सीखने के परिवेश का सृजन करने के लिए अपने स्वयं के कुछ तरीके सोचें और ओने विचार साझा करें I
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परिवेश विशेष पर बच्चे की सीखने की क्षमता निर्भर करता है।बच्चे की रूचि के परिवेश का निर्माण करना आवश्य है।
ReplyDeleteSchool ka parisar avm classroom
Deleteko akarshk, bhaymukt aur anandayee hona chahiye.
Kamal Champia
Goilkera
P. Singhbhum.
बच्चो को सीखने के उनके परिवेश के बहुत योगदान है।उसी परिवेश को जोड़कर नए परिवेश के निर्माण।परिवेश के निर्माण के समय बच्चो की रुचि का विशेष ख्यल किया जाना चाहिये।उनके उम्र उनके मानसिक उम्र कस ख्याल भी होना चाहिये।ताकि उसमे उन्हें रुचि हों उससे वे अपने को जोड़ सके।तब सीखने की प्रक्रिया सहज होगी
ReplyDeleteबच्चों को सीखने का उनके परिवेश का योगदान बहुत बड़ा होता है उसी परिवेश को नया परिवार परिवेश के साथ जोड़कर बच्चों की रुचि को समझ कर शिक्षण प्रक्रिया किया जा सकता है जिससे बच्चों की सीखने की प्रक्रिया सरल हो सकती है।
ReplyDeleteबच्चों को सीखने का उनके परिवेश का बहुत योगदान होता है। इसी को परिवार परिवेश के साथ जोड़कर बच्चों की रूचि को समझ कर शिक्षण प्रक्रिया की जा सकती है
ReplyDeleteA shift from the blackboard system to white projectors have really changed the entire scenario of modern education but what still lacks is a proper classroom management. Even now teachers find it difficult to manage it and that is majorly due to lack of training.A good classroom is an effort made by both students and teachers. The teachers are equally responsible to maintain decency and set the mood. For that they should not remain passive by sitting on the desk and give lectures. Instead they should move around the class, tell fun stories to students and engage them in various activities.
ReplyDeleteबच्चो के सीखने में उनके अनुवांशिक गुणों एवं परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है।परिवेश के निर्माण के समय बच्चों की रुचि का विशेष ख्याल किया जाना चाहिए।उनके उम्र, उनके मानसिक उम्र का ख्याल भी होना चाहिए ताकि उसमें उन्हें रुचि हों उससे वे अपने को जोड़ सके।तब सीखने की प्रक्रिया सहज होगी तथा शिक्षण अधिगम मूर्तरूप धारण कर सकेगा।
ReplyDeleteकौशल किशोर राय,
सहायक शिक्षक, उत्क्रमित उच्च विद्यालय पुनासी,जसीडीह, देवघर,झारखण्ड
Sikhne ke parivesh ka srijan kerne ke liye ye bahut jaruri hai ki class ka environment aisa ho ki bacchon me ruchi paida ho Jaye.ex.ke liye agar bacchon ko vegetables name batana ho to mitti ya plastic ke vegetables ko TLM ki tarah use ker sakte hain.ruchi Jagane ke liye bacchon ka naam vegetables ke naam per rakh sakte hain.
ReplyDeleteसीखने के लिए बच्चों को उनके अनुकूल वातावरण प्रदान करना चाहिए।जैसे खेलने हेतु आवश्यक सामग्री, उचित व्यवस्था, सहपाठियों के साथ बातचीत हेतु प्रोत्साहित करना।
ReplyDeleteBachchon ko sikhne ke liye anukul parivesh pardan karna sath hi sath unehen khelneke liye zaruri samagri uplabdh karana saathiyon ke saath baatchit karne ke liye protsahit karna aadi. Md Salahuddin ups Balika Jharia-1
DeleteChild friendly environment always enhance the learning level of the students. So we should create child friendly environment in our schools and provide opportunity to interact with different aspects environment.
Deleteसीखने का परिवेश प्रकृति में हमेशा मौजूद रहता है। आवश्यकता इस बात की है कि उसे किस प्रकार अधिगम प्रक्रिया से जोड़ा जाए।
ReplyDeleteप्राकृतिक संसाधन यथा:नदी,पहाड़,मिट्टी,कंकड़,पेड़ पौधे,जंगल,पशु,पक्षी आदि को सीखने की प्रक्रिया में शामिल कर हम सहज रूप से परिवेश का निर्माण कर सकते हैं।
मु० अफ़ज़ल हुसैन
उर्दू प्राथमिक विद्यालय मंझलाडीह, शिकारीपाड़ा,दुमका।
बच्चों के परिवेश का सीखने के साथ गहरा संबंध है।सीखने के लिए बच्चों को अच्छा वातावरण प्रदान करना चाहिए।बच्चों के रूचि के अनुरूप शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराकर शिक्षण सरल बना सकते है।बच्चों को सीखने में रुचि उत्पन्न कर सकते है।
ReplyDeleteबच्चों के परिवेश के अनुसार माहौल का निर्माण किया जाना चाहिए तथा उनके परिवेश से संबंधित शिक्षण सामग्रियों का भरपूर उपयोग किया जाना चाहिए ताकि बच्चे रूचिपूर्वक सीख सकें।
Deleteबच्चों विभिन्न परिवेश से विद्यालय आते हैं, अतः विद्यालय का वातावरण आकर्षक,रुचिकर, भयमुक्त होना चाहिए ताकि बच्चे बेहिचक अपनी बात को रख सके और नया चीज को सीखने के लिए भी उत्प्रेरित हो सके।
DeleteBachho ko sikhne ke liye unka pariwesh jaruri hai
ReplyDeleteबच्चों के परिवेश के आधार पर सर्वप्रथम प्राकृतिक वस्तुओं से उन्हें जोड़कर,उनके क्षेत्रीय गीतों को गाकर,उनके मनपसन्द एक्शन गीत विथ एक्शन करवाकर,उनकी ही भाषा में बात करते हुए पेंटिंग,खिलौने एवम खेल के माध्यम से उन्हें ढालते हुए,स्कूल के परिवेश से जोड़ने पर प्रतिफल बेहतर होता है।तब उनमें जिज्ञासा बढ़ते जायगी और वे हमेशा क्लासरूम की बातों में बढ़ चढ़कर खुद को संलिप्त कर पाएंगे।Purushottam Kumar,Teacher UMS SANKI,Patrata,Ramgarh.
ReplyDeleteबच्चे जब विभिन्न परिवेश से विद्यालय में आते हैं तो स्वयं उनके पास कई सृजनात्मक क्षमता होती है |सिर्फ जरुरत है उनकी क्षमता को निखारने की |बच्चे अपने परिवार के साथ किसी भी पर्व -त्यौहार में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेतें है |मैं सर्वप्रथम बच्चों के इस प्रतिभा को सृजनात्मक रूप में प्रयोग में लाना चाहूँगा ताकि बच्चे खुल कर अपनी बात को रख सकें और एक ऐसा वातावरण का निर्माण हो सके की बच्चे बिना भय के अपनी बातों को व्यक्त कर सके |
ReplyDelete
ReplyDeleteबच्चो के सीखने में उनके अनुवांशिक गुणों एवं परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है।परिवेश के निर्माण के समय बच्चों की रुचि का विशेष ख्याल किया जाना चाहिए।उनके उम्र, उनके मानसिक उम्र का ख्याल भी होना चाहिए ताकि उसमें उन्हें रुचि हों उससे वे अपने को जोड़ सके।तब सीखने की प्रक्रिया सहज होगी तथा शिक्षण अधिगम मूर्तरूप धारण कर सकेगा।
ReplyDeleteबच्चो के सीखने में उनके अनुवांशिक गुणों एवं परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है।परिवेश के निर्माण के समय बच्चों की रुचि का विशेष ख्याल किया जाना चाहिए।उनके उम्र, उनके मानसिक उम्र का ख्याल भी होना चाहिए ताकि उसमें उन्हें रुचि हों उससे वे अपने को जोड़ सके।तब सीखने की प्रक्रिया सहज होगी तथा शिक्षण अधिगम मूर्तरूप धारण कर सकेगा।
Premlata devi
G.M.S Pancha Ormanjhi Ranchi
बच्चों को सीखने के लिए अपने परिवेश बहुत आवश्यक होता है। परिवेश का सृजन करने के समय बच्चों की रुचि एवं संयंत्र के अनुसार हो। विद्यालय में बच्चों के अनुकूल वातावरण प्रदान करने, खेलने की आवश्यक सामग्री तथा आपस में परस्पर संवाद के अवसर प्रदान करने चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों को सीखने के लिए परिवेश सापेक्ष होना चाहिए.विद्यालय में भी इस प्रकार के माहौल का निर्माण करने की आवश्यकता है|
ReplyDeleteChild friendly environment always enhances the learning level of the students. So,we should create child friendly environment in our schools and provide opportunity to interact with different aspects of environment.
ReplyDeleteGIRI KUMAR RAM,UHS KORAMBEY,GOLA,RAMGARH.
Bacho ko sikhne ke liye unka paribesh jaruri hai
ReplyDeleteBachcho ke sikhne me pariwesh ka bahut bada yogdan hota hai.atah bachcho ke liye ham jab bhi koi pariwesh ka nirman kare to un bachcho ki ruchi or unke umra ka khayal jarur kare kyoki unki. ruchi or unka umra unke sikhne ki prakriya ko bahur had tak prabhawit karti hai.
ReplyDeleteयह तो सर्वमान्य है कि, बच्चे परिवेश से बहुत तेजी से सीखते हैं, चाहे वह घर, समाज या विद्यालय हो। इसलिए विद्यालय का परिवेश सिखने -सिखाने के अनुकूल होना अत्यावश्यक है। विद्यालय परिसर हमेशा साफ सूथरा तथा हरा भरा हो साथ ही विद्यालय के हरेक दीवाल पर शिक्षण मूलक पेंटिंग किया जाए। विद्यालय में वर्ग शिक्षण के अतिरिक्त जो भी सामूहिक कार्यक्रम हो उसमें सभी कक्षा के छात्रों की सहभागिता शत प्रतिशत सुनिश्चित किया जाए। इससे छोटे बच्चे बड़े बच्चों सके अनुभव से ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
ReplyDeleteBachchon ke sikhne ke liye anukul Paribesh ka srijan karna shikchak ke liye atyant aabashyak hai. Bachchon ki ruchi aur umra ka dhyarakhte huye bhaymukt vatavaran me sikhne me sahayata pradan karna chahiye.
ReplyDeleteबच्चों के परिवेश के आधार पर सर्वप्रथम प्राकृतिक वस्तुओं से उन्हें जोड़कर,उनके क्षेत्रीय गीतों को गाकर,उनके मनपसन्द एक्शन गीत विथ एक्शन करवाकर,उनकी ही भाषा में बात करते हुए पेंटिंग,खिलौने एवम खेल के माध्यम से उन्हें ढालते हुए,स्कूल के परिवेश से जोड़ने पर प्रतिफल बेहतर होता है।तब उनमें जिज्ञासा बढ़ते जायगी और वे हमेशा क्लासरूम की बातों में बढ़ चढ़कर खुद को संलिप्त कर पाएंगे।
ReplyDeleteबच्चों के परिवेश के आधार पर सर्वप्रथम प्राकृतिक वस्तुओं से उन्हें जोड़कर,उनके क्षेत्रीय गीतों को गाकर,उनके मनपसन्द एक्शन गीत विथ एक्शन करवाकर,उनकी ही भाषा में बात करते हुए पेंटिंग,खिलौने एवम खेल के माध्यम से उन्हें ढालते हुए,स्कूल के परिवेश से जोड़ने पर प्रतिफल बेहतर होता है।
ReplyDeleteबच्चे विभिन्न परिवेश से विद्यालय आते हैं जिनके पास कई सृजनात्मक क्षमता होती है उसे जरूरत है सिर्फ क्षमता निखारने की|जैसे खेल कुद हेतु आवश्यक सामग्री की उचित व्यवस्था तथा सहपाठियों के साथ बात चित के लिए प्रोत्साहित करना|
ReplyDeleteपरिवेश बच्चो के सीखने की क्षमता को अत्यधिक विकसित करता है|
ReplyDeleteबच्चों की सीखने के परिवेश के आधार पर सर्वप्रथम प्राकृतिक वस्तुओं से उन्हें जोड़कर उनके अस्थानीय गीतो एवं विभिन्न परिवेश से विद्यालय में आते हैं तो स्वयं उनके पास कई सृजनात्मक क्षमता होती है सिर्फ जरूरत है उनकी क्षमता को निखारने की बच्चे अपने परिवार के साथ किसी भी पर्व त्योहार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं मैं सर्वप्रथम बच्चों के इस प्रतिभा को सृजनात्मक रूप में प्रयोग में लाना चाहूंगी ताकि बच्चे खुलकर अपनी बात को रख सकें और एक ऐसा वातावरण का निर्माण हो सके की बच्चे बिना डरे अपनी बातों को व्यक्त कर सकें
ReplyDeleteधन्यवाद
बच्चों को सीखने के परवरिश के आधार पर सर्वप्रथम प्राकृतिक वस्तुओं से उन्हें जोड़कर,उनके क्षेत्रीय गीतों को गाकर,उनके मनपसन्द एक्शन गीत विथ एक्शन करवाकर,उनकी ही भाषा में बात करते हुए पेंटिंग,खिलौने एवम खेल के माध्यम से उन्हें ढालते हुए,स्कूल के परिवेश से जोड़ने पर प्रतिफल बेहतर होता है।तब उनमें जिज्ञासा बढ़ते जायगी और वे हमेशा क्लासरूम की बातों में बढ़ चढ़कर खुद को संलिप्त कर पाएंगे।
ReplyDeletePrkritik वस्तु को बच्चों की रूचि के अनुसार जोड़ कर सीखने k परिवेश का निर्माण कर सकते हैं
ReplyDeleteसुगमतापूर्वक सीखने के लिए बच्चों को उचित परिवेश निर्माण करना आवश्यक है।यह बच्चों की रूचि ,उम्र और मानसिक विकास के अनुरूप होना चाहिए।
ReplyDeleteसीखने का परिवेश प्रकृति में हमेशा मौजूद रहता है। आवश्यकता इस बात की है कि उसे किस प्रकार अधिगम प्रक्रिया से जोड़ा जाए।
ReplyDeleteप्राकृतिक संसाधन यथा:नदी,पहाड़,मिट्टी,कंकड़,पेड़ पौधे,जंगल,पशु,पक्षी आदि को सीखने की प्रक्रिया में शामिल कर हम सहज रूप से परिवेश का निर्माण कर सकते हैं।
बच्चों के सीखने की क्षमता पर उनके परिवेश का विशेष योगदान है। अतः उनके रूचि के परिवेश का निर्माण करने पर सीखने की प्रक्रिया सहज और आनंद दायक होगी।
ReplyDeleteNirmal Kumar Roy.
Asstt.Teacher.
Govt.Basic School Jorapokhar.
Jhinkpani.West Singh hum.
2021 at 00:26
ReplyDeleteबच्चों के परिवेश का सीखने के साथ गहरा संबंध है।सीखने के लिए बच्चों को अच्छा वातावरण प्रदान करना चाहिए।बच्चों के रूचि के अनुरूप शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराकर शिक्षण सरल बना सकते है।बच्चों को सीखने में रुचि उत्पन्न कर सकते है।
परिवेश बच्चों के सीखने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है बच्चों की रुचि के अनुसार शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराकर शिक्षण को बच्चों के लिए सरल बनाया जा सकता हूं एवं बच्चों में रुचि उत्पन्न की जा सकती है। बच्चों को जितना गतिविधि करने का मौका मिलेगा उतना ही बेहतर देखेंगे जो कि बच्चे देखकर सुनकर बोलकर सीखते हैं लेकिन कहीं उस से ज्यादा बच्चे करके सीखते हैं।
ReplyDeleteबच्चे बाल केंद्रित वातावरण में बेहतर ढंग से सीखते है । वैसा वातावरण जहां बच्चे उन चीज़ों के साथ स्वयं प्रयोग कर सकते है,जिन्हें वे पसंद करते है, जहां सीखने की प्रक्रिया मे सक्रिय रूप से संलग्नता हो पाते है, राय जाहिर करने के साथ ही विचारों की आजादी भी मिलती है और लक्ष्य की ओर इच्छानुसार कार्य करने के अनेकानेक अवसर प्राप्त होता है ।
ReplyDeleteगतिविधि या रूचि के क्षेत्र कक्षा में वह स्थान है जहां बच्चे उन सामग्री जहां विशेष विकास के आयाम को मजबूती देने के लिए आवश्यक है । बच्चे रोचक ढंग से और खेल -खेल में अपनी पसंद की गतिविधि में भाग लेकर सीखते है । गतिविधि या बच्चों के सीखने का सृजन कई प्रकार के होते है जैसे - पुस्तकालय और साक्षरता क्षेत्र , गुड़िया या नाटकीय प्रस्तुति क्षेत्र , खोजबीन या विज्ञान क्षेत्र , ब्लॉक निर्माण क्षेत्र , गणित या हस्तकौशल क्षेत्र , कला, संगीत और गति क्षेत्र के लिए कक्षा में अच्छी तरह से स्थापित और सुसज्जित किया जाना चाहिए, जहां बच्चे को कक्षा में हर तरफ से दिखाई दें । बच्चे की रूचि एवं आयु के अनुरूप विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग कर सीखने के परिवेश को नई सृजन प्राप्त हो सकते है ।
सुना राम सोरेन (स.शि.)
प्रा.वि.भैरवपुर, धालभूमगढ़ ।
पूर्वी सिंहभूम, झारखंड
Environment is an main factor of students leaning as well as group of children which can be more effective learning by doing.
ReplyDeleteबच्चों के लिए पर्यावरण का सृजन करके उन्हें समुचित ज्ञान प्रदान किया जा सकता है साथ ही साथ एक नए परिवेश का निर्माण करना बच्चों के चरित्र के निर्माण करना और का सर्वांगीण विकास समुचित आवश्यक है।
ReplyDeleteबच्चे को सिखने के लिए परिवेश और वातावरण का महत्वपूर्ण योगदान होता हैं।
ReplyDeleteशिब नाथ साहानी
सहायक शिक्षक
पूर्वी सिंहभूम
बच्चों के सीखने में परिवेश का बड़ा योगदान है।इसलिए रुचिकर परिवेश का निर्वाण आवश्यक है।
ReplyDeleteBachchon ke sikhne hetu akarshak gatividhiyukt mahoul sathiyon see vartalap ke awsar library patrika ki uplabdhta par vishesh dhyan Dena chahie
ReplyDeleteBachchon Kay out's Guam ko tatolte hue unkay ruchi KI Bhi tatolna awashyak Hai. Tabbi ham bachchon Ko teji se Sikha sakte hain. MD SHAMIM AKHTER U MS RAJOUN URDU MEHARMA GODDA JHARKHAND
ReplyDeleteBachcho ko hum bibhinna prakar ke gatividhiyan karwakar,prakritik chijo se parichay karwakar,aapasi sanwad se hum unke lie sikhne ke paribes ka nirman kar sakte hai.
ReplyDeleteबच्चो के सीखने में उनके अनुवांशिक गुणों एवं परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है।परिवेश के निर्माण के समय बच्चों की रुचि का विशेष ख्याल किया जाना चाहिए।उनके उम्र, उनके मानसिक उम्र का ख्याल भी होना चाहिए ताकि उसमें उन्हें रुचि हों उससे वे अपने को जोड़ सके।तब सीखने की प्रक्रिया सहज होगी तथा उनमें जिज्ञासा बढ़ते जायगी और वे हमेशा क्लासरूम की बातों में बढ़ चढ़कर खुद को संलिप्त कर पाएंगे।Motiur Rahman, UPS-Chandra para, Pakur
ReplyDeleteBACHON KO sikhne KE LIYE anukul watawaran pradhan Karna chaheye.
ReplyDeleteबच्चों को उनकी संस्कृति के बारे में पूछेंगे उन लोगों के घर में पूजा पाठ शादी विवाह कैसे होता है उसके बारे में पूछने से वह खुलकर बातचीत करेगा और पाठ्यक्रम में भी खुशी-खुशी जुड़ पाएगा |
ReplyDeleteसीखने का परिवेश प्रकृति में हमेशा मौजूद रहता है आवश्यकता इस बात की है कि उसे किस प्रकार अधिगम प्रक्रिया से जोड़ा जाए। प्राकृतिक संसाधन यथा: नदी, पहाड़, मिट्टी, कंकड़,पेड़,पौधे,जंगल,पशु-पक्षी आदि को सीखने की प्रक्रिया में शामिल कर हम सहज रूप से परिवेश का निर्माण कर सकते हैं।
ReplyDeleteBachche jis parivesh me rahte hain us parivesh se bahut kuchh sikhte hain. Phir bhi sabhi bachche alag-alag parivesh se aate hain atah paraspar Samvaad se ek-dusre ka samajik,sanskriti,riti-rivaj avam sanskar sikhte hain. Lekin bachchon ko school ka parivesh se jodkar srijnatamak dhang se sikhana hoga.
ReplyDeleteबच्चों के रूचि को ध्यान में रखकर तथा उसके घर के संस्कृति के सहायक तत्वों को सीखने की प्रक्रिया में शामिल कर शिक्षण अधिगम में बढ़ावा दे सकते हैं।
ReplyDeleteBachche k sikhne m Aanubansik guno aur paribesh ka mahtauapurn yogdan hota hai.Atah sikhne k kram m bachche ka samaj ik paribesh,age aur chhetriata ka bisesh dhyan dena chahiae.
ReplyDelete..........SHAMBHU SHARAN PRASAD
........MS KUSUNDA MATKURIA DHANBAD-1
बच्चों के सीखने में परिवेश का बड़ा योगदान है।इसलिए रुचिकर परिवेश का निर्वाण आवश्यक है। संस्कृति के सहायक तत्व को सीखने की प्रक्रिया में शामिल कर शिक्षण अधिगम को बढ़ावा दे सकते हैं
ReplyDeleteसर्वप्रथम बच्चों की रूचि एवं जिज्ञासा का अध्ययन करना अपेक्षित होगा।तदनुसार परिवेश सृजन करके उनके सीखने की क्षमता को विकसित करना आवश्यक है।बच्चों के सांस्कृतिक,मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आधार पर परिवेश को सृजन कर शिक्षक बच्चों के सीखने की क्षमता को संवर्धित करने मे सफल हो सकते हैं।
ReplyDeleteTo avail children a child friendly environment according to their personal differences where they can feel free to express themselves would be helpful in learning ability.
ReplyDeleteबच्चों को सीखने के लिए साकारात्मक परिवेश बहुत आवश्यक होता है। परिवेश का सृजन करने के समय बच्चों की रुचि का ध्यान रखना चाहिए! विद्यालय में बच्चों के अनुकूल वातावरण प्रदान करने, खेलने की आवश्यक सामग्री तथा आपस में परस्पर संवाद के अवसर प्रदान करने चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों के सीखने में आनुवांशिक गुणों के साथ परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है।परिवेश निर्माण के वक्त बच्चों की अवस्था,उम्र को ध्यान में रखा जाना जरूरी होता है ताकि बच्चे स्वंय को सहजता से सीखने की प्रक्रिया के साथ जोड़ पाये। अनुभवात्मक सीख के लिए सृजनात्मक परिवेश की उपलब्धता का ध्यान रखा जाना जरूरी है।
ReplyDeleteक्लास रूम, खेल के मैदान आदि उन सभी स्थानों जहां बच्चे औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं वहाँ का परिवेश रोचक, खोजपूर्ण व समावेशी होनी चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों को सीखने का उनके परिवेश का योगदान बहुत बड़ा होता है उसी परिवेश को नया परिवार परिवेश के साथ जोड़कर बच्चों की रुचि को समझ कर शिक्षण प्रक्रिया किया जा सकता है जिससे बच्चों की सीखने की प्रक्रिया सरल हो सकती है
ReplyDeleteUnknown5 November 2021 at 07:52
ReplyDeleteबच्चों को सीखने के परवरिश के आधार पर सर्वप्रथम प्राकृतिक वस्तुओं से उन्हें जोड़कर,उनके क्षेत्रीय गीतों को गाकर,उनके मनपसन्द एक्शन गीत विथ एक्शन करवाकर,उनकी ही भाषा में बात करते हुए पेंटिंग,खिलौने एवम खेल के माध्यम से उन्हें ढालते हुए,स्कूल के परिवेश से जोड़ने पर प्रतिफल बेहतर होता है।तब उनमें जिज्ञासा बढ़ते जायगी और वे हमेशा क्लासरूम की बातों में बढ़ चढ़कर खुद को संलिप्त कर पाएंगे।
बच्चों को सिखने मे उनके परिवेस की भुमिका मुख्या रुप से उत्तरदायी होता है।इसलिये उन्हे उनके परिवेस के साथ जोड़कर उनकी रुचि के अनुसार शिक्षण किया जा सकता है।
ReplyDeleteबच्चे बाल केंद्रित शिक्षा में आसानी से सीखते हैं अपने पसंद की वस्तुओं को तोड़कर और जोड़ कर स्वय swayam sakte hain वे सक्रिय रूप से भागीदारी करते हैं और सीखते हैं धन्यवाद
ReplyDeleteबच्चों को सीखने का परिवेश सापेक्ष होना चाहिए|विद्यालय मे इसप्रकार के माहौल का निर्माण करने की आवश्यकता है|
ReplyDeleteParivesh shikhya me badi bhmika nibhati hai
ReplyDeleteबच्चो को सीखने के उनके परिवेश के बहुत योगदान है।उसी परिवेश को जोड़कर नए परिवेश के निर्माण।परिवेश के निर्माण के समय बच्चो की रुचि का विशेष ख्यल किया जाना चाहिये।उनके उम्र उनके मानसिक उम्र कस ख्याल भी होना चाहिये।ताकि उसमे उन्हें रुचि हों उससे वे अपने को जोड़ सके।तब सीखने की प्रक्रिया सहज होगी भानु प्रताप मांझी्,उ उ वि चिपड़ी सरायकेला-खरसावां
ReplyDeleteबच्चे जब विभिन्न परिवेश से विद्यालय में आते हैं तो स्वयं उनके पास कई सृजनात्मक क्षमता होती है |सिर्फ जरुरत है उनकी क्षमता को निखारने की |बच्चे अपने परिवार के साथ किसी भी पर्व -त्यौहार में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेतें है |मैं सर्वप्रथम बच्चों के इस प्रतिभा को सृजनात्मक रूप में प्रयोग में लाना चाहूँगा ताकि बच्चे खुल कर अपनी बात को रख सकें और एक ऐसा वातावरण का निर्माण हो सके की बच्चे बिना भय के अपनी बातों को व्यक्त कर सके |परिवेश निर्माण के समय बच्चों के रूचि का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए
ReplyDeleteJagannath Bera.
Oriya MS Arong, Baharagora, East Sinhhbhum
बच्चे हमारे विद्यालयों में विभिन्न परिवेश से आते हैं, हर बच्चा अपने आप में विशेष होता है बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार खेल खेल में या गतिविधि के माध्यम से सिखाने से बच्चे तीव्र गति से सीखते हैं बच्चों को कर के सीखने की भी आजादी मिलने से उनके सीखने की गति तीव्र होती है
ReplyDeleteप्रत्येक बच्चे के अंदर सिखने काअलग-अलग गुण होता है। बच्चों को सिर्फ परिवेश और मार्ग दर्शन की आवश्यकता है।
ReplyDeleteबच्चो के लिए सर्वाधिक उपयुक्त परिवेश का सृजन कर मनोरंजक गतिविधियों के अनुसार उन्हें सीखाया जा सकता है ।
ReplyDeleteबच्चे जब विभिन्न परिवेश से विद्यालय में आते हैं तो स्वयं उनके पास कई सृजनात्मक क्षमता होती है |सिर्फ जरुरत है उनकी क्षमता को निखारने की |बच्चे अपने परिवार के साथ किसी भी पर्व -त्यौहार में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेतें है |मैं सर्वप्रथम बच्चों के इस प्रतिभा को सृजनात्मक रूप में प्रयोग में लाना चाहूँगा ताकि बच्चे खुल कर अपनी बात को रख सकें और एक ऐसा वातावरण का निर्माण हो सके की बच्चे बिना भय के अपनी बातों को व्यक्त कर सके |परिवेश निर्माण के समय बच्चों के रूचि का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए
ReplyDeleteबच्चों में सृजनात्मक कौशल के विकास के लिए समुचित अवसर प्रदान करने चाहिए बच्चों में स्वयं करके सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना चाहिए प्रयत्न करके सीखने की भावना प्रबल होती है सामूहिक वार्तालाप का अवसर प्रदान करना चाहिए
ReplyDeleteप्रत्येक बच्चों में सीखने की अलग-अलग गुण होते हैं। बच्चों को परिवेश और मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
ReplyDeleteBacchon ke sheekne me unke anuvanshik gunon avam parivesh ka mahatvapurn yogdan hota hai parivesh ke nirman ke samay bacchon ki ruchi ka vishesh khayal kiya jana chaiye taaki usame unhe ruchi ho usse woe apne ko jor sake tab sheekne ki prakriya sahaj hogi tatha aikshan aadhigam murtrup dharana kar sakega
ReplyDeleteबच्चों के सीखने के लिए परिवेश का निर्माण अत्यंत महत्वपूर्ण है। बच्चे क्योंकि विभिन्न परिवेश से आते हैं अतः उनमें सृजनात्मक क्षमता भी भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। आवश्यकता सिर्फ उस सृजन क्षमता को निखारने की है। अगर कोई बच्चा खेलकूद में रुचि लेता है तो उसे खेलकूद की गतिविधियों द्वारा सिखाने का प्रयास करेंगे। कोई बच्चा पेंटिंग में रुचि रख सकता है कोई गीत संगीत में कोई वाद्य यंत्रों में तो कोई नृत्य में। हमारा प्रयास होगा कि उन बच्चों के लिए उसी प्रकार के परिवेश का निर्माण किया जाए जिससे मैं अपनी प्रतिभा में और निखार ला सकें।
ReplyDeleteसीखने के परिवेश का सृजन
ReplyDelete--------------------
- बच्चों के सीखने की प्रक्रिया उनके अनुकूल परिस्थितियों पर निर्भर करता है|इसे प्रभावित करने वाले कई कारक होते हैं|सर्वप्रथम यदि परिवार में बच्चा स्वस्थ है, खुश है,तो जल्दी ही सकारात्मक विचारों के साथ सीखता है| वह जो कुछ भी करता है,किसी वस्तु से खेलता है,,जो बातचीत करता और सुनता है, देखता है ,वह उसके मानसपटल पर एक तस्वीर-सा छा जाता है|बच्चा कल्पना कर सकता है वह अपनी कल्पना को भी सकारात्मक ढंग से किसी रुप में देखता है| बच्चा प्रसन्न रहता है |
-विद्यालय में भी बच्चे के सीखने का परिवेश सृजन करने की आवश्यकता है|यह बाल-केंद्रित शिक्षण में संभव है |इसके लिए बच्चे की उम्र अनुसार समय तालिका में विषय और समय का ध्यान रखा जाता है|साथ ही अलग-अलग स्वभाव और विचारों की भिन्नता में भी एक समान शिक्षा देना है|शिक्षक कभी-कभी ॠतुओं एवं मौसम के अनुसार पाठों का चयन करते हैं|साथ ही बच्चों के सीखने की रुचि और इच्छा का लाभ उठाकर उन्हें सीखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं|बच्चों के छोटे दल बनाकर अपने विचारोंको साझा करने में मदद करते हैं|उनकी समस्याओं को शिक्षक सुनते हैं| शिक्षक अपने शिक्षण सामग्री का उपयोग करके बच्चे के सीखने की प्रक्रिया में लेखन,कला संगीत के क्षेत्र को विकसित करते हैं |
पुष्पा तेरेसा टोप्पो
सहायक शिक्षिका
ख्रीस्त राजा म.वि.चंदवा
लातेहार,झारखंड-829203
सीखना बच्चों के परिवेश और आनुवांशिकता पर निर्भर करता है । हमें बच्चों को रुचिकर और आनंददायक तरीके से धैर्य पूर्वक सिखने में सहयोग करना चाहिए । ध्यातव्य है कि हर बच्चे की सीखने की गति, तरीके एवं क्षमता भिन्न भिन्न होती है । अतः उन्हें उपयुक्त तरीके का चुनाव करते हुए अधिगण करवाना चाहिए ।
ReplyDeleteबच्चों को सीखने के लिए परिवेश सापेक्ष होना चाहिए. विद्यालय में भी इस प्रकार का माहौल का निर्माण करने की आवश्यकता है.
ReplyDeleteबच्चों के परिवेश का सीखने के साथ गहरा संबंध है।सीखने के लिए बच्चों को अच्छा वातावरण प्रदान करना चाहिए।बच्चों के रूचि के अनुरूप शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराकर शिक्षण सरल बना सकते है।बच्चों को सीखने में रुचि उत्पन्न कर सकते है। भानु प्रताप मांझी,उ उ वि चिपड़ी ईचागढ़ सरायकेला-खरसावां
ReplyDeleteबच्चों में इस तरह की प्रवृत्ति बढ़ाने के लिए उचित मौहल तैयार कर उपलब्ध कराना चाहिए साथ ही शिक्षकों को सहायक के रूप में कार्य करना चाहिए
ReplyDeleteबच्चों को सीखने में उनके परिवेश का योगदान बहुत अधिक होता है। परिवेश के निर्माण के समय बच्चों की रूचि का विशेष ख्याल रखना चाहिए।
ReplyDeleteSUBHADRA KUMARI
ReplyDeleteRAJKIYAKRIT M S NARAYANPUR
बच्चें अपने परिवेश से रोज नया सीखते है, अतः उन्हें परिवेश अनुकुलित शिक्षा प्रदान करने से वे बेहतर सीखते हैं।
बच्चों में सृजनात्मक कौशल के विकास के लिए समुचित अवसर प्रदान करना चाहिए। बच्चों में स्वयं करके सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना चाहिए। जैसे खेलने हेतु आवश्यक सामग्री उचित व्यवस्था और सहपाठियों के साथ बातचीत हेतु प्रोत्साहित करना।
ReplyDeleteबच्चों को उनके ही परिवेश (यथा:-मनपसंद खेल,खाना, त्योहार आदि) के संदर्भ में उनकी बोलचाल की भाषा में चर्चा करने से सीखने का परिवेश बेहतर ढंग से सृजित होंगे।
ReplyDeleteबच्चों के सीखने के परिवेश का निर्माण करने हेतु कुछ तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए। बच्चों के पूर्व ज्ञान से जोड़ते हुए उनके पसंदीदा खेल, विडियो, खेल सामग्री , विविध शारीरिक गतिविधि आदि की सहायता से बच्चों के सीखने के बेहतर परिवेश का निर्माण किया जा सकता है।
ReplyDeleteबच्चों के सीखने के परिवेश का निर्माण करने हेतु IT का एकीकरण किया जा सकता है। इससे माहौल खुशनुमा और रूचिकर बना रहेगा।
ReplyDeleteBachon ko sikhane ke liye unke sikhane ke anurup pariwesh ka nirman hona chahiye isme bachon ke purvgyan ka istemal karte huwe kai tarikon se jaise khel khel me sikhaya ja sakte hai ya phir aisa mahol banaya jay jisse wah jankari prapt karne ke liye utprerit ho phir saral se saral lahje me usike bhasa me sikhaya jay uske liye chart chitra aur bhi sahajta se prapt hone wale samgriyon ka upyog kar sikhne ke pariwes ka nirman kar sakte hai ums Barmasia 8.11.2021
ReplyDeleteबच्चे विभिन्न तरीकों से सीखते हैं:- अनुभव के माध्यम से,चीजों को बनाने और करने से,प्रयोग,पढ़ने,चर्चा करने,पूछने,सुनने,विचार करने और स्वयं का भाषण,आंदोलन या लेखन द्वारा व्यक्त करके-व्यक्तिगत रूप से और दूसरों के साथ दोनों तरह से। उन्हें सीखने और अपने विकास के दौरान इन सभी प्रकार के अवसरों की आवश्यकता होती है।
ReplyDeleteबच्चों का समग्र और सर्वांगीण विकास के लिए हमें सीखने के अच्छे और आनन्दायी परिवेश का सृजन/निर्माण कर उसे बच्चों को उपलब्ध कराना होगा,जिसमें बच्चे अन्वेषण,जाँच,समस्या समाधान और समीक्षात्मक गहन सोच द्वारा सीख सकते हैं। सीखने के अच्छे और आनन्दायी परिवेश का सृजन/निर्माण करते समय हमारे लिए यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रारंभिक वर्षों में शिक्षण के तीन घटक:- खेल,परस्पर संवाद,और परिवेश हैं। सीखने-सिखाने के किसी भी प्रक्रिया में इन तीनों का समावेश आवश्यक है।
*खेल:= खेलने को सार्वभौमिक रूप से बच्चे के सीखने के तरीके के रूप में जाना जाता है। वे खेलना पसंद करते हैं और तब खुश हो जाते हैं जब उन्हें खेलने के माध्यम से अन्वेषण करने और प्रयोग करने की स्वतंत्रता दी जाती है। बच्चों के समग्र सर्वांगीण विकास यानि कि शारीरिक,सामाजिक-भावात्मक,भाषायी,संज्ञानात्मक और रचनात्मक/सौंदर्य बोध के लिए यह एक महत्वपूर्ण माध्यम है। हम कई तरह के खेलों और गतिविधियों के माध्यम से कई तरह के सीखने के परिवेश का सृजन/निर्माण कर बच्चों का समग्र और सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। सभी रूचि क्षेत्रों/लर्निंग सेंटर्स के लिए खेल गतिविधियों की योजना बनाकर सभी बच्चों को खेल की गतिविधियों में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।
*परस्पर संवाद:= व्यस्क,बच्चों के साथी,बड़े बच्चे और भाई बहन सीखने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और वे इस प्रक्रिया के अभिन्न अंग होते हैं। परस्पर संवाद तीन प्रकार के होते हैं:- 1: साथियों के साथ संवाद। 2: बड़ों के साथ संवाद। 3: भिन्न-भिन्न प्रकार की सामग्रियों/वस्तुओं के साथ संवाद।
हम ऐसे सीखने के परिवेश का सृजन/निर्माण करेंगे जिसमें परस्पर संवाद के भरपूर मौका उपलब्ध हो सके। इस तरह हम योजनाबद्ध तरीके से सीखने के विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
*परिवेश:= बच्चे अपने परिवेश के साथ निरंतर संवाद करते रहते हैं। वे जो कुछ भी देखते हैं उसे छुना चाहते हैं। इसी प्रक्रिया के माध्यम से वे सीखते हैं। विभिन्न प्रकार के गतिविधियों और सामग्री के माध्यम से बच्चे वस्तुओं में जोड़-तोड़ मेनुपुलेशन करके,प्रश्न पूछकर,पूर्वानुमान लगाकर-भौतिक,सामाजिक और प्राकृतिक वातावरण के बारे में जागरूक होते हैं। बच्चों के लिए सीखने का माहौल/परिवेश बेहद ही सुखद बनाना है। इस माहौल में वे स्वयं को सुरक्षित समझें यह बात महत्वपूर्ण है। साथ ही बच्चों को स्वतंत्र रूप से सीखने और नई चीजों को खोजने का अवसर देंगे। सभी बच्चे और विशेष रूप से विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सराहना करेंगे जिससे उनका आत्मविश्वास विकसित होगा और इससे सभी बच्चों की एक सकारात्मक छवि बनेगी।
परिवेश और वातावरण बच्चों को सिखने के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है। बच्चों के अन्दर सृजनशीलता विद्यमान रहता है। परिवेश अनुकूल होते ही उसका निखार आने लगती है। कोई बच्चे को पेड़-पौधों के बारे में जानकारी देने के लिए अगर कोई पार्क या बगीचे में ले जाकर ज्ञान दिया जाता है तो प्रत्यक्ष रुप में उनके मन में ज्ञान छाप आ जाती है।
ReplyDeleteविद्यालय बच्चों के लिए एक सीखने की जगह है और इस सीखने की जगह को मनोरंजक होना बहुत आवश्यक है ।सिर्फ श्यामपट्ट और चौक की मदद से हम बच्चों को उतना कुछ नहीं सिखा सकते जितना उनकी आवश्यकता होती है। अतः यह आवश्यक है कि बच्चों को कुछ अन्य तरीके से सिखाया जा सके ।इसके लिए विद्यालय में उचित परिवेश तैयार करने की आवश्यकता है और यह परिवेश बच्चों के सामाजिक परिवेश को ध्यान में रखकर ही बनाना चाहिए। जिससे बच्चे भली-भांति उससे अवगत हो और स्वयं सीख पाए।
ReplyDeleteअंजय कुमार अग्रवाल
मध्य विद्यालय कोइरी टोला रामगढ़
Bacchon ko unke swabhav ke anurup manoranjak aur shikshaprad mahaul Dena chahie isase bacche aasani se Sikh payenge
ReplyDeleteFriedly atmosphere of education in primary school for new learner children is created by research from learned educationists has been implemented and special steps must be taken in schools for children.
ReplyDeleteBachchen apne pariwesh men kai tarah ke vastuon ke sath parsparik sambandh sthapit karke sikhate hain Jaise kshetriy geet , gatividhi ,bhasha ewam hast kalakriti dwara sikhate hain
ReplyDeleteबच्चों के सीखने के परिवेश का सृजन करने के लिए उनकी आयु, पारिवारिक एवं सामाजिक परिवेश के साथ उनकी रुचि, जिज्ञासा इत्यादि जानने का प्रयास करना अच्छा रहेगा । बच्चों को उनके शिक्षकों,साथियों के साथ मिलकर स्वयं सीखने के अवसर प्रदान करने के बाद ही हम उनके लिए सीखने के उचित एवं सार्थक परिवेश का निर्माण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि हम बच्चों को कोई एक विषय वस्तु जैसे- 'कोयल'के बारे में चर्चा चर्चा करने के लिए प्रेरित करेंगे तब बच्चों के मन में विषय से संबंधित गीत, भाषा, रंग ,आकार, बोली इत्यादि के बारे में जान सकते हैं और उनके मनोभाव को समझ कर हम बच्चों के सीखने के विशेष परिवेश का सृजन करने हेतु योजना बना सकते हैं और उसे उनके सीखने- सिखाने के लिए उचित परिवेश का सृजन कर सकते हैं। विभिन्न प्रकार के पक्षियों के चित्रों का संग्रह,(ठोस रूप में भी), चित्र चार्ट ,ऑडियो - वीडियो, रंग चार्ट इत्यादि, के द्वारा बच्चों की रुचि के अनुसार उनकी सीखने के परिवेश का निर्माण कर सकते हैं ।
ReplyDeleteसीखने के परिवेश का सृजन करने के लिए बच्चों को उनकी पारिवारिक एवं सामाजिक परिवेश के साथ उनकी आयु ,रुचि एवं जिज्ञासा को जानने का प्रयास करना अच्छा रहेगा ।बच्चों को उनके शिक्षक तथा दोस्तों के साथ किसी विषयवस्तु पर स्वयं सीखने तथा अनुभव प्राप्त करने पर जोर देना होगा । इसके बाद ही हम बच्चों के स्तर के अनुसार उनके लिए सीखने के परिवेश का निर्माण कर सकते हैं ।उदाहरण के लिए -यदि बच्चों के सामने कोई एक विषयवस्तु ,जैसे 'कोयल' रख दिया जाए तब शिक्षकों के साथ मिलकर बच्चों आपस में चर्चा करेंगे, तब उस विषय से संबंधित गीत, भाषा, बोली, रंग, आकार इत्यादि के बारे में बच्चों के मनोभाव को समझते हुए हम उनके देखने दिखाने हेतु उचित परिवेश का निर्माण कर सकते हैं। जैसे विभिन्न प्रकार के पक्षियों के चित्र का संग्रह(ठोस रूप में भी) ,चित्र चार्ट ,ऑडियो-वीडियो, रंग चार्ट इत्यादि के द्वारा बच्चे स्वयं कुछ और विशेष सीखने की ओर प्रेरित होंगे ।
ReplyDeleteबच्चों को सीखने में उनके परिवेश के बहुत योगदान है।उसी परिवेश को जोड़कर नए परिवेश के निर्माण। परिवेश के निर्माण के समय बच्चों की उनके रूचि का विशेष ख्याल किया जाना चाहिए। उनके उम्र उनके मानसिक उम्र का ख्याल होना चाहिए। ताकि उसमें उन्हें रूचि हो उसमें वे अपने को जोड सके।तब सीखने की प्रक्रिया शुरू होगी।
ReplyDeleteबच्चे विभिन्न परिवेश से विद्यालय आते हैं जिनके पास कई सृजनात्मक क्षमता होती है उसे जरूरत है सिर्फ क्षमता निखारने की|जैसे खेल कुद हेतु आवश्यक सामग्री की उचित व्यवस्था तथा सहपाठियों के साथ बात चित के लिए प्रोत्साहित करना
ReplyDeleteजैसा कि हम कह सकते है कि बच्चों का पहला स्कूल उसका घर होता है और उसके माता पिता उस बच्चे के पहले शिक्षक,परिवार के सदस्यों का बच्चा अनुकरण करता है। और बहुत कुछ सीखता है। दूसरी बात बच्चे को बेहतर वातावरण में ढालने के लिए उसका घर और समाज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
ReplyDeleteप्रत्येक बच्चे में सीखने के अलग-अलग गुण मौजूद होते हैं। उन्हें उचित परिवेश,धीरज और मार्गदर्शन की जरूरत होती है।
ReplyDeletewaise bachhon ka alag-alag samuhikaran karna jinka samajik air pariwarik pariwesh lagbhag ek jaisa ho.phir unke anurup ek parivesh ka nirman karna.
ReplyDeleteसीखने के परिवेश का सृजन करने के लिए शिक्षक को विभिन्न कला के द्वारा बच्चों को पढ़ाना चाहिए। बच्चों को खेल खेल और कला के द्वारा विभिन्न प्रकार की गतिविधि करके शिक्षा दी जानी चाहिए, ताकि बच्चे उत्साह और खुशी से सीख सके। बच्चों के साथ वैसा ही व्यवहार करें ताकि बच्चे भय मुक्त हो और अपने अंदर का विचार या प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकें।
ReplyDeleteबच्चो को सीखने के लिए उनके परिवेश का बहुत योगदान है।उसी परिवेश को जोड़कर नए परिवेश के निर्माण।परिवेश के निर्माण के समय बच्चो की रुचि का विशेष ख्यल किया जाना चाहिए ।उनके उम्र, उनके मानसिक उम्र का ख्याल भी होना चाहिये,ताकि उसमे उन्हें रुचि हों। उससे वे अपने को जोड़ सके।तब सीखने की प्रक्रिया सहज होगी।
ReplyDeleteसीखने का परिवेश प्रकृति में हमेशा मौजूद रहता है आवश्यकता इस बात की है कि उसे किस प्रकार अधिगम प्रक्रिया से जोड़ा जाए। प्राकृतिक संसाधन यथा: नदी, पहाड़, मिट्टी, कंकड़,पेड़,पौधे,जंगल,पशु-पक्षी आदि को सीखने की प्रक्रिया में शामिल कर हम सहज रूप से परिवेश का निर्माण कर सकते हैं। KISHOR KUMAR ROY UHS.KATGHARI DEVIPUR DEOGHAR
ReplyDeleteहर बच्चे के बौधिक स्तर के अनुसार सर्वांगीण विकास करना।
ReplyDeleteबच्चों के सीखने में परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है विद्यालय परिवेश में बच्चों को बाल केंद्रित शिक्षा के माध्यम से रुचिकर शिक्षा प्रदान की जा सकती है इसमें बच्चे स्वयं खेल गतिविधियों और परस्पर संवाद के द्वारा सीख सकता है।
ReplyDeleteबच्चों को अपने आसपास के परिवेश या वातावरण का उदाहरण के साथ विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से पाठ्यक्रम के विभिन्न बिंदुओं को चिन्हित कर वार्तालाप के द्वारा समझा जा सकता है
ReplyDeleteबच्चों की सीखने के परिवेश के आधार पर सर्वप्रथम प्राकृतिक वस्तुओं से उन्हें जोड़कर उनके अस्थानीय गीतो एवं विभिन्न परिवेश से विद्यालय में आते हैं तो स्वयं उनके पास कई सृजनात्मक क्षमता होती है सिर्फ जरूरत है उनकी क्षमता को निखारने की बच्चे अपने परिवार के साथ किसी भी पर्व त्योहार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं मैं सर्वप्रथम बच्चों के इस प्रतिभा को सृजनात्मक रूप में प्रयोग में लाना चाहूंगी ताकि बच्चे खुलकर अपनी बात को रख सकें और एक ऐसा वातावरण का निर्माण हो सके की बच्चे बिना डरे अपनी बातों को व्यक्त कर सकें
ReplyDeleteबच्चो के सीखने में उनको मिला परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है । बच्चो के अधिगम का परिवेश सृजनात्मक ,रूचिपूर्ण,आनादायक ,प्रेरक,और सकारात्मक होना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों के सीखने में उसके परिवेश का बहुत अहम रोल होता है, बच्चों को सिखाने के लिए उसके परिवेश को जानना समझना आवश्यक है। बच्चों के परिवेश को जानकर उसके परिवेश के अनुरूप की उसे सीखने के अवसर प्रदान करना अधिक रुचिकर और लाभदायक होगा।
ReplyDeleteChildren learning level can be obtained in friendly atmosphere not only in home but also in school as well as in society. In this connection responsibility to improve the children education these section has to work properly in time. This will be a ideal work to enhance the level of learning.
ReplyDeleteबच्चों में सृजनात्मक कौशल विकास के लिए समुचित अवसर प्रदान करना चाहिए. परिवेश अनुकूल शिक्षा प्रदान करने से वे बेहतर सीखते हैं.
ReplyDeleteबच्चों के सीखने में उसके परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान है इसीलिए सीखने का परिवेश का सृजन करना चाहिए जिनके द्वारा बच्चे अच्छी तरह से सीख जाएं जैसे- स्वयं करके,प्रयास करके,भूलकर,खेलकर,खोज करके और सकारात्मक प्रेरणा स्त्रोत का अनुकरण करके बच्चे सीख सकते हैं।बच्चों की रुचि सभी गतिविथियों में होता है जब उनकी संस्कृति या रीति रिवाजों की चर्चा कक्षा मे होती है तो वे प्रेरित होते हैं और वे अपने अस्तित्व के महत्व समझते हैं और सीखते हैं।
ReplyDeleteबच्चों के परिवेश के आधार पर सर्वप्रथम प्राकृतिक वस्तुओं से उन्हें जोड़कर,उनके क्षेत्रीय गीतों को गाकर,उनके मनपसन्द एक्शन गीत विथ एक्शन करवाकर,उनकी ही भाषा में बात करते हुए पेंटिंग,खिलौने एवम खेल के माध्यम से उन्हें ढालते हुए,स्कूल के परिवेश से जोड़ने पर प्रतिफल बेहतर होता है।तब उनमें जिज्ञासा बढ़ते जायगी और वे हमेशा क्लासरूम की बातों में बढ़ चढ़कर खुद को संलिप्त कर पाएंगे।रणजीत प्रसाद मध्य विद्यालय मांडू, रामगढ़।
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ReplyDeleteSikhne ke parivesh ka sijan karne ke liye hamein vibhin tarah ke gatividhiyon ko karana hoga jaise-sangit,khel,clay work,kavita adi.sath hi prasper sanvad kar,as-pas paye jane wale ped-poadhe,pashu-pakshi,patther,kankad adi ko sikhne ki prakriya mein shamil kar sikhne ke parivesh ka srijan kar sakte hain.
ReplyDeleteबच्चों के सिखने के परिवेश के लिए उनको कर के सिखने के सिद्धांत का बहुत बड़ा योगदान है। उनके लिए ऐसी परिस्थिति का निर्माण करना जिसमें वे खुद से कर के सीखें।
ReplyDeleteबच्चो को सीखने में रुचिकर परिवेश का निर्माण करना महत्वपूर्ण होता है।
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ReplyDeleteविद्यालय में बच्चों को सीखलाने का परिवेश का सृजन एक जागरूक शिक्षक पर निर्भर करता है कि वह वहां का माहौल इस प्रकार बनावें कि वे एकाग्रचित्त होकर उनकी बातों को सुने तथा उनके द्वारा दी जाने वाली कार्य को खेल-खेल में, सहपाठी के सहयोग से या अन्य तरीके से करें। शिक्षक को सदा ध्यान रखना चाहिए कि सभी बच्चे दिए कार्य को करें अन्यथा की स्थिति में उनकी मदद करनी चाहिए।यह तभी सम्भव है जब सभी बच्चे शिक्षक को अपना हमदर्द समझेंगे।
ReplyDeleteबच्चों के साथ कीसी भी विषयवस्तु पर चर्चा करने से पहले पढ़ाई के अनुकूल परिवेश तैयार करना जरूरी है इसके लिए कुछ सरल प्रश्न या गतिविधि के माध्यम से पाठ्य विषयवस्तु को उनके पूर्वज्ञान से जोड़ा जा सकता है।
ReplyDeleteBachcho ko prakriti se anubhav karne dena chahie,karke sikhne ke lie protsahit karna chahie,aapsi sahayog se karya karne dena chahie.Aise me hum bachcho ke lie sikhne ka uchit parivesh taiyar kar sakte hai.
ReplyDeleteबच्चों के परिवेश के आधार पर सर्वप्रथम प्राकृतिक वस्तुओं से उन्हें जोड़कर,उनके क्षेत्रीय गीतों को गाकर,उनके मनपसन्द एक्शन गीत विथ एक्शन करवाकर,उनकी ही भाषा में बात करते हुए पेंटिंग,खिलौने एवम खेल के माध्यम से उन्हें ढालने का प्रयास करेंगे।स्कूल के परिवेश से जोड़ने पर उनमें जिज्ञासा बढ़ते जायगी और वे हमेशा क्लासरूम की बातों में बढ़ चढ़कर खुद को संलिप्त कर पाएंगे।
ReplyDeleteबच्चों को सीखने का उनके परिवेश का योगदान बहुत बड़ा होता है उसी परिवेश को नया परिवार परिवेश के साथ जोड़कर बच्चों की रुचि को समझ कर शिक्षण प्रक्रिया किया जा सकता है जिससे बच्चों की सीखने की प्रक्रिया सरल हो सकती हैl
ReplyDeleteWe should try to create environment according to students need.
ReplyDeleteWe should try to creat environment according to students need and support them in their learning achievement.
ReplyDeleteSikhne ke liye bachho ko Sikhne ka parivesh pradan karna chahi
ReplyDeleteबच्चों के सीखने में उसके परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान है। इसीलिए सीखने के परिवेश का सृजन करना चाहिए।बच्चों के परिवेश को जानकर उसके परिवेश के अनुरूप ही उसे सीखने के अवसर प्रदान करना अधिक लाभदायक है।
ReplyDeleteप्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के लिए विद्यालय रोमांचक और चुनौतीपूर्ण दोनों होता है। इसलिए कक्षा का वातावरण रुचिपूर्ण और रचनात्मक होना चाहिए| हमारे बच्चों के सीखने के परिवेश का सृजन करने के लिए मेरे द्वारा सोचे गए तरीके हैं:-
ReplyDelete१) बच्चों की भाषा को बातचीत के माध्यम बनाकर तथा यथासंभव पाठ से सम्पर्कित शिक्षण को उनकी ही भाषा में अभिव्यक्त करने की मौका देकर|
२) बच्चों से एक दोस्त की भांति व्यवहार कर एक भय-मुक्त,आनंददायी, गतिविधि-पूर्ण एवं खेल-खेल में शिक्षण कराने का प्रयास कर।
३) एक सुरक्षित(निरापद),स्वागत करने वाले शिक्षा के वातावरण का सृजन कर।
४) शिक्षण से संबंधित सभी मूल आवश्यक संसाधनों से यथासंभव समृद्ध
कक्षा का निर्माण कर|
५) कक्षा में एक अनुशासनात्मक,सहयोगात्मक एवं स्वस्थ नैतिक वातावरण का निर्माण कर।
६) बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से सहयोगी बनकर हर दिन पहली घंटी में पाठ पूर्व 5 से 10 मिनट तक उनकी समस्याओं पर(व्यक्तिगत,घरेलू,सामुदायिक,दोस्त-संबंधी या कक्षा-संबंधी)चर्चा कर तथा निदानात्मक सुझाव पर सबकी राय सुनकर एवं सुनाकर।
७) पाठ संपर्कित ऑडियो-वीजुअल दृश्य का प्रदर्शन कर।
८) चित्रकारी से भी पाठ को व्यक्त करने का प्रयास कर।
९) उन्हें प्रेरणा तथा उत्साह प्रदान कर उनके शिक्षण की ओर रुझान( दिलचस्पी)को गति प्रदान कर।
१०) स्थानीय संसाधनों का उपयोग हेतु बच्चों से शिक्षण अधिगम सामग्रियों का संग्रहण(भंडारण),मार्गदर्शन प्रदान कर तथा आवश्यकता अनुसार उनके प्रयोग कर,साथ ही महत्व को उजागर कर।
११) बच्चों को नित्य विद्यालयी-कार्यों में जिम्मेदारी थोप(सौंप) कर।
१२) कक्षा में नए-नए शिक्षण-सामग्री लाकर,उत्सुकता बढ़ाकर,अनुमान (अंदाजा) लगवाकर शिक्षण करने का प्रयास कर।
१३) हर दिन 1 घंटे हर बच्चा को कक्षा में अपने अनुभव बांटने का मौका देकर तथा सामूहिक वार्तालाप से चर्चा कर।
१४) अध्यापन में विविधता लाकर तथा शिक्षण को दैनंदिन जीवन से जोड़ कर दिखाने का प्रयास कर।
१५) सकारात्मक सोच को बढ़ावा देकर उनके मनोबल तथा काम करने की प्रवृत्ति को दृढ़ता प्रदान कर |
१६) चिंतन विचार-मंथन,संवाद एवं संप्रेषण हेतु पुनः पुनः उत्साह प्रदान तथा सम्मान प्रदान कर।
१७) कक्षा के वातावरण को ज्यादा रचनात्मक तरीके से उपयोग में लाने के लिए प्रयास कर जिससे कि उनकी रुचि को प्रेरित किया जा सके तथा उनके अनुभव को बढ़ावा मिले |
सीखने के लिए बच्चो को उनके अनुकूल वातावरण प्रदान करना चाहिए। बच्चो के रुचि का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। खेलने की आवश्यक सामग्री तथा आपस मे परस्पर संवाद के अवसर प्रदान करने चाहिए।
ReplyDeleteबच्चे विभिन्न परिवेश से विद्यालय पहुंचते हैं विभिन्न प्रकार के भाषा बोलने वाले होते हैं बच्चे खोजी प्रवृत्ति के होते हैं। इन सब को ध्यान में रखते हुए खेल एवं गतिविधि को करवाना चाहिए। किसी भी खेल एवं गतिविधि को करवाने से पहले बच्चों की रुचि को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए और खेल एवं गतिविधि ऐसी होनी चाहिए की बच्चे स्वयं से करने का अवसर मिले इससे सीखने में आसानी होगी। शिक्षण सामग्री बच्चों के रुचि के अनुरूप हो। बच्चों में परस्पर संवाद का भरपूर अवसर दिया जाना चाहिए विद्यालय का वातावरण बच्चों के अनुरूप हो बच्चों का कक्षा सुसज्जित एवं सुंदर हो।
ReplyDeleteBacchon ke Ne Ka vatavaran Prakriti Mein Hamesha maujud rahata hai avashyakta hai ki Ham use parivesh mein se bacchon ko kaise jode Taki bacche Ruchi purv Humse use Shiksha ke
ReplyDeleteबच्चे सबसे अधिक अपने सामाजिक वातावरण से सीखते हैं, हमें उसके परिवेश तथा रूची के अनुसार शिक्षण प्रक्रिया संपादित की जा सकती हैं।
ReplyDeleteThe invironment greatly develops the child'sability to learn.
ReplyDeleteTo make environment for learning their interest family background should take into concideration.
ReplyDeleteI will mix banana,orange onion,tomato etc in a busket then i will ask to seperate fruit & vegetable in seperate busket
In this way learning became fun,if their is fun in study better learning is the result.
Baccho ko sikhne ke liye anukul parivesh hona bht jaruri hai. Unhi parivesh pr naye parivesh ke srijan ki addharsila rakhi jati hai. Baccho mein jigyasa bht hoti hai. Chuki bacche alag alag parivesh se atte hain isliye unke sikhne ka star bhi alag alag hoga. Unhe ucchit parivesh dekar protsahit krne ki jarurat hai.
ReplyDeleteसीखने के लिए बच्चों को उनके अनुकूल वातावरण प्रदान करना। खेल हेतु आवश्यक सामग्री, सहपाठियों के साथ बात चीत का समय एवं सामान्य गतिविधियां करना।
ReplyDeleteबच्चे खुद करके आसानी से सीखते हैं इसलिए हमें सीखने के परिवेश का सृजन करना चाहिए जिसमें बच्चे खुद करके सीखें
ReplyDelete1. कार्य स्थल पर निर्माण कार्य में शामिल हो कर जैसे कुम्हार के साथ बर्तन बनाकर।
2. विद्यालय में ही शिक्षक के देख रेख में कुछ बीजों को
उगा कर पौधों के विषय में जानकारी प्राप्त करना इत्यादि।
M.MARANDI,RKHS KHAIRBANI,JAMTARA
Good study material
ReplyDeleteबच्चो को सांस्कृतिक तथा रीति-रिवाज के अनुसार नाटक का मंचन किया जा सकता है जहां बच्चे अपने खुद के अनुभव का प्रयोग करेगे तथा बेहतर संवाद करके सीखेगे।
ReplyDeleteजैसे कि सीखने के लिए बच्चों को उनके अनुकूल वातावरण प्रदान करना चाहिए।स्वयं करके जैसे खेलने हेतु आवश्यक सामग्री, उचित व्यवस्था, सहपाठियों के साथ बातचीत हेतु प्रोत्साहित करना।
ReplyDeletePHUL CHAND MAHATO
UMS GHANGHRAGORA
CHANDANKIYARI
BOKARO
बच्चे अपने परिवेश को रोचकता से देखते हुए अनुभव करके स्वंय भी सीखने की कोशिश और प्रयास करते हैं ,बस जरुरत है उसी परंपरा को विद्यालय में काल्पनिक रुप से पुनरनिर्माण कर यथोचित ढंग से रखना, तो वे आत्मियता से अनुभव करते हुए सीखते हैं |
ReplyDeleteपालतु पशुओं के बारे में बताने से पूर्व यदि उनको प्रत्यक्ष रुप से अनुभव करा दिया जाता है तो वो उनमें आसानी से विभेद करते हैं |
जीवन में प्रोयोग होने वाले रोजमर्रा की वस्तुओं एवं नित्य के अवलोकन पर आधारित वस्तुओं के माध्यम से सीखने के परिवेश का निर्माण भी कर सकते हैं एवम रोचक शिक्षा भी दी जा सकती है। जैसे घर में दादी या नाना पान खाते हैं और इसकी सामग्री रखते हैं, तो बच्चे इनकी जानकारी के साथ साथ किसी पान दुकान की तुलना भी कर सकने में समर्थ होंगे। उसी प्रकार यदि संतरा, नींबू , मोसंबी और बड़ा नींबू (टाब) को दिखा कर इनके बीच की समानता और अंतर तथा स्वाद के अंतर को भी समझा सकते हैं। इस तरह खाद्य पदार्थ भी यानी हमारी रसोई की सामग्रियां भी सीखने के परिवेश का निर्माण कर सकते हैं। और शिक्षण भी सम्भव हो सकता है। बच्चों को खाने का शौक भी होता है।
ReplyDeleteसीखना एक व्यक्तिगत प्रक्रिया है प्रत्येक बच्चा अलग अलग तरीके के परिवेश से सीखता है गलती करना भी सीखने का एक हिस्सा हो सकता है जैसे साइकिल चलाना सीखते समय बच्चे कई बार गिरते हैं परिवेश में बच्चों की सीखने के लिए सक्रिय भागीदारी की जरूरत होती है कारण कोई हमें शिखा तो सकता है लेकिन कोई हमारे लिए सीख भी नहीं सकता
ReplyDeleteFirst we will be examined ruching of student and we shall prepare a module plan accordingly 8nterest of student and their age environmet
ReplyDeleteबच्चों के सीखने में परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि सीखते समय परिवेश का सृजन करने से बच्चे स्वयं करके गलती कर खोज कर सकारात्मक अनुकरण करके सीख सकते हैं सामाजिक परिवेश के अंतर्गत क्षेत्रीय संगीत क्षेत्रीय भाषा एवं क्षेत्रीय स्तर पर खेले जाने वाले खेलों के माध्यम से माध्यम से रुचिकर ढंग से सीखते हैं अतः बच्चों के सीखने में परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है वैसे भी सीखना एक व्यक्तिगत प्रक्रिया है।
ReplyDeleteBachchon ko sikhine ke liye unke anukul paribesh pradan karna chahiye.Khelneke liye abashak samagri pradan karna chahiye.Uchit byabasthya hona chahiye.Sathion ke sath batchit karnekeliye protsahan karna chahiye.
ReplyDeleteबच्चों के सीखने के लिए परिवेश का बड़ा ही भूमिका है।क्योंकि वे अपनी परिवेश में उपलब्ध, भाषा, वहां की संस्कृति, माहौल, आदि के अनुरूप वे जल्दी सीखते हैं।
ReplyDeleteबच्चों को सीखने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए ।उनके पारिवारिक परिवेश ,रुचि ,उम्र और मानसिक क्षमता का ध्यान रखना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों के सीखने में परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
ReplyDeleteBacho ke sikhne ke liye sahii vatavaran bnana chahiye...library uplabdh hetu visesh dhynn dena hoga
ReplyDeleteBacchon ka sikhane ka unke parivesh ka bahut bada yogdan hota hai Saathi ankul vatavaran pradan karna chahie bacchon ke Ruchi ke anurodh shikshan samagri karakar shikshan saral ban sakte hain
ReplyDelete
ReplyDeleteबच्चो के सीखने में उनके अनुवांशिक गुणों एवं परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है।परिवेश के निर्माण के समय बच्चों की रुचि का विशेष ख्याल किया जाना चाहिए।उनके उम्र, उनके मानसिक उम्र का ख्याल भी होना चाहिए ताकि उसमें उन्हें रुचि हों उससे वे अपने को जोड़ सके।तब सीखने की प्रक्रिया सहज होगी तथा शिक्षण अधिगम मूर्तरूप धारण कर सकेगा
बच्चों के सीखने में उसके परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान है।सीखते समय परिवेश का सृजन करने से बच्चे स्वयं करके , प्रयास करके खेलकर इन्द्रियों द्वारा खोज कर सीख सकते हैं।
ReplyDeleteIt's very important for the students to understand.
ReplyDeleteविद्यालय वर्ग कक्षाओं के दीवारों पर समूह में बर्तनों के, पशुओं के,पक्षियों के, पेड़ पौधों के, फलों के, सब्जियों के, पुस्तकों के, कोपियो के, स्लेट पेंसिलओके, पहाड़ों के चित्र या फ्लेक्स प्रिंटिंग कर उपलब्ध कराया जाए। साथ ही बच्चों के घर में बोले जाने वाली भाषा का प्रयोग उन्हें समझाने और बताने में प्रयोग किया जाए। ऐसा करने से वह अपनापन महसूस करेगा तथा सीखने में रुचि लेगा और बेहतर ढंग से सीख पाएगा।
ReplyDeleteIt's very interesting
ReplyDeleteबच्चों को सीखने में सहायक सामग्रियों का बहुत महत्व है।इससे सीखना के परिवेश का निर्माण होता हैै।अत:सीखने की सामग्री मुहैया कराकर स्वयं या समूह में कार्य करने का पूरा अवसर प्रदान किया जा सकता है ।
ReplyDeleteसीखने के परिवेश का सृजन करने के लिए बच्चों को कक्षा के अंदर जैसे चित्रांकन,स्ट्रक्चर मेकिंग,पज़ल्स आदि कराऊँगी। कक्षा के बाहर मिट्टी के घरौंदे बनाना,मिट्टी से विभिन्न आकृतियों का निर्माण, मैदान में नंबर या अक्षर लिखकर गेम कराना आदि कराऊँगी जिससे मैं उनकी योग्यताओं और रूचियों को जान सकूँ।
ReplyDeleteBacchon mein sikhane ke parivesh ka shrijan karne ke liye unke purv Anubhav AVN unki samajh per Dhyan kendrit karna chahie Jaise bacche Apne aaspaas Jo chijen dekhte hain to uske vishay mein kuchh Na kuchh jante Hain FIR unhen chijon ke madhyam se unka Gyan vistar Kiya ja sakta hai
ReplyDeleteसृजन शिक्षण बेहतर बनाने के लिए विभिन्न उपकरणों प्रयोग करके विभिन्न गतिविधियों करवाएंगे
ReplyDeleteबच्चों की रुचि के अनुसार परिवेशीय परिस्थितियों के साथ जोड़कर सीखने का अवसर उपलब्ध कराने से सीखने का प्रतिफल में वृद्धि होता है।
ReplyDeleteमां का ख्याल भी होना चाहिए ताकि बच्चे में रूचि हो उससे हुए जोड़ते हैं साथ ही वातावरण पर भी ध्यान देना है विभिन्न प्रकार के उपकरण का प्रयोग कर जैसे खेलना पुस्तकालय और तापमान गुण खेत में ब्लाक क्षेत्र हस्तकला क्षेत्र संगीत आदि से कौशलम् का नया सृजन प्राप्त हो
ReplyDeleteसीखने के परिवेश का सृजन करने के लिए बच्चों को कक्षा में तथा कक्षा के बाहर कुछ गतिविधि कराऊंगी। जैसे कक्षा के अन्दर चित्रांकन,पजल्स,ब्लाक्स से स्ट्रकचर मेकिंग इत्यादि।कक्षा के बाहर खेल मैदान में नंबर या अक्षर लिखकर खेल कराऊंगी,बाहर पर्यावरण से भिन्न भिन्न प्रकार के पत्तों को इकट्ठा करने, कंकड़ नंबर के अनुसार जमा करने जैसे गतिविधि कराऊंगी।
ReplyDeleteबच्चे हमारे देश के भविष्य हैं। उनका सर्वांगीण विकास होना आवश्यक है।
ReplyDeleteहर बच्चा अपने आप में विशेष होता है।
बच्चों को उनके पृष्ठभूमि के अनुसार रुचिकर गतिविधि करानी चाहिए। गतिविधि का चयन आयु के अनुसार एवं उनके सीखने की ज़रूरत के अनुरूप होना चाहिए। Jay parkash Singh ups haraiya
बच्चों के परिवेश के आधार पर सर्वप्रथम प्राकृतिक वस्तुओं से उन्हें जोड़कर, उनके क्षेत्रीय गीतों को गाकर, उनके मनपसंद एक्शन गीत विथ एक्शन करवाकर, उनकी ही भाषा में बात करते हुए पेंटिंग, खिलौने और खेल के माध्यम से उन्हें ढालते हुए, स्कूल के परिवेश से जोड़ने पर प्रतिफल बेहतर होता है।बच्चों में जिज्ञासा बढ़ते जाएगी और वे हमेशा कक्षा की हर गतिविधि में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले पाएंगे।
ReplyDeleteSikhane ke liye bacchon ko unke a Anukul vatavaran pradan karna chahie bacche swayam samagri ke sath gatividhi karke sikhen Khel Khel mein sikhen Apne sehpaathi se baat karke sikhen.
ReplyDeleteAnjani Kumar Choudhary 7549021253
ReplyDeleteबच्चो को सीखने के उनके परिवेश के बहुत योगदान है।उसी परिवेश को जोड़कर नए परिवेश के निर्माण।परिवेश के निर्माण के समय बच्चो की रुचि का विशेष ख्यल किया जाना चाहिये।उनके उम्र उनके मानसिक उम्र कस ख्याल भी होना चाहिये।ताकि उसमे उन्हें रुचि हों उससे वे अपने को जोड़ सके।तब सीखने की प्रक्रिया सहज होगी
बच्चों के परिवेश के अनुसार माहौल का निर्माण किया जाना चाहिए तथा उनके परिवेश से सबंधित शिक्षण सामग्रियों का भरपूर उपयोग किया जाना चाहिए ताकि बच्चे रूचीपूर्वक सिख सके।
ReplyDeleteTarkeshwar Rana, UPG MS Ramu Karma (para shikshak) chouparan,hazaribagh
ReplyDeleteClassrooms should be decorated with different projects and persanality, playground should be green and grassy . providing children a healthy and positive environment.thankyou
ReplyDeleteBacchon ke parivesh ke anusar mahaul ka Nirman Kiya Jana chahie tatha unke parivesh se sambandhit shikshan samagri ka bharpur upyog Kiya Jana chahie taki bacche Ruchi purvak sake sake.
ReplyDeleteBacchon ke parivesh ke anusar mahaul ka Nirman Kiya Jana chahie.tatha unke pariveshs se sabndhit shikshan samagri ka bharpur upyog Kiya Jana chahie taki bacche Ruchi purvk Shikh sake .
ReplyDeleteSikhane ke liye bacchon ko unke Anukul mahaul taiyar karna chahie khelne ke liye avashyak samagri ki vyavastha parivesh ke Nirman ke samay bacchon ke a Ruchi ka Vishesh Dhyan Dena chahie Kitna
ReplyDeleteबच्चों के रूचि के अनुसार गतिविधियां आयोजित कर सीखने के अनुरूप परिवेश तैयार करना चाहिए।
ReplyDeleteसीखने के परिवेश का सृजन करने के लिए कुछ तरीके निम्न हो सकते हैं:
ReplyDelete1) कक्षा- कक्ष को Print rich एवं व्यवस्थित रखकर।
2) खिलौने, TLM आदि सामाग्रियों द्वारा।
3) प्राकृतिक संसाधनों के द्वारा।
4) गीत- संगीत, पेंटिंग, अभिनय आदि द्वारा।
प्रत्येक बच्चे की सीखने की गति भिन्न भिन्न होती है।वे विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं।वे इन पृष्ठभूमि से ज्यादा प्रभावित होते हैं।विभिन्न पृष्ठभूमि से आने के कारण कुछ बच्चों की सीखने की गति बहुत तेज होती है, जबकि कुछ की बहुत ही निम्न।
ReplyDeleteहम शिक्षकों को यहां बहुत ही सावधानी से प्रत्येक बच्चे की भावनाओं को अक्षुण्ण रखते हुए , स्वस्थ शैक्षिक वातावरण कहां निर्माण करना होगा।निम्न गति से सीखने वाले बच्चे के लिए एक विशेष कार्ययोजना की आवश्यकता होगी।उन्हें विशेष निगरानी की व्यवस्था करने की जरूरत है।उनके सीखने की गति क्षमता के अनुसार वातावरण का निर्माण करना श्रेयस्कर होगा।
अनिल तिवारी
सहायक शिक्षक
रा म विद्यालय दुलदुलवा
मेराल, गढवा।
Sikhne ke pariwesh ka Srijan karne ke liye bachho ke ruchi ko dhyan me rakh kar karenge.
ReplyDeleteबच्चों को विषय से सम्बंधित सामग्री का समुचित उपयोग और परिवेश में उपलब्ध साधनों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करना चाहिये।
ReplyDeleteब्लॉक निर्माण, शैक्षणिक परिभ्रमण, खेलकूद का आयोजन, चित्रांकन, इत्यादि।
ReplyDeleteसीखने के परिवेश का सृजन करने के लिए शिक्षा को विभिन्न कला के द्वारा बच्चों को पढ़ाना चाहिए ।
ReplyDeleteबच्चों को खेल-खेल और कला के द्वारा विभिन्न प्रकार की गतिविधि करके शिक्षा दी जानी चाहिए।
ताकि बच्चे उत्साह और खुशी से सीख सकें ।
बच्चों के साथ वैसा ही व्यवहार करें ताकि बच्चे भय मुक्त हो और अपने अंदर का विचार या प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकें।
सरिता कुमारी
UMS KHUTHATI.
अंचल महागामा
,जिला गोड्डा ,झारखंड
सीखने के परिवेश का सृजन करने के लिए शिक्षक को विभिन्न कला के द्वारा बच्चों को पढ़ाना चाहिए ।
ReplyDeleteबच्चों को खेल खेल और कला के द्वारा विभिन्न प्रकार की गतिविधि करके शिक्षा दी जानी चाहिए ।
ताकि बच्चे उत्साह और खुशी से सीख सकें ॥
बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार करें ताकि बच्चे भय मुक्त हो और अपने अंदर विचार या प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकें ।
सरिता कुमारी
UMS KHUTHRI,
MAHAGAMA
GODDA
JHARKHAND
2021 at 07:04
ReplyDeleteबच्चों के सीखने में परिवेश का बड़ा योगदान है।इसलिए रुचिकर परिवेश का निर्वाण आवश्यक है। संस्कृति के सहायक तत्व को सीखने की प्रक्रिया में शामिल कर शिक्षण अधिगम को बढ़ावा दे सकते
बच्चों के सीखने में परिवेश की महत्वपूर्ण भूमिका होती।इसलिए कला ओर खेल के माध्यम से सिखाने का प्रयास होना चाहिऐ।विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से बच्चे उत्साह पूर्वक सीखते हैं।
ReplyDeleteबच्चों को सीखने के लिए वहां का परिवेश बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए पहले।परिवेश को ठीक करना होगा।फिर बच्चों,को सिखायेंगे तो बच्चे अच्छी से सीखेगा।
ReplyDeleteBacchon ke sikhane ke parivesh ka Srijan karne ke liye Ek Achcha Prayas karna chahie Kuchh Aisi gatividhiyon Ka aayojan Karna chahie Jo Kafi ruchikar Ho .ho sake to Khud Shamil Hona chahie jisse bacche Kafi prabhavit Honge .
ReplyDeleteChid friendly environment should be adopted in school premises.So from this environment students can easily interact with the teachers as well with the students.
ReplyDeleteबच्चों के लिए रुचिकर परिवेश का सृजन कर सीखने का अवसर प्रदान करना चाहिए।साथ ही इन्हे कला और खेल के माध्यम से सीखने का प्रयास होना चाहिए।विभिन्न गतिविधियों के द्वारा बच्चे आसानी से सीखते हैं।
ReplyDeleteबच्चे बाल केंद्रित वातावरण में बेहतर ढंग से सीखते है । वैसा वातावरण जहां बच्चे उन चीज़ों के साथ स्वयं प्रयोग कर सकते है,जिन्हें वे पसंद करते है, जहां सीखने की प्रक्रिया मे सक्रिय रूप से संलग्नता हो पाते है, राय जाहिर करने के साथ ही विचारों की आजादी भी मिलती है और लक्ष्य की ओर इच्छानुसार कार्य करने के अनेकानेक अवसर प्राप्त होता है ।
ReplyDeleteगतिविधि या रूचि के क्षेत्र कक्षा में वह स्थान है जहां बच्चे उन सामग्री जहां विशेष विकास के आयाम को मजबूती देने के लिए आवश्यक है । बच्चे रोचक ढंग से और खेल -खेल में अपनी पसंद की गतिविधि में भाग लेकर सीखते है । गतिविधि या बच्चों के सीखने का सृजन कई प्रकार के होते है जैसे - पुस्तकालय और साक्षरता क्षेत्र , गुड़िया या नाटकीय प्रस्तुति क्षेत्र , खोजबीन या विज्ञान क्षेत्र , ब्लॉक निर्माण क्षेत्र , गणित या हस्तकौशल क्षेत्र , कला, संगीत और गति क्षेत्र के लिए कक्षा में अच्छी तरह से स्थापित और सुसज्जित किया जाना चाहिए, जहां बच्चे को कक्षा में हर तरफ से दिखाई दें । बच्चे की रूचि एवं आयु के अनुरूप विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग कर सीखने के परिवेश को नई सृजन प्राप्त हो सकते है ।
बच्चे अलग-अलग परिवेश से विद्यालय आते हैं । परिवेश का बच्चों के सीखने के साथ गहरा संबंध होता है । अतः विद्यालय में ऐसा परिवेश का सृजन करना होगा जो आकर्षक और भयमुक्त हो
ReplyDeleteजहां बच्चे स्वतंत्र रूप से अपना विचार व्यक्त कर सके । उनकी रूचि और मानसिक क्षमता को देखते हुए शिक्षण-सामग्री उन्हें
उपलब्ध कराकर शिक्षण विधि को सरल बनाया जा सकता है ।
इस तरह की युक्ति अपनाकर बच्चों को सीखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है ।
बच्चों के लिए भय मुक्त वातावरण निर्मित कर तथा उनके रूचि अनुसार गतिविधि का आयोजन करना चाहिए। जिससे बच्चे खुल कर आपसी संवाद के माध्यम से भी सीख सके।
ReplyDeleteबच्चों विभिन्न परिवेश से विद्यालय आते हैं, अतः विद्यालय का वातावरण आकर्षक,रुचिकर, भयमुक्त होना चाहिए ताकि बच्चे बेहिचक अपनी बात को रख सके और नये चीजों को सीखने के लिए भी उत्प्रेरित हो सके।
ReplyDeleteBache vidyalayon me aate hai waha unke anuae us mahol me dhal jane me prayason se srijnatmkta ka vikas ho pata hai unhe samuh me swny karne se wo thik se samjh pate hai aur sikh pate hai unhe yah bhay mukt wata waran prapt hota hai wo git sangitl khel aapse me pratisprdha karte hai aur rochak kary karte hai jinka rachnatmkta se unki kaushal me srijntamk vikas hota hai
ReplyDeleteबच्चों के सीखने के परिवेश परिवार, समाज, स्कूल आदि हो सकतें हैं, पर यहां स्कूल में बच्चों के सीखने के परिवेश का सृजन वर्ग-कक्ष, खेल,आपसी संवाद, बड़ों से संवाद, पुस्तकालय में उनको पूरा अवसर देकर। Govind Singh Boipai. UMS Hatnatodang. CKP
ReplyDeleteBacchon ko sikhane ke liye uska parivesh jaruri hai
ReplyDeleteछोटे बच्चों की रुचि खेल- खिलौनों में ज्यादा और पढ़ाई- लिखाई में कम होती है इसलिए पढ़ाई के शुरुआती दौर में बच्चों को सामूहिक रूप से खुलकर खेलने दें, आपस में, आप से अपनी समस्याएं, पसंद- नापसंद रखने का मौका दें उसे बेझिझक अपने करीब आने दें और जब वह आपको अपना हितैषी-सा मानने लगे आप से घुलमिल जाए तब उसे मौखिक सीखाना प्रारंभ किया जाय जिसमें तुकांत शब्द और वाक्य हों जिन्हें बोलने के लिए वह प्रेरित हो और बोलकर मजे ले.बस शुरुआत मजेदार हो फिर तो सीखना- सिखाना आनंददायक और सरल, सरस होता ही चला जाएगा.
ReplyDeleteबच्चे विद्यालय आने से पहले अपने अपने परिवेश से सीखे होते हैं।उनकी भाषा परिवेश को ध्यान रखते हुए बच्चों को शिक्षा प्रदान करना है। उनकी रुचि सोच विचार ( गणित भाषा विज्ञान ) विद्यालई शिक्षा से जोड़ना है।बच्चों के रुचि के आधार पर वातावरण निर्माण करना है।
ReplyDeleteबच्चो के सीखने में उनके अनुवांशिक गुणों एवं परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है।परिवेश के निर्माण के समय बच्चों की रुचि का विशेष ख्याल किया जाना चाहिए।उनके उम्र, उनके मानसिक उम्र का ख्याल भी होना चाहिए ताकि उसमें उन्हें रुचि हों उससे वे अपने को जोड़ सके।तब सीखने की प्रक्रिया सहज होगी तथा शिक्षण अधिगम मूर्तरूप धारण कर सकेगा संजय कुमार झा स०शि० उत्क्रमित उच्च विद्यालय छोटी रण बहियार रामगढ़ दुमका।
ReplyDeleteसीखने के परिवेश बच्चों को जन्म से ही अलग अलग परिस्थितियों में मिलते है बस उसे हमें बच्चों में उनकी रूचि को ध्यान में रखते हुए सीखाने की जरूरत है। उन्हें हमेें ऐसा माहौल उपलब्ध कराना होगा जिसमें उनकी सीखने के प्रति रूचि और बिना भय और संकोच के ग्रहण करने की परिस्थितियां हो।
ReplyDeleteसीखना जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया ना सिर्फ किताबों तक सीमित रहती है बल्कि दैनिक जीवन में भी समान रूप से कार्य करती है। सीखने में परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है साथ ही बच्चों के बौद्धिक क्षमता पर भी निर्भर करता है। ऐसा माना जाता है कि सीखने सिखाने की प्रक्रिया में बच्चों के उम्र, रुचि यानी बच्चों का पसंद, शिक्षण अधिगम सामग्री, उनके सहपाठी, शिक्षण हेतु उचित स्थान, शिक्षण में निरंतरता आदि का समावेशन एक उचित एवं स्वस्थ शिक्षण के लिए महत्वपूर्ण कड़ी माना जाता है।
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