की यादे बहुत प्यारी होती हैं। जब विद्यालय में मेरा नामांकन हुआ मेरा वो मेरे बचपन का सुखद अनुभूति हैं। एक दिन शिक्षक से डांट मिली क्यूकी मैंने बदमाशी किया था वो दुखद अनुभूति है।
    सुरुवाती वर्षो में सीखी गई कविता -
    1. वीर तुम बढ़े चलो, वीर तुम बढ़े चलो।
    2. देखो भालू वाला आया, काला- काला भालू लाया।
    कहानियां अकबर ओर विरबल की कहानी।

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  78. खड़ा हिमालय बता रहा है,
    डरो न आंधी पानी में।
    खड़े रहो तुम अविचल होकर,
    हर संकट तूफानी में।



    हम पंक्षी उन्मुक्त गगन के,
    पिंजर्वद्व न गा पाएंगे।
    कनक तीलियों से टकराकर,
    पुलकित पंख टूट जाएंगे।

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  79. मेरे लिए मेरे पिताजी ने जन्मदिन के मौके पर एक सिलाई मशीन तोहफे में दी थी,जिसे पाकर मैं बहुत खुश थी ।बचपन में एक बार मेरी बहन ने मेरा एक पसंदीदा खिलौना तोड़ दिया था, जिसके वजह से मैं बहुत दुखी थी ।
    कविता -सूरज की किरने आती है । सारी कलियां खिल जाती है । अंधकार सब खो जाता है । सब जग सुंदर हो जाता है
    कहानी -शेर और खरगोश की कहानी जिसमें खरगोश कमजोर होते हुए भी शेर को हरा देता है और शेर कुएं में अपनी परछाई को दूसरा शेर समझकर छलांग मार देता है ।

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  80. आ रे बादल काले बादल
    गरमी दूर भगा रे बादल
    तन से बहुत पसीना बहता
    हाथ सभी के पंखा रहता
    टिप टिप बूंदें बरसा बादल
    झम झम पानी बरसा बादल
    ले कर अपने साथ दिवाली
    सरदी आई बड़ी निराली
    शाम सवेरे सरदी लगती
    पर स्वेटर से है वह भागती
    रात और दिन हुए बराबर
    सोते लोग निकल कर बाहर
    सरदी बिलकुल नहीं सताती
    सरदी जाती गरमी आती।

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  81. बचपन का सुखद अनुभव मेरा नामांकन स्कूल में होना ।
    पर दुखद अनुभव मेरी बेस्ट फ्रेंड का नामांकन उस स्कूल में ना होना।
    बचपन की
    कविता हवा हूं हवा मै बसंती हवा हूं
    दूसरी वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो

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  82. बचपन में बारिश में भीगना सुखद अनुभव होता था और घर आते ही माता की काफी डांट फटकार सुनकर अपना गम दिखाना होता था जब तक माता की गुस्सा शांत ना होता तब तक उसी रूप में रहता था पुनः दूसरा दिन वही शुरू हो जाता था।

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  83. हवा हूँ हवा मैं बसंती हवा हूँ सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ this poem attracted me a lot

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  84. Bachpan ke din bahut hi achha hota hai kyoki us samay ham apne mutabik khel sakte hai sararat kar sakte hai par dukhad samay ye hai ki jab sararat karne par day aur mar padti hai

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  85. सुखद अनुभूति: वर्ग ६ का पुरस्कार मिलना।
    दुखद अनुभूति:वर्ग ४ में 1st रैंक न मिलना
    पसन्दीदा कहानी: 2 बैलों की कथा
    पसन्दीदा कविता: नहीं हुआ है, अभी सवेरा
    पूरब की लाली पहचान
    चिड़ियों के जगने से पहले
    खाट छोड़ उठ गया किसान

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  86. बरसात के दिनों में कागज की नाव बनाकर इसे पानी में चलाना बचपन के दिनों की एक सुखद स्मृति है जबकि एक एक्सीडेंट की वजह से दाहिने पैर का फ्रैक्चर होना एक दुखद स्मृति है। मेरे बचपन की दो कविताएं जो मुझे याद आ रही है वह हैं
    ऐसे सूरज आता है ऐसे सूरज आता है
    पूरब का दरवाजा खोल धीरे-धीरे सूरज गोल और
    आरे बादल काले बादल
    गर्मी दूर भगा रे बादल

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  87. सुखद घटना-बच्चों के साथ खेलना और मस्ती करना।
    दुखद घटना-विद्यालय में शिक्षक से डांट पडना।
    कहनी-प्यासा कौआ
    कविता-पुष्प की अभिलाषा

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  88. दुखद:विद्यालय जाते समय रास्ते में एक बांस का छिलका पैर में घुसने से सप्ताह भर विद्यालय में अनुपस्थित रहना।
    सुखद :प्रधानाध्यापक महोदय के हाथों से प्राईज मिलना खड़ा हिमालय बता रहा है,
    डरो न आंधी पानी में।
    खड़े रहो तुम अविचल होकर,
    हर संकट तूफानी में।

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  89. बचपन बहुत प्यारा होता है ,साथ ही उसकी खट्टी मीठी यादें ।मु,बारिश में भीगना बहुत पसंद था ।आज भी पसंद है पर जब मैं भीग कर घर आती थी तो मां के द्वारा वह डांट आज भी मुझे याद है,।

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  90. Bachpan ki do kavita bahut hi pasandida
    1Gadi aayi gadi aayi
    2 Aare badal kale badal

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  91. बचपन सभी का बहुत प्यारा होता है साथ ही उस समय की कुछ खट्टी तथा कुछ मीठी बातें आज भी मेरे स्मृति पटल मे चलचित्र की तरह यादगार बने हुए हैं । जब विद्यालय मे मेरा नामांकन हुआ वो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है। क्यों उस दिन मेरे बहुत सारे बच्चों से मित्रता हो गया था। एक दिन विद्यालय विलंब से पहुंची वो दुखद अनुभूति। क्यों उस दिन मुझे सभी के सामने शिक्षक का डाँट मिला था। शुरुआती वर्षो मे सीखी गई कविता _ वीर तुम बढ़े चलो तथा हम सब सुमन एक उपवन के ।

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  92. 1.)ये कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
    मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे
    ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली
    किसी तरह नीची हो जाती ये कदम्ब की डाली
    तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता
    उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता
    वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता
    अम्मा-अम्मा कह बंसी के स्वर में तुम्हें बुलाता
    सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती
    मुझे देखने काम छोड़ तुम बाहर तक आती
    तुमको आता देख बांसुरी रख मैं चुप हो जाता
    पत्तो में छिपकर धीरे से फिर बांसुरी बाजाता
    घुस्से होकर मुझे डाटती कहती नीचे आजा
    पर जब मैं न उतरता हंसकर कहती मुन्ना राजा
    नीचे उतरो मेरे भईया तुम्हे मिठाई दूँगी
    नए खिलोने माखन मिसरी दूध मलाई दूँगी
    मैं हंस कर सबसे ऊपर टहनी पर चढ़ जाता
    एक बार ‘माँ’ कह पत्तों मैं वहीँ कहीं छिप जाता
    बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता
    माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता
    तुम आँचल फैला कर अम्मा वहीं पेड़ के नीचे
    ईश्वर से कुछ विनती करती बैठी आँखें मीचे
    तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता
    और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता
    तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती
    जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं
    इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
    यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे

    2.)नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
    बाकी जो बचा था काले चोर ले गए
    खाके पीके मोटे होके, चोर बैठे रेल में
    चोरों वाला डिब्बा कट कर, पहुँचा सीधे जेल में
    नानी तेरी मोरनी को
    उन चोरों की खूब खबर ली, मोटे थानेदार ने
    मोरों को भी खूब नचाया, जंगल की सरकार ने
    नानी तेरी मोरनी को
    अच्छी नानी प्यारी नानी, रूसा-रूसी छोड़ दे
    जल्दी से एक पैसा दे दे, तू कंजूसी छोड़ दे
    नानी तेरी मोरनी को

    Sad memory: when I fell in the playground
    Happy memory:getting merit certificate from principal mam for bringing good grades in school.

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  93. बचपन में पेड़ की डाल पर झूलना मुझे बहुत पसंद था ।झूलने के क्रम में एक बार डाल से गिर पड़ा था इससे मेरे गाल नुकीले पत्थर से कट गए था। जिसका निशान आज भी मेरे गाल पर है जो मुझे बचपन की दुखद घटना का याद दिलाता रहता है। बचपन में हम अपने गांव से स्कूल पैदल जाया करते थे जो लगभग 5 किलोमीटर दूर पड़ता था। आने जाने में बहुत थक जाया करते थे ।मेरे पापा मेरी परेशानी को समझ कर उन्होंने कर्ज लेकर मुझे एक साइकिल दिलाई थी उस दिन मुझे बहुत
    खुशी हुआ था ।बचपन में याद की गई कविताएं हवा हूं हवा मैं बसंती हवा हूं। हम पंछी उन्मुक्त गगन के।

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  94. मेरे बचपन की कुछ मीठी यादें आज भी स्मृति पटल में है.जब विधालय में पहली कक्षा में नामांकन हुआ था.उस समय गुरुजी हाथ पकड़ कर चॉक से ॐ लिखने का अभ्यास कराये थे.और आज भी जब आसमान में बादल दिखाई पड़ता है तो आ रे बादल काले बादल गरमी दूर भगा रे बादल याद आ जाता है.

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  95. बचपन मे मुझे तैरना बहुत पसंद था।

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  96. Childhood is full of joy and interesting we can enjoy and get the true love from family

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  97. बचपन बहुत प्यारा होता है ,साथ ही उसकी खट्टी मीठी यादें ।मु,बारिश में भीगना बहुत पसंद था ।आज भी पसंद है पर जब मैं भीग कर घर आती थी तो मां के द्वारा वह डांट आज भी मुझे याद है,।

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  98. ANIL KUMAR ROY

    कुछ कविताएं कहानियां ऐसी है जिसे मैं बचपन में पढ़ा था और अभी भी बिलकुल अच्छी तरह याद है जिसे इंग्लिश मे_who has seen the wind?
    Neitheryou norI .
    but when the trees bowdown their heads,
    we know the wind is passing through. उसी प्रकार हिंदी में _ वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो तथा कहानी में कौवा और घड़ा की कहानी जिसे कभी भुलाई नहीं जा सकते।

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  99. हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजर वध ना गा पाएंगे कनक तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएंगे। हम बहता जल पीने वाले मर जाएंगे भूखे प्यासे.....

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  100. बचपन में बारिश में भींगना बहुत ही सुखद अनुभव था, लेकिन बारिश में भींगते हुए घर आने के बाद माता पिता का भर पूरी डांट मिलना

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  101. Chand uthechche ,ful futechche,kadam tolai ke,hati nachche,ghora nachche,sonamunir be.
    Gopal baro subodh balak,se nijer pita-matar kathar abadhya konodin hoini.tar pita Mata jakhon haha bolito se tahai korit.se jonno sakole tahake bhalobasito.
    Batakh ka chitra banakar sabse jyada namber Milne ki Khushi
    Mera slate tut Jane ka dukh.

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  102. डुगडुग डुगडुग डुगिया बोली,
    जमाए हुई लड़को की टोली,
    काला काला भालू लाया,
    भालूवाला ने गाना गाया,
    भालू ने नाच दिखाया
    सबो को खूब हंसाया ।
    Manuel Baske UHS Madhura
    Meharma Godda Jharkhand

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  103. Sukhad smriti- mujhe jab acche ank ane per movie dikhane le jaya jata tha
    Dukhad smriti- jb mere doston ko naye khilone milte the or mujhe ni mil pate the paiso k abhav k karan.
    Kavita-
    Machli jal ki rani hai jeevan uska pani hai hath lagai dar jayegi,bhar nikalo mar jayegi

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  104. बचपन मे दोस्तों के साथ खेलना, वर्षा मे भीगना, मेला में जाना बहुत अच्छा लगता था।खेल पर प्रतिबंध लगाने पर बहुत बुरा लगता था।जहाँ बच्चों का संग वहाँ बाजे मिरिदंग।

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  105. अपने बचपन के यादों के झरोखा में कुछ सुखद कुछ दु:खद बातों को सोंचकर पूरा पूरा शरीर मानो भावानुभूत हो जाता है। अपने बचपन के दोस्तों के साथ खेलना, नदी में नहाना,गिल्ली डंडा,कितकित,नुक्का-छिप्पी खेलना,दादी की लौरी सुनना,दादाजी की मिठाई,नया धान बेचकर झिल्लियाॅ खाना,टिकोला खाना आदि अनगिनत सूची के साथ शिक्षक,पिताजी,चाचा से पड़ी मार,मुर्गा बनना,दोस्तों से झगडा करना,सब्बल से पैर कट जाना आदि कुछ दुखद एहसासों को कभी नहीं भूल सकते हैं
    साथ ही साथ कई कहानियां,जैसे:-दो बैलों की कथा,ईदगाह,पंचतंत्र की कहानियां,अकबर-बीरबल की कहानियाँ आदि के साथ पुष्प की अभिलाषा, खड़ा हिमालय,ये कदंब का पेड़,झांसी की रानी आदि कई कविता की अमिट छाप अब तक मन-मस्तिष्क पर केंद्रित है।साथ ही

    खड़ा हिमालय बता रहा है
    डरो न आंधी पानी में,
    खड़े रहो तुम अविचल होकर
    हर संकट तूफानी में।

    डिगो न अपने पथ से,
    तो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे।
    तुम भी ऊंचा उठ सकते हो
    छू सकते हो नभ के तारे।

    अचल रहा जो अपने पथ पर
    लाख मुसीबत आने में,
    मिली सफलता जग में उसको
    जीने में मर जाने में । आदि---------की यादों के साथ अपनी भावनाओं को विराम देता हूं। धन्यवाद!

    कौशल किशोर राय,सहायक शिक्षक,उत्क्रमित उच्च विद्यालय पुनासी,जसीडीह,देवघर 'झारखण्ड

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  106. हमारे बचपन की दुखद अनुभूति - जब मेरा नामांकन विद्यालय में पहली बार हुआ तब मैं काफी डरा और सहमा हुआ था और बार-बार यही सोच रहा था की विद्यालय कैसे जाऊं और वहां कैसे पढ़ाई करें इस बात का उलझन बार-बार दिमाग में चल रहा था जो मेरे लिए काफी दुखद अनुभूति का एहसास दिलाता है|
    सुखद अनुभूति- विद्यालय जाने और फाइनल परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त होने पर मुझे काफी खुशी लगा और अच्छा महसूस हुआ जो सुखद अनुभूति का परिचायक है|
    बचपन के शुरुआती दिनों में लिखी गई दो कहानियों की सूची- मैंने बचपन के शुरुआती दिनों में दो कहानियां सीखी जो निम्न है:-
    1.कबूतर और जाल की कहानी|
    2. प्यासी कौवे की कहानी|
    बचपनन के दिनों की सीखी गई दो कविताएं है:-
    1.हिमालय
    खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो नहीं आंधी पानी में| खड़े रहो तुम अविचल होकर, हर संकट तूफानी में| डिगो ना अपने प्राण से तो तुम, सब कुछ पा सकते हो| छू सकते हो नभ के तारे, अचल रहा जो अपने पथ पर लाख मुसीबत आने में जीने में या मर जाने में|

    वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
    वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो, तुम निडर हटो नहीं तुम निडर डाटो वहीं, सूर्य से बढ़े चलो चंद्र से बढ़े चलो, वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो|

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  107. हवा हू हवा मै, बसंती हवा हू, सुनो बात मेरी अनोखी हवा हू|

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  108. बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
    गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी।

    चंदा मामा दूर के पूआ पकावे गुड़ के
    अपने खाए थाली में मुन्ना को दे प्याली में।
    कहानी में परियों की कहानी, पंचतंत्र कहानी ।

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  109. बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
    गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी।

    चंदा मामा दूर के पूआ पकावे गुड़

    अपने खाए थाली में मुन्ना को दे प्याली में।

    कहानी में परियों की कहानी, पंचतंत्र कहानी ।

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  110. बचपन का सुखद अनुभव यह होता है कि हम चिंता मुक्त होते हैं। हमें लगता है की पूरी दुनिया हमारे लिए है और हम दुनिया के लिए और दुखद अनुभव या की हमारे मनपसंद कपड़े वह जूते बहुत जल्दी जल्दी छोटे हो जाते हैं। बचपन की दो कविताएं-मछली जल की रानी है, लकड़ी की काठी।

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  111. सुखद अनुभूति प्रत्येक वर्ष स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित गणित रेस में प्रथम पुरस्कार जीतना
    दुखद फुटबॉल मैच देखने के लिए पैदल 6km दूर घर से बिना बोले चला जाना वापस आने पर बहुत डांट खाना
    कविता बीर तुम बढ़े चलो
    कहानी झूरी के पास दो बैल थे

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  112. सवेरा कविता
    नहीं हुआ है अभी सवेरा पूरब की लाली पहचान चिड़ियों के जगने से पहले खाट छोड़ उठ गया किसान खिला पिलाकर बैलों को ले चला खेत पर काम

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  113. अकबर-बीरवल की कहानियाँ।
    पंचतंत्र की कहानियाँ । ये दो कहानी हमने अपने बचपन में बहुत सुना और पढ़ा है ।
    बचपन की पढ़ी दो कविता जो याद आती है -
    1]खूब लड़ी मर्दानी,वो तो झांसी वाली रानी थी ।
    2]वीर तुम बढ़े चलो,धीर तुम बढ़े चलो ।

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  114. बचपन की यादों मे एक दुःखद अनुभव-जब मै चौथी कक्षा मे पढ़ रहा था तो तलाब मे डूबकी लगाने और तैरने की आदत हो गई थी, एक दिन एक साथी के डूब जाने से मौत हो गई जो आँखों देखी दुःखद घटना थी।तब से डूबकी लगाना और तैरना एकदम बंद हो गया।
    बचपन की याद का एक सुखद अनुभव-जब तीसरी कक्षा में पढ़ता था तो पहली बार रेलगाड़ी मे बैठकर यात्रा करने का मौका मिला।खिड़की वाली सीट से बाहर देखने पर पेंड़-पौधों को दौड़ते भागते हुए देखकर जो सुखद अनुभव हुआ वह आजतक नहीं भूला पाया।
    पहली बार याद की गई कविता के कुछ अंश जो दीदी को पढ़ते हुए सुनकर याद किया था तब मै पढ़ना लिखना नही जानता था और उस समय की आयु भी याद नहीं है-
    मेरी गुड़िया रानी बोल
    क्योंं गुमसुम है मुँँह तो खोल।
    सजी-धजी दुल्हन-सी प्यारी
    जैसे चँदा की उजियारी।
    सवा लाख के जेवर तन पर,
    सुन्दरता तेरी अनमोल
    मेरी गुड़िया रानी बोल।

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  115. वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
    हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
    ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
    वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
    सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
    तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
    वीर तुम बढ़े चलो।धीर तुम बढ़े चलो।

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  116. बचपन शब्द का उच्चारण करने मात्र से ही मेरे बचपन की सारी यादें ताजा हो जाती हैं !

    बात है बहुत सालों पहले, बचपन के समय की। उन दिनों रोजाना स्कुल से आने के बाद शाम को (जेसा की हर स्कुली बच्चा करता है) हम लोग खेलने जाते थे पास के ही स्कुल ग्राउंड में । लेटेस्ट खेलों से लेकर पारम्परिक देसी खेल जेसे की क्रिकेट, बेडमिन्टन, गुल्ली डंडा, रामदोस्त, कंचे (अंटिया) सब बडे मजे से खेले जाते थे, आज के जेसे नहीं कि हर बच्चा टी. वी. से चिपका हो । आलम ये था की उस दौरान शाम सुबह तो जगह नहीं मिलती थी, खेलने के लिये तो फिर जल्दी किसी गुरगे को बिठा कर जबरन कब्जा जमाया जाता, कि पहले हम आएं हैं तो हमारी टीम यहां खेलेगी, और इस ही क्रम में कभी कभी पंगे भी हो जाते थे ।

    पहली टीम दुसरी टीम को कहती कि आ जाना कल शाम को चार बजे देख लेते हैं कि किसने असली मां का दुध पिया है, तो दुसरी टीम में से कोई पहलवान टाइप का लडका कहता कि कल क्या है आज ही देख लेते हैं, चल बता क्या करेगा हम सबके साथ । कोई बहुत बहसे होती व कभी कभी लडाई भी । पर अक्सर कल कल के चक्कर में कई लडाईयां टल जाया करती थी, क्यों कि दुसरे दिन दोनों ही टीमें नदारत होती थी फिर अक्सर बडा कोई सीनीयर मोस्ट व्यक्ती समझौता करा ही देता था, व फिर से वही खेल खेले जाते सदभावना के साथ ।

    तब गन्दे खेलों में से एक थी अंटीया (कंचे), मंजे हुए खिलाडी स्कुल की गन्दी हो चुकी खाकी पेन्ट की जेब में जब छन छन करते हुए कन्चे बजाते हुए शाम को जब ग्राउंड का रुख करते थे तो एसा लगता था की जेसे कोई बहुत बडे महान कंचेबाजखिलाडी आ रहे हैं। और वही बडे कलेक्शन रखने वाले जब कभी शाम को हार जाते थे तो मायुस चेहरा लिये घर जाते, उनका मुंह एसा लटक जाता जेसे उनसे कोई दुनिया की दौलत छीन कर ले गया हो । तब दोस्त लोग एक दुसरे को ढ़ाढ़स बंधाते की क्या फर्क पडता है आज हारें हैं तो कल वापस सारी अंटीया जीत भी लेंगे, और बाद में दुसरे दिन दुसरी पार्टी को हराया केसे जाए इसकी रणनितियां बनायी जाती थी ।

    अच्छे निशानेबाज बन्दे तो अपनी जेब में लकी वाला पानीचा कन्चा भी रखते थे (कहते यार ये मेरा लकी कन्चा है इससे परफेक्ट निशाने लगते है), कुछ तो बदमाश एसे थे की जब दुसरे का निशाना लगाने का नंबर आता था तो एक छोटा सा, या फिर काफी बडा सा कन्चा, रख देते थे, छोटा कन्चा होने से अक्सर सामने वाले के निशाने चुक जाते थे। अगर बडा कन्चा रख दिया जाता तो उस पर निशाना तो लगता पर वह अपने भारी वजन के कारण ज्यादा दूर नहीं जा पाता था व इस तरह से ज्यादा फिलडींग से श्याने खिलाडी बच जाते थे । उनमें से कुछ तो भारी गुरु घंटाल खिलाडी हुआ करते थे जो कि स्टील का छर्रा रखते थे, छर्रे से खेलने के दो फायदे थे एक तो दुसरे के दुसरे खिलाडी के निशाने कितने भी तेज क्यों ना हो, छर्रा ज्यादा वजन के कारण दूर नहीं जाता था व दुसरे पर गुस्सा निकालने के समय तो छर्रा जेसे बह्मास्त्र बन जाता था, नतीजा ये की सामने वाले की अंटी या तो फूट जाती या फिर ईतनी दुर चली जाती कि वो खिलाडी अंधेरा पडने तक फिलडींग ही करता रहता था ।

    कन्चे के तेज निशानेबाज खिलाडी तो जेसे उस समय के शार्पशुटर थे मानो, उनमें से कुछ तो पर्सनल केशियर या खजांची भी रखते थे जो की अपनी जेब में बहुत सारे कंचे रखता था व वक्त जरुरत उधार भी देता । मकर संक्रान्ति के दिन तो पुरे ग्राउंड में जगह नही मिलती थी खेलने के लिये व तब नये नये जगहों की तलाश की जाती थी, और वहां जा कर खेला जाता था। खेल प्रेमियों की नगरी कहा जाने वाले हमारे कस्बे कांकरोली में आए दिन तरह तरह के मेच व प्रतिस्पर्धाएं होती ही रहती थी । पहले से काफी सुविधाएं हो गई हैं यहां, जेसे छायादार स्टेडीयम, अच्छी समतल जमीन व अन्य ।

    पर अब में आज अपने उसी ग्राउंड को देखता हुं तो मन व्यथित हो उठता है कि एक समय ये भरा रहता था इतने यहां खिलाडी हुआ करते थे व आज पता नहीं क्या हो गया है कि ये ग्राउंड अक्सर सुनसान वीरान ही पडा रहता है।

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  117. मेरे जीवन की सुखद घटना है।जब मैं तीसरी कक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ और शिक्षकों के द्वारा बहुत सराहा गया था।दुखद घटना जब मैं छठी क्लास का परीक्षा देने के बाद मियादी बुखार से गंभीर रूप से बीमार हो गया था।कविता-1:हवा हूँ हवा मैं बसंती हवा हूँ ।सुनों बात मेरी अनोखी हवा हूँ ।2:दीप जलाओ दीप जलाओ आज दिवाली रे।

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  118. in my school days particularly in primary school days were very interesting and full of joy. school teachers were very much caring. they had taught many things that all are still valuable and will be remain forever. sports and other Co curricular activities were many including clay art. I remember many students with unhealthy socio economic background had to face many problems. mostly they were irregular. but we all had great experience.

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  119. बचपन बात यह है कि नटखटपन के लिए पिता जी का डाट खानी पड़ी। सुखद पल यह है कि जब तीसरी कक्षा में प्रथम स्थान पाया तो मेरे पिताजी को बहुत खुशी हुई। कविता-दीप जलाऔ दीप जलाऔ आज दीवाली और आ रे
    बादल काले बादल।

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  120. बचपन बहुत न्यारा होता है साथ ही उस की खट्टी मीठी यादें। जब मेरा विधालय में नामांकन हुआ वो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति था। एक दिन विधालय देर से पहुंचा तो दुख अनुभूति हुई।
    शुरुआत के वर्षों में सीखी गई कविता
    सूरज ने दी जब खिड़की खोल
    उठी कोकिला कू कू बोल
    जाग उठे सब चिड़िया तोते
    जो अच्छे बच्चे होते
    सोकर समय न खोते
    तुम भी उठो देर न लगाओ
    उठो चलो पाठशाला जाओ।

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  121. बचपन बात यह है कि नटखटपन के लिए पिता जी का डाट खानी पड़ी। सुखद पल यह है कि जब तीसरी कक्षा में प्रथम स्थान पाया तो मेरे पिताजी को बहुत खुशी हुई। कविता-दीप जलाऔ दीप जलाऔ आज दीवाली और आ रे
    बादल काले बादल।

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  122. Machhli jal ki rani hai jiban uski pani hai hat lagao dar jayegi bahar nikalo mar jayegi

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  123. पहली कविता आ रे बादल कारे बादल गर्मी दूर भगा रे बादल झम झम पानी बरसा बादल
    दूसरी कविता वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो

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  124. Philo se not hansna sikho bhouro se Nitya gana.

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  125. बचपन शब्द आते ही अपनी यादों में खो जाता हूं,क्योंकि बचपन हर गम से बेगाना होता है!यह बड़ा होने के बाद पता चलता है!मेरा बचपन बिहार के शोक नाम से जाने वाली नदी कोसी के बीच में बीता जहां चारों तरफ पानी ही पानी होता था !वहां के लोग सावन-भादव महीने में किस तरह के जीवन काटते थे ,कैसे लोगों के घर और जमीन कोसी नदी के द्वारा काटकर अपने में समाहित कर लेते थे!लोग पुनः दूसरे जाकर बसते थे,वह दुख भरी कहानी अभी भी याद आती है!हम लोग नाव पार होकर विद्यालय जाते थे!पढ़ाई में अग्रणी था! शिक्षकों का सम्मान करता था, जिनके कारण मुझे भी विद्यालय में सम्मान मिलता रहा उन्हीं पूज्य गुरु जनों के कारण मैंने भी शिक्षक बनने का मौका पाया जो हमें गौरवान्वित करती है!बचपन की कविताएं आज भी बच्चों को गाकर सुनाता हूं!बच्चे काफी खुश होते हैं जैसे- 1-दीप जलाओ दीप जलाओ आज दिवाली रे खुशी-खुशी सब हंसते आओ आज दिवाली रे मैं तो लूंगा नए खिलौने, तुम भी लेना भाई रे नाचो गाओ खुशी मनाओ आज दिवाली आई रे 2- भालू वाला आएगा भालू नाच दिखाएगा आदि!

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  126. Md Izharul Haque बचपन की यादों मे एक दुःखद अनुभव-जब मै अष्टम कक्षा मे पढ़ रहा था तो तलाब मे डूबकी लगाने और तैरने की आदत हो गई थी, एक दिन एक साथी के डूब जाने से मौत हो गई जो आँखों देखी दुःखद घटना थी।तब से डूबकी लगाना और तैरना एकदम बंद हो गया।
    बचपन की याद का एक सुखद अनुभव-जब तीसरी कक्षा में पढ़ता था तो पहली बार रेलगाड़ी मे बैठकर यात्रा करने का मौका मिला।खिड़की वाली सीट से बाहर देखने पर पेंड़-पौधों को दौड़ते भागते हुए देखकर जो सुखद अनुभव हुआ वह आजतक नहीं भूला पाया।
    पहली बार याद की गई कविता के कुछ अंश जो दीदी को पढ़ते हुए सुनकर याद किया था तब मै पढ़ना लिखना नही जानता था और उस समय की आयु भी याद नहीं है-
    मेरी गुड़िया रानी बोल
    क्योंं गुमसुम है मुँँह तो खोल।
    सजी-धजी दुल्हन-सी प्यारी
    जैसे चँदा की उजियारी।
    सवा लाख के जेवर तन पर,
    सुन्दरता तेरी अनमोल
    मेरी गुड़िया रानी बोल।

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  127. Bachpan mein rabindranath tagore ka ek Kavita mujhe bahut yad aata hai amader choto nodi chole anke banke baisac master hathu jal thake

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  128. विद्यालय प्रत्येक दिन जाना और पढ़ाई के साथ- साथ दोस्तो से मिलना-जुलना एवं खेलना-कूदना सुखद अनुभूति था।और जिस दिन विद्यालय किसी कारण से जा नही पाता था वो दु:खद अनुभूति था।
    1)कविता:-
    आ रे बादल काले बादल
    गरमी दुर भगा रे बादल
    तन से बहुत पसीना बहता
    हाथ सभी के पंखा रहता
    पिट-पिट बूंदें बरसा बादल
    झक-झक पानी बरसा बादल
    ................
    ................।
    2)कविता--सवेरा
    नही हुआ है अभी सवेरा
    पूरब की लाली पहचान,
    चिड़ियों के जगने से पहले
    खाट छोड़ उठ गया किसान,
    खिला-पिला कर बैलों को
    ले चला खेत पर काम।

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  129. खड़ा हिमालय बता रहा है
    डरो न आंधी पानी में,
    खड़े रहो तुम अविचल होकर
    हर संकट तूफानी में।

    डिगो न अपने पथ से,
    तो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे।
    तुम भी ऊंचा उठ सकते हो
    छू सकते हो नभ के तारे।

    अचल रहा जो अपने पथ पर
    लाख मुसीबत आने में,
    मिली सफलता जग में उसको
    जीने में मर जाने में ।

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  130. वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
    हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
    ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
    वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
    सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
    तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
    वीर तुम बढ़े चलो।धीर तुम बढ़े चलो।

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  131. दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त करना एक सुखद अनुभूति।
    कविता माखनलाल चतुर्वेदी जी की कविता पुष्प की अभिलाषा
    कहानी रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित काबुलीवाला

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  132. दीप जलाओ दीप जलाओ आज दिवाली आई रे मैं तो लूंगा खेल खिलौने तुम भी लेना भाई नाचो गाओ खुशी मनाओ आज दिवाली आई रे आज दुकान में खूब सजी हैं घर भी जगमग करते हैं नाचो गाओ खुशी मनाओ आज दिवाली आई रे

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  133. This content is very useful for us which encourage to learn more about children.In childhood one poem I like to much,Vir tum badge chelo.....

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  134. अपने बचपन में सुखद स्मृति:-जब मैं 07 वर्ष का था, तो अपने विद्यालय में खेल-कूद प्रतियोगिता आयोजित की गई थी।जिसमें 100 मीटर दौड़ में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।मैं बहुत खुश हुआ था।
    दुखद स्मृति:-हम दो दोस्त थे,दोनों एक-दूसरे का हमेशा सहयोग पढऩे-लिखने, खेलने-कूदने, तथा शिक्षक के कार्यों में हमेशा आगे रहते थे।किन्तु मेरा दोस्त 09 वर्ष की अवस्था मेंं पंचतत्व में विलीन हो गए।जिससे मुझे आज भी दोस्त की याद आती है।
    बचपन की दो कविताएं आज भी मुझे याद है जो बहुत ही रसीले सुनने में लगते थे:(1)हवा हूँ, हवा हूँ।
    बसन्ती हवा हूँ।जिधर चाहती हूँ, उधर घुमती हूँ.........।
    (2)खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो न ,आँधी-पानी से,खड़े रहो,तुम अविचल होकर, हर संकट तूफानों में.... ...।

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  135. बचपन बहुत प्यारा होता है साथ ही उस की खट्टी मीठी यादे। जब विद्यालय मे मेरा नामांकन हुआ वो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है। एक दिन विद्यालय विलंब से पहुंची वो दुखद अनुभूति। शुरुआती वर्षो मे सीखी गई कविता _ वसंती हवा, हम सब सुमन एक उपवन के ।

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  136. सुखद अनुभव- बचपन में सभी साथियों के पास छाता था मेरे पास छाता नहीं था मुझे भींग कर विद्यालय जाना पड़ता था। दुखद अनुभव- माता पिता से पैसा लेकर साथियों के साथ मेला देखने जाना। कविता-1 धमकुडाकूद बाध्यि बाजे बाजच्छे केमं ढक आल्लादे के नृत्य करे ताक धिना धिन ताक। 2 सकाले उठिया आमि मने मने बलि सारा दिन आमि जेन भाल हैए चलि।

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  137. Childhood is very interesting and memorable.My junior school experience is very good.

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  138. बचपन की बहुत सारी यादें कुछ मीठी कुछ खट्टी अपने जीवन से जुड़ी रहती हैं जिसे आज भी याद करता हूँ ।बचपन में स्कूल में कुछ सीखी हुई कविताओं में एक ये है। माखनलाल चतुर्वेदी के द्वारा रचित पुष्प की अभिलाषा है ।एवं पन्चत्न्त्र की कहानियाँ पढ़ने में बहुत ही रूचिकर थी ।

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  139. आओ भाई खेले खेल
    चलती हैं अब अपनी रेल
    हम इंजन हैं बख हख करते
    हम ड़ंबे हैं छुक छुक करते
    सीठी देती चलती रेल
    कैसा बढियां है ये खेल।

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  140. फूल की अभिलाषा
    माखनलाल चतुर्वेदी मुझे तोड़ लेना वरमाली उस पर पर तू देना फेक

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  141. Dinesh Prasad Shanti Rani middle school Bara Ghaghra Ranchi.
    सूरज तपता धरती जलती, गरम हवा जोरों से चलती|
    तन से बहुत पसीना बहता, हाथ सभी का पंखा रहता|
    आ रे बादल काले बादल, गर्मी दूर भगा रे बादल|...
    फुलकुमारी
    एक था राजा, एक थी रानी, उसकी बेटी थी फुलकुमारी| वह जोर जोर से हंसती थी| एक दिन राजा ने कहा, बेटी तुम जोर जोर से क्यों हंसती हो? तब से सब फुलकुमारी उदास रहने लगी| अब वह न तो हंसती थी न खेलती थी और न खाती थी| ...

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    1. मेरे बचपन की सुखद घटना जब मैं चौथा वर्ग में पढ़ता था तो मुझे उच्च वर्ग की लड़कियों के साथ खेलने का मौका देता था और मुझे "सीताचोरी"खेल में सीता बनने का खेल मिलता था । मैं सीता के रूप में विपक्ष खिलाड़ियों से खेलने के दौरान बिना स्पर्श किए बड़ी चालाकी से अपनी टीम में वापस लक्ष्य पर आता था और इस तरह से हमारी टीम की जीत होती थी और मुझे बहुत सुखद आता था ।
      दूसरी दुखद घटना तब हुआ था जब मैं स्कूल के बच्चों के साथ कब्बडी खेल रहे थे तब खेलने के दौरान एक लड़का ने मूझे धक्का मार कर जमीन पर गिरा दिया जिससे मुझे को दाहिना हाथ में काफ़ी चोट लगा था । इस तरह से मैं एक माह तक कुछ भी नहीं लिख सकता था जिसे मेरा बहुत दुखद दिन हुआ था ।
      इसके अलावा अपने शुरुआती वर्षों में सीखी गई दो कविता साझा करने जा रहा हूं जो इस प्रकार है -
      1. "वीर तुम बढ़े चलो "
      वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो
      हाथ में ध्वजा रहे, बाल दल सजा रहे ।
      ध्वज कभी झुके नहीं,दल कभी रुके नहीं
      वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो ।।
      2. " भालुवाला "
      देखो भालूवाला आया
      काला - काला भालू लाया ।
      डुग डुग डुग डुग डुगी बाजे
      जमा हुई लड़कों की टोली।
      भालू नाच दिखाएगा
      पैसा लेकर जाएगा ।

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  142. बचपन में बारिश में भींगना सुखद अनुभव था और घर पहुँचने के बाद अपनी माता की भरपूर डांट मिलना।

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  143. Shailbala Kumari KGBV Jamua Giridih

    Sukhad anubhuti yah hai ki mujhe chitrakala ke Karya main paratha puraskar mila tha aur dukhad ye ki meri aak chitrakala pradarshni main 2nd prize mila tha.

    Veer tum barde chalo dheer tum barde chalo
    Hath main dhwaja rahe bal dal saja rahe..........

    Deep jalawo deep jalawo
    Aaj deewali aayi
    Re main tou lunga khel khilne tum bhi lena bhai
    Nacho gawo khushi manawo aaj deewali aayi.......

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  144. बचपन में मुझे दुखद अनुभूति तब हुआ जब मैं साइकिल से गिरा था और कुछ दिनों के लिए विधालय नहीं जा सका|फिर सुखद अनुभव तब हुआ जब मैं स्वस्थ होकर विद्यालय जाने लगा|मेरी सीखी गई दो कहानियाँ_कौआ और घड़ा, मोची और बौने हैं|

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  145. हवा हुँ हवा मै बसंती हवा हुँ सुनो बात मेरी अनोखी हवा हुँ।

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  146. Two story of Premchand-IDGAH and DO BAILO KI KATHA.Poem of Makhan lal chaturvedi-Prem ki abhilasha.

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  147. बचपन में बारिश में भीगना सुखद अनुभव होता था और घर आते ही माता की काफी डांट फटकार सुनकर अपना गम दिखाना होता था जब तक माता की गुस्सा शांत ना होता तब तक उसी रूप में रहता था पुनः दूसरा दिन वही शुरू हो जाता था।

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  148. बचपन की यादे बहुत प्यारी होती है। जब विद्यालय मे नामकन हुआ मेरा वो मेरे बचपन का सुखद अनुभूति है।
    एक दिन शिक्षाक से डाँट मिली थी वो दुखद अनुभूति।
    शुरुआती बर्षो मे सीखी गई कविता -
    1. वीर तुम बढे चलो, धीर तुम बढे चलो।
    2.खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।
    कहानिया -
    1.पञ्चतरत्र की काहिनिया।
    2.अकबर बीरबल की कहानी।

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  149. बचपन में मेरे सुखद अनुभव निम्न हैं
    ग्राम में लगने वाला मेला घूमने गए थे।
    मेले में दंगल में पहलवानों को कुश्ती लड़ते हुए देखा था।
    तेज हवा में फिरकी चलाना।
    ग्राम बडैरा बुजुर्ग तहसील डबरा जिला ग्वालियर में पहाड़ी की चढ़ाई कर चोटी पर बैठना।कविता लिखना।कहानी लिखना।देश में होने वाली किसी घटना विशेष पर दोस्तों के साथ विचार विमर्श करना।खेत पर जाना, चने खाना। सर्दी के मौसम में अलाव पर तापना। वरसात के मौसम मे नहाना।रामलीला देखना। कृष्ण लीला देखना।मदारी एवं जादूगर का खेल देखना। वगीचे में पानी देना।

    बचपन में दुखद अनुभव निम्न हैं।
    बुजुर्गों द्वारा खेलने की मना करना।
    चचेरे बड़े भाई का असमय गुजर जाना।
    पडौसियो द्वारा झगड़ा करना।
    पंगत में भोजन खाने के लिए जाने का मौका न मिलना।
    कहानी,,,,,,, बचपन में माताजी तरह तरह की कहानी सुनाती थी।उनमें से एक थी श्रवण कुमार की कहानी। तुलसी विवाह की कहानी।शंकर जी एवं श्री राम विवाह की कहानी।मैं भी अपने साथियों को तरह तरह की कहानी सुनाता था।

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  150. हीरा और मोती-दो बैल की कहानी ,गुरु भक्त आरुणि ,काबुलीवाला आदि कुछ भावनात्मक कहानियां पाठ्य पुस्तक में थी जो दिल को छू लेती थी।
    बचपन की सुखद यादों में शनिवार को दोस्तों के साथ जंगलों के विचरण करना और बेर,कनोद,खुखड़ी ,फुटका आदि को जंगलों से लाना और अपने आप को खोजकर्ता समझना था।
    जहाँ तक दुखद यादों की बात है तो अच्छे शिक्षक होने के बावजूद पेड़ के नीचे तो कभी निजी भवनों के बरामदे में कक्षा का संचालन होना और भव्य विद्यालय परिसर का आभाव आज भी मन को कचोटता है।

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  151. शिवपूजन सहाय जी का माता का आँचल एवं कविता हवा हूँ हवा मैं बसंती हवा हूँ, मुझे बहुत ही रोचक लगता है ।

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  152. Rain (🌧️) rain go away,
    Come again another day.
    Little Jhonny wants to play,
    Rain (🌧️) rain go away.

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  153. बचपन में गुरुजी चौक पकड कर हमें लिखना सिखाया था नहीं लिख पाने पर डांटते थे

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  154. आ रे बादल काले बादल
    गरमी दूर भगा रे बादल ।
    तन से बहुत पसीना बहता
    हाथ सभी के पंखा रहता ।
    रिम झिम बुंंदे बरसा बादल
    आ रे बादल काले बादल।

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  155. बचपन की यादें बहुत प्यारी होती है।
    1 खड़ा हिमालय बता रहा है
    डरो न आंधी पानी में,
    खड़े रहो तुम अविचल होकर
    हर संकट तूफानों में
    डीगो ना अपने पद से
    तो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे
    2 हम सब सुमन एक उपवन के
    एक हमारी धरती सबकी
    जिसकी मिट्टी में जन्मे हम
    मिली एक ही धूप हमें है
    खींचे गए एक जल से हम।
    पले हुए हैं झूल झूल कर
    पलनो में हम सब एक पवन के
    हम सब सुमन एक उपवन के।।

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  156. आमवाला
    आओ लड़को लाया आम
    हरी लाल ओ पीला आम
    सभी फलों का राजा आम
    मीठा -मीठा ताजा आम
    नहीं अधिक पैसे का काम
    ले लो -ले लो खा लो आम।

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  157. पहली कविता आ रे बादल कारे बादल गर्मी दूर भगा रे बादल झम झम पानी बरसा बादल
    दूसरी कविता वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो

    बचपन में पानी में भीगना गधों और नालियों में छपाक छपाक उछलना की सुखद अनुभूति

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  158. सुखद अनुभव- एक बार विद्यालय से लौटते समय रास्ते में खेल-कूद प्रतियोगिता आयोजित हो रही थी। मैंने भी दौड़ में भाग लिया और प्रेम आया।
    दुखद अनुभव- मेरा पसंदीदा कमीज खो गया। जिससे मुझे बहुत दुख हुआ।
    कहानी- कछुआ और खरगोश की कहानी।
    कविता- मछली जल की रानी है।

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  159. Aa re baadal aa re aa Garmi door bhaga re baadal.

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  160. भालू वाला
    देखो भालू वाला आया
    काला-काला भालू लाया
    गुड गुड डुगिया बोली
    जमा हुई लड़कों की टोली
    भालू नाच दिखाएगा पैसे लेकर जाएगा।

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  161. सुखद अनुभव- एक बार विद्यालय से लौटते समय रास्ते में खेल-कूद प्रतियोगिता आयोजित हो रही थी। मैंने भी दौड़ में भाग लिया और प्रथम आया।
    दुखद अनुभव- मेरा पसंदीदा कमीज खो गया। जिससे मुझे बहुत दुख हुआ।
    कहानी- कछुआ और खरगोश की कहानी।
    कविता- मछली जल की रानी

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  162. Baar-baar aati hai mujhko,madhur Yaad bachpan teri.Gaya legaya tu jeewan ki sabse khushi mast meri.khushi ke saath bachpan mein kuchh yadgar ghatnaein bhi shamil hoti hain Jo yaadgari Ka ek hissa banjati hai

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  163. Baar-baar aati hai mujhko,madhur Yaad bachpan teri.Gaya legaya tu jeewan ki sabse khushi mast meri.khushi ke saath bachpan mein kuchh yadgar ghatnaein bhi shamil hoti hain Jo yaadgari Ka ek hissa banjati hai

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  164. सन1988 की मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण होने पर मुझे बेहद खुशी हुई इतनी खुशी कि रात में नींद नहीं आई. स्कूल के दिनों में मै और मेरा सहपाठी स्कूल के लिए कुछ सामग्री खरीदने बाज़ार गया लेकिन रास्ते में जाते वक़्त पैसे कहीं खो गये यह बड़ा दुखद घड़ी रहा.
    दीप जलाओ दीप जलाओ
    आज दीवाली रे
    मै तो लूंगा नये खिलोने
    आज दीवाली रे
    नये- नये मैं कपड़े पहनूं
    आज दीवाली रे.

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  165. पंचतंत्र की कहानियाँ|ये कहानी हमने अपने बचपन में बहुत सुना और पढ़ा है ।इसके अलावा अपने शुरुआती वर्षों में सीखी गई दो कविता साझा करने जा रहा हूं जो इस प्रकार है -
    1. "वीर तुम बढ़े चलो "
    वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो
    हाथ में ध्वजा रहे, बाल दल सजा रहे ।
    ध्वज कभी झुके नहीं,दल कभी रुके नहीं
    वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो ।।
    2. " भालुवाला "
    देखो भालूवाला आया
    काला - काला भालू लाया ।
    डुग डुग डुग डुग डुगी बाजे
    जमा हुई लड़कों की टोली।
    भालू नाच दिखाएगा
    पैसा लेकर जाएगा ।

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  166. बचपन हमलोग स्कूल जाते थे तो रास्ते में नदी मिलता था|पुल नहीं था|बरसात में बस्ता को सिर में रखकर नदी पार करते थे|

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  167. बचपन बहुत प्यारा होता है साथ ही उस की खट्टी मीठी यादे। जब विद्यालय मे मेरा नामांकन हुआ वो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है। एक दिन विद्यालय विलंब से पहुंची वो दुखद अनुभूति। शुरुआती वर्षो मे सीखी गई कविता _ वसंती हवा, हम सब सुमन एक उपवन के और बांग्ला में छोटो नदी ।

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  168. विद्यालय में प्रतिदिन उपस्थित होना, सहेलियों से मिलना, खेलना-कूदना, पढ़ना-लिखना सुखद अनुभूति थी और जिस दिन मैं किसी कारणवश विद्यालय नहीं जा पाती थी वह मेरे लिए दुखद अनुभूति थी। मेरी पसंद की कविता माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित "पुष्प की अभिलाषा" तथा केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित "बसंती हवा" है।

    "पुष्प की अभिलाषा"

    चाह नहीं मैं सुरबाला के
    गहनों में गूँथा जाऊँ,
    चाह नहीं, प्रेमी-माला में
    बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
    चाह नहीं, सम्राटों के शव
    पर हे हरि, डाला जाऊँ,
    चाह नहीं, देवों के सिर पर
    चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
    मुझे तोड़ लेना वनमाली!
    उस पथ पर देना तुम फेंक,
    मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
    जिस पथ जावें वीर अनेक।

    "बसंती हवा"

    हवा हूँ, हवा मैं
    बसंती हवा हूँ।

    सुनो बात मेरी -
    अनोखी हवा हूँ।

    बड़ी बावली हूँ 
    बड़ी मस्तमौला।
    नहीं कुछ फ़िकर है
    बड़ी ही निडर हूँ 
    जिधर चाहती हूँ
    उधर घूमती हूँ
    मुसाफिर अजब हूँ।

    न घर-बार मेरा,
    न उद्देश्य मेरा,
    न इच्छा किसी की,
    न आशा किसी की,
    न प्रेमी न दुश्मन,
    जिधर चाहती हूँ
    उधर घूमती हूँ।

    हवा हूँ, हवा मैं
    बसंती हवा हूँ!

    जहाँ से चली मैं
    जहाँ को गई मैं -
    शहर, गाँव, बस्ती,
    नदी, रेत, निर्जन,
    हरे खेत, पोखर,
    झुलाती चली मैं।
    झुमाती चली मैं!

    हवा हूँ, हवा मै
    बसंती हवा हूँ।

    चढ़ी पेड़ महुआ,
    थपाथप मचाया;
    गिरी धम्म से फिर,
    चढ़ी आम ऊपर,
    उसे भी झकोरा,
    किया कान में ‘कू’,
    उतरकर भगी मैं,
    हरे खेत पहुँची -
    वहाँ, गेंहुँओं में
    लहर खूब मारी।
    पहर दो पहर क्या,
    अनेकों पहर तक
    इसी में रही मैं!
    खड़ी देख अलसी
    लिए शीश कलसी,
    मुझे खूब सूझी -
    हिलाया-झुलाया
    गिरी पर न कलसी!
    इसी हार को पा,
    हिलाई न सरसों,
    झुलाई न सरसों,

    हवा हूँ, हवा मैं
    बसंती हवा हूँ!

    मुझे देखते ही
    अरहरी लजाई,
    मनाया-बनाया,
    न मानी, न मानी;
    उसे भी न छोड़ा -
    पथिक आ रहा था,
    उसी पर ढकेला;
    हँसी ज़ोर से मैं,
    हँसी सब दिशाएँ,
    हँसे लहलहाते
    हरे खेत सारे,
    हँसी चमचमाती
    भरी धूप प्यारी;
    बसंती हवा में
    हँसी सृष्टि सारी!

    हवा हूँ, हवा मैं
    बसंती हवा हूँ!

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  169. Bachpan ka sari yade bohut hi sukhad lagti hai unme se ak batati hu teacher or dosto ke sath picnic par jana

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  170. Bachman ki Dukhad Anubhuti:Jab Papa ne jabardasti pakarkar padhne k liae School le Gaye
    Sukhad Anubhuti:Jab sichhika ne toffi dete huae name puchhi aur Aananddai kachh M le gayi.
    1.Hum bhi agar bachhe hote
    Kahane ko milta mujhko laddu
    Happy birth day to you.
    2. Hum pachhi unmukt gagan k
    Pinjra bandh na rah payengae
    Hum bahta jal pine wale
    Mar jayengae bhukhe phase.
    ..M.s.kusunda,Matkuria,Dhanbad-1

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  171. सुखद अनुभूति- हमउम्र बच्चों के साथ खेलना|
    दुखद अनुभूति- पिताजी की डाॅंट|
    पसंदीदा कविता- दूर देश से आई तितली
    चंचल पंख हिलाती
    फूल- फूल पर कली- कली पर
    इतराती इठलाती|
    कितने सुंदर हैं पर इसके
    जगमग रंग रंगीले
    लाल हरे बैजनी बसंती
    काले नीले पीले|
    पसंदीदा कहानी- "बकरी का बच्चा और भेड़िया "

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  172. वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
    हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
    ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
    वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
    सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
    तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
    वीर तुम बढ़े चलो।धीर तुम बढ़े चलो।

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  173. Jab main chhota tha To main Pual main aag laga diya tha Jo jal kar rakh ho Gaya.Yah meri dukhad ghatna thi.Jab main class 3 main 1st aya to mujhe us din bahut achha laga tha.
    Mere bachpan ki do pasandida kabita hai-
    1.Lala ki ne kela khaya
    Kela kha kar muhn pichkaya
    Muhn pichkakar chhadi uthaya.........
    2.pussy cat pussy cat
    Where have you been?
    I have been to London
    To look at the queen.
    What did you do there?
    I fritened a little mouse
    Under a chair.

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  174. Anil Kumar Verma
    UMS HUDMUD Simaria Chatra
    (1) कविता
    आ रे बादल काले बादल
    गरमी दूर भगा रे बादल
    तन से बहुत पसीना बहता
    हाथ सभी के पंखा रहता
    टिप टिप बूंदें बरसा बादल
    झम झम पानी बरसा बादल
    ले कर अपने साथ दिवाली
    सरदी आई बड़ी निराली
    शाम सवेरे सरदी लगती
    पर स्वेटर से है वह भागती
    रात और दिन हुए बराबर
    सोते लोग निकल कर बाहर
    सरदी बिलकुल नहीं सताती
    सरदी जाती गरमी आती।
    (2) कविता
    आओ भाई खेले खेल
    चलती हैं अब अपनी रेल
    हम इंजन हैं बख हख करते
    हम ड़ंबे हैं छुक छुक करते
    सीठी देती चलती रेल
    कैसा बढियां है ये खेल।

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  175. खड़ा हिमालय बता रहा है
    डरो न आंधी पानी में,
    खड़े रहो तुम अविचल होकर
    हर संकट तूफानी में।

    डिगो न अपने पथ से,
    तो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे।
    तुम भी ऊंचा उठ सकते हो
    छू सकते हो नभ के तारे।

    अचल रहा जो अपने पथ पर
    लाख मुसीबत आने में,
    मिली सफलता जग में उसको
    जीने में मर जाने में ।

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  176. बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।
    गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी।
    चिंता रोहित खेलना खाना वह घूमना स्वच्छंद।
    कैसे भूला जा सकता है बचपन की अतुलित आनंद ।।

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  177. यह कदम का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे।
    मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।
    ले देती यदि बांसुरी तुम तो पैसे वाली।
    किसी तरह नीचे हो जाती यह कदम की डाली।
    तुम्हें ना ही कुछ कहता पर मैं चुपके चुपके आता।
    उस नीची डाली से अम्मा ऊंचे पर चला जाता।
    वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
    अम्मा अम्मा कह बंसी के स्वर में तुम्हें बुलाता

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  178. विद्यालय में शिक्षकों द्वारा बच्चों को पिटाई होती थी जो बहुत पीड़ादायक होती थी। हर शनिवार को अंताक्षरी होती थी जो बहुत मनोरंजक होती थी।
    कहानियां और कविताएं रटवायीं जाती थी ❗

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  179. baar baar aati hai mujhako madhur aad bachapan Teri gaya le gaya tu Johan ki sabre mast khushi merit.

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  180. सूरज तपता ,धरती जलती,। गरम हवा जोरों से चलती। तन से बहुत पसीना बहता,। हाथ सभी के पंखा रहता। आ रे बादल,काले बादल,। गरमी दूर भगा रे बादल।

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  181. बचपन में बारिश में भीगना अच्छा लगता था और घर में आकर डांट सुनना बहुत बुरा लगा था

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  182. हवा हूं हवा मैं बसंती हवा हूं सुनो बात मेरी अनोखी हवा जिधर चाहती हूं उधर घूमती हूं मुसाफिर अलग है घर बार मेरा नाम देश मेरा नक्शा किसी ना किसी दुश्मन जिधर चाहती है उधर घूमती हूं हवा हूं हवा मैं बसंती हवा बसंती हवा

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  183. बचपन बहुत प्यारा होता है साथ ही उस की खट्टी मीठी यादे। जब विद्यालय मे मेरा नामांकन हुआ वो मेरे बचपन का सबसे सुखद अनुभूति है। एक दिन विद्यालय विलंब से पहुंची वो दुखद अनुभूति। शुरुआती वर्षो मे सीखी गई कविता _ वसंती हवा, हम सब सुमन एक उपवन के ।

    Shailesh Kumar Mahto,H.S.Karaikela, West Singhbhum,Jharkhand.

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  184. Hawa hoon hawa mai vasanti hawa hoon and khadafy himalaya bata rahah daro n andhi pani se

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  185. बचपन खुशी और दिलचस्प से भरा है जिसे हम आनंद ले रहे थे और परिवार और पड़ोसियों से सच्चा प्यार प्राप्त किया।

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  186. हमारे बचपन की दुखद अनुभूति - जब मेरा नामांकन विद्यालय में पहली बार हुआ तब मैं काफी डरा और सहमा हुआ था और बार-बार यही सोच रहा था की विद्यालय कैसे जाऊं और वहां कैसे पढ़ाई करें इस बात का उलझन बार-बार दिमाग में चल रहा था जो मेरे लिए काफी दुखद अनुभूति का एहसास दिलाता है|
    सुखद अनुभूति- विद्यालय जाने और फाइनल परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त होने पर मुझे काफी खुशी लगा और अच्छा महसूस हुआ जो सुखद अनुभूति का परिचायक है|
    बचपन के शुरुआती दिनों में लिखी गई दो कहानियों की सूची- मैंने बचपन के शुरुआती दिनों में दो कहानियां सीखी जो निम्न है:-
    1.कबूतर और जाल की कहानी|
    2. प्यासी कौवे की कहानी|
    बचपनन के दिनों की सीखी गई दो कविताएं है:-
    1.हिमालय
    खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो नहीं आंधी पानी में| खड़े रहो तुम अविचल होकर, हर संकट तूफानी में| डिगो ना अपने प्राण से तो तुम, सब कुछ पा सकते हो| छू सकते हो नभ के तारे, अचल रहा जो अपने पथ पर लाख मुसीबत आने में जीने में या मर जाने में|

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  187. Balu men anguliyon se khurech kar kuchh likhana .fir balu men hath pair dalkar uska chitra banana

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  188. Hawa hun hawa Basanti hawa hun ........

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  189. बचपन के दिनों में प्रायः सभी लोगों के ज़िन्दगी में सुखद एवं दुखद स्मृति होती है।मेरे बचपन के दिनों कि सुखद स्मृति में बारिश के दोनो में भींगना,अपने दोस्तों के साथ खेलना,विद्यालय का प्रथम दिन शामिल है जबकि दुखद स्मृति में बचपन में एक बार गंभीर बीमारी से पीड़ित होने की याद आती है जिसमें मेरे बचने की उम्मीद बिल्कुल ही न थी।इसके अलावे मेरे बचपन की दो कहानी में 1.कछुआ एवं खरगोश की कहानी
    2. पंच परमेश्वर की कहानी
    दो कविताओं में
    1.मछली जल की रानी है
    2.चंदा मामा दूर के
    राजेंद्र पंडित AT
    PS chandsar,Mahagama

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  190. विद्यालय प्रत्येक दिन जाना और पढ़ाई के साथ- साथ दोस्तो से मिलना-जुलना एवं खेलना-कूदना सुखद अनुभूति था।और जिस दिन विद्यालय किसी कारण से जा नही पाता था वो दु:खद अनुभूति था।
    1)कविता:-
    आ रे बादल काले बादल
    गरमी दुर भगा रे बादल
    तन से बहुत पसीना बहता
    हाथ सभी के पंखा रहता
    पिट-पिट बूंदें बरसा बादल
    झक-झक पानी बरसा बादल
    ................
    ................।
    2)कविता--सवेरा
    नही हुआ है अभी सवेरा
    पूरब की लाली पहचान,
    चिड़ियों के जगने से पहले
    खाट छोड़ उठ गया किसान,
    खिला-पिला कर बैलों को
    ले चला खेत पर काम।रणजीत प्रसाद, मध्य विद्यालय मांडू, रामगढ़।

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  191. Jhony jhony yes papa eating sugar no papa telling lies no papa open your mouth ha ha ha

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  192. एक दुखद अनुभव -
    विद्यालय में मूलभूत सुविधाओं का अभाव
    सुखद अनुभव -
    विद्यालय की मूलभूत सुविधाओं की अनुपलब्धता ने वैकल्पिक व्यवस्था के साथ पढ़ना सिखाया ।
    दो कविता -
    करो मित्र की मदद हमेशा
    तन से मन से खुश होकर
    उसका भी जब काम पड़े
    तुम करो उसे पूरा हंसकर

    दूसरी कविता -
    उठो सबेरे रगड़ नहाओ
    ईश विनय कर शीश नवाओ
    रोज बड़ों को छुओ पैर
    करो किसी से कभी ना बैर
    सबसे ऊंची कौन कमाई
    झट से कह दो एक पढ़ाई ।
    -दिलीप कुमार कर्ण
    सहायक शिक्षक
    बीएसएस बालिका उच्च विद्यालय
    धनबाद ( झारखंड ) ।

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