शिक्षक/शिक्षिका के रूप में उन परेशानियों के बारे में विचार कीजिये, जिनका सामना आप अक्सर विद्यालय में करते हैं I यह सोचने की कोशिश करें कि विद्यालय प्रबंधन और माता-पिता के माध्यम से किन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है तथा किस प्रकार इन लोगों से संपर्क कर अपनी परेशानी बतायी जाए ताकि बेहतर स्थिति प्राप्त हो सके I अपने विचार साझा करें I
This blog is for online NISHTHA Training for Jharkhand State. You are welcome to share your reflections/comments/suggestions on this page.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
कोर्स 12 : गतिविधि 5 : खिलौना क्षेत्र का सृजन – अपने विचार साझा करें
आप अपनी कक्षा/ स्कूल में खिलौना क्षेत्र कैसे सृजित करेंगे – इस बारे में सोचें। डी-आई-वाई खिलौनों का सृजन करने में बच्चों की सहायता के लिए ...
-
COVID-19 (कोरोना वायरस) के दौरान, आप अपने विद्यार्थियों के साथ किस प्रकार संपर्क में रहे? आपने अपने शिक्षण में क्या मुख्य बदलाव किये? अपने अ...
-
आई.सी.टी. से क्या तात्पर्य है ?
-
How does ICT support your Teaching- Learning- Assessment? Take a moment to reflect and share your understanding in the comment box.
ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में अधिकांश लोग गरीब हैं।लोग जीविकोपार्जन मे इतना व्यस्त रहते हैं किवे बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते।
ReplyDeleteबच्चों को घर पर पढ़ाई का environment नहीं मिल पाता है।
शिक्षक और अभिभावकों के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर इस समस्या का समाधान ढूँढा जा सकता है।
मु० अफ़ज़ल हुसैन
Deleteउर्दू प्राथमिक विद्यालय मंझलाडीह। शिकारीपाड़ा,दुमका।
अधिकांश बच्चे ऐसे घरों से आते हैं जिनके माता-पिता अशिक्षित है या तो फिर जहां पढ़ाई का बिल्कुल वातावरण नहीं है उन्हें वर्ण पहचानने में दिक्कत होती है हम कोशिश कर सकते हैं कि माता-पिता को बैठक में बुलाया और उनसे सलाह करके ऐसा माहौल तैयार करें ताकि बच्चे और अभिभावक और शिक्षक तीनों मिलकर के बच्चों के उत्थान के लिए सहयोग कर सकें।
DeleteI often face the problems of low attendance and indifference attitude of students. So i discuss with the parents to find out the reasons of these problems. But i have no hesitation to say that majority of the parents do not pay attention in my opinion active participation of SMC and school leadership can solve all these problems.
DeleteBHAROTY MUKHERJEEM.SKHAS NIRSHA,DHANBAD
DeleteTHERE ARE MANY PROBLEMS THAT ARISES DUE TO IMPROPER COMBINATION OF PARENTS EFFORTS TOWARDS ALL ROUND DEVELOPEMENT OF STUDENTS.
बच्चों के विकास में विद्यालय प्रबंधन समिति,माता-पिता एवं समुदाय की भागीदारी बहुत जरूरी है।इस तरह से बच्चे का सर्वांगीण विकास संभव है।ऐसे तो हमारे विद्यालय के बच्चों के माता-पिता डेली वेजेज मजदूर हैं।उनके साथ मीटिंग करने में मुश्किल होता है।फिर भी बच्चों के विकास के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।
DeleteIn the catchment area of my school there are many families of disadvantaged groups are residing. They prefer to send their children to hotels and working places rather than sending to school. This is reason for the low literacy rate in rural regions in India. The lack of awareness of the importance of education is another big reason. People in rural regions are mostly engaged in agricultural and allied sectors. Children from the beginning are engaged in these sectors and not give much importance to their studies.
ReplyDeleteReligious beliefs and some societal norms also a hiccup in the path of providing education in rural India. Many rural Indians believe that children, especially girls, should not study much and don’t have to cover a long distance to go to school. Instead of getting the education, they should focus on some work which helps them in earning.
ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावकों की आर्थिक,सामाजिक और शैक्षिक कारणों से अनुकूल शैक्षिक वातावरण बनाने में साझेदारी बहुत कम होती है ।हमें साझेदारी बढ़ाने के लिए सार्थक प्रयास करने होंगे।
Deleteअभिवावक बच्चो और शिक्षक के बीच शैक्षिक वातावरण बनाने में मदद कर सकते हैं।ग्रामीण क्षेत्र में यद्द्यपि अभिभावकों की साझेदारी कम होती है।कारण बहुत से होते है।आर्थिक,सामाजिक रूप से अभिभावक प्रभावित होते हैं
ReplyDeleteहमारी कोशिश हो उनके बीच सार्थक साझेदारी हो।
After Consulting The Parents we can solve their following problems-About health, education class problem mentality among student homework discipline attendance record etc.
ReplyDeleteनिश्चित रूप से शिक्षक होने के नाते हमें अपने विद्यालय के बच्चों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने में निरंतर की प्रकार के कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।हम इन्हें निम्नवत दिखला सकते हैं---
ReplyDelete1) बच्चों की नियमित उपस्थिति,
2) बच्चों का नियमित रूप से गृहकार्य नहीं करना,
3)बच्चों का चिड़चिड़ापन व्यवहार,
4)बच्चों का अनुशासन संबंधित मुद्दे,
5)बच्चों के आर्थिक कारणों के कारण पाठयसामग्री की अनुपलब्धता,
6)बच्चों के संज्ञानात्ममक,भावनात्मक एवं मनोगत्यात्मक कौशल में अंतर,
7)विशेष आवश्यकता वाले बच्चों का समावेशन,
8)बच्चों के सामाजिक,सांस्कृतिक,संवेगात्मक,अध्ययन-अध्यापन सहित अन्य कई मुद्दे
इन तमाम अनगिनत समस्याओं का समाधान केवल शिक्षक द्वारा कर पाना संभव नहीं होता।इसमें बच्चों के परिवार,माता-पिता,अभिभावक,समुदाय,विद्यालय परिवार,विद्यालय प्रबंधन समिति सहित अन्य हितकारी का अपेक्षित सहयोग बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है।माता-पिता,समुदाय सार्थक साझेदारी,सकारात्मक अनुसमर्थन आदि द्वारा शिक्षकों को सहयोग प्रदान कर सकते हैं। पीटीए का नियमित आयोजन,कक्षा में अभिभावकों को शामिल करने,कार्यशालाओं का आयोजन,नम्र व्यवहार एवं निरंतर संचार आदि से हम सकारात्मक परिणाम की प्राप्ति की एक अनूठी रूपरेखा तय कर सकते हैं।बहुत-बहुत धन्यवाद।
कौशल किशोर राय
सहायक शिक्षक,
उत्क्रमित उच्च विद्यालय पुनासी,
शैक्षणिक अंचल:- जसीडीह
जिला:- देवघर
राज्य:- झारखण्ड
बहुत अच्छा अपना विचार दिये हैं|
Deleteबधाई |
अधिकांश बच्चे ऐसे घरों से आते हैं जिनके माता-पिता अशिक्षित है या तो फिर जहां पढ़ाई का बिल्कुल वातावरण नहीं है उन्हें वर्ण पहचानने में दिक्कत होती है हम कोशिश कर सकते हैं कि माता-पिता को बैठक में बुलाया और उनसे सलाह करके ऐसा माहौल तैयार करें ताकि बच्चे और अभिभावक और शिक्षक तीनों मिलकर के बच्चों के उत्थान के लिए सहयोग कर सकें।
ReplyDeleteTulsi oraon 11November 2021.Adikansh bachche yese psrivaro se vidylay aate hai. Jinke mata-pita aksar ashishit hote hai ttha jha pdhai ka bilkul vatavarn nhi hai vaise bachcho ke sath shiksko ko kafi dikkate aati hai lekin hm shishko ko yh sunishchit karna chahiye ki bachcho ke vavisay ko kis tarah se aage bdhane me madd kar sakenge. Iske liye hame achchhi ranniti banani hogi taki ham bachcho ke mata-pita avivawko ko is ranniti se sahaj tareke se jod sake. Our unki vichar ko badalkar nyi vichardhara me parivartan la sake. To ham koshish karege ki bachcho ke mata-pita. Abhivawko ko har masik baithak meupsthit hokar shikshak dawara bataye gaye bato ko dhyan se sunna hoga our samay-samay par shikskho se bachcho dawara ki gai gatividhiyon ki janjati le sake. Is tarah ham mata-pita. Abhivawak. Our shikshak milkar bachcho ke sarvsangin vikash ke liye sahyog kar sake. Dhanybaad.
Deleteवास्तव में निजी विद्यालय और सरकारी विद्यालय में अध्धयन करने वाले बच्चों में परीवेश का महत्वपूर्ण अंतर है।
ReplyDeleteहमारे बच्चे जिस परीवेश से आते है, वहां पढ़ाई-लिखाई सिर्फ स्कूल तक ही सीमित है । उसके बाद बच्चे खेल खुद , घरेलू कार्यों में, खेती बाड़ी में सहयोगी के रूप में व्यस्त रहते हैं ।
इसी कड़ी में शिक्षक बच्चों को संवारने में अभिभावकों तथा समुदाय के सहभागीता से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ।
शिक्षक और अभिभावकों के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर इस समस्या का समाधान ढूँढा जा सकता हैं
ReplyDeleteहम शिक्षकों को ग्रामीण परिवेश होने के कारण
Deleteनिश्चित रूप से विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है परन्तु शिक्षक और अभिभावक के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित करके इन समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।
शिक्षक,बच्चों के अभिभावकों से परस्पर सहयोगी के रूप मे कार्य करेंगे और बच्चों की कठिनायों एवम् प्रगति को अभिभावकों के साथ साझा करेंगे और मिलकर समस्याओं के निराकरण का प्रयास करेंगे।एक अच्छी साझेदारी के अच्छे परिणाम मिलेंगे।
ReplyDeleteबच्चों के विकास में शिक्षक के साथ अभिभावक का भी विशेष योगदान है।देखा गया है कि जिन बच्चों के अभिभावक जागरूक हैं उनके बच्चे अच्छा करते है।शिक्षक और अभिभावक के साथ सहयोग एवं समन्वय स्थापित कर समस्या का समाधान निकाल सकते है।
ReplyDeleteअशिक्षित है या तो फिर जहां पढ़ाई का बिल्कुल वातावरण नहीं है उन्हें वर्ण पहचानने में दिक्कत होती है हम कोशिश कर सकते हैं कि माता-पिता को बैठक में बुलाया और उनसे सलाह करके ऐसा माहौल तैयार करें ताकि बच्चे और अभिभावक और शिक्षक तीनों मिलकर के बच्चों के उत्थान के लिए सहयोग कर सकें।
ReplyDeleteअशिक्षित है या तो फिर जहां पढ़ाई का बिल्कुल वातावरण नहीं है उन्हें वर्ण पहचानने में दिक्कत होती है हम कोशिश कर सकते हैं कि माता-पिता को बैठक में बुलाया और उनसे सलाह करके ऐसा माहौल तैयार करें ताकि बच्चे और अभिभावक और शिक्षक तीनों मिलकर के बच्चों के उत्थान के लिए सहयोग कर सकें।
DeleteBache ke vilas me PTM bahut jaruri hai
ReplyDeletePTM ka hona bahut hi sundar bat hai
ReplyDeleteबच्चों के विकास में माता पिता शिक्षक एवं समुदाय की भागीदारी आवश्यक है ऐसा देखा गया है कि जिन बच्चों के अभिभावक जागरूक हैं उनके बच्चे अच्छा करते हैं अतः यह स्पष्ट है की बच्चों के विकास में माता पिता एवं समुदाय के साथ शिक्षक का समन्वय बहुत उपयोगी होगा
ReplyDeleteविद्यालय स्तर प्रारंभिक साक्षरता तथा गणितीय कौशलों एवं अवधारणाओ के विकास में माता पिता को शामिल करना बहुत हीं अवश्य है। कभी कभी बच्चे कक्षा में अनेक तरह की परेशानियां उत्पन्न करतें हैं।
ReplyDelete* बहुत अधिक लड़ाई झगड़ा करना।
* कक्षा कार्य में ध्यान न देना।
* बच्चे का कक्षा में शांत बैठे रहना।
* गृह कार्य करके न आना।
* सही से अपने कॉपी किताबें न लाना।
* नियमित रूप विद्यालय न आना।
इस तरह की समस्याओं में शिक्षक के सामने अनेक परेशानियां उत्पन्न हो जाती है। इस परिस्थिति में विद्यालय प्रबंध समिति के माध्यम से माता पिता से संपर्क कर शिक्षक अभिभावक की बैठक बुलाकर उनसे उनके बच्चों के बारे में बताकर अपेक्षित सुधार की जा सकती है।
हमारे विद्यालय में अधिकांश बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं जिन्हें घर में पढ़ाई का माहौल नहीं मिल पाता है। अधिकाशं माता-पिता अशिक्षित या अल्प शिक्षित तथा गरीब हैं जो यह मानते हैं कि पढ़ाई-लिखाई सिर्फ विद्यालय तक ही सीमित है। वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि बच्चों की शिक्षा एवं उनका सर्वांगीण विकास में शिक्षक के साथ-साथ अभिभावक तथा समुदाय का भी एक बहुत बढ़ा योगदान है। हम शिक्षक, अभिभावक एवं समुदाय के बीच परस्पर समन्वय, सहयोग एवं सहभागिता स्थापित कर इस समस्या का समाधान कर सकते हैं तथा बच्चों को शिक्षा का एक बेहतर माहौल दे सकते हैं।
ReplyDeleteNirmal Kumar Roy.
Asstt.Teacher.
Govt.Basic School Jorapokhar.
Jhinkpani.West Singhbhum.
बच्चों के सर्वांगीण विकास में शिक्षक के साथ अभिभावकों तथा समुदाय का विशेष योगदान होता है अतः PTM का बैठक कर शिक्षक और अभिभावक के साथ समन्वय स्थापित कर पठन- पाठन का उचित माहौल तैयार किया जा सकता है|
ReplyDeletePTM Is the best .
ReplyDeleteअभिभावकों के साथ बैठक बहुत जरूरी है।बैठक में परामर्श निकालकर, बच्चों की उपस्थिति,गृहकार्य, क्लास वर्क,उनकी प्रोग्रेस, गतिविधियां आदि समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है।
ReplyDeleteहम सभी बच्चों का सर्वांगीण विकास चाहते हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत सारी समस्याएँ होती हैं, परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में भी एक से एक कलाकार मौजूद होते हैं।हम शिक्षक को PTM में श्यामपट्ट पर मौजूद सभी लोगों से अगर यह कहें कि आप जो भी जानते हैं,उसमें से एक गुण आप बताएं।फिर आप देखेंगे कि पूरा श्यामपट्ट गुणों से भर जायगा।अब उन्हें समझाना है कि अगर ये सब गुण आपके बच्चों में आ जाय उसके लिए आप हमें और हमारे बच्चों को क्या मदद कर सकते हैं। फिर उन्हीं के मन मुताबिक एक दिन एक व्यक्ति के लिए तय करवा दें।इस प्रकार हमारे पास एक्सपर्टों की टीम बन जायेगी और तब बच्चों का आशानुरूप विकास सम्भव हो जाता है।चूंकि यह प्रयास मैंने करके देखा है।यह बहुत ही लाभकारी और गार्जियन का रुझान एवम सहयोग बढ़ाने का सहज एवम आसान तरीका है।इस उपाय से शिक्षक,बच्चे और पालक/VEC सबों के सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आती है तथा बच्चों का सर्वांगीण एवम रोजगारोन्मुख विकास सम्भव हो जाता है।अतः मेरे दृष्टिकोण से यह FLN के प्रथम चरण को पूर्ण करने में सहयोगी है।Purushottam Kumar, Teacher UMS SANKI,Patrata,Ramgarh.
ReplyDeleteबच्चों के विकास के लिए अभिभावकों, माता-पिता एवं विद्यालय प्रबंधन समिति के समन्वय स्थापित कर बच्चों का सर्वांगिण विकास संभव है|
ReplyDeleteशिक्षक और बच्चों के अभिभावकों के बीच सामंजस्य बना कर ही FLN MISSION को सफल बनाया जा सकता है।
ReplyDeleteबच्चों के विकास के लिए अभिभावकों, माता-पिता एवं विद्यालय प्रबंधन समिति के समन्वय स्थापित कर बच्चों का सवाऀगिण विकास संभव है।
ReplyDeleteI often face the problems of low attendance and indifference attitude of students. So I discuss with the parents to find out the reasons of these problems. But I have no hesitation to say that majority of the parents do not pay attention. In my opinion, active participation of SMC and school leadership can solve all these problems.
ReplyDeleteThanks!
Please read indifferent in place of 'indifference'.
DeleteThanks!
बच्चों के सर्वांगीण विकास में अभिभावकों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। शिक्षक और अभिभावकों के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर सभी समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है। एक अच्छी साझेदारी के अच्छे परिणाम मिलेंगे
ReplyDeleteBacchon ke sarvangeen Vikas ke liye shikshak aur abhibhavakon ko bahut tarah ki samasyaon ka Samna karna padta hai Vishesh karke shikshak ko aur isliye shikshak abhibhavakon ke sath sambandh sthapit karke an samasyaon ka Samadhan dhundh sakta hai shikshak bacche aur abhibhavakon ke sath hi achcha sajhedari ke parinaam sarafi ine samasyaon ka Samadhan ho sakta hai aur iske acche parinaam mil sakte hain.
ReplyDeleteबच्चे कक्षा में अनेक तरह की परेशानियां उत्पन्न करतें हैं।
ReplyDelete* बहुत अधिक लड़ाई झगड़ा करना।
* कक्षा कार्य में ध्यान न देना।
* बच्चे का कक्षा में शांत बैठे रहना।
* गृह कार्य करके न आना।
* सही से अपने कॉपी किताबें न लाना।
* नियमित रूप विद्यालय न आना।
इस तरह की समस्याओं में शिक्षक के सामने अनेक परेशानियां उत्पन्न हो जाती है। इस परिस्थिति में विद्यालय प्रबंध समिति के माध्यम से माता पिता से संपर्क कर शिक्षक अभिभावक की बैठक बुलाकर उनसे उनके बच्चों के बारे में बताकर अपेक्षित सुधार की जा सकती है।
विद्यालय स्तर पर प्रारंभिक साक्षरता तथा गणितीय कौशलों एवं अवधारणाओं के विकास में माता पिता एवं समुदाय को शामिल करना बहुत हीं अवश्य है। कभी कभी बच्चे कक्षा में अनेक तरह की परेशानियां उत्पन्न करतें हैं।
ReplyDelete* बहुत अधिक लड़ाई झगड़ा करना।
* कक्षा कार्य में ध्यान न देना।
* बच्चे का कक्षा में शांत बैठे रहना।
* गृह कार्य करके न आना।
* सही से अपने कॉपी किताबें न लाना।
* नियमित रूप विद्यालय न आना।
* बार_बार कक्षा से बाहर जाना।
* MDM के बाद चुपचाप घर भाग जाना।
इस तरह की समस्याओं में शिक्षक के सामने अनेक परेशानियां उत्पन्न हो जाती है। इस परिस्थिति में विद्यालय प्रबंध समिति के माध्यम से माता पिता से संपर्क कर शिक्षक अभिभावक की बैठक बुलाकर उनसे उनके बच्चों के बारे में बताकर अपेक्षित सुधार की जा सकती है।
बच्चे ग्रामीण परिवेश से विद्यालय आते हैं ,जो काफी गरीब परिवार से सम्बन्ध रखते हैं । इनकी उपस्थिति नियमित नहीं होती । ऐले में विद्यालय, अभिभावक, समुदाय एस एम सी की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है कि आपसी तालमेल एवं समन्वय बनाकर एफ एल एन प्राप्ति में सहयोग करें।
ReplyDeleteशिक्षक होने के नाते बच्चों की सर्वांगीण विकास में विभिन्न प्रकार की परेशानियां अक्सर आते रहते है । जैसे - माता-पिता को बच्चों के प्रति शिक्षण प्रगति पर ध्यान न रखना , बच्चे का नियमित स्कूल न आना , गृहकार्य नहीं करना, बच्चे शिक्षकों के बात को न सुनना , शिक्षण लेखन सामग्री समय पर उपलब्ध न कर पाना , विशेष आवश्यकता वाले बच्चे का समावेशन तथा वैसे बहुत सारे समस्याओं का सामना करना पड़ता है जो शिक्षक/शिक्षिकाओं द्वारा कर पाना संभव नहीं हो पाता है । इन सभी समस्याओं का समाधान विद्यालय प्रबंधन समिति और माता -पिता के माध्यम से ही संभव हो सकते है । वैसे स्थिति में हमें बहुत सारे तरीके और रणनीति अपनाने होंगे । सबसे पहले अभिभावकों की बैठक (PTM) बुलाने होंगे । शत प्रतिशत शिक्षक, स्कूल अभिभावक और माता -पिता की उपस्थिति में बच्चे की सारे परेशानियों को आपस में साझा करना है । तत्पश्चात विभिन्न
ReplyDeleteपरेशानियों का समाधान हेतु शिक्षक से माता-पिता गतिविधि को सीखे , कक्षा में FLN गतिविधि को सम्मिलित कर अभिभावक से कहानी सुनना , कक्षा में वार्तालाप करवाना ताकि बच्चे मजे-मजे से सीख सके । FLN के कौशलों और अवधारणाओं के विकास के लिए जो कार्यक्रम व गतिविधियां करवाते है उसको कराने के लिए मजेदार कार्यशालाओं का अयोजन कर छोटी- छोटी कार्यशालाएं अभिभावकों के लिए कराई जाए ताकि अभिभावक मजे-मजे में इसको सीखेंगे और अपने बच्चे को शिक्षण कार्य में सहयोग देकर बेहतर स्थिति प्राप्त करा सकते है - धन्यवाद ।
सुना राम सोरेन (स.शि.)
प्राथमिक विद्यालय भैरवपुर, धालभूमगढ़ ।
पूर्वी सिंहभूम , झारखंड ।
Gramin chhetra k bachcho k guardian apne jivikouparjan k liye daily nikal jaate hai jis karan teacher aur guardian me baat continue nahi ho paati hai Agar maata pita k saathvarta hogi to wo v apne bachcho k padhai k parti jaagrook honge
ReplyDeleteमेरे विद्यालय के अधिकांश अभिभावक अशिक्षित हैं उनके घरों में पढ़ाई का वातावरण नहीं है गरीबी की भी समस्या है वे अपने जीविकोपार्जन में ही लगे रहते हैं एवं बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दे पाते हैं हम उन्हें विद्यालय प्रबंधन समिति के नियमित बैठकों में शामिल कर उन्हें शिक्षा का महत्व व इनसे उनके बच्चों को होने वाले फायदों के बारे में बता कर शिक्षा के प्रति रुझान पैदा कर सकते हैं।
ReplyDeleteशिक्षक और बच्चो के माता पिता एवं समुदाय से सामंजस्य स्थापित कर किसी भी समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जा सकता है तभी FLN MISSION सफल होगी।
ReplyDeleteअधिकांश बच्चे ऐसे घरों से आते हैं जिनके माता-पिता अशिक्षित है या तो फिर जहां पढ़ाई का बिल्कुल वातावरण नहीं है उन्हें वर्ण पहचानने में दिक्कत होती है हम कोशिश कर सकते हैं कि माता-पिता को बैठक में बुलाया और उनसे सलाह करके ऐसा माहौल तैयार करें ताकि बच्चे और अभिभावक और शिक्षक तीनों मिलकर के बच्चों के उत्थान के लिए सहयोग कर सकें।
ReplyDeletePremlata devi
G.M.S Pancha Ormanjhi Ranchi Jharkhand
विद्यालय में शिक्षक अभिभावक मीटींग बुलाने पर अभिभावकों की अनुपस्थिति सबसे भारी समस्या है, ऐसे में शिक्षक अभिभावक के बीच बच्चों से जूड़ी विभिन्न समस्याओं पर चर्चा नही हो पाता है।
ReplyDeleteमेरे विचार मे सभी अभिभावकों को इस परिचर्चा शामिल होने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि एफ.एल.एन.मिशन को सफल बनाया जा सके। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश अभिभावक अशिक्षित होने के कारण शिक्षा का महत्व नही समझ पाते और गरीबी व अज्ञानता के कारण बच्चों के लिए समय नही दे पाते हैं।उन्हें शिक्षा का महत्व बताकर शिक्षक अभिभावक मीटिंग को सफल बनाया जा सकता है।
सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों मे अधिकांश बच्चे गरीब घरों से आते हैं।जिनके माता पिता भी अनपढ़ है।घर मे पढ़ाई का माहौल बिलकुल नहीं है।ऐसे में अभिभावकों की साझेदारी चुनौतीपूर्ण किन्तु महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteMd Salahuddin Urdu PS Balika ena Islampur Jharia-1 Sarkari School mein bachche jis parivesh se aate hain unke abhibhavak adhiktar padhe likhe nahi hote isliyebachchon ki padhai likhai school tak simit hoti hai bachche ghar jane ke baad khelkud gharelu kamon khetibari aadi kaamon mein abhibhavak ke sahyogi ke roop mein vayast rahte hain phir bhi shikshak bachchon ko sanvarne mein abhibhavak aur samudai ke sahbhagita se ek mahtavpurn bhumika nibha sakte hain
Deleteविद्यालय में अधिकांश बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं जिन्हें घर में पढ़ाई का माहौल नहीं मिल पाता है जिनके माता पिता भी अनपढ़ है।घर मे पढ़ाई का माहौल बिलकुल नहीं है।ऐसे में अभिभावकों की साझेदारी चुनौतीपूर्ण किन्तु महत्वपूर्ण है
ReplyDeleteग्रामीण क्षेत्र में अभिभावक अपने काम तथा परेशानी के कारण अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं जिसके कारण बच्चौं को पढ़ाई का सही माहौल नहीं मिल पाता है। हम शिक्षकों को अभिभावकों से वार्तालाप कर के इन समस्याओं का समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिए और अभिभावकों से साझेदारी बनाते हुए बच्चों को शिक्षा की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए ।
ReplyDeleteVidhyalaya me aanewale adhikansh bachche garib pariwar se hote hai.Unke mata pita roji rojgari me itna byast rahate hai ki bachcho ko samuchit samay nahi de pate. Bachche padai me dhyan nahi dete,school me nahi aate,galat sangati ka shikar ho jate hai,unme confidence ki kami hoti hai jis karan koi bhi pareshani se jujh rahe hote bhi ho to shikshak se share nahi karte. In sabhi chijo ka bura prabhaw unke shiksha par parta hai.Hame abhibhawako se hamesha meeting karna chahie aur bachche ke problems ko sudharne ka prayash karna chahie.
ReplyDeleteग्रामीण क्षेत्रों में माता/पिता/अभिभावकों की विद्यालयों के प्रति लगाव तो होता है पर विद्यालयों के लिए समय देने में उन्हें परेशानी होती है क्योंकि ग्रामीण अभिभावक अक्सर दैनिक मजदूरी करते हैं।
ReplyDeleteबच्चों की सर्वांगीण विकास में विभिन्न प्रकार की परेशानियां अक्सर आते रहते है । जैसे - माता-पिता को बच्चों के प्रति शिक्षण प्रगति पर ध्यान न रखना , बच्चे का नियमित स्कूल न आना , गृहकार्य नहीं करना, बच्चे शिक्षकों के बात को न सुनना , शिक्षण लेखन सामग्री समय पर उपलब्ध न कर पाना , विशेष आवश्यकता वाले बच्चे का समावेशन तथा वैसे बहुत सारे समस्याओं का सामना करना पड़ता है जो शिक्षक/शिक्षिकाओं द्वारा कर पाना संभव नहीं हो पाता है । इन सभी समस्याओं का समाधान विद्यालय प्रबंधन समिति और माता -पिता के माध्यम से ही संभव हो सकते है । वैसे स्थिति में हमें बहुत सारे तरीके और रणनीति अपनाने होंगे । सबसे पहले अभिभावकों की बैठक (PTM) बुलाने होंगे । शत प्रतिशत शिक्षक, स्कूल अभिभावक और माता -पिता की उपस्थिति में बच्चे की सारे परेशानियों को आपस में साझा करना है। शिक्षकों को अभिभावकों से वार्तालाप करके इन समस्याओं का समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिए और अभिभावकों से साझेदारी बनाते हुए बच्चों को शिक्षा की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए। Motiur Rahman, UPS-Chandra para, Pakur
ReplyDeleteReply
02:10
ReplyDeleteअधिकांश बच्चे ऐसे घरों से आते हैं जिनके माता-पिता अशिक्षित है या तो फिर जहां पढ़ाई का बिल्कुल वातावरण नहीं है उन्हें वर्ण पहचानने में दिक्कत होती है हम कोशिश कर सकते हैं कि माता-पिता को बैठक में बुलाया और उनसे सलाह करके ऐसा माहौल तैयार करें ताकि बच्चे और अभिभावक और शिक्षक तीनों मिलकर के बच्चों के उत्थान के लिए सहयोग कर सकें। भानु प्रताप मांझी,उ उ वि चिपड़ी ईचागढ़ सरायकेला-खरसावां
अधिकतर बच्चे ऐसे घरों से आते हैं जिनके माता पिता अशिक्षित हैं या फिर जहाँ पढ़ाई का माहौल बिल्कुल नहीं है. हम कौशिश करेंगे कि माता पिता को बैठक में बुलाएँगे और उनसे सलाह करके ऐसा माहौल तैयार करेंगे ताकि बच्चे, माता पिता, और शिक्षक तीनों मिलकर बच्चों का विकाश के लिए सहयोग कर सके.
ReplyDeleteअधिकतर वैसे बच्चे जिनके माता पिता अशिक्षित है या पढाई का माहौल बिल्कुल नही है.हम माता पिता को बैठक में बुलायेंगे और उनसे सलाह मशवरा करके उचित माहौल बनायेगें ताकि बच्चे का संपूर्ण विकास कज लिए सहयोग मिल सके,माता पिता शिक्षक एवं समिति के सदस्यों के साथ मिलकर रणनीति बनायेंगे और समस्या का समाधान करेंगे.
ReplyDeleteअरविन्द कुमार प्रभात,रा उ म वि बचरा टंडवा चतरा
ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में अधिकांश लोग गरीब है लोग जीविकोपार्जन इतना व्यस्त रहते हैं कि यह अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते बच्चों को घर पर पढ़ाई का इंवर्मय नहीं मिल पाता शिक्षाकर्मी अभिभावकों के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर इस समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है
Deleteग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में अधिकांश लोग गरीब है लोग जीविकोपार्जन इतना व्यस्त रहते हैं कि यह अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते बच्चों को घर पर पढ़ाई का इंवर्मय नहीं मिल पाता शिक्षाकर्मी अभिभावकों के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर इस समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है
ReplyDeleteGramin khyetra ke bachho par vishes dhyan dena jaruri hai
ReplyDeleteग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में अधिकांश लोग गरीब हैं।लोग जीविकोपार्जन मे इतना व्यस्त रहते हैं किवे बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते।
ReplyDeleteबच्चों को घर पर पढ़ाई का environment नहीं मिल पाता है।
शिक्षक और अभिभावकों के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर इस समस्या का समाधान ढूँढा जा सकता है। संजय कुमार झा स० शि० उत्क्रमित उच्च विद्यालय छोटी रणबहियार
बच्चो पर उनके घर और परिवेश के प्रभाव को स्वाभाविक तौर पर होता है।विद्यालय के परिवेश से सामंजस्य बिठाने में माता पिता, अभिभावकों का सहयोग और साझेदारी महत्वपूर्ण हो जाता है।अभिभावक अपनी आजीविका और गृहस्थी में व्यस्त होते हैं और इसी वयस्तता में उनसे बच्चो के लिये सहयोग लिया जाता है और इस हेतु हम सदा प्रयासरत होते हैं।सभी समस्याओं के साथ FLN के लक्ष्य और उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में माता पिता और अभिभावक की साझेदारी सुनिश्चित करने का प्रयास रहेगा।इस हेतु नियमित रूप से पी टी एम अर्थात अभिभावक बैठक और स्कूल प्रबंधन समिति की बैठक करने और उपस्थित होकर विचार करने की जरूरत है।
ReplyDeleteऐसा करने से हमारे बच्चों में बुनियादी साक्षरता और गणितीय कौशल एवम अवधारणाओं का विकास साझेदारी के साथ बेहतर परिणाम पा सकते हैं।
Teacher ke Roop me jin pareshaniyon ko Mai dekhti hoon we hain_1.bacchon ka Kam attendance.2.bacchon ka homework nahi Lana.3.sabhi subject ke notebook nahi Lana.4.notbook me diye Gaye comment per koi dhyan na dena
ReplyDeleteबच्चो पर उनके घर और परिवेश के प्रभाव को स्वाभाविक तौर पर होता है।विद्यालय के परिवेश से सामंजस्य बिठाने में माता पिता, अभिभावकों का सहयोग और साझेदारी महत्वपूर्ण हो जाता है।अभिभावक अपनी आजीविका और गृहस्थी में व्यस्त होते हैं और इसी वयस्तता में उनसे बच्चो के लिये सहयोग लिया जाता है और इस हेतु हम सदा प्रयासरत होते हैं।सभी समस्याओं के साथ FLN के लक्ष्य और उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में माता पिता और अभिभावक की साझेदारी सुनिश्चित करने का प्रयास रहेगा।इस हेतु नियमित रूप से पी टी एम अर्थात अभिभावक बैठक और स्कूल प्रबंधन समिति की बैठक करने और उपस्थित होकर विचार करने की जरूरत है।
ReplyDeleteऐसा करने से हमारे बच्चों में बुनियादी साक्षरता और गणितीय कौशल एवम अवधारणाओं का विकास साझेदारी के साथ बेहतर परिणाम पा सकते हैं।धन्यवाद।।
बच्चों पर उनके घर और परिवेश के प्रभाव होना स्वाभाविक है। विद्यालय के परिवेश से सामंजस्य बिठाने में माता पिता, अभिभावकों का सहयोग और साझेदारी महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteIn present time to boost the education level of children, the participation of family, society and teachers are responsible respectively. Remember the fort school of children is family. Other two factors is also responsible later. So family members must take interest first interst to boost the education level of children with adequate proper interst.
ReplyDeleteग्रामीण इलाकों में अवस्थित विद्यालयों के अधिकांश अभिभावक/माता-पिता दैनिक मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते हैं जिसके कारण वे अपने बच्चों की पढ़ाई में अपेक्षित सार्थक साझेदारी नहीं दे पाते। परन्तु,वि.प्र.स एवं PTM के माध्यम से विभिन्न समस्याओं का समाधान संभव है।
ReplyDeleteReferring with importance of literacy to parents & the role in growth of society & country of them,a teacher can guide the students & parents by knowing how can they build their life as well as society favorable...can follow the moral values so that may be co-operative behave among each other..and so on.
ReplyDeleteHam koshish kar sakte hai mata pita ke sath baithak bula kar salah kar sakte hai.
ReplyDeleteBachche abhibhawak avm shikshak ke sarthak bhagidari see vidyalay ki gatividhiyon men aphekshakrit sudhar laya ja sakta hai samuday ke log avm s m c samitiyon ke sadasya apni jimmedariyan leti Hain to vidyalay Vilas ki or nirantar agrasar hogi bachche bhi apne ko surakshit samjhenge
ReplyDeleteग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में अधिकांश लोग गरीब एवं अशिक्षित होने के कारण बच्चों के प्रति जागरूक नहीं होते हैं। फलस्वरूप बच्चे अक्सर अनुपस्थित रहते हैं, पढ़ाई से पिछड़े रहते हैं। शिक्षक और अभिभावक के बीच सहयोग और समन्यव कर तथा शिक्षक अभिभावक बैठकी आयोजित कर समस्या का निराकरण किया जा सकता है।
ReplyDeleteशिक्षक बच्चों के अभिभावकों को साथ लेकर बच्चों की शिक्षा को आसानी से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में बदल सकता है। अभिभावकों के साथ बैठक तथा उन्हें आप आमंत्रित कर उनका सहयोग ले सकते हैं।
ReplyDeleteअभिभावक तथा विद्यालय प्रबंधन के पारस्परिक सहभागिता से ही स्वच्छ विद्यालय वातावरण निर्माण हो सकता है।पी टी एम एक अच्छा पहल है।
ReplyDeleteAbhibhavakon & smc teachers ke sarthak pahal se bachchon ke problem ko hal kiya ja sakta hai. PTM & workshops achchhi pahal ho sakti hai.
ReplyDeleteहमारे ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में अत्यधिक गरीबी के कारण अभिभावक जीविकोपार्जन के आसानी से उपलब्ध साधनों में व्यस्त रहने के कारण घर और विद्यालय दोनों जगह बच्चों को पढ़ाई में मदद नहीं कर पाते। बच्चों के पढ़ाई संबंधी गतिविधियों में और नियमित रूप से विद्यालय की बैठक में शामिल होने पर बच्चों के सर्वांगीण विकास के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य किया जा सकता है।
ReplyDeleteबच्चो पर उनके घर और परिवेश के प्रभाव को स्वाभाविक तौर पर होता है।विद्यालय के परिवेश से सामंजस्य बिठाने में माता पिता, अभिभावकों का सहयोग और साझेदारी महत्वपूर्ण हो जाता है।अभिभावक अपनी आजीविका और गृहस्थी में व्यस्त होते हैं और इसी वयस्तता में उनसे बच्चो के लिये सहयोग लिया जाता है और इस हेतु हम सदा प्रयासरत होते हैं।सभी समस्याओं के साथ FLN के लक्ष्य और उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में माता पिता और अभिभावक की साझेदारी सुनिश्चित करने का प्रयास रहेगा।शत प्रतिशत शिक्षक, स्कूल अभिभावक और माता -पिता की उपस्थिति में बच्चे की सारे परेशानियों को आपस में साझा करना है । तत्पश्चात विभिन्न
ReplyDeleteपरेशानियों का समाधान हेतु शिक्षक से माता-पिता गतिविधि को सीखे , कक्षा में FLN गतिविधि को सम्मिलित कर अभिभावक से कहानी सुनना , कक्षा में वार्तालाप करवाना ताकि बच्चे मजे-मजे से सीख सके । FLN के कौशलों और अवधारणाओं के विकास के लिए जो कार्यक्रम व गतिविधियां करवाते है उसको कराने के लिए मजेदार कार्यशालाओं का अयोजन कर छोटी- छोटी कार्यशालाएं अभिभावकों के लिए कराई जाए ताकि अभिभावक मजे-मजे में इसको सीखेंगे और अपने बच्चे को शिक्षण कार्य में सहयोग देकर बेहतर स्थिति प्राप्त करा सकते है।
बच्चों की गतिवधियों पर पूरी तरह से ध्यान देने के लिए शिक्षक को समय समय पर उनके माता पिता को विद्यालय में बुला कर घर की और विद्यालय की गतिवधियों की जानकारी देनी और लेनी चाहिए। जिसके आधार पर छात्रों के आगे के विकास के लिए मदद मिलेगी।
ReplyDeleteबच्चों FNL कौशल को बढ़ाने के लिए घर में थाली व चम्मच की पहचान कराने चाहिए थाली गोल या चौकोर ह ह उसे उसका ज्ञान कराना चाहिए जिससे बच्चों में संखयाज्ञान और वस्तु का पहचानने का ज्ञान हो सके ।
ReplyDeleteविद्यालय कक्षा संचालन के दौरान आने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान हम विद्यालय प्रबंधन समिति एवं माता-पिता के सहयोग से निश्चित रूप से कर सकते हैं। इन के सहयोग से बच्चों की कक्षा मैं अनुपस्थिति ,कक्षा कार्य में रुचि ना लेना ,कक्षा के विभिन्न गतिविधियों में सहयोग ना देना ,उसके अधिगम स्तर का नीचा होना इत्यादि कई समस्याओं का समाधान हम कर सकते हैं। साथ ही साथ हम माता-पिता व अभिभावकों का FLN से संबंधित गतिविधियों में कौशल विकसित कर सकते हैं एवं उन्हें पारंगत कर सकते हैं जिनका उपयोग में अपने घर में भी बच्चों को एक सार्थक शिक्षा माहौल प्रदान करने में कर सकते हैं।
ReplyDeleteअधिकांश बच्चे घर के अपेक्षा विद्यालय मे कठिनाई महसूस करते है ।और विद्यालय मे बच्चो एवं शिक्षको के साथ तालमेल नही बैठा पाते है। जिससे बच्चा पिछडने लगता है। FLN के तहत ऐसे मे अभिभावक और शिक्षक की भूमिका अहम हो जाती है।
ReplyDeleteSUBHADRA KUMARI
ReplyDeleteRAJKIYAKRIT M S NARAYANPUR
हमारा विद्यालय गांव के बीचो-बीच स्थापित है।अगल - बगल घर रहने के कारण अक्सर हो -हल्ला लड़ाई-झगड़ा होता रहता है। कभी-कभी फेरीवालों से सामान खरीदने की भीड़ लगी रहती है। जिससे बच्चो का ध्यान पढ़ाई से भटक जाता है। सामने रोड रहने के कारण गाड़ियों का बाजा बजाते हुए आना जाना लगा रहता है।चाहर दिवार नहीं रहने के कारण अक्सर लोगों का आना जाना लगा रहता है,कभी चापाकल से पानी लेने या नहाने, अभिभावक काम में जाते वक्त बच्चो को चाभि पहुंचाने आदि-आदि...
इस प्रकार कुल मिलाकर शांत वातावरण एवं पढ़ाई के माहोल नहीं होने के कारण हमें कक्षा -कक्ष में काफी। परेशानी होती है।
इसे सुचारू रूप देने के लिए बैठक में अभिभावक ,प्रधन समिति सदस्य, बुद्धि जीवी वर्ग, शिक्षक सभी का 100% उपस्थित होना अनिवार्य होगा । तभी हम सभी मिलकर समस्या का समाधान करके बच्चों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा देने में सफलता हासिल कर पाएंगे ।
शिक्षक और अ भिभावको के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर इस समस्या का समाधान निकल सकता है जिसके परिणाम अच्छे प्राप्त हो सकते हैं ।
ReplyDeleteशिक्षक और अभिभावकों के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर इस समस्या का समाधान निकल सकता है जिसके अच्छे परिणाम हो सकते हैं ।
ReplyDeleteBachchon ke abhibhawak ke sath teachers parasparik sambanbh sthapit karke bachchon ke bunyadi Shiksha men sudhar Kiya ja sakta hai aur sabhi bachchen gunwatta purn shiksha prapt kar sakte hain
ReplyDeleteविद्यालय में सबसे ज्यादा परेशानी अत्यधिक विभागीय रिपोर्टिंग से है कक्षा में पढ़ाते समय भी शिक्षकों को यह चिंता रहती है कि इस रिपोर्ट को अभी तुरंत देना है। इस प्रकार की समस्याओं का समाधान अति आवश्यक है और यह समाधान प्रबंधन और अभिभावकों के सहयोग से नहीं हो सकता ।दूसरी परेशानी छात्रों की उपस्थिति को लेकर है। अत्यधिक प्रयास करने के बावजूद चूंकि छात्रों के अभिभावक अपने अपने कामों पर चले जाते हैं और शिक्षा के प्रति उनकी जागरूकता काफी कम है इस कारण बच्चों की उपस्थिति कम होती है ।अभिभावक गोष्ठी में भी अभिभावकों की उपस्थिति नहीं के बराबर होती है। इस कारण से यह समस्या बनी रहती है ।प्रबंधन समिति के सदस्य भी अपने अपने कार्यों में व्यस्त रहने के कारण विद्यालय के लिए समय दे पाने में असमर्थ है।
ReplyDeleteVidyalaya me aanewale maximum bachche aise hote hai jinke abhibhawak ashikshit hote hai parinamaswarup vidyalaya ke bad apne bachcho ka uchit margdarshan nahi kar pate hai,agar kuchh abhibhawak shikshit hai bhi to we samay ke abhaw ka rona rote hai ya fir jivkoparjan hetu bahar chale jate hai.is samasya ka samadhan mere samajh se -shiksh abhibhawak ki baithak,abhibhawako ko apne byast samay me se nischit rup se apne bachcho ke liye nikalna hoga.
ReplyDeletePTM ka hona bahut Sunday bat hai
ReplyDeleteBachchon ke sarvangin vikas ke liye shikchak aur avivawakon ka paraspar sahyog atyant aavashyak hai. Isse bachchon ki upasthiti, grihkarya, anushasan aadi ki samasyaen suljhengi aur bachchon ke vikas me teji aayegi.
ReplyDeleteविद्यालय के सर्वांगीण विकास में अभिभावकों का बहुत ही योगदान होता ही है,साथ मे SMC का भी।परन्तुSMC के सदस्य उतने सक्षम नहीं होते हैं ,जितना उनसे उमीद की जाती है।स्कूल कोई राजनीतिक आखाड़ा नंगी है।सालभर का कैलेंडर तैयार कर उसपर अमल करन ही ज्यादा वेहतर होगा,।
ReplyDeleteअक्सर ऐसा देखा जाता है कि बच्चे मनोवैज्ञानिक तौर पर पढने के प्रति उत्सुक नहीं होते हैं।इसका कारण उनकी कमजोर आर्थिक प्रृष्ठठभूमि,पारिवारिक वातावरण एवं उनके प्रति उपेक्षा का भाव होता है।मेरी समझ से यदि उक्त समस्याओं पर अभिभावक,शिक्षक एवं विद्यालय प्रबंधन समिति आपस में विचार करे तो बच्चों का समग्र विकास हो सकता है।
ReplyDeleteअधिकांश बच्चे घर कीअपेक्षा विद्यालय में कठिनाई महसूस करते हैं और विद्यालय में बच्चों एवं शिक्षकों के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते हैं। जिससे शिक्षार्थी पिछड़ने लगते हैं। ऐसे में अभिभावक और शिक्षक की भूमिका अहम हो जाती है।
ReplyDeleteबच्चों के माता-पिता और शिक्षकों के बीच सम्पर्क तथा विचारों का आदान-प्रदान शिक्षा विकास में सहायक सिद्ध होती है।
ReplyDeleteMD SHAMIM AKHTER:U M S RAJOUN URDU: MEHARMA :DIST-GODDA. Adhikansh bachchon anpadh Gharon se ate hain. FLN men shikshakon Ko kathinai ati hai. Mata pita'pariwar aud'samudai Ka sahyog awashyak Hai.
ReplyDeleteAs a teacher I face many difficulties on the path of teaching children of my school's catchment area.Some of these are here :-
ReplyDelete1.Most of guardians are illiterate,so they are ignorant of the importance of education.
2.In rural background,most people engaged in agriculture and related profession.They have a strong belief that there is no need of conventional education to carry out their agriculture related tasks.So don't pay much attention to their wards education.
3.Population:-Rural parents have more children per family in comparison with their urban counterparts.For them children are also earning and helping units of family.This leads to irregular attendance in school.
4.Language medium of school:- Officially medium of instruction in schools is hindi.A large number of children's mother tongue is totally different to their school's language.Teachers don't know the students' mother tongue and children the teachers'.This leads to lack of interest towards education in students.
Above difficulties are very common ,which I observe frequently in rural Jharkhand,particularly in Scheduled Tribe populated areas.These problems or difficulties can only be counterd by organizing PTMs regularly.
बच्चों के समग्र विकास हेतु शिक्षक और अभिभावक के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर इस समस्या का समाधान ढुँढा जा सकता है.
ReplyDeleteअधिकांश अभिभावक गरीबी के कारण जीविकोपार्जन के लिए भटकते रहते हैं और अपने बच्चों के लिए PTAमे उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाते जिससे इस बैठक से लाभान्वित नहीं ले पाते हैं।
ReplyDeleteमैं शिक्षक होने के नाते विद्यालय मे निम्न समस्याओं एवं परेशानियों का सामना करता हूं -
ReplyDelete1. बच्चों की अनियमित एवं अल्प उपस्थिति।
2. बच्चों के घरों में पढ़ाई का माहौल नहीं होना।
3. अभिभावकों में शिक्षा के प्रति जागरूकता में कमी।
4. गरीबी के कारण जीविकोपार्जन में व्यस्त तथा शिक्षा जैसी मूलभूत जीज़ को महत्व नहीं देना।
इन सारी परेशानियों को तभी दूर किया जा सकता है जब अभिभावक और प्रबंधन समिति अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग हो और शिक्षक भी अभिभावकों को विद्यालय में सम्मानजनक स्थान प्रदान करे। अर्थात विद्यालय को परिवार जैसा एवं परिवार को विद्यालय जैसा माहौल देना होगा जो अभिभावकों के सहयोग के बिना संभव नहीं है।
अभिवावक, बच्चो और शिक्षक के बीच शैक्षिक वातावरण बनाने में मदद कर सकते हैं।ग्रामीण क्षेत्र में यद्द्यपि अभिभावकों की साझेदारी कम होती है।इसके बहुत से कारण होते है।आर्थिक,सामाजिक रूप से अभिभावक प्रभावित होते हैं।हमारी कोशिश हो कि उनके बीच सार्थक साझेदारी हो।
ReplyDeleteबच्चों के सर्वांगीण विकास में शिक्षक , अभिभावक सम्पर्क विचारों का आदान-प्रदान बहुत ही आवश्यक है। बच्चे का कमी दूर करने के लिए शिक्षक तथा अभिभावक एक दूसरे को मदद कर सकते हैं।
ReplyDeleteग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे विद्यालय से घर जाने के बाद पढ़ाई पढ़ाई नहीं कर पाते और ना ही होमवर्क बनाते हैं, क्योंकि उनके माता-पिता मजदूरी करने के लिए जाते हैं काम में थक हार कर आते हैं बच्चों को पढ़ने पढ़ाने का माहौल नहीं मिल पाता।
ReplyDeleteइस समस्या को प्रबंधन समिति अथवा माता पिता क्या आपसी सहयोग और विचार विमर्श कर दूर किया जा सकता है।
बच्चो पर उनके घर और परिवेश के प्रभाव को स्वाभाविक तौर पर होता है।विद्यालय के परिवेश से सामंजस्य बिठाने में माता पिता, अभिभावकों का सहयोग और साझेदारी महत्वपूर्ण हो जाता है।अभिभावक अपनी आजीविका और गृहस्थी में व्यस्त होते हैं और इसी वयस्तता में उनसे बच्चो के लिये सहयोग लिया जाता है और इस हेतु हम सदा प्रयासरत होते हैं।सभी समस्याओं के साथ FLN के लक्ष्य और उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में माता पिता और अभिभावक की साझेदारी सुनिश्चित करने का प्रयास रहेगा।इस हेतु नियमित रूप से पी टी एम अर्थात अभिभावक बैठक और स्कूल प्रबंधन समिति की बैठक करने और उपस्थित होकर विचार करने की जरूरत है।
ReplyDeleteऐसा करने से हमारे बच्चों में बुनियादी साक्षरता और गणितीय कौशल एवम अवधारणाओं का विकास साझेदारी के साथ बेहतर परिणाम पा सकते हैं।
Lekin Zamini satah par sach to yeh hai ki bachchon ke gunatmak shikshan ke chetra men na to SMC ke sadasy aur na hi Adhiktar Abhibhawak ruchi lete hain khas kar grameen chhetra men ,
Yeh baaten kahne aur sunne men to achchi lagti hai lekin zameeni satah par matra 5% se 10% hi sach hai , isliye yeh kahna galat na hoga ki bachchon ke sarwangin vkaas ka saara daromadar Shikshak par hi hai ,
Sarkari Vidyalayon men Hazaron tarah ke kaam and Hazaron tarh ke Report, Hazron tarah ke Aayojan etc ki wajah se bhi shikshan prakirya prabhawit hota hai ,
ग्रामीण अंचलों में पढ़ने वाले बच्चों को अच्छा परिवेश नही मिलता है। और ना ही घर मे पढ़ने का माहौल ही मिल पाता है। साथ ही घर पर कोई मदद करने वाला होता है। इन कारणो से सभी stake holders की सहभागिता अति आवश्यक हो जाता है।
ReplyDeleteमुझे अपने विद्यालय में कुछ समस्या का सामना करना पड़ता है। पहला समस्या यह है कि अभिभावक विद्यालय के प्रति कोई रुचि नहीं रखता है। अभिभावक शिक्षक मीटिंग में भी कोई माता-पिता या अभिभावक उपस्थित नहीं होता है। मीटिंग में चाय और नाश्ता का भी प्रबंध किया जाता है ,फिर भी कोई अभिभावक उपस्थित नहीं होते हैं।
ReplyDeleteदूसरी समस्या यह है कि बच्चे नियमित रूप से उपस्थित नहीं होते हैं नियमित उपस्थिति बढ़ाने के लिए बाल संसद के सदस्य, शिक्षक एवं विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष द्वारा बार-बार घर-घर जाकर अभिभावकों से भेंट कर अपने बच्चे को नियमित रूप से विद्यालय भेजने का आग्रह किया गया, किंतु कोई फायदा नहीं हुआ। अधिकतर अभिभावक प्रवासी मजदूर के रूप में अन्य राज्यों में काम करते हैं। बच्चे स्कूल में अनुपस्थिति रहने का मुख्य कारण है- घर में छोटे बच्चों के देखभाल और बकरी चराना आदि। माता -पिता अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति रुचि नहीं रखते हैं।
तीसरी समस्या यह है कि हमारा विद्यालय में अधिकतर मुस्लिम समुदाय के बच्चे पढ़ते हैं। अभिभावक विद्यालय में सरकारी लाभ (जैसे छात्रवृत्ति, पोशाक, पुस्तक, स्वेटर, जूता, मध्यान भोजन में अंडा या भोजन) का लाभ लेने के लिए ही इच्छा रखते हैं ।बाकी पढ़ाई के प्रति कोई रुचि नहीं है प्रत्येक महीना s.m.c. बैठक होती है किंतु अभिभावक उपस्थित नहीं होते हैं जो की मुख्य समस्या है। तथा उपरोक्त समस्याओं को देखते हुए हम सभी शिक्षक कर गांव में घूम कर अभिभावक से संपर्क कर विद्यालय हित और छात्र हित के लिए जागरूक करते हैं। यहां तक की फोन से भी संपर्क कर समस्या का समाधान करने की कोशिश करते हैं। कुछ अभिभावक सकारात्मक सोच रखते हैं 10% अभिभावक अपने बच्चों की पढ़ाई के प्रति रुचि रखते हैं।
मैं शिक्षक होने के नाते विद्यालय मे निम्न समस्याओं एवं परेशानियों का सामना करता हूं -
ReplyDelete1. बच्चों की अनियमित एवं अल्प उपस्थिति।
2. बच्चों के घरों में पढ़ाई का माहौल नहीं होना।
3. अभिभावकों में शिक्षा के प्रति जागरूकता में कमी।
4. गरीबी के कारण जीविकोपार्जन में व्यस्त तथा शिक्षा जैसी मूलभूत जीज़ को महत्व नहीं देना।
इन सारी परेशानियों को तभी दूर किया जा सकता है जब अभिभावक और प्रबंधन समिति अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग हो और शिक्षक भी अभिभावकों को विद्यालय में सम्मानजनक स्थान प्रदान करे। अर्थात विद्यालय को परिवार जैसा एवं परिवार को विद्यालय जैसा माहौल देना होगा जो अभिभावकों के सहयोग के बिना संभव नहीं KISHOR KUMAR ROY UHS.KATHGHARI DEVIPUR DEOGHAR
निश्चित रूप से शिक्षक होने के नाते हमें अपने विद्यालय के बच्चों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने में निरंतर की प्रकार के कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।हम इन्हें निम्नवत दिखला सकते हैं---
ReplyDelete1) बच्चों की नियमित उपस्थिति,
2) बच्चों का नियमित रूप से गृहकार्य नहीं करना,
3)बच्चों का चिड़चिड़ापन व्यवहार,
4)बच्चों का अनुशासन संबंधित मुद्दे,
5)बच्चों के आर्थिक कारणों के कारण पाठयसामग्री की अनुपलब्धता,
6)बच्चों के संज्ञानात्ममक,भावनात्मक एवं मनोगत्यात्मक कौशल में अंतर,
7)विशेष आवश्यकता वाले बच्चों का समावेशन,
8)बच्चों के सामाजिक,सांस्कृतिक,संवेगात्मक,अध्ययन-अध्यापन सहित अन्य कई मुद्दे
इन तमाम अनगिनत समस्याओं का समाधान केवल शिक्षक द्वारा कर पाना संभव नहीं होता।इसमें बच्चों के परिवार,माता-पिता,अभिभावक,समुदाय,विद्यालय परिवार,विद्यालय प्रबंधन समिति सहित अन्य हितकारी का अपेक्षित सहयोग बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है।माता-पिता,समुदाय सार्थक साझेदारी,सकारात्मक अनुसमर्थन आदि द्वारा शिक्षकों को सहयोग प्रदान कर सकते हैं। पीटीए का नियमित आयोजन,कक्षा में अभिभावकों को शामिल करने,कार्यशालाओं का आयोजन,नम्र व्यवहार एवं निरंतर संचार आदि से हम सकारात्मक परिणाम की प्राप्ति की एक अनूठी रूपरेखा तय कर सकते हैं।
मैं एक ग्रामीण क्षेत्र का शिक्षक हूं मुझे प्रतिदिन विद्यालय में बच्चों की कम उपस्थिति से परेशानी होती है क्योंकि कोई बच्चा 2 दिन आया तो फिर 4 दिन अनुपस्थित रह जाता है और फिर बाद में जब वह आता है तो पाठ्यक्रम उसे कुछ समझ में नहीं आता और मुझे भी आगे बढ़ने में तकलीफ होती है | इस समस्या को दूर करने के लिए हम विद्यालय में पीटीएम का आयोजन करते हैं और अभिभावक को इस विषय के बारे में अवगत कराते हैं तथा गार्जियन से आग्रह करते हैं कि वह अपने बच्चे को प्रतिदिन विद्यालय भेजें |
ReplyDeleteअधिकांश बच्चे ऐसे घरों से आते हैं जिनके माता-पिता अशिक्षित है या तो फिर जहां पढ़ाई का बिल्कुल वातावरण नहीं है उन्हें वर्ण पहचानने में दिक्कत होती है हम कोशिश कर सकते हैं कि माता-पिता को बैठक में बुलाया और उनसे सलाह करके ऐसा माहौल तैयार करें ताकि बच्चे और अभिभावक और शिक्षक तीनों मिलकर के बच्चों के उत्थान के लिए सहयोग कर सकेंlm
ReplyDeleteअधिकांश बच्चे ऐसे घरों से आते हैं जिनके माता-पिता अशिक्षित हैं ।या तो फिर जहां पढ़ाई का बिल्कुल वातावरण नहीं है उन्हें वर्ण पहचानने में दिक्कत होती है। हम कोशिश कर सकते हैं कि माता पिता को बैठक में बुलाकर ऐसा माहौल प्यार करें ताकि बच्चे और अभिभावक और शिक्षक तीनों मिलकर बच्चों के उत्थान के लिए सहयोग कर सकें।
DeleteSabhi teachings problem ko hme parents ke mil kar solve karna chahiye
ReplyDeleteVidyalay mein anewale gramin kshtron ke bacchon ko apne ghar mein padhai ka mahol nahin mil pata kyonki unke mata -pita ashikshit hain.Jiske karan we home work karke vidyalay nahin ate.Is samasya ka samadhan ke liye abhibhawakon se vartalap karna hoga.
ReplyDeleteबच्चों के सर्वांगीण विकास में विभिन्न प्रकार की परेशानियां अक्सर आते रहते हैं। जैसे माता पिता का बच्चों के प्रति शिक्षण प्रगति पर ध्यान ना रखना, बच्चों का नियमित स्कूल ना आना, शिक्षण लेखन सामग्री समय पर उपलब्ध ना कर पाना, आदि बहुत सारे समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन सभी समस्याओं का समाधान, विद्यालय प्रबंधन समिति और माता-पिता के माध्यम से ही संभव हो सकते हैं। वैसे स्थिति में हमें बहुत सारे रणनीतियां अपनाने होंगे जैसे अभिभावकों की बैठक बुलाने होंगे शत-प्रतिशत शिक्षक स्कूल अभिभावक और माता-पिता की उपस्थिति में बच्चे की सारे परेशानियां आपस में साझा करना होगा।
ReplyDeleteLanguage ka problem hai par ispar dhyan nahi diya jata hai
ReplyDeleteपरिवार में अभिभावक के शिक्षित नहीं होने के कारण बच्चे को पढ़ाई का वातावरण नहीं मिल पाता फलत बच्चे पढ़ाई में रूचि नहीं लेते हैं विदयलीय पढ़ाई पर आश्रित रहते हैं अगर माता पिता एवं विद्यालय प्रबंधन समिति का सहयोग बच्चों को मिलेगा वे घर में पढ़ाई का वातावरण बनाएंगे एवं वि प्र स यह ध्यान रखें कि माता-पिता बच्चों को घर में उचित वातावरण दे रहे हैं या नहीं तो बच्चों को में पढ़ने की आदत विकसित होगी वे रूचि के साथ पढ़ेंगे माता पिता शिक्षकों से हमेशा संपर्क में रहेंगे बच्चों के विकास संबंधी चर्चा करेंगे जिससे बच्चों का विकास तेजी से होगा
ReplyDeleteशिक्षक,बच्चों के अभिभावकों से परस्पर सहयोगी के रूप मे कार्य करेंगे और बच्चों की कठिनायों एवम् प्रगति को अभिभावकों के साथ साझा करेंगे और मिलकर समस्याओं के निराकरण का प्रयास करेंगे।एक अच्छी साझेदारी के अच्छे परिणाम मिलेंगे।रणजीत प्रसाद मध्य विद्यालय मांडू,रामगढ़।
ReplyDeleteBachchon ke swargin bikas me sikshak ke sath abhibhavakon tatha samuday ka vishesh yogdaan hota hai ata PTM ka baithak kar sikshak aur abhibhavak ke saath samnvy asthapit kar pthan-pathan ka uchit mahaul taiyar kiya ja sakta hai.
ReplyDeleteIt is necessary to focus on rural school
ReplyDeleteVastav me neeji vidhalaya aur sarkari vidhalaya me addhyan karne wale bacchon me parivesh ka mahattvapurn aantar hai humare bacche jis parivesh se aate hai whan parai likai sirf school tak hi simit hai uske bad bacche khelkud gharelu karyon me kheti bari me sahayogi ke rup me vyast rahte hai Es kadi me shikshak bacchon ko sawanrne me abhibhawakon tatha samudaya ke sahabhagita se mahatvapurn bhumika nibha sakta hai
ReplyDeleteज्यादातर बच्चे ऐसे परिवार से आते है,जहाँ उनके मता पिता तथा परिवार के अन्य सदस्य पढे लिखे नहीं होते।ऐसी अवस्था में मता पिता तथा अभिभावक को बैठक में बुलाकर बच्चो को कैसे प्रारंभिक शिक्षा दिया जाए उसके बारे मे चर्चा कर बच्चों को शिक्षा दिया जा सकता है।
ReplyDeletePTM ke madhyam se hum mata-pita se baat karke sabhi bachhon ke sambandh me vyaktigat rup se Jan sakte hain.jaise unki abhiruchi,pasand-napasand,unke vyavhar karne ka tarika,unka sabal awam nirbal paksha etyadi.isase hum bachhon ke anurup samuchit gatividhi ka chunav awam sahi mahaul ka nirman kar sakenge.abhibhawakon ko bhi is sambandh me jankari prapt ho jayegi ki unke bachhon ke liye samprati me kya lakshya nirdharit kiya gaya hai.isase bachho ko unka sarthak sahyog prapt ho Sakta hai.
ReplyDeleteWith the help of SMC members we should try our best to improve the students learning quality and other extra activities and surrounding.
ReplyDeleteहमारे बच्चे जिस परीवेश से आते है, वहां पढ़ाई-लिखाई सिर्फ स्कूल तक ही सीमित है । उसके बाद बच्चे खेल खुद , घरेलू कार्यों में, खेती बाड़ी में सहयोगी के रूप में व्यस्त रहते हैं ।मेरे विचार मे सभी अभिभावकों को इस परिचर्चा शामिल होने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि एफ.एल.एन.मिशन को सफल बनाया जा सके। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश अभिभावक अशिक्षित होने के कारण शिक्षा का महत्व नही समझ पाते और गरीबी व अज्ञानता के कारण बच्चों के लिए समय नही दे पाते हैं।उन्हें शिक्षा का महत्व बताकर शिक्षक अभिभावक मीटिंग को सफल बनाया जा सकता है।
ReplyDeleteIn my teaching proffession I generally face these problems level of students are not same learning gap, less ability to recall,poor health,economic condition is not good.
ReplyDeleteWe hv to conduct meeting frequently with parents to solve these problems.
बच्चे की समस्या को समझने के लिए बच्चे के वातावरण तथाअभिभावक से मिलकर हल किया जाएगा।
ReplyDeleteमाता-पिता, अभिभावकों, शिक्षकों, एवं प्रबंधन समिति की नियमित बैठक। अभिभावकों से बच्चों की समस्यों को साझा करना तथा उसका निदान।
ReplyDeleteHamare Vidyalay Mein adhikansh vyakti Gramin Kshetra se Aate Hain Jin ghar mein padhai ka mahaul Nahin Mil Pata Hai Mata Pita ashikshit AVN Garib Hain Jo yah mante Hain Ki padhai likhai Vidyalay tak hi simit hai vah is Baat se andhe vigya Hain Ki bacchon Ki Shiksha AVN Unka sarvadhik Vikas Mein Shikshak ke sath sath adhvik tatha samuday Ka Bhi Ek bahut bada yogdan hai Ham Shikshak abhibhavak ke Sahyog AVN sabhyata sthapit kar is samasya ka Samadhan kar sakte hain bacchon ko Shiksha ka ek Behtar mahaul de
ReplyDeleteकभी-कभी बच्चों का समस्या चिन्तनीय हो जाता है, वैसे परिस्थितियों मे शिक्षक अभिभावक का सहयोग अति महत्वपूण् हो जाता है।
ReplyDeleteGuardian,children AUR TEACHER KE bitch sarthak sajhedari hi.
ReplyDeleteMata- pita, teachers, abhibhavakon aur smc ke sadhsyon ki niyamit baithak se hi bachchon ki samasya ka nidhan kiya ja sakta hai
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteHamare Vidyalay mein main kuchh bacche aise gharon se aate Hain jaha padhaai likhai ka koi mahaul unhen nahin mil pata hai aise bacchon ko varn pehchana bhi nahin aata hai
ReplyDeleteUnki samasyaon ko Sultan ke liye hamen abhibhavak ok sath baithak karni chahie aur bacche ke bare mein mein Mata pita se baten karne chahie jisse ham bacchon Ko behtar samajh sake, is tarah se Abhi kaha ko se baat karne per ham bacchon Ko aur behtar Shiksha pradan kar sakte hain
मैंने अपने विद्यालय में निम्न समस्याओं का सामना कर रहा हूं। पहला मेरे विद्यालय में यह समस्या है कि बच्चे नियमित रूप से उपस्थित नहीं होते। इसका मुख्य कारण यह है कि इस क्षेत्र के अधिकतर अभिभावक दूसरे राज्यों में प्रवासी मजदूर के रूप में कार्य करते हैं। जिसके कारण बच्चे अपने घरों में छोटे बच्चे को देखभाल करने तथा पालतू पशु बकरी भेड़ चराने के लिए कार्य करते हैं। जिससे विद्यालय में बच्चों का नियमित उपस्थिति नहीं होते।
ReplyDeleteदूसरी समस्या यह है कि अभिभावक बच्चों के पढ़ाई के प्रति रुचि नहीं लेते हैं। बच्चे को स्कूल भेजने में भी आनाकानी करते हैं। बच्चों का आधार कार्ड बनाने या बैंक खाता खुलवाने में भी कोई रुचि नहीं लेते हैं। अधिकतर अभिभावक पढ़े-लिखे नहीं है और बाहर काम करते हैं ।माताएं भी पढ़ी-लिखी नहीं है, जिसके कारण अपने बच्चों को गाइड नहीं करते हैं और रुचि भी नहीं लेते है।
तीसरी समस्या यह है कि विद्यालय में प्रत्येक माह विद्यालय प्रबंधन समिति की मासिक बैठक होती है जिसमें अधिकतर अभिभावक उपस्थित नहीं होते हैं। बैठक के लिए अभिभावकों को घर घर जाकर के हस्ताक्षर करवाना पड़ता है ।इन सारी समस्याओं का समाधान के लिए हम सभी शिक्षकों और विद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष द्वारा सभी अभिभावकों से फोन में संपर्क कर समस्या का समाधान करते है। इसके अलावा डोर टू डोर संपर्क कर जागरूक करते हैं ताकि विद्यालय में शिक्षण कार्य एव विद्यालय का विकास सुचारू रूप से चलते रहे।
PTM is very necessary for primary section students.
ReplyDeleteमारे विद्यालय में अधिकांश बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं जिन्हें घर में पढ़ाई का माहौल नहीं मिल पाता है। अधिकाशं माता-पिता अशिक्षित या अल्प शिक्षित तथा गरीब हैं जो यह मानते हैं कि पढ़ाई-लिखाई सिर्फ विद्यालय तक ही सीमित है। वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि बच्चों की शिक्षा एवं उनका सर्वांगीण विकास में शिक्षक के साथ-साथ अभिभावक तथा समुदाय का भी एक बहुत बढ़ा योगदान है। हम शिक्षक, अभिभावक एवं समुदाय के बीच परस्पर समन्वय, सहयोग एवं सहभागिता स्थापित कर इस समस्या का समाधान कर सकते हैं तथा बच्चों को शिक्षा का एक बेहतर माहौल दे सकते हैं।
ReplyDeleteAttendance of students are not regular, they do not bring home work with them, no study atmosphere at home,they bring younger ones with them,they do not do practice so they forget maximum things etc.
ReplyDeleteWe face the problem of communication gap between parents / guardians and teachers. Parents don't want to give proper time in school and their children. But now a days there is organised monthly SMC meeting. In this meet we can find out it's solutions with the help of parents also .
ReplyDeleteग्रामीण क्षेत्र में स्थित विद्यालय मैं हम शिक्षकों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। परंतु इसका समाधान ढूंढना पड़ेगा अपनी जिम्मेदारी को बखूबी से निभाना होगा। हम शिक्षकों को पूरी कोशिश करके अभिभावकों को विद्यालय तक लाना होगा क्योंकि अभिभावक का सहयोग बिना बच्चों का सर्वांगीण विकास मुश्किल है क्योंकि बच्चे ऐसे वातावरण से आते हैं जहां पढ़ने का बिल्कुल भी माहौल नहीं रहता है। इस स्थिति में समुदाय और अभिभावक एवं शिक्षक मिलकर बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए सहयोग अति आवश्यक है। अभिभावक, समुदाय एवं हित धारकों को विद्यालय मैं जोड़ने के लिए पी टी एम पर विशेष ध्यान देना होगा इससे हम शिक्षक समस्याओं का आदान प्रदान करने में सहूलियत होगी समुदाय को स्कूल के प्रति रुझान पैदा करना होगा।
ReplyDeleteहम शिक्षकों को ग्रामीण परिवेश होने के कारण
ReplyDeleteनिश्चित रूप से विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है परन्तु शिक्षक और अभिभावक के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित करके इन समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।जिसमे FLN प्रोग्राम बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है ।
एक शिक्षिका के रूप में विद्यालय में देखी जाने वाली समस्याएं हैं, जिनका सामना करना पड़ता है| एक शिक्षक के लिए निम्नलिखित समस्याएं आती हैं जैसे:- बच्चे का अकेलेपन रहना, अधिकतर चुप रहना, खेल में शामिल ना होना, सफाई की कमी, वर्ग में कॉपी ना दिखाना, गृह कार्य ना करना, अपनी समस्या प्रकट ना करना, वर्ग में उत्तर ना देना, शिक्षक से कोई प्रश्न ना पूछना, विद्यालय में अक्सर अनुपस्थित रहना, विद्यालय देर से आना इत्यादि बच्चों की समस्याएं हैं| इनके कारण एक शिक्षक विद्यालय में अक्सर परेशान रहते हैं| अतः शिक्षक और माता पिता को इन सभी समस्याओं के बारे में बातचीत करनी चाहिए, जिससे वे बच्चों के बारे में अधिक समझ सकें| चूंकि बच्चों की कुछ प्रतिक्रिया माता पिता घर में देखते हैं| कुछ गतिविधियां केवल विद्यालय में शिक्षक को दिखाई देते हैं| परंतु माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों के सीखने संबंधी बातों की साझा करनी चाहिए| विद्यालय में जब कभी माता- पिता के साथ बैठक होती है, तब बच्चों के बारे में अवश्य ही अपने विचारों का आदान- प्रदान करने की जरूरत है| कभी भी विद्यालय शिक्षक अभिभावक माता- पिता एवं समुदाय को बच्चों की समस्याओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए| साथ ही एक दूसरे को मिलने वाले सुझावों को स्वीकार करते हुए अमल करने का प्रयास करना चाहिए| अगले समय में होने वाले सुधार की भी चर्चा करनी चाहिए|
ReplyDeleteBachche ko sikhne ke prakriya me smc ki bhumika bahut adhik ho jata hai tab jabki usi pravesh parents aate hai jis pravesh se bachche. Jab koi kathinayi sikshk aur bachcho k bich sikhne ki prakriya me atta hai to smc ya any parents ki Lablities aa partiyon hai.
ReplyDeleteधन्यवाद|
ReplyDeleteपुष्पा तेरेसा टोप्पो
ख्रीस्त राजा म.वि.चंदवा
लातेहार,झारखण्ड |
बच्चों के सर्वांगीण विकास में विभिन्न प्रकार की परेशानियां अक्सर आते रहते हैं। जैसे माता पिता का बच्चों के प्रति शिक्षण प्रगति पर ध्यान ना रखना, बच्चों का नियमित स्कूल ना आना, शिक्षण लेखन सामग्री समय पर उपलब्ध ना कर पाना, आदि बहुत सारे समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन सभी समस्याओं का समाधान, विद्यालय प्रबंधन समिति और माता-पिता के माध्यम से ही संभव हो सकते हैं। वैसे स्थिति में हमें बहुत सारे रणनीतियां अपनाने होंगे जैसे अभिभावकों की बैठक बुलाने होंगे शत-प्रतिशत शिक्षक स्कूल अभिभावक और माता-पिता की उपस्थिति में बच्चे की सारे परेशानियां आपस में साझा करना होगा।
ReplyDeleteKrishna Kumar Baitha.Govt.MS Parsodih (Ketar). Jharkhand
ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश बच्चे गरीब परिवार से आतेहै|उनके माता-पिता अधिकतर अशिक्षित होतेहैं, जहाँ पढ़ाई का वातावरण नहीं रहता है|ऐसी स्थिति में हम प्रबंधन समिति की बैठक के माध्यम से बच्चों के अभिभावकों से मिलकर बच्चों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करेंगे|इससे हम सभी बच्चे, अभिभावकों एवं शिक्षक मिलकर बच्चों का उज्जवल भविष्य बनाने में सहयोग कर सकते हैं|
ReplyDeleteग्रामीण क्षेत्र में शिक्षक होने के नाते अभिवावक संग समन्वय स्थापित करने में जो मुख्य समस्या आती है वो ये की अभिवावक निर्धन परिवार से मजदूर वर्ग से आते है जिनके लिए प्रतिदिन मजदूरी जरूरी है जिस कारण वो विद्यालय में समय नहीं दे पाते।
ReplyDeleteमुझे बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने संबंधी समस्या में माता-पिता और प्रबंध समिति के साथ बैठक करना आवश्यक लगता है।
ReplyDeleteविद्यालय प्रबंधन समिति के साथ समन्वय स्थापित कर बच्चों का सर्वांंगिण बिकास संभव है।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चों के माता-पिता अशिक्षित हैं तथा वे दैनिक मजदूरी कर अपना भरण-पोषण करते हैं। उनके घर में पढ़ाई का वातावरण बिल्कुल नहीं है। बच्चों को सही माहौल नहीं मिल पाता है। वे दैनिक मजदूरी करते हैं जिस कारण शिक्षक अभिभावक गोष्ठी में भाग लेने में उनकी रुचि नहीं दिखती। बच्चों की अनियमित उपस्थिति भी एक गंभीर समस्या है। बहुत से बच्चे होमवर्क करने में भी रुचि नहीं लेते हैं। बहुत से बच्चे ऐसे हैं जो कि जिस कक्षा में पढ़ते हैं उनका स्तर उस कक्षा के अनुरूप नहीं है। बहुत से बच्चों को अक्षर पहचानने में भी कठिनाई होती है। गणितीय समझ भी कक्षा के अनुरूप नहीं है। हमारा प्रयास होगा कि बच्चों के माता-पिता तथा समाज के प्रबुद्ध लोगों से संपर्क कर उन्हें विद्यालय से जोड़ने का प्रयास करेंगे तथा समस्याओं से अवगत कराएंगे। इन समस्याओं के समाधान में उनका सहयोग लेने का प्रयास करेंगे। माता-पिता को बच्चों की उपलब्धियों के बारे में बताएंगे। कुछ महत्वपूर्ण अवसरों पर अच्छी समाज वाले बच्चों तथा खेलकूद एवं अन्य गतिविधियों में भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कृत करेंगे जिससे कि अन्य बच्चे भी अच्छा करने हेतु प्रोत्साहित होंगे। अभिभावकों को यह समझाने का प्रयास करेंगे कि बच्चे अधिकतम समय अपने परिवार या समुदाय के आसपास व्यतीत करते हैं आता उनके शैक्षणिक विकास में महत्वपूर्ण भागीदारी निभा सकते हैं।
ReplyDeleteशिक्षक और बच्चो के माता पिता एवं समुदाय से सामंजस्य स्थापित कर किसी भी समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जा सकता है
ReplyDeleteShashi Kesh Munda,MS BERAKENDUDA ANANDPUR,WEST SINGHBHUM. Garmin kshetra ke bachche aksar garib parivar se aate hain. Isliye bachchon ko puri sahanubhuti ke saath padana chahiye.
ReplyDeleteहम शिक्षकों को ग्रामीण परिवेश होने के कारण
ReplyDeleteनिश्चित रूप से विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है परन्तु शिक्षक और अभिभावक के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित करके इन समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।
एक शिक्षक के रूप में जैसा कि हम जानते हैं,शिक्षा का उद्देश्य वर्तमान समाज में स्थापित सिद्धांत,संस्कृति , मूल्य,आदर्श एवं आवश्यकताओं को जनसामान्य तक पहुंचाना होता है और शिक्षण के उद्देश्य शिक्षा के उद्देश्यों से ही निर्मित होते हैं, साथ ही शिक्षा-शिक्षण के उद्देश्य परिवर्तनशील होते हैं । शिक्षण करते समय हमारे समक्ष अनेक प्रकार की परेशानियां(समस्याएं)आती हैं कभी भिन्नता की तो कभी नई शिक्षण-विधियों से संबंधित,जिनका सामना हम अक्सर विद्यालय में करते हैं।जैसे--
ReplyDeleteअ) बुद्धि संबंधी, आ) स्वास्थ्य संबंधी,इ) क्षमता संबंधी, ई) योग्यता संबंधी, उ) अवधान संबंधी, ऊ) रुझान/अभिरुचि संबंधी, ए) रुचि संबंधी, ऐ) अनुशासन संबंधी, ओ) पोषण संबंधी, औ) भावना संबंधी, क) नैतिक-शिक्षा संबंधी, ख) घर में पढ़ने-लिखने की समय संबंधी(पालतू जानवरों को चराने,छोटे बच्चों की देखभाल करने तथाअभिभावकों के साथ कार्य-क्षेत्र में स्थानांतरण के फलस्वरूप गृह-कार्य,पाठ-अवलोकन एवं विद्यालय में उपस्थिति बाधित), ग) वैयक्तिक भिन्नता संबंधित , घ) छात्रों के मानसिक एवं बौद्धिक स्तर में भिन्नता संबंधी, च) छात्र एवं अध्यापक के बीच संबंध स्थापन संबंधी, छ) नियमित विद्यालय में छात्रोपस्थिति संबंधी, ज) कक्षा में बहुभाषावाद संबंधी, झ) कक्षा-कक्ष में संप्रेषण संबंधी, ट) शिक्षण के माध्यम संबंधी, ठ) नई शिक्षण-विधियां संबंधी, ड) ऑनलाइन कक्षा में छात्रों की दिलचस्पी संबंधी, ढ) विद्यालय अवधि में नशेड़ी का आगमन संबंधी, आदि!
एक ---- शिक्षक होने के नाते इन समस्याओं का निराकरण करते हुए उचित शिक्षण प्रदान करने का प्रयास करना है। साथ ही विद्यालय प्रबंधन समिति और माता-पिता के माध्यम से जिन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है एवं जिस प्रकार इन लोगों से संपर्क कर अपनी परेशानी बतायी जाए ताकि बेहतर स्थिति प्राप्त हो सके निम्न-वत विचार किया जा सकता है:-
१) विद्यालय प्रबंधन समिति एवं अभिभावकों(माता-पिता)की सामुहिक बैठक में बात को अप्रत्यक्ष रूप से उजागर करते हुए बच्चों के अक्सर अस्वस्थ होने की स्थिति में स्वास्थ्य-चेतना पर विस्तृत जानकारी के साथ "स्वास्थ्य ही धन है"पर विशेष प्रकाश डाला जा सकता है बशर्ते इस पर किन्ही को कोई व्यक्तिगत ठेस ना पहुंचे।
२) सामूहिक बैठक में सार्वजनिक तौर पर पोषण संबंधित बात की जा सकती है एवं विभिन्न खाद्य पदार्थों की महत्व पर प्रकाश डालते हुए संतुलित भोजन(यथासंभव) पर चर्चा कर ली जा सकती है एवं स्थानीय तौर पर विभिन्न सहज-उपलब्ध सब्जियां और फलों पर बात कर महत्व को भी बताया जा सकता है|
३) सामूहिक बैठक में भावना-संबंधी समस्याओं पर विस्तृत बात करते हुए बच्चों पर पड़ने वाले कुप्रभाव एवं परिणाम पर भावी-जीवन की निर्भरता को उजागर कर अभिभावकों को सहज एवं सक्रिय करने में प्रेरित किया जा सकता है।
४) विद्यालय प्रबंधन समिति की बैठक में,जीवन में शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बच्चों को पढ़ने-लिखने के उचित अवसर प्रदान करने की व्यवस्था हेतु परामर्श दिया जा सकता है |
५) घरेलू-कार्य में सहयोग-संबंधी समस्या पर व्यक्तिगत रूप से माता-पिता से बात कर बच्चों की निरंतरता को कम किया जा सकता है तथा विद्यालय में उनकी उपस्थिति को बढ़ाया जा सकता है।
६) जीवन में नैतिक गुणों की महत्व पर सामूहिक बैठक में विभिन्न पहलुओं को उदाहरणों के साथ वर्णन कर जागृत किया जा सकता है तथा परिवार ही नैतिक गुणों की विकास का मूल स्थान है इसे स्पष्ट करते हुए तथा अभिभावकों के विभिन्न प्रयासों को निर्देशित किया जा सकता है।
७) सामूहिक बैठक में बहु-कक्षा शिक्षण पर बात करते हुए विभिन्न हित-धारकों से उचित सहयोग की अपेक्षा एवं ध्यान को आकृष्ट किया जा सकता है।
८) सामूहिक बैठक में अभिभावकों की दायित्व को रेखांकित करते हुए उन्हें नियमित रूप से विद्यालय आने तथा अपने बच्चों की प्रगति संबंधी हाल-समाचार से अवगत होने की आवश्यकता एवं शिक्षकों से सुविधा-असुविधा पर चर्चा करने की आग्रह कर सम्मान-पूर्वक उनके अधिकार/कर्तव्य को निर्देशित किया जा सकता है।
९) पोषक-क्षेत्र में उपलब्ध 'एंड्राइड फोन' का सदुपयोग पर सामूहिक चर्चा करते हुए बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षा में सहयोग प्रदान पर,साथ ही अभिभावकों की फर्ज पर चर्चा कर "आज का बच्चा कल का सु-नागरिक"को भलीभांति अवगत कराते हुए बोध को जागृत किया जा सकता है।
१०) सामूहिक बैठक पर एक स्वस्थ विद्यालयी-वातावरण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए बाहरी लोगों के अनुचित अड़चन पर दृष्टि आकर्षित कर विद्यालय अवधि में नशेड़ी जैसे व्यक्तियों के आवागमन पर रोक लगाई जा सकती है।
इस तरह विभिन्न छोटे-छोटे प्रयासों से उन्हें जागृत कर विद्यालय को उक्त परेशानियों से निजात दिलाकर बेहतर स्थिति में लाया जा सकता है |
माता पिता के माध्यम से बच्चो की रूची तथा उसके आंतरिक व्यवहार को समझने में मदद मिल सकती है जिसका उपयोग उनके सीखने मे किया जा सकता है।साथ ही उनके सहयोग से बच्चो के अधिगम स्तर को भी अपेक्षित स्तर पर ले जाया जा सकता है।
ReplyDeleteशिक्षक - शिक्षिका के रूप में हम अपने विद्यालयों में विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करते हैं हम विद्यालय प्रबंध समिति और माता-पिता के सार्थक साझेदारी से बच्चों के सर्वांगीण विकास में जो बाधाएं आती हैं उन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं जैसे कि बच्चों की नियमित उपस्थिति बच्चों का नियमित रूप से गृह कार्य नहीं करना यह देखना बच्चों का अनुशासन संबंधित मुद्दे बच्चों के स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं बच्चों के संज्ञानात्मक भावनात्मक एवं मनो गत्यात्मक में अंतर बच्चों का व्यक्तिगत आचरण और सामाजिक मिलनसार है या नहीं विद्यालय में साथी ही पीटीए का नियमित आयोजन कक्षा में शिक्षक और बच्चों के अलावा अभिभावकों को शामिल करके कार्यशाला का आयोजन करके बच्चों के सर्वांगीण विकास की ओर बढ़ सकते हैं।
ReplyDeleteमो शाहिद आलम रा उत्क्रमित मध्य विद्यालय कस्पोड़िया घाघरा गुमला
ReplyDeleteग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों के छात्र अधिकांश गरीब परिवार से आते हैं लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरत पूरा करने में इतना व्यस्त रहते हैं कि बच्चो पर समय नहीं दे पाते हैं
अध्यापक बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए अभिभावकों एवं समुदाय के सहयोग से अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं
निश्चित रूप से शिक्षक होने के नाते हमें अपने विद्यालय के बच्चों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने में निरंतर अनेक प्रकार के कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। इनमें से कुछ निम्नवत हैं यथा-
ReplyDelete1) बच्चों की अनियमित उपस्थिति,
2) बच्चों का नियमित रूप से गृहकार्य नहीं करना,
3)बच्चों का चिड़चिड़ापन व्यवहार,
4)बच्चों का अनुशासन संबंधित मुद्दे,
5)बच्चों के आर्थिक कारणों के कारण पाठयसामग्री की अनुपलब्धता,
6)बच्चों के संज्ञानात्ममक,भावनात्मक एवं मनोगत्यात्मक कौशल में अंतर,
7)विशेष आवश्यकता वाले बच्चों का समावेशन,
8)बच्चों के सामाजिक,सांस्कृतिक,संवेगात्मक,अध्ययन-अध्यापन सहित अन्य कई मुद्दे
इन तमाम अनगिनत समस्याओं का समाधान केवल शिक्षक द्वारा कर पाना संभव नहीं होता।इसमें बच्चों के परिवार,माता-पिता,अभिभावक,समुदाय,विद्यालय परिवार,विद्यालय प्रबंधन समिति सहित अन्य हितकारी का अपेक्षित सहयोग बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है।माता-पिता,समुदाय सार्थक साझेदारी,सकारात्मक अनुसमर्थन आदि द्वारा शिक्षकों को सहयोग प्रदान कर सकते हैं। पीटीए का नियमित आयोजन,कक्षा में अभिभावकों को शामिल करने,कार्यशालाओं का आयोजन,नम्र व्यवहार एवं निरंतर संचार आदि से हम सकारात्मक परिणाम की प्राप्ति की रूपरेखा तय कर सकते हैं।
Hamare Vidyalay ke bad Mein Aise bacche Aate Hain din ke Mata Pita hain aur Dainik majduri karte hain unhen PTA meeting Mein bulakar padhaai ke bare mein bataya Ja kaksha Mein bataiye Ka niyamit aayojan Aur karyashala Ka aayojan Kar Ham is samasya ka Samadhan kar sakte hain sakta hai aur kuchh gatividhiya Kare Ja sakti hai Taki vah Ghar Mein jakar Apne bacchon Ko Khel Khel Mein padha sake Aur bacchon Ko Jin bacchon ko Varn Nahin Aata Hai unhen batane bata sakte
ReplyDeleteविधालय कक्षा संचालन के दौरान आने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याए आते रहते है। जैसे- विधालय मे अक्सर अनुपस्थित रहना,गृहकार्य न करना,साफ-सफाई मे कमी,बच्चे शिक्षको के बात को न सुनना इत्यादि। इन समस्याओ का समाधान विधालय प्रबंधन और माता-पिता के सहयोग से निश्चित रूप से कर सकते है।
ReplyDeleteTarun Nath Shahdeo Gums Hehal Ratu Ranchi.
ReplyDeleteThe illetracy of guardians is a major problem.even the PTM is an one sided affair.Teachers are not in receiving ends.The guardians needed to be aware of the school routines.Hoeever the situation is improving but will take time
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहम सब जानते हैं कि बच्चे नटखट होते हैं और बच्चे समझने की कोशिश शुरुआत में नहीं करते हैं क्योंकि उनमें असल में समझ होती ही नहीं है इसी कारण से तो बच्चे स्कूल आते हैं ताकि वे हर एक बात को एक बेहतर ढंग से समझ सके। मैं मानती हूं कि बच्चे बहुत ज्यादा कक्षा में शोरगुल करते हैं ,समझने की कोशिश नहीं करते हैं, पर इस जगह में बच्चों की कोई गलती नहीं होती है क्योंकि उनमें इतनी समझ ही नहीं होती है।
ReplyDeleteअगर मैं बात करूं किसी एक परेशानी को लेकर , जिसमें अगर शिक्षक और अभिभावक दोनों मिलकर इस परेशानी को दूर करें तो ऐसे में बच्चे ज्यादा बेहतर ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और उस एक परेशानी को मैं मानती हूं - कि बच्चे अपना गृह कार्य घर से करके आए।
देखिए हम जो भी बच्चों को पढ़ाते हैं ,अगर अभिभावक उनकी कॉपियों को देखें और उनमें दिए गृह कार्य को करने के लिए बच्चों को बोले, जैसे ही ऐसी चीजों के बारे में अगर अभिभावक कहते हैं उन्हें गृह कार्य करने के लिए। तो उस जगह में अगर बच्चों के अंदर किसी भी तरह का समस्या होता है उस गृह कार्य को लेकर, जो कि बच्चों को उनके कक्षा में पढ़ाई गई चीजों से ही संबंधित होते हैं। वैसे ही बच्चे अभिभावक से अपने उस प्रश्न को पूछते हैं। जिससे अभिभावक को यह पता चल जाता है कि हमारे बच्चों को क्या परेशानी हो रही है ,जिससे अभिभावक उन्हें कक्षा में पढ़ाई गई चीजों को और बेहतर समझाने के लिए कोशिश करेंगे।
और ऐसा करने से बच्चे कक्षा में पढ़ाई गई चीजों को और भी अच्छी तरह से सीख पाएंगे। और बच्चे अपना गृह कार्य अपने घर से भी करके आएंगे।
और इससे सबसे अच्छी बात यह होती है कि बच्चों में समझने की क्षमता इससे धीरे-धीरे बढ़ने लगती है और उनमें अंदर से ज्ञान प्राप्त करने की अभिलाषा होने लगती है इच्छा होने लगती है जिससे बच्चे पूरी तरह से पूछी पूर्वक कक्षा में और भी ध्यान से पढ़ाई पर ध्यान देंगे।
धन्यवाद!!
विद्यालय प्रबंधन एवं माता -पिता के माध्यम से बच्चों की नियमित उपस्थिति ,पोषक क्षेत्र के सभी बच्चों का ससमय नामांकन ,बच्चों के सांस्कृतिक उन्नयन ,विद्यालय के भौतिक संसाधन की संमृद्धि आदि किया जा सकता है।
ReplyDeleteएक शिक्षक के रूप में हमें विद्यालय के बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित करने में बहुत से परेशानियों का सामना करना पड़ता है । जैसे- बच्चों की अनियमित उपस्थिति, स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी परेशानी, गृह कार्य ना करना, शैक्षणिक संसाधनों का अभाव ,भाषा संबंधी समस्या ,विशेष आवश्यकता वाले बच्चों से संबंधित समस्या, सामूहिक गतिविधियों में रुचि न लेना,विद्यालय प्रबंधन समिति या अभिभावकों की बैठक के प्रति उदासीनता इत्यादि । उक्त परेशानियों को हम विद्यालय प्रबंधन समिति या अभिभावक शिक्षक गोष्ठी के माध्यम से दूर करने का प्रयास कर सकते हैं ।इसके लिए हम शिक्षकों को ही आगे आकर प्रयास करना होगा । विद्यालय प्रबंधन समिति या अभिभावकों की नियमित बैठक, सदस्यों की उपस्थिति सुनिश्चित करना तथा विद्यालय में होने वाले गतिविधियां जो बच्चों से संबंधित हो या विद्यालय से, उसमें सदस्यों या अभिभावकों का योगदान सुनिश्चित करवाना । उन्हें यह एहसास दिलाना होगा की वे विद्यालय को अपना समझें तथा अपने बच्चों के शैक्षणिक, मानसिक ,शारीरिक एवं भावनात्मक विकास में अपना योगदान दें ।अभिभावकों से व्यक्तिगत संपर्क करके हम उन्हें इसके लिए प्रेरित कर सकते हैं, समस्याओं से अवगत करा सकते हैं तथा उसका समाधान खोजने का प्रयास कर सकते हैं। इस तरह अभिभावक अपनी-अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहेंगे तथा वे अपने बच्चों को घर पर अच्छी देखभाल तथा शैक्षणिक गतिविधियों को पूरा करने में मदद कर सकते हैं ।
ReplyDeleteऔर मानपूर्वक बुलानाचाहिएसाथ ही बच्चों के पठन-पाठन संबंधित बातें बोलने का मौका देना चाहिए
ReplyDeleteएक शिक्षक के रूप में हमें विद्यालय/कक्षा संचालन तथा बच्चों के बेहतर और समग्र विकास के प्रयास में कई तरह के परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनमें मुख्य हैं:-
ReplyDelete1::शत-प्रतिशत बच्चों का नामांकन एवं उपस्थिति सुनिश्चित करना।
2::ऑनलाइन शिक्षा को और अधिक सुदृढ़ करना। खासकर कोविड-19 महामारी या अन्य किसी कारण से कक्षा संचालन स्थगित रहनेके दौरान।
3::बच्चों के बुनियादी साक्षरता और संख्याज्ञान,शिक्षा के स्तर को बढ़ाना।
4::कई तरह के कार्यों में वित्तीय संबंधी समस्याएँ।
5::अभिभावकों,माता-पिता तथा समुदाय को विद्यालय से जोड़कर रखना।
6::विद्यालय प्रबंधन समिति को जागृत,जागरूक एवं क्रियाशील रखना।
7::विभाग/सरकार के तरफ से प्राप्त राशि तथा सामग्री का सही उपयोग एवं सही वितरण।
8::निःशक्त,दिव्यांग बच्चों के लिए आवश्यक सामग्री तथा बेहतर शिक्षण की व्यवस्था।
विद्यालय में और भी बहुत तरह के कठिनाइयों/परेशानियों का हमें सामना करना पड़ता है।
शिक्षकों,विद्यालयों,माता-पिता और समुदायों के बीच भागीदारी बहुत उपयोगी होती है क्योंकि यह बच्चों और समुदायों के बेहतर विकास में मदद करती है। एन ई पी 2020 में एफ एल एन कौशल को मूलभूत माना गया है,इसलिए माता-पिता,परिवारों और समुदाय की भागीदारी महत्वपूर्ण हो जाती है। बुनियादी स्तर पर प्रारंभिक साक्षरता तथा गणितीय कौशलों एवं अवधारणाओं के विकास में माता-पिता को शामिल करना बहुत ही आवश्यक है। इससे बच्चे और शिक्षक दोनों के प्रयासों को समर्थन मिलता है। माता-पिता,शिक्षक और विद्यालय प्रबंधन समिति हर एक की एक भूमिका होती है और जब ये मिलजुल कर काम करते हैं आपस में सहयोग करते हैं तो अच्छे परिणाम लाने वाली एक सार्थक साझेदारी निकल कर आती है। सभी समूह अपनी भूमिका को समझते हुए प्रतिबद्ध होकर कार्य करें तो एफ एल एन के कौशलों में बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हुए तेजी से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। माता-पिता घर में पढ़ाई का माहौल बनाते हैं तो हम भाषाई और गणितीय कौशलों को सरलता से प्राप्त कर सकते हैं। बच्चे अपने दिन का एक बड़ा भाग घर पर या पड़ोसियों के साथ बिताते हैं। माता-पिता और समुदाय के अन्य सदस्य विद्यालय में पढ़ाई गई अवधारणाओं और विचारों को समझने के लिए घर पर सहायता कर सकते हैं,तो इससे परिणाम भी उत्कृष्ट होंगे।
माता-पिता,परिवार,समुदाय और विद्यालय प्रबंधन समिति मिलकर विद्यालय के बच्चों की दक्षता के स्तर को बढ़ाने में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं। जब शिक्षक/विद्यालय और परिवार के सदस्यों के बीच आपसी समन्वय तथा मित्रतापूर्ण व्यवहार होते हैं तो सफल सहभागिता संबंधी कार्यक्रम आसानी से बनाए जा सकते हैं।
शिक्षक/विद्यालय निम्न कार्य योजना बनाकर तथा उसका क्रियान्वयन करके परिवार और विद्यालय के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण कर सकते हैं:-
*विद्यालय में अभिभावक केन्द्र विकसित करना।
*अभिभावकों,माता-पिता एवं समुदाय के सदस्यों के साथ नियमित,उपयुक्त तथा सहज संवाद।
*विद्यालय संचालन अवधि के बाद या पूर्व में अभिभावकों तथा सामुदायिक संगठनों के सहयोग द्वारा संभव क्रियाओं और गतिविधियों की योजना बनाना।
*शिक्षकों और परिवारों के लिए संभावित रूप से कुछ सामाजिक गतिविधियों का आयोजन करना।
*अभिभावक शिक्षा एवं परिवार साक्षरता कार्यक्रमों का आयोजन करना।
*पी टी एम में निरंतरता रखना।
*विद्यालय के निर्णयों में माता-पिता,अभिभावकों को शामिल करना।
*जहाँ पर कोई अभिभावक,समुदाय के सदस्य अपना योगदान,मदद दे सकता है ऐसे में उनको शामिल करना चाहिए।
ये सभी कार्यक्रमों का आयोजन मित्रवत,विनम्र और सम्मान जनक सहभागिता के साथ किया जाना चाहिए।
शिक्षक और अभिभावकों के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर इस समस्या का समाधान ढूँढा जा सकता हैं
ReplyDeleteReply
मैं एक शिक्षिका होने के नाते निश्चित रूप से हमें अपने विद्यालय के बच्चों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने में कितनी प्रकार की कठिनाइयों का सामना करने पढ़ती है जैसे बच्चों की शत प्रतिशत उपस्थिति का ना होना बच्चों का नियमित रूप से गृह कार्य का ना होना क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं पढ़े लिखे माता पिता का होना विद्यालय प्रवेश के समय घर की भाषा और विद्यालय की भाषा में अंतर होना एक कक्षा के बच्चों के बीच आयु में 12 महीने तक का अंतर होना बच्चों की विकास की गति में भीनता का होना बच्चों के विकास की गति में भीनता बच्चों की घर की भाषा में भीनता आदि विद्यालय शिक्षक प्रबंधन समिति समुदाय अभिभावक एवं परिवार वालों से संपर्क संचार नोट इन सबों की साझेदारी इन सभी के माध्यम से बेहतर स्थिति प्राप्त कर सकती हूं
ReplyDeleteधन्यवाद
ग्रामीण क्षेत्रों मे बहुत बच्चे ऐसे होते है जो घरेलू कार्यो में व्यस्त रहते है। जिसके कारण बच्चो की उपस्थिती विद्यालय में नही हो पाता है।अभिवावक और शिक्षकों के आपसी समन्वय स्थापित कर बच्चों की उपस्थिति के प्रतिशत को बढ़ाया जा सकता है।
ReplyDeleteविद्यालयों में गुणात्मक शिक्षा को बेहतर बनाने में सिर्फ शिक्षकों की भूमिका ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि अभिभावक एवं समुदाय के साथ-साथ विद्यालय प्रबंधन समिति की भी समान भागीदारी होनी चाहिए। एक शिक्षक होने के नाते मैं यह भली-भांति समझ सकता हूं की विद्यालय में कौन-कौन सी समस्याएं आती है। कुछ एक समस्याएं ऐसी होती है जिसका समाधान विद्यालय प्रबंधन समिति एवं समुदाय की नहीं होती बल्कि विभाग द्वारा इनका समाधान किया जाता है। विद्यालयों में समस्याएं निम्न प्रकार की आती है जैसे:-
ReplyDelete1. बच्चों का नियमित विद्यालय न आना।
2. बच्चों का नियमित स्नान, बालों में कंघी एवं साफ सुथरा कपड़ा पहनकर न आना।
3. गृह कार्य ना करना
4. बच्चों के साथ आपस में झगड़ा करना एवं शिकायत करना
5. गंदे शब्दों का इस्तेमाल करना।
6. एक दूसरे बच्चे का सामान चोरी करना
7. बड़ों का आदर ना करना
8. बड़ों की बातों का अवहेलना करना
9. पठन-पाठन मैं ध्यान ना देना
10. बच्चों से बाल श्रम कराना
11. सामाजिक कुरीतियों का बच्चों पर प्रभाव 12. बच्चों का मोबाइल एवं टीवी पर ज्यादा
ध्यान देना।
13. बच्चों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
14. बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक, एवं शैक्षणिक समस्याएं।
उपरोक्त समस्त समस्याओं का समाधान सिर्फ और सिर्फ विद्यालय स्तर पर कर पाना संभव नहीं है। ऐसा माना जाता है आज का बच्चा आने वाले कल का भावी नागरिक बनता है और वही नागरिक एक स्वस्थ समाज में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करता है। हम विद्यालय में बच्चों को जिस प्रकार का माहौल या संस्कार देंगे उसका प्रभाव उस समाज पर अवश्य ही पड़ता है। सारी समस्याओं का समाधान कर पाना संभव तो नहीं है परंतु माता पिता एवं अभिभावकों से मिलकर सामाजिक स्तर से आने वाली समस्याओं का समाधान अवश्य ही हो सकता है। विद्यालय प्रबंधन समिति की नियमित बैठक में उन समस्याओं पर विस्तृत चर्चा की जाए और उन पर कार्य करने से निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम आता है। पी टी एम को सिर्फ कागज तक सीमित नहीं रखना चाहिए। पीटीएम में शिक्षक के दायित्व एवं माता पिता के अपने अपने दायित्वों का निर्वहन इमानदारी पूर्वक करने से सारी समस्याओं का समाधान आसानी से हो सकता है और विद्यालय में बेहतर शैक्षणिक माहौल बनाकर आने वाले पीढ़ी के लिए एक बेहतर एवं स्वस्थ समाज की परिकल्पना कर सकते हैं।
धन्यवाद।
राजेंद्र पंडित, सहायक शिक्षक
Govt.PS.Chandsar,Mahagama,.
Godda,jharkhand
बच्चों के सर्वांगीण विकास में अभिभावकों की बहुत बड़ी भूमिका होती है।शिक्षक और अभिभावकों के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर सभी समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है। एक अच्छी साझेदारी के अच्छे परिणाम मिलेंगे।
ReplyDeleteअभिभावकों की शिक्षा में रुचि का अभाव है पेटीएम में भी भाग नहीं लेते हैं यह परिवार के दैनिक जुगाड़ के लिए मजदूरी के लिए जाते हैं एस एम सी के सदस्यों के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाया जा सकता है।
ReplyDeleteParents ko apne bache pr visesh Dhyan dena hoga school k prti sakaratmak soch rakhna hoga.teacher se contact krte rahna chahiye taki bache ka report le sake
ReplyDeleteबच्चों के विकास में PTM बहुत जरूरी है
ReplyDeleteHmare school me adhiktar aise bacche aate h, jinke mata pita ashikshit hote h. Jinke karan unke gharon me shiksh ka mahaul nhi hota.aur pTM me v shamil nhi hote. Aise me shikshakon ko ghar ghar ja kar samjhane ki jarut h. Taki FLN mission ko kamyab banaya ja sake.
ReplyDeleteअभिभावकों को बच्चों पर पूरा ध्यान देना होगा। विद्यालय जाकर बच्चों का प्रोग्रेस टीचर से पूछना है ।घर में बच्चे को पढ़ने और लिख्नेमे साथ देना चाहिए।
ReplyDeletePTM बहुत जरूरी है। ताकि FLN Mission को कामयाब बनाया जा सके।
वैसे अभिभावक जोअशिक्षित है या तो फिर जहां पढ़ाई का बिल्कुल वातावरण नहीं है उन्हें वर्ण पहचानने में दिक्कत होती है हम कोशिश कर सकते हैं कि माता-पिता को बैठक में बुलाया और उनसे सलाह करके ऐसा माहौल तैयार करें ताकि बच्चे और अभिभावक और शिक्षक तीनों मिलकर के बच्चों के उत्थान के लिए सहयोग कर सकें।
ReplyDeleteविद्यालयों में समस्याएं निम्न प्रकार की आती है जैसे:-
ReplyDelete1. बच्चों का नियमित विद्यालय न आना।
2. बच्चों का नियमित स्नान, बालों में कंघी एवं साफ सुथरा कपड़ा पहनकर न आना।
3. गृह कार्य ना करना
4. बच्चों के साथ आपस में झगड़ा करना एवं शिकायत करना
5. गंदे शब्दों का इस्तेमाल करना।
6. एक दूसरे बच्चे का सामान चोरी करना
7. बड़ों का आदर ना करना
8. बड़ों की बातों का अवहेलना करना
9. पठन-पाठन मैं ध्यान ना देना
10. बच्चों से बाल श्रम कराना
11. सामाजिक कुरीतियों का बच्चों पर प्रभाव 12. बच्चों का मोबाइल एवं टीवी पर ज्यादा
ध्यान देना।
13. बच्चों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
14. बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक, एवं शैक्षणिक समस्याएं।अभिभावकों की शिक्षा में रुचि का अभाव है पेटीएम में भी भाग नहीं लेते हैं यह परिवार के दैनिक जुगाड़ के लिए मजदूरी के लिए जाते हैं एस एम सी के सदस्यों के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लायाअभिभावकों की शिक्षा में रुचि का अभाव है पेटीएम में भी भाग नहीं लेते हैं यह परिवार के दैनिक जुगाड़ के लिए मजदूरी के लिए जाते हैं एस एम सी के सदस्यों के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाया
एक शिक्षिका के रूप में मुझे विद्यालय में निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे-1.अनियमित उपस्थिति। 2.गृहकार्य करके नहीं आना। 3.व्यक्तिगत स्वच्छता का अभाव। 4.पढ़ाई से अधिक घर के काम मे अधिक ध्यान देना। 5.शिक्षक-अभिभावक बैठकों में भाग न लेना आदि।बच्चों के सर्वांगीण विकास में बाधक इन सभी समस्याओं का समाधान अभिभावकों से संपर्क करके ही प्राप्त किया जा सकता है।
ReplyDeleteनिश्चित रूप से शिक्षक होने के नाते हमें अपने विद्यालय के बच्चों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने में निरंतर की प्रकार के कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।हम इन्हें निम्नवत दिखला सकते हैं---
ReplyDelete1) बच्चों की नियमित उपस्थिति,
2) बच्चों का नियमित रूप से गृहकार्य नहीं करना,
3)बच्चों का चिड़चिड़ापन व्यवहार,
4)बच्चों का अनुशासन संबंधित मुद्दे,
5)बच्चों के आर्थिक कारणों के कारण पाठयसामग्री की अनुपलब्धता,
6)बच्चों के संज्ञानात्ममक,भावनात्मक एवं मनोगत्यात्मक कौशल में अंतर,
7)विशेष आवश्यकता वाले बच्चों का समावेशन,
8)बच्चों के सामाजिक,सांस्कृतिक,संवेगात्मक,अध्ययन-अध्यापन सहित अन्य कई मुद्दे
इन तमाम अनगिनत समस्याओं का समाधान केवल शिक्षक द्वारा कर पाना संभव नहीं होता।इसमें बच्चों के परिवार,माता-पिता,अभिभावक,समुदाय,विद्यालय परिवार,विद्यालय प्रबंधन समिति सहित अन्य हितकारी का अपेक्षित सहयोग बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है।माता-पिता,समुदाय सार्थक साझेदारी,सकारात्मक अनुसमर्थन आदि द्वारा शिक्षकों को सहयोग प्रदान कर सकते हैं। पीटीए का नियमित आयोजन,कक्षा में अभिभावकों को शामिल करने,कार्यशालाओं का आयोजन,नम्र व्यवहार एवं निरंतर संचार आदि से हम सकारात्मक परिणाम की प्राप्ति की एक अनूठी रूपरेखा तय कर सकते हैं।बहुत-बहुत धन्यवाद
हमारे विद्यालय में अधिकांश बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं जिन्हें घर में पढ़ाई का माहौल नहीं मिल पाता है। अधिकांश माता-पिता अशिक्षित,अल्प शिक्षित तथा गरीब हैं जो यह मानते हैं कि पढ़ाई-लिखाई सिर्फ विद्यालय तक ही सीमित है। वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि बच्चों की शिक्षा एवं उनका सर्वांगीण विकास में शिक्षक के साथ-साथ अभिभावक तथा समुदाय का भी एक बहुत बढ़ा योगदान है। हम शिक्षक, अभिभावक एवं समुदाय के बीच परस्पर समन्वय, सहयोग एवं सहभागिता स्थापित कर इस समस्या का समाधान कर सकते हैं तथा बच्चों को शिक्षा का एक बेहतर माहौल दे सकते हैं।
ReplyDeleteमैं वैसे ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय का शिक्षक हूँ जहाँ के अधिकांश छात्र अभिभावक गरीब, अनपढ और दिहाड़ी मजदूर किस्म के लोग हैं जो अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर न के बराबर ध्यान दे पाते हैं और यह मानते हैं कि पढाई लिखाई तो स्कूल और मास्टर जी के जिम्मे है वही जो कुछ कर सकते हैं करें. उनके बच्चों की और उनकी भलाई के लिए आवश्यक है कि उनकी इस मानसिकता को बदलने का प्रयास किया जाय. उन्हें शिक्षक छात्र अभिभावक गोष्ठी में आमंत्रित कर समझाया जाय कि बच्चों का अधिकांश समय घर में परिवार और समुदाय के लोगों के साथ बीतता है जो इनकी पढाई लिखाई और अन्य सदाचार सीखने में इन बच्चों का प्रेरक बन सकते हैं. बच्चे देख सुनकर बहुत कुछ सीख जाते हैं इसलिए बच्चों के सामने हमारा बोली व्यवहार और आचरण सभ्य व शालीन हो.
ReplyDeleteबच्चों, शिक्षकों और विद्यालयों के समक्ष बहुत सारी समस्याएं होती है अगर इन समस्याओं का समाधान बच्चों के सभी हितधारक आपस में मिलकर करें तो बच्चों का सीखना-सिखाना सरल हो सकता है इसके लिए जरूरी है-
ReplyDelete1. अभिभावक शिक्षक मीटिंग में विद्यालय की गतिविधियों पर बातचीत
2. शिक्षक द्वारा अभिभावक के विचारों का सम्मान।
3. कक्षा में अभिभावक को शामिल करके।
4. कार्यशाला और लोकवाचन कार्यक्रम का आयोजन कर के।
ये तभी संभव होगा जब सभी हितधारक अपनी भूमिका के प्रति जागरूक और स्वतः सक्रिय होंगे।
M. MARANDI,RKHS KHAIRBANI, JAMTARA, JHARKHAND
गांव के स्कूल में अधिकतर गरीब बच्चे आते हैं।बच्चे के माता_पिता काम में व्यस्त रहते हैं इसलिए वे बच्चों के लिए समय नहीं दे सकते है। शिक्षक और अभिभावक परस्पर सहयोग से इस समस्या का समाधान निकाल सकते हैं।
ReplyDeleteजैसा कि हम एक शिक्षक होने के नाते बच्चे के बारे मे सारि पृष्टिभूमि के बारे मे जानना नैतिक जिम्मेदारी है।जहाँ हम पाते हैं कि समुदाय के अधिकतर अभिभावकों में सामाजिक,आर्थिक एवं शैक्षणिक भिन्नता पाते हैं औऱ इसी भिन्नता में हमे शिक्षण कार्य बच्चे के समग्र विकास करना कॉफी चुनौतीपुर्ण कार्य है।
Deleteइसी चुनौती पूर्ण कार्य को समुदाय की सहभागिता एवं अभिभावकों के सहयोग से सरल बनाया जा सकता हैं।एवं बच्चों के सर्वागीण विकास के लक्ष्यों प्राप्ति हो सकता हैं।
PHUL CHAND MAHATO
UMD GHANGHRAGORA
CHANDANKIYARI
BOKARO
ग्रामीण अभिभावक ज्यादातर अशिक्षित ही होते हैं जिसके कारण वे नित्य अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु प्रयासरत रहते हैं |इसके लिए वे प्रतिदिन मेहनत और मजदूरी करने अपने घरों से निकल जाते हैं जिसके कारण वो अपने बच्चों को उपयुक्त समय दे नहीं पाते |ऐसी स्थिति में PTM के दौरान उन्हें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने और इसका महत्व बताया जा सकता है ताकी वो अपनी जिम्मेदारी से अवगत हो तथा समय निकाल कर अपने बच्चों पर आवश्यक ध्यान दे सकें |FLN को प्राप्त करने के लिए उनका सहयोग उतना ही महत्वपूर्ण है जितना शिक्षकों के लिए |अतः शिक्षक,समुदाय और विद्यालय की प्रतिबद्धता बच्चों के सम्पूर्ण विकास हेतु यह आवश्यक है कि हम अपनी जिम्मेदारी का लगन से वहन करें |
ReplyDeleteएफ एल एन का विचार सुनने में अच्छा लगता है परंतु धरातल पर देखा जाए तो अनेक समस्याएं हैं, जिनका निराकरण विद्यालय परिवार के द्वारा नहीं हो सकता है। अभिभावक के द्वारा विद्यालय को सहयोग नहीं मिलता है, अपनी संतान के प्रति भी वह जवाबदेही नहीं है जो एक शिक्षित एवं सभी परिवार में देखने को मिलता है। ऐसे में शिक्षक और अभिभावक समन्वय की बात करना न्याय संगत जान पड़ता है, किंतु अभिभावक की लापरवाही शिक्षक को मजबूर करता है ऐसे में बच्चों को पढ़ने लिखने और जोड़ने घटाने का प्राथमिक ज्ञान मिल पाना कठिन पड़ रहा है। फिर भी नई समिति का गठन किया गया है नए लोग जुड़े हुए हैं फिर से प्रयास किया जाएगा कि अभिभावक अपने बच्चों को सहयोग करें शिक्षक की मदद करें शिक्षक अभिभावक की मदद करें और एक समेकित प्रयास हो इसका लाभ सभी बच्चों को मिले।
ReplyDeleteब्रह्मदत्त नायक राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय कुलुकेरा सिमडेगा
बच्चों का भाषा एवं संख्याज्ञान विकास के लिए समुदाय तथा अभिभावकों का भागिदारी को विद्यालय में PTM के माध्यम से बहुत आवश्यक है।लेकिन यह नियमित रूप से लगातार करने में काफी कठिनाईयां है क्योंकि कि सूदूर ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अशिक्षित, गरीबी आदि से परेशान रहते हैं। उनका कहना रहता है कि शिक्षक वच्चों का सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। ये धारणा समुदाय तथा अभिभावकों से पहले दूर करना होगा।
ReplyDeleteGeneraly students are not coming school regularly.This is most important problem to .This problem can be solve to meeting with parents and members of school management committee regularly and doing samoksha on time to time
ReplyDeleteParents and teachers dono ko milkar children ko anewala education activities problems solve karana chahiye kyonki children adhik saye apne guardian ke sath bitate hai
ReplyDeleteग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में अधिकांश लोग गरीब है।
ReplyDeleteलोग जीविकोपार्जन मैं इतना व्यस्त रहते हैं कि वह बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते बच्चों को घर पर पढाई का environment नहीं मिल पाता है। शिक्षक और अभिभावक के बीच परस्पर सहयोग और समन्वय स्थापित कर इस समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है।
PTM Is the best
ReplyDeleteकिसी भी विद्यालय में शिक्षकों एवं छात्रों के बीच एक अटूट बंधन होता है। शिक्षक एक कुशल कारीगर की तरह बच्चों को तराशकर एक कुशल नागरिक बनाता है।वैसे तो आरंभ से ही, बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षकों को पूर्ण दायित्व निभाने की आवश्यकता होती है।परंतु आज के बदलते परिवेश एवं माहौल में माता पिता, अभिभावकों एवं समुदाय की भुमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है।
ReplyDeleteबुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान की अवधारणा में माता पिता, अभिभावकों, समुदाय एवं विद्यालय प्रबंधन समिति की सक्रिय भागीदारी बहुत ही आवश्यक है।
परिवार को प्राथमिक पाठशाला कहा जाता है।माता पिता बच्चों के प्रथम गुरु होते हैं।माता पिता एवं अभिभावकों को बच्चों के गुण-अवगुण, स्वास्थ्य, मनोवृत्ति इत्यादि बातों की अच्छी समझ होती है।
शिक्षक अविभावक एवं माता पिता मिलकर बच्चे की सीखने की गति को बढाया सकते हैं।
घर में एक उत्कृष्ट वातावरण निर्माण के लिए शिक्षकों को अभिभावकों एवं माता पिता के सहयोग की जरूरत है।
उनके सक्रिय भागीदारी से बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
अनिल तिवारी
सहायक शिक्षक
रा म विद्यालय दुलदुलवा
मेराल गढवा
ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे विद्यालय से घर जाने के बाद पढ़ाई नहीं कर पाते हैं क्योंकि उनके माता-पिता मजदूरी के लिए जाते हैं,काम से थक हार कर शाम को घर आते हैं जिस कारण घर में पढ़ाई का माहौल नहीं मिल पाता ।
ReplyDeleteइस समस्या को माता- पिता एवं विद्यालय प्रबंधन समिति के आपसी सहयोग और विचार विर्मश से ही दूर किया जा सकता है।
Bachchon ka vikash ke liye sikshak abam abhibhabak ke bich paraspar sahayog abam samanay sthapit kar samasya ka samadhan nikala ja sakta hai.
ReplyDeleteAnjani Kumar Choudhary 7549021253
ReplyDeleteविद्यालयों में गुणात्मक शिक्षा को बेहतर बनाने में सिर्फ शिक्षकों की भूमिका ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि अभिभावक एवं समुदाय के साथ-साथ विद्यालय प्रबंधन समिति की भी समान भागीदारी होनी चाहिए। एक शिक्षक होने के नाते मैं यह भली-भांति समझ सकता हूं की विद्यालय में कौन-कौन सी समस्याएं आती है। कुछ एक समस्याएं ऐसी होती है जिसका समाधान विद्यालय प्रबंधन समिति एवं समुदाय की नहीं होती बल्कि विभाग द्वारा इनका समाधान किया जाता है। विद्यालयों में समस्याएं निम्न प्रकार की आती है जैसे:-
1. बच्चों का नियमित विद्यालय न आना।
2. बच्चों का नियमित स्नान, बालों में कंघी एवं साफ सुथरा कपड़ा पहनकर न आना।
3. गृह कार्य ना करना
4. बच्चों के साथ आपस में झगड़ा करना एवं शिकायत करना
5. गंदे शब्दों का इस्तेमाल करना।
6. एक दूसरे बच्चे का सामान चोरी करना
7. बड़ों का आदर ना करना
8. बड़ों की बातों का अवहेलना करना
9. पठन-पाठन मैं ध्यान ना देना
10. बच्चों से बाल श्रम कराना
11. सामाजिक कुरीतियों का बच्चों पर प्रभाव 12. बच्चों का मोबाइल एवं टीवी पर ज्यादा
ध्यान देना।
13. बच्चों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
14. बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक, एवं शैक्षणिक समस्याएं।
ग्रामीण क्षेत्र में अधिकतर बच्चे गरीब परिवार से आते हैं इन परिवारों वयस्क लोग जीविकोपार्जन के लिए अपने कामों में व्यस्त रहते हैं जिस कारण अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते और इस कारण बहुत से बच्चे स्कूल नियमित रूप से नहीं पहुंच पाते रही दूसरी बात तो अभिभावक भी पी टी एम मीटिंग में नहीं पहुंच पाते हैं
ReplyDeleteबच्चों में विद्यालय के प्रति लगाव बनाए रखने में समुदाय और हम शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए। हमे अभिभावकों को भी बच्चों के शिक्षा के और सौहार्द्र पुर्ण माहौल के लिए जागरूक करना होगा। बच्चों को घर के जैसे माहौल उपलब्ध करना हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों का भाषा एवं संख्याज्ञान विकास के लिए समुदाय तथा अभिभावकों के माध्यम से एक शिक्षक बच्चों के सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। जैसे भाषा ,खेती बारी,के काम,इत्यादि।
ReplyDeleteअधिकांश बच्चे ऐसे घरों से आते
ReplyDeleteहैं जहांँ पढा़ई का वातावरण नही होता है।माता-पिता काम में चले जाते हैं जिसके कारण बच्चे नियमित स्कूल नहीं आते हैं।विद्यालय प्रबंथन समिति और माता- पिता के माथ्यम से बच्चों के बुनियादी स्तर पर प्रारंभिक साक्षरता तथा गणितीय कौशलों एवं अवथारणाओं का विकास किया जा सकता है तथा इन लोगों को पी टी एम की बैठक बुलाकर अपनी परेशानियों को बतायी जा सकती है।
बच्चों के विकास में शिक्षक के साथ अभिभावक का भी विशेष योगदान है।देखा गया है कि जिन बच्चों के अभिभावक जागरूक हैं उनके बच्चे अच्छा करते है।शिक्षक और अभिभावक के साथ सहयोग एवं समन्वय स्थापित कर समस्या का समाधान निकाल सकते है। NIKHAT JAHAN P/S JALAN NGAR
ReplyDeleteविद्यालय में विभिन्न प्रकार की परेशानियां आते रहते है।जिनका सामना हम अक्सर विद्यालय में करते है जैसे-बच्चे का नियमित स्कूल न आना, कक्षा कार्य में ध्यान न देना, कक्षा में लड़ाई झगड़ा करना, गृहकार्य नहीं करना आदि।इन सभी समस्याओं का समाधान विद्यालय प्रबंधन समिति और माता-पिता के माध्यम से ही सभंव हो सकता है।ऐसे स्थिति में अभिभावको की बैठक बुलाकर आपस में परेशानियो का साझा कर समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जा सकता है।
ReplyDeleteविद्यालय में विभिन्न प्रकार की परेशानियाँ आते रहते है।जिनका सामना हम अक्सर विद्यालय में करते है जैसे-बच्चे का नियमित स्कूल न आना, कक्षाकार्य में ध्यान न देना,कक्षा में लड़ाई-झगड़ा करना, गृहकार्य नहीं करना आदि।इन सभी समस्याओ का समाधान विद्यालय प्रबंधन समिति और माता-पिता के माध्यम से ही सभंव हो सकता है।ऐसी स्थिति में अभिभावको की बैठक बुलाकर आपस में परेशानियो का साझा कर समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जा सकता है।
ReplyDeleteविधालय प्रबंधन समिति , माता- पिता और समुदाय के साथ मिलकर बच्चों को निखारने का सफल प्रयास किया जाना चाहिए|
ReplyDelete