क्या हम जानते हैं कि बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है? अपने
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आप अपनी कक्षा/ स्कूल में खिलौना क्षेत्र कैसे सृजित करेंगे – इस बारे में सोचें। डी-आई-वाई खिलौनों का सृजन करने में बच्चों की सहायता के लिए ...
यह बात बिल्कुल ठीक है कि बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने का God gift गुण होता है।
ReplyDeleteबच्चे शुरुआत में अपनी मातृभाषा का प्रयोग अधिक आसानी से करते हैं। एक ही कक्षा में कई तरह के मातृभाषा के बच्चे मौजूद हो सकते हैं। हमें बहुभाषिकता को चुनौती के रूप में नहीं लेना चाहिए बल्कि इसे एक संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए।
: मु॰ अफ़ज़ल हुसैन
उर्दू प्राथमिक विद्यालय मंझलाडीह, शिकारीपाड़ा,दुमका,झारखंड।
Baccho mein bhasha shikhne ki pravirti janmjat hoti hai.bachcha apne ghar aur aas pas ke vatawaran se bhasha ko shikta hai.school aane se purva use kuch bhasha ki samajh jarur hoti hai.
Deleteजी हाँ मैं जानती हूँ और मानती हूँ कि बच्चों में भाषा सिखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक नैसर्गिक प्रवृति होती है ।सिर्फ़ बच्चों के माता-पिता,अभिभावकों,पड़े।सी एवं हम शिक्षकों का पूर्ण सहयोग की अति आवश्यकता है ।
DeleteChildren's can use their mother tounge language very easily in the classroom.There are different types of students who can speak their mother toung. Also children speak their regional language. We should not take challenge about the bahubahsikta.
Deleteबच्चों में भाषा सीखने की और भाषा से सीखने की प्रवृत्ति स्वभाविक होती है और यह जन्म से ही पाई जाती है। 3 साल की आयु में जो बच्चा बंगाली तमिल तेलुगू मराठी हिंदी खोरठा संथाली आदि जितनी भाषाएं अपने परिवार में सीख पाता है वह विद्यालय में आकर दूसरी भाषा को इतनी आसानी से नहीं सीख सकता ।इसका अर्थ यही है कि बच्चों में प्राकृतिक रूप से ही भाषा को सीखने की होती है।
ReplyDeleteअंजय कुमार अग्रवाल मध्य विद्यालय कोयरी टोला रामगढ़
बच्चों में भाषा सीखने की और भाषा से सीखने की प्रवृत्ति स्वभाविक होती है और यह जन्म से ही पाई जाती है। 3 साल की आयु में जो बच्चा बंगाली तमिल तेलुगू मराठी हिंदी खोरठा संथाली आदि जितनी भाषाएं अपने परिवार में सीख पाता है वह विद्यालय में आकर दूसरी भाषा को इतनी आसानी से नहीं सीख सकता ।इसका अर्थ यही है कि बच्चों में प्राकृतिक रूप से ही भाषा को सीखने की होती है।
Deleteबच्चों मे भाषा सीखने और भाषा से सीखने की प्रवृति स्वभाविक होती है,इस बात से मैं सहमत हूँ।
Deleteयह बात बिल्कुल ठीक है कि बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने का God gift गुण होता है।
ReplyDeleteबच्चे शुरुआत में अपनी मातृभाषा का प्रयोग अधिक आसानी से करते हैं। एक ही कक्षा में कई तरह के मातृभाषा के बच्चे मौजूद हो सकते हैं। हमें बहुभाषिकता को चुनौती के रूप में नहीं लेना चाहिए बल्कि इसे एक संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए।
बच्चे शुरुआत में अपनी मातृभाषा का उपयोग करते हैं जिससे बच्चों को समझने में आसानी होती है हमें मात्री भाषा को चुनौती ना समझ कर इसे सीखने का संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए
DeleteBaccho me bhasha sikhane or bhasha ke madhyam se shikhane ki natural prabritti hoti hai isliye bahubhashikata ko chunowti ke rup me nahi lena chahiye balki ese ek sansadhan ke rup ki tarah hi prayog karna chahiye
ReplyDeletebhasha sikhane ki suruaat waran mala sikhane es karni chahiye ha koyki baccho ko kramanussar waranmala se parichit karana chahiye nahi koyki unko sunana bolana padhana accha lagata hai likhana muskil lagata hai
ReplyDeleteबच्चे शुरुआत में अपनी मातृभाषा का प्रयोग अधिक आसानी से करते हैं। एक ही कक्षा में कई तरह के मातृभाषा के बच्चे मौजूद हो सकते हैं। हमें बहुभाषिकता को चुनौती के रूप में नहीं लेना चाहिए बल्कि इसे एक संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों में या किसी भी जीव में अपनी भाषा को सीखना और बोलना,समझना एक नैसर्गिक गुण है। उसी प्रकार हमारे बच्चे भी माता, पिता,परिवार एवम आसपास से प्रथम चरण के भाषाई विकास को पूर्ण करते हैं।बच्चा जब विद्यालय में आता है तो वह अपने साथ अपनी भाषा का सम्पूर्ण ज्ञान लेकर आता।फलतः हमें विद्यालय में भी उसे स्वतन्त्र वातावरण देकर उसकी भाषा के साथ विद्यालयी भाषा को जोड़ते हुए ही सीखने-सिखाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।तभी बच्चों का सर्वांगीण विकास सम्भव है। Purushottam Kumar,Teacher,UMS SANKI,Patrata,Ramgarh.
ReplyDeleteबच्चों में या किसी भी जीव में अपनी भाषा को सीखना और बोलना,समझना एक नैसर्गिक गुण है। उसी प्रकार हमारे बच्चे भी माता, पिता,परिवार एवम आसपास से प्रथम चरण के भाषाई विकास को पूर्ण करते हैं।बच्चा जब विद्यालय में आता है तो वह अपने साथ अपनी भाषा का सम्पूर्ण ज्ञान लेकर आता।फलतः हमें विद्यालय में भी उसे स्वतन्त्र वातावरण देकर उसकी भाषा के साथ विद्यालयी भाषा को जोड़ते हुए ही सीखने-सिखाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।तभी बच्चों का सर्वांगीण विकास सम्भव है।धन्यवाद।।
ReplyDeleteयह सही बात है कि भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने का गुण बच्चों में होता है. कक्षा में एक से अधिक मातृभाषा के बच्चे होते हैं. उन्हें अपनी मातृभाषा में बोलने का अबसर देना चाहिए क्योंकि वे मातृभाषा में आसानी से अपना विचार रख सकता है. अतः बहुभाषी को चुनौति के रूप में नहीं वल्कि एक संसाधन के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए.
ReplyDeleteहां, मैं इस तथ्य से सहमत हूं। । लेकिन ये भी सही है कि जिस तरह जन्म के बाद से ही अपनी मां और परिवार वालों से अपनी मातृ-भाषा को सुन - सुन कर बच्चे स्वाभाविक रूप से जल्दी ही उसे समझने और बोलने लगते हैं, ठीक उसी तरह वे विद्यालय में भी विद्यालय की भाषा का अभ्यास होने पर बोलने और समझने लगेंगे। परंतु तब तक उनकी मातृ-भाषा और बहुभाषिता को हमें स्वीकार करते हुए एवं अन्य बच्चों की मदद लेते हुए आगे बढ़ना होगा।मसलन यदि शिक्षकों को उनकी भाषा समझ न आए तो अन्य बच्चों की या अपने सहयोगी शिक्षकों की मदद से सीखना और सिखाने की प्रक्रिया जारी रखना चाहिए, ताकि भाषा बाधा ना बने। अक्सर झारखंड की अनेक संथाली भाषाओं के साथ बच्चों एवं शिक्षकों में ऐसी स्थिति पैदा होती है, लेकिन ये कभी भी बहुत बड़ी बाधा नहीं रही है हमारे लिए। इसका समाधान हम आपस में,या अन्य कक्षाओं के बच्चों से या अभिभावकों - रसोइयों सभी की मदद से निकल लेते हैं।भाषाओं का यह आदान - प्रदान हमारी भाषा के ज्ञान को समृद्ध बनाता है।
ReplyDeleteबच्चे भाषा जानते है पर वह अनौपचारिक होती है ।बल्कि क्षेत्र विशेष पर निर्भर करता है।उनके अनौपचारिक भाषा जिसे हम मातृ भाषा कहते हैं।उसको स्कूली भाषा से जोड़ा जाना असली चुनौती है।उनके घर की भाषा को सहायक के रूप में लेना है न कि बाधा के रूप में।एक तरह से बहुभाषा को सहर्ष स्वीकार करना है।
ReplyDeleteबच्चे जन्म लेने के पश्चात अपने घर-परिवार में बोली जाने वाली भाषा को ध्यान से ग्रहण कर धीरे-धीरे सभी सदस्यों के द्वारा बोली गई भाषाओं का सम्मिश्रण कर बोलते हैं।अपने परिवेश में विभिन्न खिलौनों से खेलते एवं संवाद करते हैं। उनके लिए विद्यालय, पाठ्य-पुस्तकें एवं शिक्षक अंजान होते हैं। यदि हम शिक्षक बच्चों को उनके भाषा के माध्यम से चित्रों,प्रिटों,तारम्यता,स्वतंत्र पाठन एवं लेखन को बढ़ावा देते रहे तो बच्चों को सीखने की प्रवृत्ति में वृध्दि होती है। स्पष्ट है कि बच्चों में सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। उनमें केवल उत्साह वर्धन तथा सहभागिता की जरुरत है।
ReplyDeleteनिश्चित रूप से हम इस बात का अनुसमर्थन करते हैं कि बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सिखने की एक अनोखी प्रवृति होती है।प्रारंभिक अवस्था में वे अपनी मातृभाषा में बोलना सीखते हैं।साथ ही साथ विभिन्न पारिवारिक,सामाजिक,सांस्कृतिक आदि परिवेश के कारण वे बहुभाषिकता की ओर भी अग्रसर होते जाते हैं।पुनः विद्यालय स्तर पर भी उन्हें नये भाषा को सीखने का अवसर मिलता है।बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteकौशल किशोर राय,
सहायक शिक्षक,
उत्क्रमित उच्च विद्यालय,पुनासी,
शैक्षणिक अंचल:-जसीडीह,
जिला:-देवघर,
राज्य:- झारखण्ड
बच्चों में भाषा सीखने की और भाषा से सीखने की प्रवृत्ति स्वभाविक होती है और यह जन्म से ही अपने माता-पिता,भाई-बहन, आसपास के लोगो से भाषा सीखने लगता है।3 साल की आयु में जो बच्चा बंगाली,तमिल,तेलुगू,मराठी,हिंदी खोरठा,संथाली आदि जितनी भाषाएं अपने परिवार में सीख पाता है।वह विद्यालय में आकर दूसरी भाषा को इतनी आसानी से नहीं सीख सकता ।इसका अर्थ यही है कि बच्चों में प्राकृतिक रूप से ही भाषा को सीखने की होती है।
ReplyDeleteविनय कुमार भारती
म०वि०कण्डाबेर, केरेडारी
The children can learn naturally any language But they Can learn easily their families language and then hindi S. Das St Joseph MS Barmasia Godda
ReplyDeleteबच्चों में या किसी भी जीव में अपनी भाषा को सीखना और बोलना,समझना एक नैसर्गिक गुण है। उसी प्रकार हमारे बच्चे भी माता, पिता,परिवार एवम आसपास से प्रथम चरण के भाषाई विकास को पूर्ण करते हैं।बच्चा जब विद्यालय में आता है तो वह अपने साथ अपनी भाषा का सम्पूर्ण ज्ञान लेकर आता।फलतः हमें विद्यालय में भी उसे स्वतन्त्र वातावरण देकर उसकी भाषा के साथ विद्यालयी भाषा को जोड़ते हुए ही सीखने-सिखाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।तभी बच्चों का सर्वांगीण विकास सम्भव है।
ReplyDeleteBaccho me bhasha sikhane or bhasha ke madhyam se shikhane ki natural prabritti hoti hai isliye bahubhashikata ko chunowti ke rup me nahi lena chahiye balki ese ek sansadhan ke rup ki tarah hi prayog karna chahiye
ReplyDeletePremlata devi
G.M.S Pancha Ormanjhi Ranchi
Bachchon me bhasha sikhane ka maulik gun hota hai.wah pariwar me boli jane wali bhasha aur bade logon dwara boli janewali bhasha ko asani sesikhta hai.Yadi use uski matribjasha me shiksha di day to we sikhne me ruchi lete jain.Hame chahiye ki use vidyalay me uchit wataearan dekar uski bhasha ke sath vidyalayi aur kitabi bhasha ko jodte to unme bhasha ka samyak vikas hoga.
ReplyDeleteबच्चे भाषा जानते है पर वह अनौपचारिक होती है ।बल्कि क्षेत्र विशेष पर निर्भर करता है।उनके अनौपचारिक भाषा जिसे हम मातृ भाषा कहते हैं।उसको स्कूली भाषा से जोड़ा जाना असली चुनौती है।उनके घर की भाषा को सहायक के रूप में लेना है न कि बाधा के रूप में।अपने परिवेश में विभिन्न खिलौनों से खेलते एवं संवाद करते हैं। उनके लिए विद्यालय, पाठ्य-पुस्तकें एवं शिक्षक अंजान होते हैं। यदि हम शिक्षक बच्चों को उनके भाषा के माध्यम से चित्रों,प्रिटों,स्वतंत्र पाठन एवं लेखन को बढ़ावा देते रहे तो बच्चों को सीखने की प्रवृत्ति में वृध्दि होती है। स्पष्ट है कि बच्चों में सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। उनमें केवल उत्साह वर्धन तथा सहभागिता की जरुरत है। Motiur Rahman, UPS CHANDRA PARA,Pakur
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की और भाषा से सीखने की प्रवृत्ति स्वभाविक होती है और यह जन्म से ही पाई जाती है। 3 साल की आयु में जो बच्चा बंगाली तमिल तेलुगू मराठी हिंदी खोरठा संथाली आदि जितनी भाषाएं अपने परिवार में सीख पाता है वह विद्यालय में आकर दूसरी भाषा को इतनी आसानी से नहीं सीख सकता ।इसका अर्थ यही है कि बच्चों में प्राकृतिक रूप से ही भाषा को सीखने की होती है।
ReplyDeleteबच्चे अपनी मातृभाषा को आसानी से सीख लेता है और विद्यालय में आ कर न ई भाषा का प्रयोग करने में कठिनाई होती है। अतः उसे उनके अपने भाषा में बात करने की छूट दी जाती है तो वह अपनी बात कहने में संकोच नहीं करता है।उसका आत्मविश्वास बढ़ता है।
ReplyDeleteBhasha sikhne ke gunn Bachhon main swabhawik tour se uooske bhitar moujud rahata hai. Bhasha ko bhasha ke madhyam se sikhaya bhi jata hai.
ReplyDeleteबच्चों मे भाषा सिखने की और भाषा के माध्यम से सीखने की प्रवृति स्वाभाविक होती है। प्रारंभिक अवस्था में वे अपनी मातृभाषा मे बोलना सीखते हैं उसके बाद विद्यालय पहुँचने पर विद्यालय की भाषा से अवगत होते हैं।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की और भाषा के माध्यम से सीखने की प्रवृति स्वाभाविक होती है। प्रारंभिक अवस्था में वे अपनी मातृभाषा में बोलना सीखते हैं उसके बाद विद्यालय पहुंचने पर विद्यालय की भाषा से अवगत होते हैं।
Deleteभाषा संचार का माध्यम है। इस बात में कोई सन्देह नहीं है।यह बातचीत करने और दूसरों तक संदेश भेजने की एक स्वाभाविक मानवीय प्रवृति है।
ReplyDeleteसीखने के प्रारंभिक वर्षों में बाहरी दुनिया के बारे में बच्चों की सोच को आकार प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उनकी क्षमताओं, रुचियों, मूल्यों और दृष्टिकोण को समझने के लिए एक सूक्ष्म लेकिन मजबूत शक्ति है।
बच्चों की अपनी भाषाएँ उनके सामाजिक और शैक्षणिक संदर्भ को गति देने का कार्य करती है। यह समझना यहां अति आवश्यक है कि चाहे कोई भी भाषा हो सभी एक ही प्रणाली का अनुसरण करती है
दिलचस्प बात यहाँ यह है कि बच्चों को मातृभाषा( माँ की भाषा) में दक्षता 3 वर्ष की उम्र में बहुत हद तक प्राप्त हो जाती है। और यही मातृभाषा ही अन्य भाषा को सीखने का माध्यम बनती है।
अतः हम कह सकते हैं कि बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है।
बच्चे मां की भाषा से ही अन्य भाषा सीख सकतेहै
ReplyDeleteहम जानते है कि विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे बहुभाषिकता होते है वे अपने -अपने मातृभाषा को सीख कर आते है और विद्यालयी भाषा को सीखने की आवश्यकता होती है । ये सच है कि बच्चों में भाषा सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है । वे अपने मातृभाषा के माध्यम से शिक्षण अधिगम के क्षेत्र में भाषायी कौशलें (LSRW) का विकास कर आसानी से विद्यालयी भाषाएं सीखने का प्रयास करते है । मैं बहूभाषिकता की महत्ता को समझ कर कक्षा में उपयोग करेंगे और बच्चों को अपने परिवेश की सांस्कृतिक और भाषिक विविधता के प्रति संवेदनशील बनायेंगे । अगर बच्चों को विद्यालयी भाषा समझ में न आये तो अन्य सहयोगी बच्चे या शिक्षकों की मदद से सिखाने की प्रक्रिया जारी रखेंगे । अंतत: बच्चे भाषा को सीख लेंगे । .... धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुना राम सोरेन (स.शि.)
प्रा.वि.भैरवपुर,धालभूमगढ़ ।
पूर्वी सिंहभूम,झारखंड ।
जैसा कि हम जानते हैं भाषा दूसरों तक विचारों को पहुंचाने की योग्यता है,जिसमें विचार-भाव के आदान-प्रदान के प्रत्येक साधन सम्मिलित किए जाते हैं;जैसे--लिखित,बोले गए,
ReplyDeleteसांकेतिक,मौखिक इंगित,कला आदि।
बच्चे जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं पर्यावरण की हर वस्तुओं से अपने जरूरत मुताबिक आवश्यक संवाद के जरिए अपने विचारों को पहुंचाने का प्रयास करता है तथा साधन के रूप में भाषा का ही सहारा लेता है जो बच्चों में एक स्वाभाविक प्रवृत्ति ही है।
बच्चे बात ना करने की अवस्था के बाद साधारण उच्चारण करने की अवस्था तक की कठिन कार्य को शारीरिक हरकतों तथा स्वयं के (अमानक)शब्दों के सहारे पूरा करते हैं जो भाषा सीखने की एक प्रवृत्ति है।
बच्चों में भाषा सीखने की जन्मजात क्षमता होती है। बच्चे एक निश्चित समय में अनुकरण द्वारा भाषा नियम जानकर धीरे-धीरे सही वाक्य बनाना सीख जाते हैं और नए नए शब्द भी सीख जाते हैं।
इस तरह से बच्चे भाषा को अर्जन करते हैं आसपास के वातावरण तथा आसपास के लोगों के माध्यम से ही |
बच्चे भाषा के माध्यम से भाषा अधिगम के द्वारा पढ़ना-लिखना सीखते हैं। भाषा अधिगम में किताब और व्याकरण की जरूरत पड़ती है।
धीरे-धीरे बच्चों में भाषा की लिपि से परिचित होने के बाद अपने परिवेश में उपलब्ध लिखित भाषा को पढ़ने-समझने की जिज्ञासा उत्पन्न होने लगती है। भाषा सीखने की इस प्रक्रिया के मूल में बच्चों के बारे में यह अवधारणा है कि बच्चे दुनिया के बारे में अपनी समझ और ज्ञान का निर्माण स्वयं करते हैं। यह निर्माण किसी के सिखाए जाने या जोर जबरदस्ती से नहीं बल्कि बच्चों के स्वयं के अनुभवों और आवश्यकताओं से होता है।
इस तरह हम कह सकते हैं कि बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है।
बच्चों मे भाषा सिखने एवं भाषा के माध्यम से लिखने की प्रवृति स्वभाविक होती है । बच्चे जैसे परिवेश में पलते- बढ़ते हैं वैसी भाषा का विकास सम्भव है। अगर कोई भाषा की पूर्ण जानकारी रखता है तो वह सभी क्षेत्रों में दक्ष होगा।
ReplyDeleteबच्चे शुरुआत में अपनी मातृभाषा का प्रयोग अधिक आसानी से करते हैं। एक ही कक्षा में कई तरह के मातृभाषा के बच्चे मौजूद हो सकते हैं। हमें बहुभाषिकता को चुनौती के रूप में नहीं लेना चाहिए बल्कि इसे एक संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की और भाषा से सीखने की प्रवृत्ति स्वभाविक होती है और यह जन्म से ही पाई जाती है। 3 साल की आयु में जो बच्चा बंगाली तमिल तेलुगू मराठी हिंदी खोरठा संथाली आदि जितनी भाषाएं अपने परिवार में सीख पाता है वह विद्यालय में आकर दूसरी भाषा को इतनी आसानी से नहीं सीख सकता ।इसका अर्थ यही है कि बच्चों में प्राकृतिक रूप से ही भाषा को सीखने की होती है
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा सीखने की प्रवृत्ति स्वाभाविक होती है।बच्चा जिस परिवार में जन्म लेता है उस परिवार की मातृभाषा वह स्वयं सीख लेता है। बाद में विद्यालय में जाने के उपरांत अन्य भाषाओं को सीखता है।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है| बच्चा जन्म से ही अपने परिवार, समाज विद्यालय, के भाषा स्वाभाविक रूप से सिखता है| पढ़ने- लिखने से भी भाषा सिखता है|
ReplyDeleteChildren can use their mothertoungelanguage very easily in the classes. There are different types of students who can speak their mothertounge.Also children speaks their Regional language. We should not take challenges about the BAHUBAHSHIKTA.
ReplyDeleteकथन से सहमत हूं। बच्चे मां की भाषा को बहुत जल्दी सीख लेता है।
ReplyDeleteKathan se sahmat hun.bachche maa ki bhasha ko bahut jaldi Sikh leta hai.
Deleteइस कथन से सहमत हूं। बच्चे मां की भाषा को बहुत जल्दी ही सीख लेता है।
ReplyDeleteYah bat aksharshah satya hai ki bachche bhasha sikhne ewam bhasha ke madhyam se sikhne me swabhawik rup se nipun hote hai.unke is anopcharik bhasha ki sahayta se unhe opcharik bhasha se asani se joda ja sakta hai.
ReplyDeleteAnjani Kumar Choudhary 8809058368
ReplyDeleteहां, मैं इस तथ्य से सहमत हूं। । लेकिन ये भी सही है कि जिस तरह जन्म के बाद से ही अपनी मां और परिवार वालों से अपनी मातृ-भाषा को सुन - सुन कर बच्चे स्वाभाविक रूप से जल्दी ही उसे समझने और बोलने लगते हैं, ठीक उसी तरह वे विद्यालय में भी विद्यालय की भाषा का अभ्यास होने पर बोलने और समझने लगेंगे। परंतु तब तक उनकी मातृ-भाषा और बहुभाषिता को हमें स्वीकार करते हुए एवं अन्य बच्चों की मदद लेते हुए आगे बढ़ना होगा।मसलन यदि शिक्षकों को उनकी भाषा समझ न आए तो अन्य बच्चों की या अपने सहयोगी शिक्षकों की मदद से सीखना और सिखाने की प्रक्रिया जारी रखना चाहिए, ताकि भाषा बाधा ना बने। अक्सर झारखंड की अनेक संथाली भाषाओं के साथ बच्चों एवं शिक्षकों में ऐसी स्थिति पैदा होती है, लेकिन ये कभी भी बहुत बड़ी बाधा नहीं रही है हमारे लिए। इसका समाधान हम आपस में,या अन्य कक्षाओं के बच्चों से या अभिभावकों - रसोइयों सभी की मदद से निकल लेते हैं।भाषाओं का यह आदान - प्रदान हमारी भाषा के ज्ञान को समृद्ध बनाता है।
स्वभाविक होती है और यह जन्म से ही पाई जाती है। 3 साल की आयु में जो बच्चा बंगाली तमिल तेलुगू मराठी हिंदी खोरठा संथाली आदि जितनी भाषाएं अपने परिवार में सीख पाता है वह विद्यालय में आकर दूसरी भाषा को इतनी आसानी से नहीं सीख सकता ।इसका अर्थ यही है कि बच्चों में प्राकृतिक रूप से ही भाषा को सीखने की होती है।
ReplyDeleteबच्चों में प्रारंभिक से ही भाषा ज्ञान होता है जो निरंतर जीवन पर्यन्त चलता रहता है।
ReplyDeleteबच्चे भाषा अपने परिवार,समाज,पर्यावरण इत्यादि से सुगमता पूर्वक सीख लेते हैं। सीखने की प्रक्रिया के आधार पर बच्चो का भाषाई विकास निर्भर करती है।
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ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की और भाषा से सीखने की प्रवृत्ति स्वभाविक होती है और यह जन्म से ही पाई जाती है। 3 साल की आयु में जो बच्चा बंगाली तमिल तेलुगू मराठी हिंदी खोरठा संथाली आदि जितनी भाषाएं अपने परिवार में सीख पाता है वह विद्यालय में आकर दूसरी भाषा को इतनी आसानी से नहीं सीख सकता ।इसका अर्थ यही है कि बच्चों में प्राकृतिक रूप से ही भाषा को सीखने की होती है।
ReplyDeleteबच्चों में प्रारंभिक से ही भाषा ज्ञान होता है जो निरंतर जीवन पर्यन्त चलता रहता है।
God ka vardan hai bachchon me bhasha sikhne me kushalata. Bachchon asani se koi v bhasha praranmbhik abasta me sikh lete hai.
ReplyDeleteबच्चे अपनी मातृभाषा को समाज के परिवेश में रहकर आसानी से सीख लेते हैं,और विद्यालय में नई भाषा का प्रयोग करने में कठिनाई बच्चों को होती है। अतः उसे उनके आपने भाषा में बात करने की छूट दी जाती है तो वह अपनी बात कहने में संकोच नही करता है,उसका आत्मविश्वास बढ़ता है
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ReplyDeleteबिलकुल बच्चों मे भाषा सीखने अपने परिवेश के प्रति ज्यादा ही उत्सुकता रहती है इसी लिए बच्चे जल्दी ही नए भाषा को भलीभांति सीख लेते हैं।
ReplyDeleteछोटे बच्चे परिवार में बोले जाने वाले भाषा के द्वारा आसानी से क्लास में संप्रेषण कर लेते हैं।
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ReplyDeleteबच्चे किसी भी भाषा को अपने परिवार एवं परिवेश से सीखकर विद्यालय पहुंचते हैं।विद्यालयी भाषा को भी उनकी अन्य मातृभाषाओं के साथ संलग्न कर सहजता से सीखाया जा सकता है।बच्चे भाषा सीखने के प्रति बहुत हीं उत्साहित होते हैं।अध्यापक को भाषा सीखाने के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
ReplyDeleteChildren learn languages form their environment. If we give them their social environment at school they feel friendly and learn happily
ReplyDeleteChildren learn languages from his family and environment where they express their feeling their languages.If we teachers give them free and social environment at school they can learn happily and frindely.we need to understand the problem of children.
ReplyDeleteLanguage is the most important midiam to teach and learn. Children can learn easily any subject or any topic by using their own language. Really language is God gifted award to learn study material.
ReplyDelete.........SHAMBHU SHARAN PRASAD
....MS KUSUNDA MATKURIA DHANBAD 1
बच्चों में एक प्रवृत्ति होती है कि वे अपने माता-पिता परिवार के सदस्यों से मातृभाषा सिखते है बाद में अड़ोस-पड़ोस से दूसरे भाषा भी सिखते है।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की एक स्वाभाविक प्रविर्ती होती है जिसमें परिवेश के अनुसार सीखते है। बच्चे अपने माता पिता और उसके बाद स्कूल के परिवेश के अनुसार भाषा सीखते हैं।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की स्वाभाविक प्रवृति होती है जिसे वे अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों, और सामाजिक परिवेश से सुनकर और बोलकर सीखते हैं।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है|प्रारंभिक अवस्था में बच्चे अपने परिवार से मातृभाषा से परिचित होते हैं,फिर परिवेश से अपनी मातृभाषा को समृद्ध करते हैं।साथ ही बच्चे बहुभाषिकता की ओर अपना कदम बढ़ाना शुरू करते हैं।ये बच्चों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है।पुनः बच्चा जब विद्यालय आता है तब वे अपनी मातृभाषा के माध्यम से ही अपने विचारों की अभिव्यक्ति विभिन्न गतिविधियों में व्यक्त करता है।धीरे-धीरे विद्यालय के परिवेश से परिचित होते ही या विद्यालय के बाहर जब उसे भाषा सीखने के विभिन्न माध्यमों से जुड़ने का मौका मिलता है तब वह अपनी भाषा या बहुभाषिकता का और बेहतर ढंग से विकास कर पाते हैं। ऐसा उनके स्वाभाविक प्रवृत्ति के कारण होता है।
ReplyDeleteबच्चे जन्म लेने के पश्चात अपने घर-परिवार में बोली जाने वाली भाषा को ध्यान से ग्रहण कर धीरे-धीरे सभी सदस्यों के द्वारा बोली गई भाषाओं का सम्मिश्रण कर बोलते हैं।अपने परिवेश में विभिन्न खिलौनों से खेलते एवं संवाद करते हैं। उनके लिए विद्यालय, पाठ्य-पुस्तकें एवं शिक्षक अंजान होते हैं। यदि हम शिक्षक बच्चों को उनके भाषा के माध्यम से चित्रों,प्रिटों,तारम्यता,स्वतंत्र पाठन एवं लेखन को बढ़ावा देते रहे तो बच्चों को सीखने की प्रवृत्ति में वृध्दि होती है। स्पष्ट है कि बच्चों में सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। उनमें केवल उत्साह वर्धन तथा सहभागिता की जरुरत है। BHANU PRATAP MANJHI UHS CHIPRI ICHAGARH SERAIKELLA-KHARSWAN JHARKHAND
Deleteबच्चों में नये भाषा सिखने एवं भाषा के माध्यम से सिखने की उत्सुकता होती है। अगर हम चाहते हैं कि वे कोई भाषा सिखे तो उसके अनुरूप वातावरण को ढालने से बच्चों को मदद मिलेगी।
ReplyDeleteयह बात बिल्कुल सही है कि भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने का गुण बच्चों में होता है। कक्षा में एक से अधिक मातृभाषा के बच्चे होते हैं उन्हें अपनी मातृभाषा के बच्चे होते हैं उन्हें अपनी मातृभाषा में बोलने का अवसर देना चाहिए क्योंकि वे मातृभाषा में आसानी से अपना विचार रख सकता है। अतः बहुभाषी को चुनौती के रूप में नहीं बल्कि एक संसाधन के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए।
ReplyDeleteनिश्चित रूप से इस बात की मैं समर्थन करती हूं की बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने की एक अनोखी प्रवृत्ति होती है प्रारंभिक अवस्था में वे अपनी मातृभाषा में बोलना सीखते हैं साथ ही साथ विभिन्न पारिवारिक, समाजिक, सांस्कृतिक आदि परिवेश के कारण वे बहुभाषिकता की ओर अग्रसर हो जाते हैं पुणे विद्यालय स्तर पर भी उन्हें नए भाषा को सीखने का अवसर मिलता है
ReplyDeleteधन्यवाद
हां यह बात सही है कि बच्चों में भाषा सीखने की और भाषा से सीखने की प्रवृत्ति स्वाभाविक होती है। बच्चे जिस परिवेश में जन्म लेते हैं और बड़े होते हैं वहीं की भाषा सुनते हैं और सीखते हैं, तो सीखी हुई भाषा से सीखने में सरलता होती है । परंतु विद्यालय में सीखाने वाली भाषा अलग होती है और बच्चे जल्द समझ नहीं पाते इसलिए उन्हें उनकी भाषा में व्यक्त करने देना चाहिए ।
ReplyDeleteबच्चों में नये भाषा सिखने एवं भाषा के माध्यम से सिखने की उत्सुकता होती है। अगर हम चाहते हैं कि वे कोई भाषा सिखे तो उसके अनुरूप वातावरण को ढालने से बच्चों को मदद मिलेगी।
ReplyDeleteReply
Bilkul Sahi Hai bachho me naye bhasha sikhne evam bhasha k madhyam se sikhne Ki pravriti hoti Hai.jaruri Hai unhe us k anurup mahoul or environment diya jaye..is k madhyam se bachhe swatantra Roop se utsukta k sath jigyasu ho Kar bhasha ko sikhenge.
Deleteमानव की पहली पाठशाला क्रमशः परिवार, समाज व विद्यालय है|परिवार व समाज में मातृभाषा का विकास समयानुसार धीरे -धीरे कर पाता है|तदनुसार विद्यालय परिवेश में आकर नयी भाषा में सामंजन कर सीख कर उत्तरोत्तर विकास कर पाता है|यह प्रक्रिया सभी व्यक्ति सीखकर आगे बढ़ पाए हैं |
ReplyDeleteHan ya bat sahi hai ki bacchon me bhasha sikhane aur bhasha ke madhyam se shikhabe ki natural pravritti hoti hai isliye bahubhashikata ko chunawti ke rup me nahi lena chahiye balki ese ek sansadhan ke tarah hi prayog karna chahiye.
ReplyDeleteHaan ,bacchon me bhasha sikhne aur bhasha ke madhyam se sikhne ki pravritti hoti hai.bacche jab school aate hain to we apni ghar ki bhasha ka prayog kerte hain.baad me unhe dheere dheere school ki bhasha ko samajh me aane Lahti hai,aur we shikhsan adhigam me apni bhumika acche se nibhate hain
ReplyDeleteनिश्चित रूप से इस बात की मैं समर्थन करता हूं, की बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने की एक अनोखी प्रवृत्ति होती है। बच्चा जब पैदा होता है उसके बाद से हीं अपने आसपास की आवाज के प्रति साथ ही अपनी मां के सवालों का जवाब स्वरूप तरह-तरह की आवाजें निकाल कर प्रतिक्रिया देता है।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा को सीखने तथा भाषा के माध्यम से सीखने की एक नैसर्गिक गुण होते हैं। पहले तो वो अपने मात्रृभाषा का ज्ञान लेकर विद्यालय आते हैं मातृभाषा के सहारे दूसरी भाषा को सीखने लगते हैं।
ReplyDeleteBachhe me apni matribhasa sikhne abm samajne ki swavabik prabritti hoti hai.iske alawa wo haw bhaw abm gesture se bhi apni samajh bana letae hain . Yae janmajaat tendency hai baad me school jane lag jate hain to anya bhasa ki v samajh biksit kar lete hain .
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की प्रवृत्ति स्वभाविक होती है वह अपने आसपास के परिवेश से अनेक भाषा को सीखते हैं विद्यालयी परिवेश में अन्य भाषाओं को सिखाने में शिक्षक की अहम भूमिका होती है अतः बच्चों को स्वतंत्र वातावरण प्रदान कर विद्यालय भाषाओं को जोड़ते हुए सीखने सिखाने की प्रक्रिया करनी चाहिए ,जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो पाए।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की प्रक्रिया उसके शैशवास्था से ही शुरू हो जाती है बच्चों में भाषा सीखने की प्रवृत्ति उसके घर के माहौल से सर्व प्रथम मिलती है तथा आसपास के परिवेश इसे और अधिक बेहतर एवं स्वभाविक तरीके से सीखने में मदद करता है और उनके सीखने में भाषा की अहम भूमिका होती है जिस के जरिए वे अपने इच्छा और भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम होंगे। अतः हम कह सकते हैं कि भाषा बच्चों में सीखने सीखाने के सर्वागिण विकास में सहायक है।
ReplyDeleteBacchon Mein Bhasha sikhane ki swabhav pravritti Hote Hue Apne parivesh ke Jyada Bhasha sighted hai
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की प्रवृत्ति स्वाभाविक होता है|वह जिस समाज में रहता है, भाषा सीखता है|घर में बोली जाने वाली भाषा पहले सीखता है|जब विद्यालय जाता है तब बहुभाषी हो जाता है|
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की प्रवृत्ति स्वाभाविक होती है ,और यह जन्म से होती है ।शुरुआत में बच्चे अपनी मातृभाषा से सीखते हैं ,और कालांतर में उनमें बहुभाषिकता का विकास होता है।
ReplyDeleteये बात बिल्कुल सत्य है कि बच्चों मैं भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रबृत्ति होती है।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की प्रवृत्ति स्वाभाविक होती है। प्रारंभिक अवस्था में वे अपनी मातृभाषा में बोलना सीखते हैं, उसके बाद विद्यालय में पहुंचने पर विद्यालय की भाषा से अवगत होते हैं।
Deleteबच्चों में भाषा सीखने की और भाषा से सीखने की प्रवृत्ति
ReplyDeleteस्वाभाविक होती है और यह जन्म से ही पाई जाती है 3 साल की आयु में जो बच्चा पंजाबी बंगाली तमिल तेलुगू हिंदी मराठी खोरठा संताली जितनी भाषाएं है जो अपने परिवार में सीख पाता है विद्यालय में आकर दूसरी भाषा को इतनी आसानी से नहीं सीख सकता इसका अर्थ यही है कि बच्चों में प्राकृतिक रूप से ही भाषा को सीखने की होती है।
बच्चों में भाषा सीखने की ओर भाषा से सीखने की प्रवृत्ति स्वभाव एक होती है और यह जन्म से ही पाई जाती है।3 साल के आयु में जो बच्चा पंजाबी बंगाली तमिल तेलुगू हिंदी मराठी खोरठा संताली जितने बस आए हैं जो अपने परिवार में सीख पाता है। विद्यालय में आकर दूसरी भाषा को इतनी आसानी से नहीं सीख सकता इसका अर्थ यही है कि बच्चन में प्राकृतिक रूप से भाषा को सीखने की होती है।
ReplyDeleteBacche shuruaat me aapni matribhasha ka prayog adhik aasani se karte hain. Ek hi kaksha me kai tarah kr matiribhasha ke bacche moujud ho sakte hain hum he bahubhasikta ko chonouti ke rup me nahi lena chaiye balki ise ek sansadhan ke tour par istemal karna chaiye.
ReplyDeleteबच्चों में भाषा शिक्षण की नैसर्गिक प्रवृति होती है\ किसी बड़े की तुलना में बच्चे अधिक तेजी से अन्य भाषाओं को अपना लेते हैं यदि उनकी प्रासंगिकता की समझ अपनी मातृभाषा से समझ पायें |
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है|प्रारंभिक अवस्था में बच्चे अपने परिवार से मातृभाषा से परिचित होते हैं,फिर परिवेश से अपनी मातृभाषा को समृद्ध करते हैं।साथ ही बच्चे बहुभाषिकता की ओर अपना कदम बढ़ाना शुरू करते हैं।ये बच्चों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है।पुनः बच्चा जब विद्यालय आता है तब वे अपनी मातृभाषा के माध्यम से ही अपने विचारों की अभिव्यक्ति विभिन्न गतिविधियों में व्यक्त करता है।धीरे-धीरे विद्यालय के परिवेश से परिचित होते ही या विद्यालय के बाहर जब उसे भाषा सीखने के विभिन्न माध्यमों से जुड़ने का मौका मिलता है तब वह अपनी भाषा या बहुभाषिकता का और बेहतर ढंग से विकास कर पाते हैं। ऐसा उनके स्वाभाविक प्रवृत्ति के कारण होता है।
ReplyDeleteJagannath Bera.
Oriya MS Arong, Baharagora, East Singhbhum.
किसी बड़े की तुलना में बच्चे अधिक तेजी से अन्य भाषाओं को अपना लेते हैं यदि उनकी प्रासंगिकता की समझ अपनी मातृभाषा से समझ पायें |
ReplyDeleteDINESH KUMAR DANGI
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है|प्रारंभिक अवस्था में बच्चे अपने परिवार से मातृभाषा से परिचित होते हैं,फिर परिवेश से अपनी मातृभाषा को समृद्ध करते हैं।साथ ही बच्चे बहुभाषिकता की ओर अपना कदम बढ़ाना शुरू करते हैं।ये बच्चों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है।पुनः बच्चा जब विद्यालय आता है तब वे अपनी मातृभाषा के माध्यम से ही अपने विचारों की अभिव्यक्ति विभिन्न गतिविधियों में व्यक्त करता है।धीरे-धीरे विद्यालय के परिवेश से परिचित होते ही या विद्यालय के बाहर जब उसे भाषा सीखने के विभिन्न माध्यमों से जुड़ने का मौका मिलता है तब वह अपनी भाषा या बहुभाषिकता का और बेहतर ढंग से विकास कर पाते हैं। ऐसा उनके स्वाभाविक प्रवृत्ति के कारण होता है।
बच्चों में भाषा सीखने की प्रवृत्ति नैसर्गिक होती है। सामान्यतः यह पाया जाता है कि बच्चा पानी के लिए मम बोलता है। बच्चों की जब यह नैसर्गिक प्रवृत्ति को उसके परिवेश द्वारा बल दिया जाता है तो वह मातृभाषा सीखता है। मातृभाषा का ज्ञान होने पर उसके सोचने ,विचारने ,समझने आदि की क्षमता विकसित होती है। और यह क्षमता अन्य भाषा में बोले जाने वाले शब्दों वाक्य एवं उपयोग को समझने का प्लेटफार्म प्रदान करता है। जिसकी सहायता से वह मातृभाषा रूपी उपकरणों के माध्यम से अन्य भाषाएं सीख पाने में समर्थ होता है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबच्चों में अपनी भाषा को सीखना ,बोलना और समझना एक नैसर्गिक गुण है। उसी प्रकार हमारे बच्चे भी माता, पिता,परिवार एवम आसपास से प्रथम चरण के भाषाई विकास को पूर्ण करते हैं।बच्चा जब विद्यालय में आता है तो वह अपने साथ अपनी भाषा का सम्पूर्ण ज्ञान लेकर आता।हमें विद्यालय में भी उसे स्वतन्त्र वातावरण देकर उसकी भाषा के साथ विद्यालयी भाषा को जोड़ते हुए ही सीखने-सिखाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।तभी बच्चों का सर्वांगीण विकास सम्भव है।
ReplyDeleteHa bachcho me bhasha sikhne tatha bhasha ke madhyam se sikhne ki swabhawik prabriti hoti hai.Bhasha ke madhyam se bachche kisi bhi chij ko aasani se tatha jaldi sikh lete hai.
ReplyDeleteये सच कहा गया कि बड़ो की तुलना में बच्चे भासा जल्द सीखते है। उनका बुद्धि तीब्र होती है
ReplyDeleteहम जानते हैं कि बच्चों मे भाषा सिखने कि स्वभाविक प्रवृत्ति पायी जाती है, जो भाषा उसके आस पास मे बोली जाती है उसे विद्यालय मे दाखिला लेने से पूर्व ही स्वभाविक रुप से सीख लेता है, उसके घर की सीखी हुई भाषा के सहयोग से हम स्कूल की भाषा सिखाने मे कामयाब होते हैं।
ReplyDeleteI'm also agree with this statement.
ReplyDeleteहम जानते हैं कि बच्चों में भाषा सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है जो वह अपने आसपास में बोली जाती है विद्यालय में आसानी से बोलता है और संप्रेषण करता है।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की प्रवृत्ति स्वभाविक होते बच्चे विद्यालय आते हैं अपनी मातृभाषा के साथ और भी बहुभाषी हो जाते हैं आवश्यकता को बच्चों में संसाधन के रूप में कार्य करता है झारखंड के परिपेक्ष में बच्चा अपने साथ को लेकर आता है बाद में टारगेट लैंग्वेज हिंदी सीखता है।
ReplyDeleteBacchon Mein Bhasha sikhane ki aur Bhasha se a sikhane ki Prakriti e swabhavik hoti hai hi 3 varsh ki Umra say hi hi bacche Anek Prakar ki ki bhasha Vidyalay mein Main main sakte hain Vidyalay mein Anek Tarah Ki ki vibhinn bhashaen ko bolane wale bacche Aate Hain Jinse a Win-Win Hassan bacche Mein sikhane ki pravritti jagrit hoti hai
ReplyDeleteबच्चो में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है और यह जन्म से ही अपने माता-पिता,भाई-बहन,आस-पास के लोगो से भाषा सीखने लगते है।उसे अपने भाषा में बात करने की छूट दी जाती है तो वह अपनी बात कहने में सकोंच नहीं करता है।उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। अतः बच्चो की मातृभाषा ही अन्य भाषा को सीखने का माध्यम बनती है।
ReplyDeleteभाषा अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है।हम अपनी सोच, कल्पना, भावना को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा काम प्रयोग करते हैं।एक बच्चा अपने माता-पिता, भाई-बहन,सगे संबंधियों के साथ समय बिताते हुए अपनी मातृभाषा से सहज रूप से जुड़े जाता है।धीरे-धीरे वह अपनी भावनाओं को अपनी मातृभाषा में व्यक्त करने लगता है।अपने आसपास के वातावरण में मौजूद विभिन्न वस्तुओं से वह जुड जाता है।घर एवं समाज में होने वाली विभिन्न गतिविधियों में शामिल होकर, स्वाभाविक रूप से अपनी मातृभाषा का विकास करता है।ऐसा केवल दुसरों का अनुस्रवण एवं अनुसरण से संभव हो पाता है।
ReplyDeleteबच्चे जब विद्यालय आते हैं तो, अपनी एक समृद्ध मातृभाषा लेकर आते हैं।उनकी मातृभाषा विद्यालय में पढ़ाती जाने वाली भाषा से मिलती जुलती हो सकती है या मिलती जुलती नहीं भी हो सकती है।कक्षा में दुसरे बच्चों की मातृभाषा भी भिन्न भिन्न हो सकती है।यहां शिक्षक को बहुत ही सावधानी से प्रत्येक बच्चे की भावनाओं का ध्यान रखते हुए सिखाती जाने वाली नयी भाषा की ओर अग्रसर होने की आवश्यकता होती है।बच्चे अपनी मातृभाषा में बहुत कुछ सीख कर आते हैं।उन्हें सर्वप्रथम अपनी मातृभाषा में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का पूर्ण अवसर प्रदान करना श्रेयस्कर होगा।उन्हें अधिक से अधिक बोलने काम अवसर मिलना चाहिए।स्थानीय कहानी, कविताएं, लोकगीत, संगीत की दुनिया में बच्चों को ले जाना श्रेयस्कर होगा।धीरे -धीरे शिक्षक बच्चों को बच्चों की मातृभाषा के माध्यम से श्री भाषा की ओर अग्रसर करें।बहुत जल्द ही बच्चे श्री भाषा से जुडते चले जायेंगे।
इस तरह हम पाते हैं कि भाषा सीखने एवं भाषा से सीखने में मातृभाषा एक सशक्त माध्यम काम करती है।
अनिल तिवारी
सहायक शिक्षक
रा म विद्यालय दुलदुलवा
मेराल, गढवा, झारखंड
प्रत्येक बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की गुण पहले से ही मौजूद होता है.पर भारत एक बहुभाषी देश होने के कारण बिभिन्न प्रकार की समस्या आती है जिसे हम चुनोतियों की तरह लेकर समाधान निकाल सकते हैं. बहुभाषा को संसाधन के रूप में उपयोग कर हम बच्चों की सरवांगीन विकास कर सकते हैं.
ReplyDeleteBochchon me bhasha ki sour bhasha ke madhyam se sikhne ki pravriti hoti hai.Prarmbhik abastha me woha matri bhasha me bolna sikhte hain uske baad vidyalay me vidyalay ki bhasha se parichit hote hain.
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की स्वभाविक प्रवृत्ति होती है जिसमें परिवेश के अनुसार सीखते है।बच्चे अपने माता-पिता और उसके बाद स्कूल के परिवेश के अनुसार भाषा सीखते है ।
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ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने या भाषा के माध्यम से सीखने की एक स्वाभाविक और नैसर्गिक प्रवृति होती है।शुरुआती दौर में ही बच्चे पारिवारिक परिवेश में ही ध्वन्यात्मकता की पहचान करना सीखने लगता है फिर वह तोतली बोली में खुद के परिवेश से अपनी मातृभाषा की बोली/शब्दों का संग्रह अपने मनमस्तिष्क में कर लेते हैं।इसी मातृभाषा और घर की बोली की समृद्धि के साथ वे विद्यालयी भाषा को सीखने के लिए आगे बढ़ते हैं।इसमें हमें उनकी मदद करने की आवश्यकता है। धन्यवाद
ReplyDeleteबच्चों में या किसी भी जीव में अपनी भाषा को सीखना और बोलना,समझना एक नैसर्गिक गुण है। उसी प्रकार हमारे बच्चे भी माता, पिता,परिवार एवम आसपास से प्रथम चरण के भाषाई विकास को पूर्ण करते हैं।बच्चा जब विद्यालय में आता है तो वह अपने साथ अपनी भाषा का सम्पूर्ण ज्ञान लेकर आता।फलतः हमें विद्यालय में भी उसे स्वतन्त्र वातावरण देकर उसकी भाषा के साथ विद्यालयी भाषा को जोड़ते हुए ही सीखने-सिखाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।तभी बच्चों का सर्वांगीण विकास सम्भव है
ReplyDeleteयह बात बिल्कुल ठीक है कि बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने का God gift गुण होता है।
ReplyDeleteबच्चे शुरुआत में अपनी मातृभाषा का प्रयोग अधिक आसानी से करते हैं। एक ही कक्षा में कई तरह के मातृभाषा के बच्चे मौजूद हो सकते हैं। हमें बहुभाषिकता को चुनौती के रूप में नहीं लेना चाहिए बल्कि इसे एक संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए। ups hraiya Jay parkash singh
बच्चे अपने घर में बोली जाने वाली भाषा को आसानी से सीख लेते हैं, पर जब वे विद्यालय आते हैं तो नई भाषा के प्रयोग करने में कठिनाई महसूस करते हैं|अतः उन्हें अपने भाषा में बात करने की छूट दी जाती है तो वह अपनी बात कहने में संकोच नहीं करता है|उसका आआत्मविश्वास बढ़ता है|
ReplyDeleteBachchon me bhasha sikhne ki swabhavik pravirti hoti hai. Bachche ke vidyalaya me aane ke baad uski apni bhasha se vidyalaya ki bhasha ko jorte huye dhire dhire sikhane ka prayaas karna chahiye. Tabhi bachchon ka sarvangin vikaas sambhav hoga.Isse sikhne ke prati unki ruchi bhi badhegi.
ReplyDeleteबच्चे अपने घर में बोली जाने वाली भाषा आसानी से सीखते हैं,पर जब वह विद्यालय आते है तो उसे कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है! इसलिए उसे अपनी भाषा में बात करने की छूट दी जानी चाहिए!इससे सभी बच्चे अपनी बातों को बेझिझक रख सकेंगे और अलग-अलग भाषा की समझ भी उसे विकसित होगी! जिससे उनका सर्वांगीण विकास संभव हो पाएगा! जो आगे चलकर उसके लिए वरदान साबित हो सकता है! योगानंद प्रसाद सिंह, प्रभारी प्रधानाध्यापक, मध्य विद्यालय कोरका ,अंचल- पथरगामा!जिला-गोड्डा!(झारखंड)
ReplyDeleteनिश्चित रूप से हम इस बात का अनुसमर्थन करते हैं कि बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सिखने की एक अनोखी प्रवृति होती है।प्रारंभिक अवस्था में वे अपनी मातृभाषा में बोलना सीखते हैं।साथ ही साथ विभिन्न पारिवारिक,सामाजिक,सांस्कृतिक आदि परिवेश के कारण वे बहुभाषिकता की ओर भी अग्रसर होते जाते हैं।पुनः विद्यालय स्तर पर भी उन्हें नये भाषा को सीखने का अवसर मिलता है।बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteकृष्ण कुमार चौधरी
सहायक शिक्षक,
उस्म बगरूडी, नारायणपुर
जिला:-जामताड़ा
राज्य:- झारखण्ड
बच्चों में अपनी भाषा को सीखना और बोलना समझना एक नैसर्गिक गुण है। उसी प्रकार हमारे बच्चे भी माता-पिता परिवार एवं आसपास से प्रथम चरण के भाषाई विकास को पूर्ण करते हैं ।बच्चा जब विद्यालय में आता है तो वह अपने साथ अपनी मातृभाषा का संपूर्ण ज्ञान लेकर आता है। ।इसलिए विद्यालय में भी उसे अपनी भाषा बोलने के लिए स्वतंत्र वातावरण देकर उसकी भाषा के साथ विद्यालय भाषा को जोड़ते हुए सीखने सिखाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए तभी बच्चों का सर्वांगीण विकास संभव है।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा से सीखने की प्रवृति स्वाभाविक होती है।वे अपने आसपास के परिवेश से अनेक भाषा सीखते हैं ।विद्यालय मे अन्य भाषा को सीखने में शिक्षक की भूमिका होती है।अतः बच्चों को स्वतंत्र वातावरण प्रदान कर विद्यालयी भाषा को जोडृते हुए सीखने-सीखाने की प्रक्रिया करनी चाहिए जिससे बचाचों का सर्वांगिण विकास हो।
ReplyDelete18 December 2021
ReplyDeleteयह सही बात है कि भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने का गुण बच्चों में होता है. कक्षा में एक से अधिक मातृभाषा के बच्चे होते हैं. उन्हें अपनी मातृभाषा में बोलने का अबसर देना चाहिए क्योंकि वे मातृभाषा में आसानी से अपना विचार रख सकता है. अतः बहुभाषी को चुनौति के रूप में नहीं वल्कि एक संसाधन के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए.
Han bacchon mein bhasha sikhane ki swabhavik pravritti Pai jaati hai bacche jab School pahunchte Hain apni matrubhasha ko lekar aate Hain ISI bhasha ke madhyam se Anya bhasha ko sikhane ki pravirty Pai jaati hai vidyalay mein Anya Anya matrabhasha wale bacche Pai jaate Hain bacche Kai prakar ke a bhasha ko Sikh jaate Hain UN bacchon ke bich rahakar yah bacchon ke liye God gift hai
ReplyDeleteSUBHADRA KUMARI
ReplyDeleteRAJKIYAKRIT M S NARAYANPUR
NAWADIH BOKARO
बच्चें स्वभाव से ही जिज्ञासु होते है,और भाषा सीखना उनके स्वयं का गुण है। वे अपने मातृभाषा के साथ शैक्षणिक समझ को विकसित करते हैं। साथ-ही-साथ लक्ष्य भाषा सीखने के लिए मातृभाषा एक सेतु के रूप में काम करता है। भाषा शिक्षण के लिए बच्चों को स्वतंत्र वातावरण देने कि आवश्यकता है। ताकि वह निर्भय होकर रुचि पूर्वक ढंग से सीख सके ।
धन्यवाद
Bacchhe swabhav s hi excited hote h or bhasha sikhna un k swaym ka gun h.
ReplyDeleteजैसे की हम एक शिक्षक होने के नाते सरकारी विद्यालयों में ग्रामीण परिवेश के ज्यादातर शिक्षार्थी विद्यालय में नामांकित होते हैं जहां पर हमें बहुभाषिकता को स्वीकार कर संसाधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं ना कि चुनौती के रूप में एवं भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने/ सिखाने का महत्वपूर्ण अवसर प्राप्त होता है जहाँ बच्चे शुरुआत में अपनी मातृभाषा का प्रयोग अधिक आसानी से करते हैं। एक ही कक्षा में कई तरह के मातृभाषा के बच्चे मौजूद हो सकते हैं। हमें बहुभाषिकता एक संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए।
ReplyDeletePHUL CHAND MAHATO
UMS GHANGHRAGORA
CHANDANKIYARI
BOKARO
हां मैं इस बात से सहमत हूं कि बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वभाविक नैसर्गिक प्रवृत्ति होती है केवल बच्चों के माता-पिता अभिभावकों पड़ोसी एवं हम शिक्षकों को पूर्ण सहयोग करने की जरूरत है
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने का गुण स्वाभाविक होता है अर्थात प्रकृति प्रदत्त होता है।बच्चे अपनी मातृभाषा अपने बडों से सीखते हैं और इसका उपयोग वे स्कूल की भाषा सीखने में करते है।बच्चे जब एक से अधिक भाषा जानते हो तब वे स्कूल की भाषा को सीखने मे उतने ही अधिक सक्षम होते हैं।
ReplyDeleteनरेश कुमार शर्मा उप्रावि तुरीयाटोला मोकामो सरिया गिरिडीह।
बच्चों में भाषा सिखने और भाषा के मध्यम से सीखना स्वाभाविक होता है बच्चों अपनी मातृभाषा को बचपन से ही सिख लेते हैं परवेश के अलग अलग भाषा सिखते हैं
ReplyDelete-प्रायः ही बच्चों को दो से अधिक की संख्या में एक साथ खेलते हुए देखा जाता है|वे अपने परिवेश में मौजूद किसी भी वस्तु को खेल की सामग्री मान लेते हैं| उन्हें खेल के ठोस उपकरण ही मेले, यह आवश्यक नहीं| परंतु वे जिस खेल को पसंद करते हैं उसी के अनुसार सामान का नाम भी रख लेते हैं| दूसरी ओर खेल की सामग्री के आधार पर ही वे खेल का चयन भी करते हैं| अपने खेल खेलने के क्रम में वे अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते हैं| वे स्वतंत्र रूप से अपने खेलों में मग्न भी होते हैं| इस दौरान उनको एक दूसरे से नए-नए शब्द भी सुनने को अवसर मिलता है| उनका शब्द भंडार बढ़ता है| वह जिन शब्दों को सुनते हैं, उसका नकल स्वयं करते हैं| जब वे अलग भाषा बोलने वाले बच्चे के साथ रहते हैं, तो भी खेल के माध्यम से एक दूसरे के करीब आते हैं| उन से सीखते एवं सिखाते हैं|एक- दूसरे को सुनते हैं| एक दूसरे से दोस्ती करते हैं| इसके अलावा अपने घर की बात करते हैं| परिवार के सदस्यों के बारे बोलते हैं| अपने पसंद की चीजों, स्थानों एवं भोजन के बारे में बात करते हैं| किसी दर्शनीय स्थान की चर्चा करते हैं| खिलौने के बारे में बताते हैं| इन सब की चर्चा करते हुए वे आपसी वाद- विवाद में भाषा का भी आदान- प्रदान करते हैं| कक्षा की बात कहें, तो उन्हें अपने पसंद के एक अच्छी संगति चाहिए| उसके बाद वे अपनी भाषा के माध्यम से ही पठन-पाठन की चर्चा करते हैं|इस प्रकार वे लक्ष्य भाषा तक अपनी पहुंच बना लेते हैं| बस एक शिक्षक के नाते हमें उन्हें प्रोत्साहन देने की जरूरत है| इस तरह वे अधिक ज्ञान प्राप्त करने के काबिल हो जाते हैं| उनके सोचने समझने का दायरा भी विकसित होते जाता है| वे निर्माण- कार्य क्षेत्र में भी अग्रसारित होते हैं| उनकी कल्पना शक्ति विकसित होती रहती है|
ReplyDeleteपुष्पा तेरेसा टोप्पो
ख्रीस्त राजा मध्य विद्यालय,
चंदवा लातेहार -829203
All the students have tendency to learn several languages.
ReplyDeleteHan mai sahmat hun ki bachhon me bhasha sikhne aur bhasha ke madhyam se hi sheekhne ki swabhawik prawriti hoti hai.atah hame unhe protsahit karte rahne ki zarurat hai.
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखना और भाषा के माध्यम से सीखना एक स्वाभाविक एवं नैसर्गिक गुण है। बच्चे अपने पारिवारिक वातावरण में एवं आस पड़ोस में जितनी भी भाषाएं बहुतायत में उपलब्ध है उनको सीखने में वह सक्षम है। अर्थात बच्चे जब विद्यालय पहुंचते हैं उससे पूर्व में कई भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर लिए होते हैं। जरूरत है उसके पूर्व की भाषा से संबंध स्थापित करते हुए विद्यालय की औपचारिक भाषा का ज्ञान उन्हें देना।
ReplyDeleteबच्चो में भाषा सीखने का मौलिक गुण होता है। वह परिवार में बोली जाने वाली भाषा और बड़े लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को आसानी से सीखता है। यदि उसे उसकी मातृभाषा में शिक्षा दी जाए तो वे सीखने में रुचि लेंगे। हमें चाहिए कि उसे विद्यालय में उचित समय देकर भाषा के साथ विद्यालय और किताबी भाषा को जोड़ते हुए उनमें भाषा का विकास होगा।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की प्रवृत्ति होती है यह सत्य है। बच्च मातृभाषा में आसानी से व सहज तरीके से सीखते हैं।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है वे अपने परिवार परिवेश और आसपास के पर्यावरण से बहुत कुछ सीख लेते हैं।
ReplyDeleteभाषा सीखने और भाषा के द्वारा दूसरे भाषा को सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति बच्चों में होती है। पहले परिवार में बच्चे सुनकर अपनी मातृभाषा या परिवार में बोले जाने वाले भाषा को सीख लेती है और उसके बाद जब बच्चे स्कूल आते हैं तो स्कूली भाषा अपने मात्रिभाषा के बल पर सीख लेते हैं। अर्थात अपनी मातृभाषा के द्वारा वह दूसरों भाषा को भी सीख सकते हैं।
ReplyDeleteबच्चों मे भाषा सिखने की स्वाभविक प्रवृति होती है।बच्चे मातृभाषा में आसानी से व सहज तरीके से सीखते हैं।
ReplyDeleteRlsingh4 December 2021 at 07:17
ReplyDeleteबच्चे भाषा जानते है पर वह अनौपचारिक होती है ।बल्कि क्षेत्र विशेष पर निर्भर करता है।उनके अनौपचारिक भाषा जिसे हम मातृ भाषा कहते हैं।उसको स्कूली भाषा से जोड़ा जाना असली चुनौती है।उनके घर की भाषा को सहायक के रूप में लेना है न कि बाधा के रूप में।एक तरह से बहुभाषा को सहर्ष स्वीकार करना है
यह बिल्कुल सत्य है कि बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। बच्चे घर में बोली जाने वाली भाषा यानी मातृभाषा को शीघ्र तार से एवं बहुत आसानी से ग्रहण करते हैं। हमें विद्यालय में उसे अपनी भाषा में बातों को कहने की पूरी स्वतंत्रता देनी चाहिए तथा धीरे-धीरे उसे विद्यालय भाषा से परिचित कराने का प्रयास करना चाहिए तभी उनका सर्वांगीण विकास हो सकता है।
ReplyDeletebache apne pariwar me bole janewale bhasha ewam matribhasha ke dwara adhik jankari hasil karte hain. sath me agal bagal ke sampark se dusre bhasha bhi seekhte hain.Jisse bacchon ke gayan ka bhandar me vikas hote jata hai.
ReplyDeleteबच्चे भाषा जानते है पर वह अनौपचारिक होती है ।बल्कि क्षेत्र विशेष पर निर्भर करता है।उनके अनौपचारिक भाषा जिसे हम मातृ भाषा कहते हैं।उसको स्कूली भाषा से जोड़ा जाना असली चुनौती है।उनके घर की भाषा को सहायक के रूप में लेना है न कि बाधा के रूप में।एक तरह से बहुभाषा को सहर्ष स्वीकार करना है।
ReplyDeleteबच्चे भाषा जानतें हैं , पर वह औपचारिक शिक्षा होगी । यह बिल्कुल सही है कि बच्चों मे भाषा सिखने की गति बहुत ज्यादा देखने को मिलता है । इसलिए बच्चे घर पर ही अनेक भाषा सीख जाते है । बच्चों मे भाषा सिखने का एक तरह से मैलिक।गुण होता है ।
ReplyDeleteकालेश्वरप्रसाद कमल (स शिक्षक )
प्रा विधालय झण्डापीपर गादी ( द)
प्रखण्ड - धनवार जिला - गिरिडीह
झारखण्ड।
Bacche School Aate Hain To Unki apni Ek Bhasha hoti hai aur school mein bhi bahut Sath bahubhashi log rat bacche padhte Hain Aise Mein Hamen unhen Badha ke roop Mein Nahin Lena chahie bacchon ko Hamen Unki Bhasha ko Sath Lekar Apne schooli Bhasha se Swatantra vatavaran Mein sikhana chahie
ReplyDeleteबच्चे अपनी मां और घर के माहौल की बात जल्दी सीख लेता है तथा स्कूल जाने पर वह वहां की भाषा सीख लेता है।
ReplyDeleteबच्चे अपने घर और परिवार की भाषा पहले सीखने हैं क्योंकि यही भाषा पहले उन्हें सुनने समझने को मिलता है और उन्हें अपनी आवश्यकताओं की अभिव्यक्ति के लिए माध्यम भाषा को सीखने की ललक होती है. मातृभाषा बच्चे पहले सीखते हैं और बाद में उसकी सहायता से दूसरी भाषाएँ सीखते हैं.
ReplyDeleteबच्चे शुरुआत में अपनी मातृभाषा का उपयोग करते हैं जिससे बच्चों को समझने में आसानी होती है हमें मातृभाषा को चुनौती ना समझ कर इसे सीखने का संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की नैसर्गिक गुण होता है| वे आसानी से अपनी मातृभाषा की तुलना अन्य भाषाओं से करने लगते हैं|कालांतर में वे भाषा की समझ पर अपनी पकड़ बनाने में कामयाब हो जाते हैं|
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने का गुण उन्हें जन्म से ही स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाता हैं, पहले तो वे अपने परिवार के सदस्यों के भाषा को सुनते हुए बड़े होते हैं जो उनकी मातृभाषा कहलाती हैं और उसमें सभी निपुण होते हैं फिर धीरे धीरे परिवेश और परिस्थितियों के कारण अनेक भाषाओं को जानने और सीखने को मिलता हैं जिससे वे बहुभाषी हो जाते हैं और जीवन में बहुभाषी होने का अनेक लाभ भी मिलता हैं ।
ReplyDeleteअपने बाल्यकाल में बच्चों को अपनी मातृभाषा का उपयोग ही एकमात्र मार्ग होता है अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करने के लिए।
सीखी हुई भाषा और मातृभाषा दोनों में एक विशेष अन्तर होता है |सीखी हुई भाषा हम एक निश्चित परिधी के अन्दर बोल सकते हैं परन्तु मातृभाषा उस परिधि के परे तक जाती है जिसमें बच्चे सीखने के क्षेत्र को विस्तृत कर लेते हैं तथा सम्प्रेषण कौशल भी विकसित कर पाते हैं |
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है यह बात सत्य है। वे जिस भाषा के साथ विद्यालय आते हैं वो हम शिक्षकों के लिए स्वीकार्य होनी चाहिए। बच्चों के घर की भाषा एक माध्यम बन कर उन्हें स्वाभाविक रूप से बहुभाषिक बना सकती है।
ReplyDeleteBacchon Mein ya Kisi bhi jio Mein Apni Bhasha ko sikhane aur sikhane aur bol na samajhna Ek Nasha Nirgun Hai Usi Prakar Hamare bacche the Mata Pita Parivar AVN aaspaas se Pratham Charan ke Bhasha Vikas ko purn karte hain Vidyalay Mein Aata Hai To vah Apne Sath apni matrubhasha ka sampurn gyan Lekar aata hai aata Hamen Vidyalay mein bhi use Swatantra vatavaran theke uski bhasha ke sath Vidyalay Bhasha ko chodte Hue sikhane sikhane ki prakriya Shuru karne chahie tabhi bacchon ka sarvadhik Vikas Sambhav hai dhanyvad
ReplyDeleteयह बात बिल्कुल सच है कि बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने का प्राकृतिक गुण होता है।
ReplyDeleteबच्चे शुरुआत में अपनी मातृभाषा का प्रयोग अधिक आसानी से करते हैं। एक ही कक्षा में कई तरह के मातृभाषा के बच्चे मौजूद हो सकते हैं। हमें बहुभाषिकता को चुनौती के रूप में नहीं लेना चाहिए बल्कि इसे एक संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए।
Good Subject
ReplyDeleteयह सही बात है कि भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने का गुण बच्चों में होता है. कक्षा में एक से अधिक मातृभाषा के बच्चे होते हैं. उन्हें अपनी मातृभाषा में बोलने का अबसर देना चाहिए क्योंकि वे मातृभाषा में आसानी से अपना विचार रख सकता है. अतः बहुभाषी को चुनौति के रूप में नहीं वल्कि एक संसाधन के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए |
ReplyDeleteहां,यह सही बात है कि भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने का गुण बच्चों में होता है। कक्षा में एक से अधिक मातृभाषा के बच्चे होते हैं।उन्हें अपनी मातृभाषा में बोलने का अबसर देना चाहिए क्योंकि वे मातृभाषा में आसानी से अपना विचार रख सकता है। अतः बहुभाषी को चुनौति के रूप में नहीं वल्कि एक संसाधन के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए।
ReplyDeleteहां, यह बिल्कुल सही बात है कि बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। क्योंकि बच्चे अपनी भाषा अर्थात मातृभाषा स्वभाविक रूप से अपने आसपास की दुनिया से आसानी से सीख लेते हैं और यही मातृभाषा के माध्यम से अन्य भाषा भी बड़ी आसानी से सीख लेते हैं।
ReplyDeleteBacche apni bhasha mein swabhavik Roop Se Kisi bhi Vishay Vastu ko acchi Tarah Se samajhte Hain. Ismein bacchon Ko Man bhi lagta hai.
ReplyDeleteबच्चे अपने माता-पिता,दोस्त,पड़ोसी आदि के द्वारा अपने आसपास प्रयोग की जाने वाली भाषा को बड़े ही गौड़ से सुनते हैं एवम उसकी नकल करने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार बच्चों में भाषा सीखने की क्षमता नैसर्गिक होती है।
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ReplyDeleteबच्चे शुरुआत में अपनी मातृभाषा का प्रयोग अधिक आसानी से करते हैं। एक ही कक्षा में कई तरह के मातृभाषा के बच्चे मौजूद हो सकते हैं। हमें बहुभाषिकता को चुनौती के रूप में नहीं लेना चाहिए बल्कि इसे एक संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए puna singh
GPS sutilong bundu
बच्चे अपने घर और पड़ोस के परिवेश से एक समृद्ध मातृभाषा और अन्य भाषा को पहले से लेकर विद्यालय आते हैं।चूंकि मैं जिस विद्यालय में पढ़ता हूं उस विद्यालय के पोषक क्षेत्र में खोरठा भाषा के गाने अधिक चलते हैं साथ ही शुद्ध हिंदी के गाने एवम् भोजपुरी गाने के बोल ज्यादा बजते हैं।जिसके कारण बच्चे पहले से बहुभाशिक ज्ञान रखते हैं। मैंने देखा है कि बच्चे बहुत जल्दी विद्यालय की भाषा बोलना सीख जाते हैं। मै उन्हें उनकी मनपसंद भाषा में किस्से कहानियां गीत नाटक का अभ्यास कराया हूं जिसे वे बड़े चाव से सीखते हैं।
ReplyDeleteबच्चे अपनी भाषा में स्वाभाविक रूप से किसी भी विषय वस्तु को अच्छी तरह से समझते हैं। इसमें बच्चों को मन भी लगता है।
ReplyDeleteबच्चे बोल-चाल द्वारा भाषा सिखते हैं।वररणमाल का जानकारी 2साल बाद देना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की स्वभाविक प्रवृत्ति होती है.अपने परिवार और आसपास के परिवेश से बहुत कुछ सीखते है.
ReplyDeleteविभिन्न शोधों से भी यह बात निकलकर सामने आई है कि प्रारंभिक शिक्षा बच्चों के मातृभाषा को माध्यम बनाकर दिया जाता उत्साहवर्धक परिणाम देता है ।
ReplyDeleteबच्चे सुन सुनकर बहुत कुछ सीखते हैं अपने पारिवारिक आस पास के परिवेश में रहकर सीखते रहते हैं ।
ReplyDeleteहाँ मैं सहमत हूँ कि बच्चों में भाषा सीखने की और भाषा से सीखने की प्रवृत्ति स्वाभाविक होती है और यह जन्म से ही पाई जाती है। 3साल की आयु में ही जो बच्चा अपने घर में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाएँ अपने परिवार में सीख पाता है वह विद्यालय में आकर दूसरी भाषा को इतनी आसानी से नहीं सीख सकता । इसका अर्थ है कि बच्चों में प्राकृतिक रूप से ही भाषा को सीखने की होती है ।
ReplyDeleteअनिमा
रा उ म वि मकरा गुमला
सुखलाल मुर्मू धनबाद । बच्चे विभिन्न पॄष्ठभूमियो से आते हैं एवं वे अपनी मातृभाषा लेकर आते हैं । हम जानते हैं कि वे अपनी मातृभाषा में निपुण रहते हैं । यही भाषा इनके पढ़ने-लिखने में सहायक होती है । हम शिक्षकों को अत्यंत आवश्यक है कि बच्चों को अपनी भाषा उपयोग करने में छुट दें । ताकि बच्चों की अधिगम की सीखने की क्षमता विकसित हो । अतः मानने की बात है कि बच्चे अपनी मातृभाषा के माध्यम से अच्छी तरह से सीख सकते हैं ।
ReplyDeleteYes, children have ability to learn language and also learn through language naturally. Before formal education, they started learning their mother tongue. They learn by listening their elders and friends.
ReplyDeleteबच्चा जन्म से सीखता है और उसके सीखने का माध्यम होता है सुनना और बोलना बच्चा अपने आसपास, अपने बड़ों से और अपने साथियों से जो कुछ सुनता है उसे दृश्य जगत से जोड़ता है तो उसके अंदर एक स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की क्षमता का विकास होता है। इस तरीके से बच्चा 3 वर्ष से भी पूर्व भाषा सीखता है और भाषा के माध्यम से अन्य ज्ञान अर्जित करता है। बच्चे की भाषा ज्ञान के विकास में बातचीत के और उसे अभिव्यक्त करने की अवसरों के ऊपर उसके भाषा का ज्ञान समृद्ध होता है और अन्य विषयों पर उसकी पकड़ मजबूत बनती है।
ReplyDeleteBachho me bhasha sikhne evam bhasha k madhyam se sikhne Ki pravriti hoti Hai..jab bachhe ko us k anuroop mahoul or environment milega to wo kafi utsukta K sath jigyasu ho Kar swatantra Roop se bhasha ko sikhega.
ReplyDeleteNirmala kumari (teacher)
Ms karkoma,Meral
Dis-Garhwa (Jharkhand)
26-12-2021
Ye bilkul Sahi hai bachhe me bhasha sikhne or bhasha k madhyam se sikhne Ki pravriti hoti Hai..yadi bachhe ko us k anuroop mahoul or environment milega to wo kafi utsukta K sath jigyasu ho Kar swatantra Roop se bhasha ko sikhega..
ReplyDeleteNirmala kumari (teacher)
MS KARKOMA,MERAL
DIS-GARHWA
(JHARKHAND)
यदि बच्चों को रूचिकर रूप से भाषा की समझ विकसित की जाए तो वे भाषा तथा भाषा के माध्यम से अन्य विषयों को भी सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
ReplyDeleteसर्वप्रथम बच्चा अपनी मातृभाषा को ग्रहण करता है। शुरुआती दौर में यह भाषा अनौपचारिक होती है और भाषा के चार कौशलों में से दो कौशल सुनना और बोलना तक ही सीमित रहता है किंतु जब बच्चा बड़ा होता है तो अन्य दो कौशल पढ़ना और लिखना को शामिल किया जाता है। पढ़ने का मतलब यह है की बच्चा जो भी पढ़े उसका अर्थ भी समझे तथा जो बात कही जा रही है उसे अपनी भाषा में अभिव्यक्त भी कर सके। मातृभाषा सीखने के पश्चात बच्चे बहुभाषिकता की ओर अग्रसर होता है तथा नए नए संदर्भ को समझने का प्रयास करता है। भाषा के सभी कौशलों को सीखने के पश्चात बच्चा अन्य विषयों की समझ भी विकसित करता है। इस प्रकार स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने की स्वभाविक प्रवृत्ति होती है।
ReplyDeleteराजेंद्र पंडित सहायक शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय चांदसर, महागामा गोड्डा।
बच्चों में अपने आसपास से, परिवार से भाषा सीखने का स्वाभाविक गुण होता है।वे आरंभ से ही भाषा सीखते हैं तथा भाषा के माध्यम से सीखने के प्रति हमेशा तत्पर प्रतीत होते हैं। विद्यालय में आने के पूर्व ही बच्चों में इस प्रकार का नैसर्गिक गुण दिखाई पड़ता है। बच्चे जिस भाषा से विद्यालय आने के पूर्व परिचित होते हैं उसके आधार पर वे अपनी सीखने सिखाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने एवं एवं उनका संप्रेषण करने का कौशल गॉड गिफ्ट गुम होता है l एक ही कक्षा में कई मात्रिभाषा के बच्चे हो सकते l बहुभाषिकता को चुनौती के रूप में ना लेकर अपॉर्चुनिटी के रूप में देखना चाहिए धन्यवाद l
ReplyDeleteSHAKIL AHMAD
ReplyDeleteR M S BAREPUR HUSSAINABAD PALAMU
बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है जो बच्चों में माता के गर्भ से ही आरंभ हो जाता है।
ये प्रवृत्ति आरंभिक छः साल की आयु तक तीव्र गति से बच्चों में देखी जाती है। अतः आरंभिक छः साल तक की आयु में बच्चों की देखभाल काफी महत्वपूर्ण समय माना जाता है।
इस अवधि में बच्चों के द्वारा संपूर्ण विकास का अस्सी प्रतिशत लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया जाता है।
शकील अहमद रा म विद्यालय बड़ेपुर हुसैनाबाद पलामू
हां बच्चे भाषा के माध्यम से ही सीखते हैं ।
ReplyDeleteयह सत्य है कि बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की एक स्वाभाविक एवं नैसर्गिक प्रवृत्ति तथा क्षमता विद्यमान होती है|अगर हम बचपन के आरंभिक वर्षों का सूक्ष्म अवलोकन करें तो यह बात स्वत: स्पष्ट हो जाती है|
ReplyDeleteअत: किंडरगार्टन/बालवाड़ी/आंगनबाड़ी के शिक्षकों और बच्चों के अभिभावकों को बहुभाषिकता को एक समस्या के रूप में नहीं बल्कि एक संसाधन के तौर पर लेना चाहिए|
Yeh sahi hai ki baccho mein bhasa sikhne ar bhasa ke dwara sikhne ki swabhawik ar natural prabriti hoti hai.Jarurat yeh hai ki ham mata-pita,guardian,samaj ke log ar sikshak unko sikhe me puri madad karen taki baccho bhasa ka vikas teji se ho sake.
ReplyDeleteBinod kumar.
Bachchon me bhasha sikhane aur bhasha se sikhane ki prawirti swabhavic hoti hai. Bachcha jis parivar me janm leta hai us parivar ki matribhasha swang Sikh leta hai. Bad me school Jane ke uprant Anya bhashaon ko sikhata hai.~Aruna Sinha,UMS kanya Gidhour,Chatra
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है इससे मै पूर्णतः सहमत हूं क्योंकि हम देखते हैं कि बच्चे बड़ों द्वारा बोले गए शब्दों को ध्यान से देखकर सुनकर उनकी बातों को समझते हैं फिर सीख कर बोलने का प्रयास करते हैं फिर अपनी बातों को विभिन्न आवाजो द्वारा प्रगट करते हैं यह सीखने की उनकी प्रवृत्ति स्वाभाविक होती है अतः यह कथन बिल्कुल सत्य है
ReplyDeleteहां बच्चे निश्चित रूप से भाषा सिखाने एवं भाषा के माध्यम से सिखते है जैसे ब अनुकरण कश्रके अत्यंत तेज़ी से सिखते है।चाहे वह सहपाठियों हो या परिवार हो।
ReplyDeleteनमस्कार🙏
ReplyDeleteबिल्कुल सत्य है कि बच्चे भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है, जो प्राकृतिक है जैसा की महाभारत में कहा गया है अभिमन्यु मां की गर्भ में ही सुनकर सीख गया था। बच्चे, मां यानी घर की भाषा को सबसे पहले सीखते हैं। वह सुनकर भाषा सीखते हैं। ध्वनि को सुनते हुए सीखना प्रारंभ करते हैं।सुनने के बाद व छोटे छोटे अक्षर या शब्द बोलना शुरू करते हैं जैसे बा , मम्मा, पप्पा। इस प्रकार धीरे-धीरे अपने परिवेश के अनुसार भाषा बोलने के कौशल विकसित कर लेते हैं।
धन्यवाद 🙏
आनंद कुमार
प्राथमिक विद्यालय चालधोवा
पूर्वी टुंडी,धनबाद
ReplyDeleteबच्चों में या किसी भी जीव में अपनी भाषा को सीखना और बोलना,समझना एक नैसर्गिक गुण है। उसी प्रकार हमारे बच्चे भी माता, पिता,परिवार एवम आसपास से प्रथम चरण के भाषाई विकास को पूर्ण करते हैं।बच्चा जब विद्यालय में आता है तो वह अपने साथ अपनी भाषा का सम्पूर्ण ज्ञान लेकर आता।फलतः हमें विद्यालय में भी उसे स्वतन्त्र वातावरण देकर उसकी भाषा के साथ विद्यालयी भाषा को जोड़ते हुए ही सीखने-सिखाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।तभी बच्चों का सर्वांगीण विकास सम्भव है। Ravindra prasad mahto ups haraiya tandwa chatra jharkhand
बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति जन्मजात होती है। औपचारिक रूप से भाषा सीखने से पहले ही उनके पास शब्दों का पर्याप्त भंडार होता है, जिन्हें वह अपने माता-पिता, परिवार के अन्य सदस्य, समुदाय या संचार के साधनों से सीखता है।
ReplyDeleteबच्चों में सीखने की अप्रतिम क्षमता एवं प्रवृति उपलब्ध होती है. वे घरेलू भाषा परिवार में बड़ी आसानी से सीख लेते हैं. यह उनकी मातृभाषा कहलाती है. अपने पास बोली जाने वाली भाषा को मातृभाषा के माध्यम से ही सीख लेते हैं. बच्चों को मातृभाषा के माध्यम से आसानी से अन्य भाषाओं सिखाया जा सकता है. आचार्य राजेंद्र प्रसाद प्रभारी प्रधानाध्यापक, राजकीयकृत उत्क्रमित मध्य विद्यालय उपरलोटो, लातेहार (झारखण्ड )
ReplyDeleteभाषा संचार का माध्यम है। इस बात में कोई सन्देह नहीं है।यह बातचीत करने और दूसरों तक संदेश भेजने की एक स्वाभाविक मानवीय प्रवृति है।
ReplyDeleteसीखने के प्रारंभिक वर्षों में बाहरी दुनिया के बारे में बच्चों की सोच को आकार प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उनकी क्षमताओं, रुचियों, मूल्यों और दृष्टिकोण को समझने के लिए एक सूक्ष्म लेकिन मजबूत शक्ति है।
बच्चों की अपनी भाषाएँ उनके सामाजिक और शैक्षणिक संदर्भ को गति देने का कार्य करती है। यह समझना यहां अति आवश्यक है कि चाहे कोई भी भाषा हो सभी एक ही प्रणाली का अनुसरण करती है
दिलचस्प बात यहाँ यह है कि बच्चों को मातृभाषा( माँ की भाषा) में दक्षता 3 वर्ष की उम्र में बहुत हद तक प्राप्त हो जाती है। और यही मातृभाषा ही अन्य भाषा को सीखने का माध्यम बनती है।
अतः हम कह सकते हैं कि बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है।
रणजीत यादव,
उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय जिरहुलिया, सी.आर.सी- म.वि.बांका, प्रखंड- हंटरगंज, जिला- चतरा, झारखण्ड।
Naturally, children are inclined to learn languages and learn from languages. The child picks up the language of his family, society, school, naturally. He learns through reading and writing.
ReplyDeleteBachchon me bhasha sikhne ki pravriti prakritik, samajik, dharmik avam sanskritik aur aaspas ke watavaran se milta hai. Bachche aaspas ke bhasha ko sunker sikhte hain avam dhire-dhire bolna bhi sikte hain. School jaker dhire-dhire padna avam likhna bhi sikhte hain.
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। बच्चों को मातृभाषा में दक्षता तीन वर्ष की उम्र तक बहुत हद तक हो जाती है,यही मातृभाषा ही अन्य भाषाओं को सीखने का माध्यम बनती है
ReplyDeleteप्रथम घर में बोली जाने वाली भाषा बच्चे जल्द सीखते हैं उसके बाद सामाजिक परिवेश में बोले जाने वाली भाषा बाद में सीखते हैं इसी तरह दूसरे जाति वर्गों में बोले जाने वाली भाषा का भी बच्चे बोलना सीखते हैं इसी तरह एक ही बच्चा अलग-अलग भाषा सीखते हैं और उसका बोलने में प्रयोग करते हैं यह चुनौती नहीं बल्कि सुगमता के ख्याल से इसे देखे जाने की आवश्यकता है
ReplyDeleteBachche kuchch na kuchch sikhana chahte hai unme sikhane ki lalak hot hai bas hame unhe motivate karne ki jarurat
ReplyDeleteयह बात सही है कि बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने का गुण होते हैं। बच्चे शुरू में मातृभाषा का प्रयोग अधिक करते हैं। कक्षा में बहुभाषिकता को एक संसाधन के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए।
ReplyDeleteसर्वप्रथम बच्चा अपनी मातृभाषा को ग्रहण करता है। शुरुआती दौर में यह भाषा अनौपचारिक होती है और भाषा के चार कौशलों में से दो कौशल सुनना और बोलना तक ही सीमित रहता है किंतु जब बच्चा बड़ा होता है तो अन्य दो कौशल पढ़ना और लिखना को शामिल किया जाता है। पढ़ने का मतलब यह है की बच्चा जो भी पढ़े उसका अर्थ भी समझे तथा जो बात कही जा रही है उसे अपनी भाषा में अभिव्यक्त भी कर सके। मातृभाषा सीखने के पश्चात बच्चे बहुभाषिकता की ओर अग्रसर होता है तथा नए नए संदर्भ को समझने का प्रयास करता है। भाषा के सभी कौशलों को सीखने के पश्चात बच्चा अन्य विषयों की समझ भी विकसित करता है। इस प्रकार स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि बच्चों में भाषा सीखने एवं भाषा के माध्यम से सीखने की स्वभाविक प्रवृत्ति होती है।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की प्रवृति जबरदस्त होती है।जीवन वह भले हीं और कुछ सीखे या ना सीखे पर भाषा जरूर सीखता है। सबसे पहले वह दूसरों को इसका इस्तेमाल करते देखता और फिर उसका अनुकरण करना शुरू करता है।
ReplyDeleteबच्चे जन्म लेने के पश्चात अपने घर-परिवार में बोली जाने वाली भाषा को ध्यान से ग्रहण कर धीरे-धीरे सभी सदस्यों के द्वारा बोली गई भाषाओं का सम्मिश्रण कर बोलते हैं।अपने परिवेश में विभिन्न खिलौनों से खेलते एवं संवाद करते हैं। उनके लिए विद्यालय, पाठ्य-पुस्तकें एवं शिक्षक अंजान होते हैं। यदि हम शिक्षक बच्चों को उनके भाषा के माध्यम से चित्रों,प्रिटों,तारम्यता,स्वतंत्र पाठन एवं लेखन को बढ़ावा देते रहे तो बच्चों को सीखने की प्रवृत्ति में वृध्दि होती है। स्पष्ट है कि बच्चों में सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। उनमें केवल उत्साह वर्धन तथा सहभागिता की जरुरत है।रणजीत प्रसाद मध्य विद्यालय मांडू, रामगढ़।
ReplyDeleteजी हाँ, बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वभाविक प्रवृत्ति होती है। वे अपने घर परिवार और आसपास के परिवेश से बहुत कुछ सीख लेते हैं।
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की और भाषा के माध्यम से सीखने की प्रवृति स्वाभाविक होती है। प्रारंभिक अवस्था में वे अपनी मातृभाषा में बोलना सीखते हैं और फिर विद्यालय ane ke बाद अन्य भाषा से परिचित होते हैं।
ReplyDeleteBacchon mein Bhasha sikhane aur bhasha ke madhyam se sikhane ki shobhagpura video Hoti hai kaskar bacche apne ghar mein boli jane wali bhasha ke prayog se jaldi aur Ruchi le kar sakte
ReplyDeleteBacchon Mein bhasha sikhane ke Madhyam Se sikhane Ki pravritti Sahayak hoti hai aur yah Janm Se Hoti Hai shuruaat mein bacche apni matrubhasha se sakte hain kalantra mein Tanmay bahubhashikta ka Vikas hota hai aur unke Naam
ReplyDeleteBacchon mein bhasha sikhne aor bhasha ke madhyam se sikhne ki swabhawik pravrity hoti hai. Isse main sahmat huin.
ReplyDeleteबच्चों में भाषा सीखने की और भाषा के माध्यम से सीखने के सीखने की prawriti स्वाभाविक होती है।प्रारंभिक अवस्था में वे अपनी मातृभाषा में बोलना सीखते हैं और फिर विद्यालय आने के बाद अन्य भाषा से परिचित होते हैं।
ReplyDeleteमैं यह मानता हूं कि बच्चों में भाषा सीखने और भाषा के माध्यम से सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है
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