क्या हमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला सिखाने से करनी चाहिए? क्या बच्चों को क्रमानुसार वर्णमाला से
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हमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी नहीं करनी चाहिए ।हमें बच्चों को उनके परिवेश के मुताबिक शब्दों से ,वाक्य से ,कहानियों से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए ताकि बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भलीभांति परिचित हो और उन शब्दों के उच्चारण कर पाए ।बारंबार उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है। अंत में जिन वर्णों से उन शब्दों का निर्माण होता है उन वर्णों को बच्चों के सामने रखना चाहिए।
ReplyDeleteअंजय कुमार अग्रवाल, मध्य विद्यालय कोइरी टोला रामगढ़
हमें बच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णों /वर्णक्रम से कदापि नहीं करनी चाहिए। इस तरह पढ़ाने से बच्चे को पढ़ाई बोझ लगने लगती है।
ReplyDeleteहमें छोटी-छोटी कहानियों,बालगीत,तुकबंदी और रोचक गतिविधियों का उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की ओर लौटते हैं और अधिगम की प्रक्रिया सरल हो जाती है।
:मु० अफ़ज़ल हुसैन
उर्दू प्राथमिक विद्यालय मंझलाडीह
शिकारीपाड़ा,दुमका,झारखंड।
हमें बच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णों /वर्णक्रम से कदापि नहीं करनी चाहिए। इस तरह पढ़ाने से बच्चे को पढ़ाई बोझ लगने लगती है।
ReplyDeleteहमें छोटी-छोटी कहानियों,बालगीत,तुकबंदी और रोचक गतिविधियों का उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की ओर लौटते हैं और अधिगम की प्रक्रिया सरल हो जाती है।
भाषा की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिवधि करनी चाहिए।बोलना और सुनना से भाषा की शुरुवात करनी चाहिये।
Deleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णों से कभी भी नही करनी चाहिए।ऐसा करने से बच्चे बोझिल महसूस करने लगते हैं।बच्चों को छोटी छोटी कहानिया,रोचक गीत इत्यादि द्वारापढाया जाना चाहिए।
Deleteभाषा की शुरुआत वर्णों से न करके कोई गतिविधि से करनी चाहिए।
DeleteHaw-Bhaw aur bol-chal wale words ke madhayam se bachho main bhasha likhane ki suruat karni chahiye.
Deleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरूआत वणोॅ से कभी नहीं करनी चाहिए।क्योंकि इससे बच्चे बोझिल महसूस करेंगे।
DeleteBhasha an important factor therefore it should be interesting
ReplyDeleteBhasha an important factor therefore it should be interesting.
Deleteबारबार उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है।इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की ओर लौटते हैं और अधिगम की प्रक्रिया सरल हो जाती है।
ReplyDeleteHamen bacchon ki Bhasha ki shuruaat varnmala se nahin karna chahie use Rochak Kahaniyan Balgeet tukbandi AVN gatividhiyan ke Madhyam se Karana chahie
Delete
ReplyDeleteहमें बच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णों /वर्णक्रम से कदापि नहीं करनी चाहिए। इस तरह पढ़ाने से बच्चे को पढ़ाई बोझ लगने लगती है।
हमें छोटी-छोटी कहानियों,बालगीत,तुकबंदी और रोचक गतिविधियों का उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की ओर लौटते हैं और अधिगम की प्रक्रिया सरल हो जाती है।जिससे बच्चें बहुत ही सुगमता ढंग से सिखते हैं।
बच्चों को भाषा सिखाने के लिए वर्णो/वर्ण क्रम से नहीं करना चाहिए. इस प्रकार सिखाने से बच्चों को बोझ लगेगा. हमे छोटी छोटी कहानियाँ, कविता, बालगीत, तुकबंदी और रोचक गतिविधि का आयोजन करना चाहिए. इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की और जायेगा तथा अधिगम की प्रक्रिया सरल हो जायेगा.
ReplyDeleteबच्चे तो वास्तव में कच्चे घड़े होते हैं।प्रारंभिक अवस्था में इनके द्वारा मौखिक घरेलू भाषा में अपने भाषा सीखने की ओर अग्रसर होते हैं।इसी समय इनके द्वारा आरी -तिरछी रेखाओं,दिवाल/जमीन पर कुछ चित्र उकेरने आदि के कार्य किए जाते हैं।यही इनके भाषा सीखने के वास्तविक आधार होते हैं।हम सभी शिक्षकगणों को विद्यालय कक्ष में बच्चों के इन्ही विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए CRA विधि का सहारा लेते हुए वर्णमाला सिखलाने का प्रयास करना चाहिए। बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteकौशल किशोर राय,
सहायक शिक्षक,
उत्क्रमित उच्च विद्यालय पुनासी,
शैक्षणिक अंचल:- जसीडीह,
जिला:- देवघर,
राज्य:- झारखण्ड
बच्चों को भाषा सिखाने के लिए वर्णो/वर्ण क्रम से नहीं करना चाहिए. इस प्रकार सिखाने से बच्चों को बोझ लगेगा. हमे छोटी छोटी कहानियाँ, कविता, बालगीत, तुकबंदी और रोचक गतिविधि का आयोजन करना चाहिए. इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की और जायेगा तथा अधिगम की प्रक्रिया सरल हो जायेगा।
ReplyDeleteविनय कुमार भारती
मध्य विद्यालय कण्डाबेर,केरेडारी
बच्चों को पहले बोलना सिखाना चाहिए,इसके लिए वर्ण सिखाने की कतई आवश्यकता नहीं है,क्योंकि वर्ण,भाषा लिखने के लिए सीखना आवश्यक है।पूर्व से परिचित शब्द,कविताएं,कहानियों के माध्यम से बोलना और उच्चारण करना सिखाने के बाद ही लिखना सिखाना चाहिए।इसके लिए भी वर्णों को क्रम से सिखाना आवश्यक नहीं है।यह कार्य बाद में किया जा सकता है।इस कार्य में हमें उदार होना चाहिए।
ReplyDeleteWe should not start the learning stage with varnmaala but children's own language
ReplyDeleteहमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी नहीं करनी चाहिए ।हमें बच्चों को उनके परिवेश के मुताबिक शब्दों से ,वाक्य से ,कहानियों से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए ताकि बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भलीभांति परिचित हो और उन शब्दों के उच्चारण कर पाए ।बारंबार उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है। अंत में जिन वर्णों से उन शब्दों का निर्माण होता है उन वर्णों को बच्चों के सामने रखना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चे को भाषा सीखाने के लिए उसके परिवेश के अनुसार कहानी, कविता , वाक्य , शब्द या बात चीत से करना चाहिए।तब उसे भाषा सीखाने में बोझ नहीं लगेगा।
ReplyDeleteHaw-Bhaw aur bol-chal wale shabdon ke madhyam se bachhon main Bhasha ikhane ki suruat karni chahiye.
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कदापि नहीं करना चाहिए, भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविधि करनी चाहिए, बोलना और सुनना से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों को भाषा की शुरुआत वर्णमाला से कदापि नहीं करना चाहिए, भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविधि करनी चाहिए, बोलना और सुनना से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए।
ReplyDeleteहम जानते है हैं कि बच्चों में भाषा सीखने और उसका अधिकतम उपयोग करना उसकी स्वाभाविक क्षमता होती है।
ReplyDeleteमेरे विचार से बच्चों को भाषा सीखाने की शुरुआत चित्रात्मक कहानी/तुकबंदी/बालगीत/बालकथा/पहेली आदि के साथ करनी चाहिए।
भाषा सीखने की शुरुआत वर्णमाला के यथाक्रम परिचय देने का सुझाव नहीं दिया जाता है। ऐसा तब करना उचित है। जब बच्चे भाषा के यांत्रिक पहलू को सीखने के लिए तैयार हो और अर्थ के साथ पढ़ने के लिए पहले से निर्मित संदर्भ हो। एवं बच्चे लिखित भाषा का उपयोग करने का प्रयास करते हों। जैसे कहीं पर भी आड़े तिरछे लकीर खिंचना दीवार फर्श पर लिखना आदि। तब यह स्वभाविक रूप से पता चल जाता कि उन्हें यह जानने की आवश्यकता है कि अक्षर और ध्वनि में क्या संबंध है और अक्षर पढ़ने लिखने में कैसे कार्य करते हैं ,तब बच्चों को क्रमानुसार वर्णमाला से परिचय कराना चाहिए।
हमें बच्चों को सिखाने मेंLSNR का ध्यान रखकर कहानी, कविता, चित्रकथा, गीत इत्यादि से करना चाहिए ।
ReplyDeleteहमें बच्चों को सिखाने में LSWR का ध्यान रखकर कहानी, कविता, चित्रकथा, गीत इत्यादि से करना चाहिए।
Deleteबच्चे को भाषा सीखाने के लिए उसके परिवेश के अनुसार कहानी, कविता , वाक्य , शब्द या बात चीत से करना चाहिए।तब उसे भाषा सीखाने में बोझ नहीं लगेगा।भाषा सीखने की शुरुआत वर्णमाला के यथाक्रम परिचय देने का सुझाव नहीं दिया जाता है। ऐसा तब करना उचित है। जब बच्चे भाषा के यांत्रिक पहलू को सीखने के लिए तैयार हो और अर्थ के साथ पढ़ने के लिए पहले से निर्मित संदर्भ हो। एवं बच्चे लिखित भाषा का उपयोग करने का प्रयास करते हों। जैसे कहीं पर भी आड़े तिरछे लकीर खिंचना दीवार फर्श पर लिखना आदि। तब यह स्वभाविक रूप से पता चल जाता कि उन्हें यह जानने की आवश्यकता है कि अक्षर और ध्वनि में क्या संबंध है और अक्षर पढ़ने लिखने में कैसे कार्य करते हैं ,तब बच्चों को क्रमानुसार वर्णमाला से परिचय कराना चाहिए।Motiur Rahman, UPS CHANDRA PARA,Pakur
ReplyDeleteबच्चे को भाषा सीखाने के लिए उसके परिवेश के अनुसार कहानी, कविता , वाक्य , शब्द या बात चीत से करना चाहिए।तब उसे भाषा सीखाने में बोझ नहीं लगेगा
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सीखाने के वर्णमाला से शुरूवात नहीं करनी चाहिए।उसे छोटे-छोटे शब्दों, वाक्यों, कविता सुनाकर वर्णमाला का ज्ञान कराना चाहिए।
ReplyDeleteहमें भाषा सिखाने की शुरुआत मुखिक सबदों से करनी चाहिए, फिर उसके बाद वर्णमाला से पढाई लिखी के माध्यम से भाषा सीखना चाहिए| उसके बाद बोलकर, चित्रा कहानियों द्वारा, वाक्यों द्वार, छोटे पढ़ के द्वारा फिर बड़ी कहानियों के द्वारा की जानी चाहिए|
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने के लिए वर्णो/वर्ण क्रम से नहीं करना चाहिए. इस प्रकार सिखाने से बच्चों को बोझ लगेगा. हमे छोटी छोटी कहानियाँ, कविता, बालगीत, तुकबंदी और रोचक गतिविधि का आयोजन करना चाहिए. इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की और जायेगा तथा अधिगम की प्रक्रिया सरल हो जायेगा।
ReplyDeleteHame bachchon ko sidhe varnmala nahi sikhani chahiye balki LSRW ka prayog karna chahiye.pahle bachchon kahani tukbandi kavita sunana fir bachchon se bolwana padhwana ant me varnmala ko sikhwane aur likhane ka kary karane sebachche murt se amurt ki or jayega jis se sikhne ki prakriya sugam hogi. ANIL KUMAR HM MS TELO BOKARO
ReplyDeleteकिसी भी नई भाषा को सीखने के लिए वर्णमाला सिखाने से नहीं होती है । इसके लिए हमें तीन चीजों की बहुत आवश्यकता होती है वह है रूचि,अभ्यास एवं सहनशीलता । भाषा सीखने के लिए रूचि उत्पन्न कर सहनशीलता के साथ प्रयास हमेशा जारी रखना है । आवश्यकता हो तो उस भाषा के परिपक्व साथी से वार्तालाप करेंगे । धीरे धीरे इससे सही उच्चारण तथा व्याकरण के साथ ज्ञान भी सीख पायेंगे । इसके अलावे उसी भाषा में साहित्य, सिनेमा, संगीत, कहानियां, कविता, बालगीत एवं तुकबंदी वाले शब्दों के गतिविधि करेंगे,सुनेंगे, अनुभव करेंगे उतने ही सीख पायेंगे।
ReplyDeleteबच्चों को वर्णमाला के अलावे (LSRW) सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना अभ्यास करना होगा । उसके बाद क्रमानुसार वर्णमाला से परिचित कराएंगे जिससे बच्चे बहुत ही सरल ढंग से सीख पायेंगे ।...धन्यवाद ।
सुना राम सोरेन (स.शि.)
प्रा.वि.भैरवपुर, धालभूमगढ़।
पूर्वी सिंहभूम,झारखंड ।
बच्चे तो वास्तव में कच्चे घड़े होते हैं।प्रारंभिक अवस्था में इनके द्वारा मौखिक घरेलू भाषा में अपने भाषा सीखने की ओर अग्रसर होते हैं।इसी समय इनके द्वारा आरी -तिरछी रेखाओं,दिवाल/जमीन पर कुछ चित्र उकेरने आदि के कार्य किए जाते हैं।यही इनके भाषा सीखने के वास्तविक आधार होते हैं।हम सभी शिक्षकगणों को विद्यालय कक्ष में बच्चों के इन्ही विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए CRA विधि का सहारा लेते हुए वर्णमाला सिखलाने का प्रयास करना चाहिए। बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteAnjani Kumar Choudhary 8809058368
ReplyDeleteहम जानते है हैं कि बच्चों में भाषा सीखने और उसका अधिकतम उपयोग करना उसकी स्वाभाविक क्षमता होती है।
मेरे विचार से बच्चों को भाषा सीखाने की शुरुआत चित्रात्मक कहानी/तुकबंदी/बालगीत/बालकथा/पहेली आदि के साथ करनी चाहिए।
भाषा सीखने की शुरुआत वर्णमाला के यथाक्रम परिचय देने का सुझाव नहीं दिया जाता है। ऐसा तब करना उचित है। जब बच्चे भाषा के यांत्रिक पहलू को सीखने के लिए तैयार हो और अर्थ के साथ पढ़ने के लिए पहले से निर्मित संदर्भ हो। एवं बच्चे लिखित भाषा का उपयोग करने का प्रयास करते हों। जैसे कहीं पर भी आड़े तिरछे लकीर खिंचना दीवार फर्श पर लिखना आदि। तब यह स्वभाविक रूप से पता चल जाता कि उन्हें यह जानने की आवश्यकता है कि अक्षर और ध्वनि में क्या संबंध है और अक्षर पढ़ने लिखने में कैसे कार्य करते हैं ,तब बच्चों को क्रमानुसार वर्णमाला से परिचय कराना चाहिए।
भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी नहीं करनी चाहिए ।हमें बच्चों को उनके परिवेश के मुताबिक शब्दों से ,वाक्य से ,कहानियों से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए ताकि बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भलीभांति परिचित हो और उन शब्दों के उच्चारण कर पाए ।बारंबार उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है। अंत में जिन वर्णों से उन शब्दों का निर्माण होता है उन वर्णों को बच्चों के सामने रखना चाहिए।
ReplyDeleteभाषा वर्णमाला से नही वरन् परिवेश,निकटवर्ती उपलब्ध वस्तुओ से हो।
ReplyDeletehame bachcho me bhasha ki shuruaat varnmala se bilkul nahi karna chahiye.pahle bachche jis pariwesh se ate hai ewam unke dwara laye gaye shabdansh,aksharo ke prayog se milan,tukbandiwale shabdo ke nirman par jor denge punah bachcho ke safal hone par varnmala ewam bhasha ke shudh rupo ki taraf le jayenge.
ReplyDeleteबच्चों को सुनना बोलना पढ़ना क्रमानुसार अभ्यास के साथ सिखाना होगा। छोटे वाक्य कहानी से रूचि जागेगी।
ReplyDeleteबच्चों को सुनना बोलना पढ़ना लिखना क्रमानुसार अभ्यास से सिखाना होगा। छोटे वाक्य कहानी से रूचि जागेगी।
ReplyDeleteShodh se pata chala hai ki bachchon ko shabd se aksharon ka gyan dena chahiye sidhe aksharon se nahi.
ReplyDeleteभाषा की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविधि करनी चाहिए।बोलना और सुनना से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए।
ReplyDeleteHume baccha ko pehle warnmala se pehle gatiwidhi krwana chahiye jaise ki photo ya video wagera dikha kr isse bacche jldi smjh v jayenge or warnmala ko yaad rakh sakte h
ReplyDeleteहमे बच्चो को भाषा का शुरुआत मौखिक रूप से करना चाहिए न कि वर्णमाला से। बच्चो को पहले सुनना बोलना का अभ्यास कराना चाहिए
ReplyDeleteहमें बच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी नहीं करनी चाहिए बच्चों को शुरुआती दौर में कहानी कविता खेल आदि के माध्यम से खेल खेल में बच्चों को भाषा ज्ञान विकसित करना चाहिए तथा प्रिंट युक्त वातावरण में उनका भाषा विकास होना चाहिए
ReplyDeleteHame bachcho ko bhasha shikhane ki shuruwat koi nam ya interesting poem aur story se karni chahiye.unhe print yukth environment mein bhasha shikhani chahiye.bhasha ki shuruwat vernacular se kabhi nhi Karni chahiye.
ReplyDeleteकिसी भी नई भाषा को सीखने के लिए वर्णमाला सिखाने से नहीं होती है । इसके लिए हमें तीन चीजों की बहुत आवश्यकता होती है वह है रूचि,अभ्यास एवं सहनशीलता । भाषा सीखने के लिए रूचि उत्पन्न कर सहनशीलता के साथ प्रयास हमेशा जारी रखना है । आवश्यकता हो तो उस भाषा के परिपक्व साथी से वार्तालाप करेंगे । धीरे धीरे इससे सही उच्चारण तथा व्याकरण के साथ ज्ञान भी सीख पायेंगे । इसके अलावे उसी भाषा में साहित्य, सिनेमा, संगीत, कहानियां, कविता, बालगीत एवं तुकबंदी वाले शब्दों के गतिविधि करेंगे,सुनेंगे, अनुभव करेंगे उतने ही सीख पायेंगे।
ReplyDeleteबच्चों को वर्णमाला के अलावे (LSRW) सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना अभ्यास करना होगा । उसके बाद क्रमानुसार वर्णमाला से परिचित कराएंगे जिससे बच्चे बहुत ही सरल ढंग से सीख पायेंगे ।
Hame bhasha sikhane ki surat warno/warnmala se nahi karni chahiae.Aisa karne se bachche bhasha ko bojh samajhne lagegen.Swarpratham unhe bhasha k sand, sambandhit bhasha m khansi, tukbandi wale sand batane chahiae.Ye sab bachhon m rochakta utpann karte hain aur bachhe bhasha ko jaldi Sikh Karen hain.
ReplyDelete......MS KUSUNDA MATKURIA DHANBAD-1
हमें बच्चों को भाषा सिखाने के लिए वर्णों का प्रयोग न करकेचि चित्रातमक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
ReplyDeleteHume bachcho ko bhasha sikhane ke liye kabita koi achhi kahani sunakar,picture dikha kar Ruchi utpan kar sakte h
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने से पूर्व जीवन में प्रयोग होने वाली वस्तुओं,व्यक्तियों एवं परिवेशों के लिए प्रयुक्त शब्दों की समझ करवानी आवश्यक है।इसके पश्चात हीं अक्षरों की समझ होनी चाहिए।
ReplyDeleteभाषा सिखाने से पहले बच्चों को वर्णमाला का ज्ञान अतिआवश्यक है।
ReplyDeleteबच्चों को वर्णमाला सिखलाने के बजाय उन शब्दों पर जोर देना चाहिए जो वे रोज सुनते हैं उन शब्दों को लिख ने व बोलने से वर्णमाला की पहचान खुद हो जाएगी ।
ReplyDeleteBacchon ko rochak gatividhi duara moukhik rup se chhoti chhoti bastu dko dikhakar sikhaana se swatah bache warnmala sikha jangeu
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteनहीं**हमें बच्चों को भलीभांति उसके परिवेश जितना होसके विद्यालय पूर्व स्मरण कराना चाहिए अगर हमें लगे कि उसने उस सभी कहानी कविताएं आदि को समझ लिया तब जाकर उसे वर्णमाला शिकाना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चे को भाषा सीखाने के लिए उसके परिवेश के अनुसार कहानी, कविता , वाक्य , शब्द या बात चीत से करना चाहिए।तब उसे भाषा सीखाने में बोझ नहीं लगेगा।भाषा सीखने की शुरुआत वर्णमाला के यथाक्रम परिचय देने का सुझाव नहीं दिया जाता है। ऐसा तब करना उचित है। जब बच्चे भाषा के यांत्रिक पहलू को सीखने के लिए तैयार हो और अर्थ के साथ पढ़ने के लिए पहले से निर्मित संदर्भ हो। एवं बच्चे लिखित भाषा का उपयोग करने का प्रयास करते हों। जैसे कहीं पर भी आड़े तिरछे लकीर खिंचना दीवार फर्श पर लिखना आदि। तब यह स्वभाविक रूप से पता चल जाता कि उन्हें यह जानने की आवश्यकता है कि अक्षर और ध्वनि में क्या संबंध है और अक्षर पढ़ने लिखने में कैसे कार्य करते हैं ,तब बच्चों को क्रमानुसार वर्णमाला से परिचय कराना चाहिए।BHANU PRATAP MANJHI UHS CHIPRI ICHAGARH SERAIKELlA-KHARSWAN JHARKHAND
ReplyDeleteबच्चों को भाषा की शुरुआत वर्णमाला सिखाने से नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे बच्चे गतिविधियों से दूर भागने लगते हैं ।
ReplyDeleteफलस्वरूप वे दिए गए शिक्षण सामग्री को रटने का प्रयास करते हैं जो किसी भी रूप में व्यवहारिक या उनके ज्ञान को या अवधारणा को मजबूत नहीं करता।उनकी क्षमता और पूर्व ज्ञान को ध्यान में रखते हुए विभिन्न तरह की गतिविधियों जैसे- बातचीत ,खेल,गीत, कविता, कहानी ,चित्र कार्ड, ऑडियो ,वीडियो ,रोलप्ले ,नाटक इत्यादि के द्वारा भाषा सिखाने की शुरुआत करनी चाहिए । इसमें उनकी मातृभाषा को विशेष रुप से ध्यान में रखा जाना चाहिए ताकि बच्चे आसानी से गतिविधियों में शामिल होकर अपने भावों को विभिन्न माध्यमों से प्रकट कर सकें ।धीरे-धीरे बच्चे अपनी आयु अनुसार वर्णों को भली-भांति उच्चारण के साथ समझ सकेंगे तथा उससे बने शब्दों और वाक्यों को भी अर्थ के साथ बोल, पढ या लिख सकते हैं। बच्चों को वर्णमाला क्रमानुसार सीखाने की आवश्यकता नहीं है। बच्चे जब सही उच्चारण के साथ वर्ण, अक्षर और शब्दों को अच्छी तरह लिख ,पढ ,बोल सकेंगे तब उन्हें वर्णमाला के क्रम से परिचित कराना ठीक हो सकता है।
भाषा की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ,ऐसी गतिवधि करनी चाहिए।बोलना और सुनना से भाषा की शुरुआत करनी चाहिये।
ReplyDeleteजैसा कि हमें ज्ञात है,"भावों को अभिव्यक्त करने का माध्यम भाषा।" भाषा मुख्यतः दो प्रकार--१)मौखिक एवं २)लिखित। अपने विचारों को बोलकर प्रकट करना,मौखिक भाषा। अपने विचारों को लिखकर/पढ़कर प्रकट करना,लिखित भाषा|भाषा की सबसे छोटी मौखिक/लिखित रूप वर्ण,और भाषा के मूल
ReplyDeleteध्वनियों के व्यवस्थित समूह वर्णमाला।
मेरे विचार से छोटे बच्चों को किसी भी भाषा को सिखाने की शुरुआत उस भाषा की वर्णमाला को सिखाने से नहीं करनी चाहिए और न ही शुरुआत में क्रम अनुसार वर्णमाला से परिचित कराना चाहिए,बल्कि बच्चों को शुरू में भाषा की शिक्षा अपनी मातृभाषा में तथा सबसे पहले उन्हें सोचने और खुद को मौखिक रूप से व्यक्त करने के क्षमता के विकास में मदद करना है। गाने,नानी-दादी की कहानियां,कविताएं और खेलों के जरिए बच्चे भाषा को जल्दी और आसानी से सीखते हैं।
भाषा को शुरू में ऐसे सिखाने चाहिए जहां बच्चों को भाषा के उपयोग का अधिक से अधिक अवसर मिले। यहां उनको सुनने,बोलने और देखी हुई चीजों व अपने अनुभवों के बारे में बात करने का मौका मिलना चाहिए। बच्चे को कविताएँ, पहेलियाँ, चुटकुले,कहानियाँ,चित्र-कथाएं,गीत आदि को सुनाकर एवं पढ़ाकर तथा उनके आसपास उनकी मनचाही सामग्रियां रखकर भाषा सिखाना चाहिए जिसे बच्चों के लिए सीखना कोई कठिन कार्य नहीं है।
जब अलग-अलग संदर्भों में अलग-अलग शब्द-चित्रों में वही वर्ण बच्चों के सामने आएंगे तो वे उन्हें स्वयं ही पहचान लेंगे |
बच्चों को भाषा सिखाने के लिए तस्वीरों का भी इस्तेमाल होना चाहिए। कक्षा में बच्चों की बैठक व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें हर किसी को भागीदारी का समान अवसर मिले और सबसे खास बात की होल लैंग्वेज एप्रोच के साथ भाषा को उसकी संपूर्णता में बच्चों के सामने रखना चाहिए ताकि वे भाषा का अर्थ-पूर्ण ढंग से आनंद उठाते हुए इसे सीख सके।
शिक्षक को इस बात के प्रति जागरूक होना चाहिए कि बच्चा जब स्कूल में पढ़ने के लिए आता है तो उसके पास मूलभूत भाषिक कौशल पहले से मौजूद होता है। केवल उसे इसके विकास के लिए उसे बच्चे को उचित माहौल देना है ताकि बच्चे में भाषा संबंधी अन्य कौशलों जैसे पढ़ने और लिखने का विकास हो सके। भाषा समृद्ध वातावरण प्रदान
करने पर वर्तनी के जो नियम तर्कसंगत है वह तो बच्चे खुद ही आत्मसात कर लेगा। बच्चा शिक्षक के बोलने पर वही लिखता है जो उन्होंने बोलते हैं। पढ़ने लिखने वाला बच्चा भाषा के बारे में ज्ञान (नियम)स्वयं अलग-अलग रास्तों से कर लेता है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि बच्चों को भाषा सिखाने में हम शिक्षकों का क्या रोल है। यही कि सीखने सिखाने की प्रक्रिया को समझे बच्चों की क्षमता को समझें और बच्चे को अधिक से अधिक रुचिकर सामग्री प्रदान करें|
आरम्भिक अवस्था में बच्चों को मनोरंजक कहनी, कविता , इत्यादि सुनाकर उनकी पसंद जानकर सरलता से वर्ण और स्वर की पहचान तदनुसार थोड़ा बोझ देकर सिखाना बेहतर होगा | हिमांशु शेखर झा, स. शि.
ReplyDeleteNahi,bachhon ko sabse pahle aari tirchi rekha sikhani chahiye.rochak balgeet, kahaniyaan batani chahiye.bacchon ko apni bhasha me bolna ke liye prerit kerna chahiye.
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने के लिए वर्णो/वर्ण क्रम से नहीं करना चाहिए. इस प्रकार सिखाने से बच्चों को बोझ लगेगा. हमे छोटी छोटी कहानियाँ, कविता, बालगीत, तुकबंदी और रोचक गतिविधि का आयोजन करना चाहिए. इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की और जायेगा तथा अधिगम की प्रक्रिया सरल हो जायेगा
ReplyDeleteबच्चों को वर्णमाला क्रमानुसार सिखाने के अलावा परिवेश से जूड़े चीजें, शब्द, वाक्य से भाषा का ज्ञान देना उचित है।
ReplyDeleteहमें बच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से ना करके छोटी-छोटी कविताएं, कहानियां, तुकबंदी और रोचक गतिविधियों का आयोजन करना चाहिए इससे बच्चों को भाषा सिखाने में सरलता होगी।
ReplyDeleteBacchon ko varmala se sikhane se pahle use Apne parivesh ke Chhoti Chhoti chijon ke bare mein batana chahie.esse bacchon ko bhasa sikhne me Saralata hogi
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कदापि नहीं करना चाहिए ,बल्कि तस्वीर ,चित्र ,वस्तुओं आदि के पहचान उनके शब्द ,कहानी ,खेल इत्यादि के माध्यम से वर्णमाला की पहचान तक ले जाना चाहिए ।
ReplyDeleteभाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविधि करनी चाहिए, बोलना और सुनना से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए। इससे बच्चों को भाषा सिखाने में सरलता होगी।
ReplyDeleteबच्चे को भाषा सिखाने के लिए उसके परिवेश के अनुसार कहानी, कविता वाक्य ,शब्द या बातचीत से करना चाहिए । तब उसे भाषा सीखने में आसानी होगी ।
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कदापि नहीं करना चाहिए। बल्कि, तस्वीर चित्र वस्तु आदि की पहचान उनके शब्द कहानी खेल इत्यादि के माध्यम से वर्णमाला की पहचान कर ले जाना चाहिए।
ReplyDeleteहमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से नहीं करना चाहिए|हमें बच्चों को उनके परिवेश से संबंधित शब्दों, वाक्यों एवं कहानियों के माध्यम से भाषा की शुरुआत करना चाहिए|ताकि बच्चे उन शब्दों को सुनकर समझ सकें और बोल सकें|इस प्रकार बच्चों को बालगीत, तुकबंदी वाले शब्दों एवं कहानियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की
ReplyDeleteगतिविधियों का उपयोग करते हुए वर्णमाला से परिचित कराने का प्रयास करना चाहिए|इससे बच्चों में सिखने की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सकता है |
बच्चों को भाषा सीखने के लिए परिवेश सापेक्ष होना चाहिए | बच्चे सुनकर और बोलने का अभ्यास करता है वह परिवार और समाज से भाषा सीखता है|
ReplyDeleteबच्चे किसी घटना या विषय की समझ आसानी से प्राप्त करलेते हैं जबकि वर्नोंको सिखाने में समय लेते हैं| अतः उन्हें विषय बोध होने के बाद वर्णों का ज्ञान सहजही होने लगता है|
ReplyDeleteBacchon ko bhasha sikhane ke liye unke parivesh ke aanusar khani kabita vakya shabd ya baatchit se karna chaiye tab ushe bhasha sikhane me bojh nahi lagega.
ReplyDeleteबच्चे को भाषा सिखाने की शुरूआत कविता , शब्दों ,काहानियांँ से की जानी चाहिए न कि वर्णमाला से ।
ReplyDeleteहमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी नहीं करनी चाहिए ।हमें बच्चों को उनके परिवेश के मुताबिक शब्दों से ,वाक्य से ,कहानियों से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए ताकि बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भलीभांति परिचित हो और उन शब्दों के उच्चारण कर पाए ।बारंबार उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है। अंत में जिन वर्णों से उन शब्दों का निर्माण होता है उन वर्णों को बच्चों के सामने रखना चाहिए।
ReplyDeleteJagannath Bera.
Oriya MS Arong, Baharagora, East Singhbhum.
बच्चों को भाषा सीखने की शुरुआत वर्णमाया वर्णक्रम के सीखने शुरुआत नहीं करनी चाहिए। बच्चा स्थूल रूप से शब्दों को देखता है। वर्णक्रम एवं वर्ल्ड के परिचय द्वारा भाषा को सिखाने की प्रक्रिया उबाऊ और बोझिल हो जाती है। जिससे बच्चा रुचि खो देता है। इसके विपरीत भाषा को स्थूल रूप से उठाने पर भाषा सीखने की प्रक्रिया उसके लिए सहज होती है क्योंकि वह अनौपचारिक रूप से बिना वर्णक्रम के भाषा से परिचित हो चुका है। फलता यह सहज एवं स्वभाविक लगती है। धीरे धीरे उसे वर्णो एवं वर्णक्रम से परिचित कराना उचित है।
ReplyDeleteबच्चे तो वास्तव में कच्चे घड़े होते हैं।प्रारंभिक अवस्था में इनके द्वारा मौखिक घरेलू भाषा में अपने भाषा सीखने की ओर अग्रसर होते हैं।इसी समय इनके द्वारा आरी -तिरछी रेखाओं,दिवाल/जमीन पर कुछ चित्र उकेरने आदि के कार्य किए जाते हैं।यही इनके भाषा सीखने के वास्तविक आधार होते हैं।हम सभी शिक्षकगणों को विद्यालय कक्ष में बच्चों के इन्ही विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए CRA विधि का सहारा लेते हुए वर्णमाला सिखलाने का प्रयास करना चाहिए।
ReplyDeleteहमें बच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णक्रम प्रारंभिक अवस्था में इनके द्वारा माफी घरेलू भाषा में अपनी भाषा सिखाने की ओर अग्रसर होते हैं इसी समय उनके द्वारा आरी तिरछी रेखाएं कुछ चित्र उतारने आदि के कार्य के भाषा सिखाने के वास्तविक आधार होते हैं हम सभी शिक्षक गणों को हम सभी शिक्षक गणों को विद्यालय कक्ष में बच्चों के इतनी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए वरमाला सिखाने का प्रयास करना चाहिए।
ReplyDeleteBhasha sikhane kisuruat barnmalase nahi karna chahie balki bachcho ki apni bhasha se jure hue kahania ,Kavitae,sun ne bolne se suruat karni chahie.
ReplyDeleteहमे भाषा सिखाने के लिए शुरुआत न तो वर्णमाला से और न ही वर्णमाला के क्रम से करना चाहिए बल्कि हमें भाषा सिखाने की शुरुआत बच्चों के मातृभाषा मे उनके चिर परिचित शब्दों से करना चाहिए। इसके बाद नये शब्दों,बाल कविता, रोचक कहानियाँ सुनाकर ध्वन्यात्मक जागरूकता पैदा करते हुए उन्हे बोलने का भरपूर अभ्यास कराना चाहिए।बाद मे वर्णमाला और वर्णमाला क्रम सिखाया जा सकता है।
ReplyDeleteबच्चे को भाषा सीखाने के लिए उसके परिवेश के अनुसार कहानी, कविता , वाक्य , शब्द या बात चीत से करना चाहिए।तब उसे भाषा सीखाने में बोझ नहीं लगेगा
ReplyDeleteप्रारंभिक अवस्था में इनके द्वारा माफी घरेलू भाषा में अपनी भाषा सिखाने की ओर अग्रसर होते हैं इसी समय उनके द्वारा आरी तिरछी रेखाएं कुछ चित्र उतारने आदि के कार्य के भाषा सिखाने के वास्तविक आधार होते हैं।
B.S.JONKO
UPG.M.S.JONUA
WEST SINGHBHUM JHARKHAND
भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से ना करके तुकांत कविता , बालगीत से करनी चाहिए।तुकांत वाली कविताओं का प्रयोग करने से बच्चों में भाषा के प्रति जुड़ाव होता है।
ReplyDeleteBhasa an important factor therefore it should be interesting
ReplyDeleteHamen Bhasha sikhane ki shuruaat varnamala Se Kabhi Nahin Karni chahie bacchon ko Unki parivesh ke anusar Chhoti Chhoti e kahaniyon Balgeet Rochak Anand Priya lagne wali gatividhiyon tukbandi on ke dwara bhashaen sikhani chahie
ReplyDeleteभाषा की शुरुआत वर्णमाला से न कर पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविधि करनी चाहिए | हमे छोटी छोटी कहानियां ' बालगीत तुकबंदी एवं रोचक गतिविधि का उपयोग करना चाहिए l
ReplyDeleteहमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी करनी चाहिए।बच्चों के परिवेश से ही छोटी छोटी कहानी,बालगीत,कविता के माध्यम से तुकबंदी शब्दों द्वारा सिखानी चाहिए।
ReplyDeleteUPG PS KARNAGORA(TOPCHANCHI-DHANBAD)
We should not start introducing the warnmala in hindi language while teaching the language in primary stage.we should proceed in this direction slowly.
ReplyDeleteWe should not introduce hindi warnmala while teaching the language in primary stage, rather we should proceed in this direction slowly
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कदापि नहीं करना चाहिए। भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविध करनी चाहिए, बोलना और सुनना से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए।
ReplyDeleteभाषा की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविधि करनी चाहिए।बोलना और सुनना से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए
ReplyDeleteहमें बच्चों को भाषा सिखाने के लिए वर्णमाला से शुरुआत नहीं करना चाहिए। हमें बच्चों के परिवेश जो बच्चे परिचित हैं, छोटी-छोटी कहानियां बालगीत, तुकबंदी,रोचक गतिविधियों का उपयोग कर अक्षर या वर्णमाला सिखाना चाहिए। बच्चों को सुनना बोलना पढ़ना लिखना के क्रमानुसार अभ्यास से सिखाना चाहिए।
ReplyDeleteभाषा की शुरूआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविधि करनी चाहिए। बोलना और सुनना से भाषा की शुरूआत करनी चाहिए।
ReplyDeleteबच्चे को भाषा सीखाने के लिए उसके परिवेश के अनुसार कहानी, कविता , वाक्य , शब्द या बात चीत से करना चाहिए।तब उसे भाषा सीखाने में बोझ नहीं लगेगा।भाषा सीखने की शुरुआत वर्णमाला के यथाक्रम परिचय देने का सुझाव नहीं दिया जाता है। ऐसा तब करना उचित है। जब बच्चे भाषा के यांत्रिक पहलू को सीखने के लिए तैयार हो और अर्थ के साथ पढ़ने के लिए पहले से निर्मित संदर्भ हो। एवं बच्चे लिखित भाषा का उपयोग करने का प्रयास करते हों। जैसे कहीं पर भी आड़े तिरछे लकीर खिंचना दीवार फर्श पर लिखना आदि
ReplyDeleteवर्णों काम अपने आप में कोई अर्थ नहीं है।वर्णो के मेल से शब्द बनते हैं।शब्दों के मेल से वाक्य बनते हैं।शब्दों एवं वाक्यों काम अपना अर्थ होता है।
ReplyDeleteबच्चों के सीखने की शुरुआत यदि वर्ण(जिनका कोई अर्थ नहीं होता) से किया जाए तो, बच्चों को कुछ भी समझ में नहीं आएगा।वे घुटन महसूस करते हैं।उनमें सीखने की गति बहुत धीमी हो जाती है।शिक्षक एवं शिक्षण दोनों ही उनके लिए भारत हो जाता है।
भाषा शिक्षण की शुरुआत ऐसे शब्दों, वाक्यों, कहानियों, कविताओं या तुकबंदी से किया जाना चाहिए ,जो बच्चों की मातृभाषा में हों।इनसे बच्चे जुड़ाव महसूस करते हैं।बच्चों को ज्यादा से ज्यादा बोलने एवं स्वयं से कुछ करने को बढ़ावा देना चाहिए।बच्चे जिन शब्दों को पहले से जानते हैं, उससे मिलता -जुलता तुकबंदी वाले शब्दों को बनाने हेतु प्रोत्साहित करना श्रेयस्कर होगा।बच्चे जब शब्दों एवं वाक्यों के अर्थ से अच्छी तरह से घुल-मिल जायें तो उनका ध्यान शब्दों में अंकित वर्णों की ओर अग्रसर कराना सुनिश्चित करतें है ं। शब्दों के प्रथम वर्ण से बनने वाले दूसरे शब्दों की ओर बच्चों को मोड़ते हैं।फिर शब्दों के अंतिम वर्ण से बनने वाले कुछ शब्दों को बच्चों के सामने पेश करते हैं।
भाषा शिक्षण में मुर्त से अमुर्त की ओर बढ़ा , श्रेयस्कर होगा।इससे बच्चे बहुत जल्दी एवं आसानी से सीखते हैं।
अनिल तिवारी
सहायक शिक्षक
रा म विद्यालय दुलदुलवा
मेराल गढवा झारखंड
बच्चे शुरुआत में मौखिक रूप से किसी भी चीज़ को सीखते हैं और लिखित रूप में उसके उपरांत अभ्यास करते हैं। वर्ण माला सीखने में बच्चों को अधिक दबाव नहीं बनाना चाहिए।मनोरंजक तरीके से हमें बच्चों को सीखना चाहिए।
ReplyDeleteभाषा की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविधि करनी चाहिए।बोलना और सुनना से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए ups haraiya Jay parkash singh
ReplyDeleteहमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से नहीं करना चाहिए|हमें बच्चों को उनके परिवेश से संबंधित शब्दों, वाक्यों एवं कहानियों के माध्यम से भाषा की शुरुआत करना चाहिए|ताकि बच्चे उन शब्दों को सुनकर समझ सकें और बोल सकें|इस प्रकार बच्चों को बालगीत, तुकबंदी वाले शब्दों एवं कहानियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की
ReplyDeleteगतिविधियों का उपयोग करते हुए वर्णमाला से परिचित कराने का प्रयास करना चाहिए|इससे बच्चों में सिखने की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सकता है
बच्चे शुरुआत में मौखिक रूप से किसी भी चीज़ को सीखते हैं और लिखित रूप में उसके उपरांत अभ्यास करते हैं। वर्ण माला सीखने में बच्चों को अधिक दबाव नहीं बनाना चाहिए।मनोरंजक तरीके से हमें बच्चों को सीखना चाहिए
ReplyDeleteभाषा की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से करना चाहिए जो सुबोपलि के गतिविधि पर अधारित हो|
ReplyDeleteBachchon ko bhasha sikhne ke liye Varna kram se nahi karna chahiye.Pahle moukhik rup se bhasha ke prati jurao ho eisi gatibidhi karna chahiye sunna sour bolna se bhasha ki suruat karna chahiye.
ReplyDeleteभाषा सिखाने की शुरुआत हमे वर्णमाला सिखाने से आरम्भ करने से बचना चाहिये।क्रमिक रूप से वर्णमाला सिखाने से भाषा सीखने-सिखाने की प्रक्रिया पूर्णतः यांत्रिक और बच्चों के के लिए जटिल अधिगम प्रक्रिया बनकर रह जाती है।ऐसा करने से सीधे लक्ष्य पर पहुंचने का प्रयास होता है जो बच्चों के लिए जटिल होता है।बच्चे समग्र रूप से भाषा कौशल सीखने के अनुभव से गुजरने से दूर रह जाते हैं।अतः हमें भाषा सिखाने की अधिगम प्रक्रिया में लघुकथा,कहानियां, शब्द खेल, तुकबन्दी, बालगीत, वार्तालाप जैसे गतिविधियों को अपनाते हुए आगे बढ़ना चाहिए जो भाषा सीखने की अधिगम को सुगम बनाती है।धन्यवाद।
ReplyDeleteहमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी नहीं करनी चाहिए। हमें बच्चों को उनके निकट परिवेश ,बातचीत ,शब्दों में वाक्यों ,कहानियों ,कविताओं ,बाल साहित्य ,आदि का उपयोग से शुरुआत करनी चाहिए। ताकि बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भलीभांति परिचित हो ।और उन शब्दों के उच्चारण कर पाए, उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है।अंत में जिन वर्णों से उन शब्दों का निर्माण होता है ,उन वर्णो को बच्चों के सामने रखना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों को प्रारंभिक चरणों मे भाषा सीखने की शरुआत वर्णमाला से नहीं करना चाहिए।बच्चे जब विद्यालय से जुड़ते हैं तो वे अपने साथ कई प्रकार का भाषा साथ लेकर आते हैं।सर्वप्रथम हमें उनके ही भाषाओं के माध्यम से सहज और सरल तरीके से विद्यालयी भाषा के साथ जोड़ने का प्रयास करना चाहिये।जब बच्चे विद्यालय से पूर्णतः जुड़ जाते हैं तो हमें धीर धीर कहानी ,कविताओं, तुकबन्दी, दिवार लेखन,एवं विभिन्न प्रकार के चित्रों के माध्यम से शब्द से परिचय करना चाहिये ततपश्चात हमें उन शब्दों में प्रयुक्त वर्णों को बताना चाहिए इससे बच्चे सहजता से वर्णों को सीख पाएंगे।
ReplyDelete--धन्यवाद
ANIL KR SINGH ,UMS RANCHI ROAD, RAMGARH
बच्चों को वर्णमाला क्रमानुसार सिखाने के अलावा परिवेश से जूडे़ चीजें,शब्द,कविताएं,कहानियां,तुकबंदी आदि शब्दों से भाषा का ज्ञान देना उचित है।
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने के लिए वर्णमाला क्रमानुसार सिखाने की आवश्यकता नहीं होती है। बच्चे अपने घर में मात्रृभाषा के शब्द,वाक्य, पहेली ,बाल कविता, बालगीत आदि से बहुत जल्दी सिखते है । धीरे धीरे दिमागी परिपक्वता आने के बाद तकनै तौर पर वर्णमाला सिखाया जाता है । जिस के माध्यम से अपने स्तर से किताब पढ़ने तथा पढ़ें गये विषय को लिखने में भी सक्षम होने लगते हैं।
ReplyDeleteBacchon mein Bhasha ko sikhane ki pravritti swabhavik hai bacche kisi bhi Bhasha ko sunkar sikhane AVN bolane pravritti pai jaati hai bhasha sikhane ke liye varnamala sikhane ki avashyakta nahin hai bacchon ko bhasha sikhane ke liye parivesh se sambandhit kahani Kavita balgeet Jo bacchon ke Ruchi ke anusar Ho karvana chahie isse bacche bhasha jald se jald Sikh payenge
ReplyDeleteBachchon ko bhasha sikhane ki shuruaat varnamala se nahi karni chahiye. Bachchon ki ruchi ke anusar manoranjak kahaniyan, Kavitayen, vakyon, shabdon aadi ke dwara sikhane ki shuruaat karne se bhasha ke prati2 unki jagrukta badhti hai aur khel khel me bahut sari jankariyan prapt kar lete hai.
ReplyDeleteहमें बच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णक्रम वर्णमाला से कभी नहीं करना चाहिए इस प्रकार पढ़ाने से बच्चों को बोझ लगने लगता है हमें बच्चों को छोटी-छोटी कहानियां बाल गीत तुकबंदी और गतिविधियों का उपयोग कर बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भली-भांति परिचित हो और उन शब्दों का उच्चारण कर पाए क्योंकि बार बार उन शब्दों का उच्चारण करने से बच्चों में भाषा के प्रति रुचि बढ़ने में मदद मिलती है और जिन वर्णों से शब्दों का निर्माण होता है उन वर्णों को बच्चों के सामने रखना चाहिए इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की ओर लौटते हैं और अधिगम की प्रक्रिया सरल बन जाती है
ReplyDeletebachho ko Bhasha sikhane ki shuruaat varnmala se kabhi nahin karni chahie es prakar se padhaane se baccho ko bojh sa lagne lagta hai bacchon ko Apne gharelu bhasha mein Matra bhasha mein boli jaane wali chhote chhote bike ke Kavita Bal kahani sikhane se bacche jaldi sikhate Hain
ReplyDeleteभाषा सिखाने के लिए वर्णमाला से शुरूआत करना बच्चों को सिखाने से पहले ऊबा देना जैसा है।बच्चों को उनके पहचान वाले वस्तुओ के चित्र दिखाकर उनके नाम बोलना सिखाना चाहिए तुकबंदी वाले शब्द खेल कविता कहानी सुनाना चाहिए जब बच्चे आनंद लेने लगें तब उन्हे अक्षर ज्ञान कराना चाहिए।
ReplyDeleteनरेश कुमार शर्मा उप्रावि तुरीयाटोला मोकामो सरिया गिरिडीह।
we should start the learning of children from wherever they have leart or whatever they know as per their age.so that study could be interestingfor them.
ReplyDeleteNahi hame bhasha sikhane ki suruat warnmala se nahi karni chahiye balki,picture card,kawita,rochak kahani,khel etc.ke madhyam se warno ki pahchan karani chahiye.
ReplyDeleteभाषा सिखाने की शुरुआत वर्णों से न करके छोटी छोटी कहानी,कविता को रोचक तरीके से गाकर एवम बच्चों से गवाकर करना चाहिए।
ReplyDeleteभाषा सिखाने की शुरुआत वर्णों से बिल्कुल नहीं करनी चाहिए बल्कि भाषा सिखाने की शुरुआत छोटी-छोटी कहानी, कविता, मनोरंजक गीतों के द्वारा ,चित्रों के द्वारा तथा ठोस वस्तुओं को दिखाकर करनी चाहिए।
ReplyDeleteभाषा सीखने की शुरुआत बर्णमाला से नहीं करना चाहिए ।बल्कि बच्चो की अपनी भाषा से जुड़े हुए कहानियां कविताएं सुनाने बोलने से शुरुआत करनी चाहिए।
ReplyDeleteभाषा सिखाने की शुरुआत के लिए वर्णमाला से शुरू करना जरूरी नहीं है परन्तु विशेष कर हिन्दी भाषा के व्याकरण की बात आये तो वर्णमाला से शुरुआत जरूरी है।
ReplyDeleteयदि हमभाषा सिखाने के क्रम में वर्णमाला से करते हैं तो कहीं ना कहीं हम बच्चों में रटने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करते हैं। जिससे बच्चों की पढ़ाई बोझिल एवं कष्टदायक महसूस होता है।और बच्चे ने शिक्षण निराश हो जाते हैं।इसलिए बच्चे को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से शुरुआत कदापि नहीं होनी चाहिए। इसके लिए हमें बच्चों को उनके परिवेश के मुताबिक शब्दों से ,वाक्य से ,कहानियों से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए ताकि बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भलीभांति परिचित हो और उन शब्दों के उच्चारण कर पाए ।बारंबार उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है। अंत में जिन वर्णों से उन शब्दों का निर्माण होता है उन वर्णों को बच्चों के सामने रखना चाहिए।
ReplyDeletePHUL CHAND MAHATO
UMS GHANGHRAGORA
CHANDANKIYARI
BOKARO
बच्चों को कभी वर्णमाला सीधा सीधी तौर पर नहीं सिखाना चाहिए। उसे अपने आसपास वातावरण की सारे शब्दों से परिचित करना चाहिए। उसके बाद उन शब्दों के पहले अक्षर से वर्णमाला को सिखाने का शुरुआत करना चाहिए।
ReplyDeleteभाषा की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविधि करनी चाहिए।बोलना और सुनना से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए।
ReplyDeleteReply
SUBHADRA KUMARI
ReplyDeleteRAJKIYAKRIT M S NARAYANPUR
NAWADIH BOKARO
बच्चो को रोजमर्रा के कार्य से संबंधित और अपने आसपास के वातावरण से परिचित शब्दों के साथ तुकबंदी, बालगीत, कविता, कहानी आदि के साथ रोचक गतिविधियों के माध्यम से सीखाने से बच्चें आसानी से सीखते हैं।
शुरूआत में अक्षर/वर्ण से सीखाने से बच्चों को सीखने में कठिनाई होती है ।इसलिए अक्षर/वर्णमाला से सीखना उचित नही होगा ।
धन्यवाद
हमें बच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत कभी भी वर्णमाला से नहीं करनी चाहिए। यह एक बोझिल प्रक्रिया है। हमें छोटी-छोटी कहानियों कविता बाल गीत एवं तुकबंदी वाले शब्दों का प्रयोग कर इन शब्दों से बच्चों को परिचित कराने का प्रयास करना चाहिए। जानवरों या फल फूल सब्जियों आदि के बड़े-बड़े चित्र बने हो तथा उसके नीचे उन चीजों के नाम लिखे हो तो बच्चों को उन शब्दों से परिचित कराने में आसानी होगी।
ReplyDeleteBhasha sikhane ke pahle warn sikhana jaruri nahi hai. Bache swatah apne pariwar ya parivesh me rahkar bhasha sikhte hain.Bhasha sikhane ke pahle samvad,paheli,chutkule ewam kahaniyon ke madhyam se bhasha sikhane ki suruwat ki ja sakti hai.
ReplyDelete
ReplyDeleteReplyहमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी नहीं करनी चाहिए ।हमें बच्चों को उनके परिवेश के मुताबिक शब्दों से ,वाक्य से ,कहानियों से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए ताकि बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भलीभांति परिचित हो और उन शब्दों के उच्चारण कर पाए ।बारंबार उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है। अंत में जिन वर्णों से उन शब्दों का निर्माण होता है उन वर्णों को बच्चों के सामने रखना चाहिए।
Hamen Bhasha sikhane ki shuruaat varnamala Se Kabhi Nahin sikhani chahie Kyunki bacchon ko pahle unke parivesh ke mein hi shabdon Vakya kahaniyon se Bhasha ki shuruaat karne chahie Taki bacche pahle Ansari shabdon se bani Bharati parichit ho aur Un shabdon Ka ucharan Kar Paye Bar Bar ucharanKarke bacchon Mein bhasha ke Prati jagrukata ko badhane Mein madad Milegi antmain me varnan se an shabdon ka Nirman Aur shabdon Ko Padhne Mein varnan ko sikhana chahie
ReplyDeleteबच्चों को सुनना बोलना पढ़ना और लिखना क्रम के अनुसार सीखाना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों को सुनना बोलना पढ़ना और लिखना के क्रम में सीखाना चाहिए इससे बच्चे स्कूल का माहौल पाकर आसानी से दूसरी चीज सीख लेता है।
ReplyDeleteभाषा सिखाने की शुरुआत पहले मौखिक भाषा से शब्दों को उसके मातृभाषा के साथ जोड़कर सिखाने चाहिए।
ReplyDeleteहमें कभी भी भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से नहीं करनी है| सर्वप्रथम बच्चे अपने ही परिवेश से परिचित हो जाएँ याने कि उसका प्रथम पाठशाला अपना ही परिवार है एवं आसपास का वातावरण जिससे वह भली भांति जानता है, समझता है, पहचानता है, उसके बारे बता सकता है| परंतु जब वह विद्यालय में प्रवेश करता है तो उसे एक नई अनुभूति मिलती है और उसे भी वह स्वीकार करता है|अतः हम शिक्षक उनके परिवेश से सीखने-सिखाने की शुरुआत करें| इसके लिए हमें उसकी भाषा को बोलने से नहीं रोकना है|उनके द्वारा मन के विचारों को प्रकट करने से हम उनके बहुत से गुणों की पहचान करेंगे| जब भाषा सीखने की बात होती है, तो यदि बच्चे सुनने में आनंद का अनुभव करें तो वे जो सुनते हैं उसे वे याद भी करेंगे| सुनने के बाद वे उसे बोलकर प्रकट करेंगे|अत:सुनने के लिए हम वर्णमाला को किसी लय में पिरो कर सुनाते हैं, तो उन्हें बोलने में भी आनंद आता है| जब बच्चे सुनने और बोलने, अनुकरण करने का अभ्यास करते हैं तो वे स्वयं पाठ्यपुस्तक के तस्वीर को देखकर पढ़ते हैं, चित्रों को देखकर कोई भी कहानी रचते हैं| इसके बाद वे लिखी गई वर्णों को अपनी समझ से पढ़ने की शुरुआत करते हैं,जब कि उनके बोलने में त्रुटियाँ रहती हैं| हमें वर्णमाला बोलने का अभ्यास कराने के बाद रेखा खींचना, सीधी, आड़ी- तिरछी लकीर खींचने का अभ्यास कराना है| अब वे जमीन पर बालू में रेखा खींच कर वर्णमाला को गढ़ेंगे और कंकड़ अथवा किसी फल के बीजों को उस पर रखकर वर्णों का रूप देंगे| वर्णमाला सिखाते समय हम कम से कम वर्णों की पहचान कराएंगे| इसके लिए शिक्षक वर्णमाला के कोई अक्षर पर अपनी छड़ी रखकर पूछेंगे कि यह क्या है? इसे हम क्या पढ़ेंगे| उसके बाद बच्चों से भी यही प्रक्रिया दोहराने को अवसर देंगे| तब उन्हें अपनी कॕापी में एक प्रकार के दो व्यंजन वर्णों को जोड़ने सिखाएंगे| दो वर्णों को जोड़ने के बाद बच्चों को तीन व्यंजन वर्णों को जोड़कर लिखना सिखाएंगे|वे उसे पढ़ते हुए लिखेंगे| इस तरह धीरे धीरे वे अन्य वर्णों की पहचान करके उस पर अपना अधिकार प्राप्त कर लेंगे| इस समय हम उन्हें अपने नाम लिखने के लिए प्रोत्साहित करेंगे| जब बच्चे बोल बोल कर पढ़ते हैं, लिखते हैं उनकी स्मरण शक्ति स्थाई होती है| अतः उन्हें हमेशा ही शांत रहने का दबाव नहीं करना है| इसी क्रम में हम देखते हैं कि वर्णमाला सीखने वाले कक्षा को विद्यालय में अलग स्थान देते हैं|
ReplyDelete- यह भी आवश्यक है कि हम वर्णों को क्रमानुसार लिखने का अभ्यास कराए क्योंकि इसकी अलग पहचान है| यह भविष्य में बच्चों को व्याकरण संबंधी ज्ञान प्राप्त करने के लिए अच्छा अभ्यास बनेगा| वे आसानी से क्रम अनुसार वर्गों में संगठित वर्णों को समझ पाएंगे| जैसे:- क वर्ग - क ख ग घ ड इत्यादि| बाद में वे पूरे वर्णमाला के वर्णों के अपने-अपने स्थान पहचान लेंगे जो कि हिंदी भाषा एवं संस्कृत भाषा दोनों के लिए सहायक होगा|वे व्याकरण संबंधी बातों को जल्दी समझेंगे|
पुष्पा तेरेसा टोप्पो
ख्रीस्त राजा म.विद्यालय,
चंदवा,लातेहार-829203
भाषा की शुरुआत वर्णमाला से ना करके पहले मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविधि करनी चाहिए बोलना और सुनना से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए
ReplyDeleteहमें भाषा की शुरुआत वर्णमाला से न करके पहले मौखिक रूप से ही करनी चाहिए ताकि बच्चों में भाषा के प्रति जुड़ाव हो सकें । कोई भी बच्चा अपनी मातृभाषा को वर्णमाला की पढ़ाई करके नहीं सीखता बल्कि वे उस भाषा को अपने परिवार और आसपास के लोगों से निरंतर मौखिक सुनने से ही सिख लेता । इसलिए भाषा सिखाने का प्रारंभ मौखिक तौर पर ही करनी चाहिए ।
ReplyDeleteहमे भाषा सिखाने की शुरुवात वर्णमाला सिखाने या उनका क्रमानुसार परिचय से कभी नहीं करना चाहिए। हमें उनकी भाषा से शुरुवात करते हुए कविताओं,कहानियों,गीतों आदि का वाचन करवाना चाहिए।उनकी आवश्यक सामग्रियों एवम परिवेश की वस्तुओं का बोलकर उच्चारण करना और करवाना चाहिए।इसके पश्चात शब्दों में प्रयुक्त वर्णों की पहचान करवाना चाहिए।
ReplyDeleteभाषा सीखाने की शुरुआत वर्णो से करने पर पढ़ाई नीरस होने लगती है,बच्चे शिक्षा के मूल उद्देश्य से भटक जाते
ReplyDeleteहैं उन्हें शिक्षा एक व्यवस्थित क्रिया का हिस्सा लगने लगता है |अतः भाषा की शुरुआत कुछ रोचक गतिविधियों द्वारा खेल के माध्यम से उनके सम्पूर्ण जुड़ाव के साथ किया जाय तथा उन्हें इसका महत्व खुद अनुभव करने का भरपूर मौका दिया जाय तो वे शिक्षा को अपनी दैनिक जरुरत मानते हुए इससे जुड़ाव महसूस करेंगे |उनको प्रत्यक्ष अनुभव कराने के लिए हम विभिन्न शिक्षण अधिगम सामग्री का उपयोग कर सकते हैं |
हमें भाषा सीखाने की शुरुआत वर्णमाला सिखाने से कभी नहीं करनी चाहिए।हमें बच्चों को उनके परिवेश के अनुसार शब्दों से, वाक्यों से,कहानियों से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए ताकि बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भलीभांति परिचित हो और उन शब्दों को उच्चारण कर पाए।इसके बाद ही लिखना सिखाने चाहिए।बच्चे जब सही उच्चारण के साथ वर्ण, अक्षर और शब्दों को अच्छी तरह लिख, पढ़, बोल सकेगें तब उन्हें क्रमानुसार वर्णमाला से परिचित कराना चाहिए।
ReplyDeleteHamen Bhasha sikhane ki shuruaat vah varnmala Se Kabhi Nahin Karana chahie Hamen bacchon ke bacchon ko unke parivesh ke anusar shabdon se shabdon se a Kahani Kavita Vakya Shabd ya batchit se karane chahie tabhi unko sikhane Mein pahunch Nahin lagega bacche shabdon se bade bade parichit ho kar Khoon shabdon ko Sahi ucharan kar Payenge Iske bad hi likhane sikhane chahie bacche Jab Sahi ucharan ke sath Van Akshar Aur shabdon Ko acchi Tarah Se likh pagol Sakenge Tab unhen kramanusar varnmala Se parichit Karana chahie Advani tatha Akshay padhne likhne tab
ReplyDeleteहमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से नहीं करना चाहिए|हमें बच्चों को उनके परिवेश से संबंधित शब्दों, वाक्यों एवं कहानियों के माध्यम से भाषा की शुरुआत करना चाहिए|ताकि बच्चे उन शब्दों को सुनकर समझ सकें और बोल सकें|इस प्रकार बच्चों को बालगीत, तुकबंदी वाले शब्दों एवं कहानियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की
ReplyDeleteगतिविधियों का उपयोग करते हुए वर्णमाला से परिचित कराने का प्रयास करना चाहिए|इससे बच्चों में सिखने की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सकता
बच्चों को वर्णमाला क्रमानुसार सिखाने के अलावा परिवेश से जुड़ी चीजें शब्द, वाक्य से भाषा का ज्ञान देना उचित है। चित्र के माध्यम से भी हम सिखा सकते हैं।
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने के लिए वर्णों से प्रारंभ ना करके छोटी-छोटी कविताएं कहानियां तुकबंदी वाले शब्दों का संदर्भ लेते हुए सीखने की प्रक्रिया को रुचिकर बनाया जा सकता है बच्चों की अपनी रुचि की बातें भी बोलने एवं लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तो बच्चों को भाषा सीखना बोझ नहीं लगेगा
ReplyDeleteGood Subject
ReplyDeleteशुरू में वर्णमाला सिखाने की आवश्यकता नहीं होती है। बच्चों को उनके रूचि के अनुसार वही शब्द बोलने देना चाहिए जो घर और परिवार में बोलता और सुनता है जिससे उसका स्वाभाविक लगाव होता है। धीरे - धीरे उसी शब्द को लिख ने का अभ्यास कराना चाहिए। फिर हम सु बो प लि की मदद से वर्णमाला पर ला सकते हैं। M. MARANDI KHAIRBANI JAMTARA
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से नहीं करना चाहिए|हमें बच्चों को उनके परिवेश से संबंधित शब्दों, वाक्यों एवं कहानियों के माध्यम से भाषा की शुरुआत करना चाहिए|ताकि बच्चे उन शब्दों को सुनकर समझ सकें और बोल सकें|इस प्रकार बच्चों को बालगीत, तुकबंदी वाले शब्दों एवं कहानियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की
ReplyDeleteगतिविधियों का उपयोग करते हुए वर्णमाला से परिचित कराने का प्रयास करना चाहिए|इससे बच्चों में सिखने की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सकता है |
हमें बच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णों /वर्णक्रम से कदापि नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस तरह पढ़ाने से बच्चे को पढ़ाई बोझ लगने लगती है। इसलिए बच्चों को पढ़ाने के लिए
ReplyDeleteहमें छोटी-छोटी कहानियों,बालगीत,तुकबंदी और रोचक गतिविधियों का उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की ओर लौटते हैं और अधिगम की प्रक्रिया सरल और आनंदमयी हो जाती है।
बच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से नहीं करनी चाहिए और ना ही क्रमानुसार वर्णमाला से परिचित कराना चाहिए क्योंकि इससे बच्चों को बोझ लगेगा। हमें छोटी-छोटी कहानियां,किस्से,कविता, बालगीत, तुकबंदी और रोचक गतिविधि का आयोजन एवं चित्र प्रदर्शनी कराना चाहिए।इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की ओर बढ़ेगा और भाषा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया सरल एवं आसान होगा।
ReplyDeleteHamen bacchon ko bhasha sikhane ke pahle varnmala ki jankari Deni chahie isase bacche shabdon ko acchi Tarah samajhte Hain.
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला के अक्षरों से न करके परिचित शब्दों, कहानियों, कविताओं तथा तुकबंदी के शब्दों से की जानी चाहिए|मछली शब्द के प्रथम अक्षर म से वर्णमाला म का परिचय बाद में कराया जा सकता है|
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सीखने की शुरुआत वर्ण क्रम से नही करके कहानी,कविता,तुकबंदी एवम रोचक गतिविधि से करनी चाहिए।
ReplyDeleteबारबार उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है।इस प्रकार बच्चे मूर्त से अमूर्त की ओर लौटते हैं और अधिगम की प्रक्रिया सरल हो जाती है।
ReplyDeletePuna singh
GPS-SUTILONG BUNDU.
हमें बच्चों को भाषा सिखाने के लिए वर्ण या वर्ण क्रम से प्रारंभ नहीं करना चाहिए ऐसे करने से बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि घट जाएगा | बच्चों को ऐसे किताब देना चाहिए जहां पर कुछ चित्र हो और चित्र के नीचे कोई छोटे-छोटे वाक्य लिखे हो जो चित्र से संबंधित हो| बच्चे चित्र को देखकर ही कुछ हद तक समझ लेते हैं कि उसके नीचे जो लिखा हुआ है वह चित्र से संबंधित है और वह क्या लिखा है वह चित्र को देखकर ही कुछ हद तक समझ लेते हैं |
ReplyDeleteबच्चे अक्षर और चित्र को एक ही तरह से देखते हैं।अर्थात अक्षर चित्र के समान दिखते है।उन्हें समझना एक जटिल कार्य लगता है। इसलिए पहले बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार खेल खिलौने गीत नाटक हास्य क्रियाकलाप के बाद संदर्भ से जुड़े कहानियां के माध्यम से तथा चित्रों के माध्यम से समझने के बहुत बाद मेप्रिंट या अक्षर ज्ञान कराया जाना चाहिए।ताकि उनका मन पढ़ाई के प्रति लगा रहे। रोचकता बनी रहे।
ReplyDeleteसबसे पहले बोल चाल द्वारा भाषा का जानकारी होना चाहिए।2साल बाद हीं वरणमाला का पढाई होना चाहिए।ताकि ठीक-ठीक समझ हो।
ReplyDeleteWarn ke pahle khel kawita kahani chitron ke madhyam se sikhaya ja sakta hai.
ReplyDeleteWarn ke pehle khel Kavita kahani chitro ke madhaym se shikhaya ja skata h
ReplyDeleteभाषा सीखने की शुरुआत पहले मौखिक भाषा से शब्दों को उसके मातृभाषा के साथ जोडकर सीखना चाहिए.
ReplyDeleteबच्चों की शिक्षा का प्रारंभ मौरिवक भाषा से की जानी चाहिए । जहाँ तक वर्णमाला का प्रश्न है वर्णमाला सीखना तो आवश्यक है ही परन्तु उसे क्रम से सिखलाना ठीक नहीं । इसके स्थान पर वर्णमाला के विभिन्न अक्षरों की पहचान क्रम तोड़कर कराया जाना चाहिए क्यों कि पुस्तक पढ़ने के दौरान शायद ही कभी ये क्रम से आते हों । सभी अक्षरों से पहचान हो जाने के उपरान्त इसे क्रमवार बताया जाना अधिक प्रायोगिक प्रासंगिक और उपयुक्त प्रतीत होता है।
ReplyDeleteबच्चे अपने आस पास के वातावरण में बहुत कुछ सीखते रहते हैं , पहले बात चित कर उसके ज्ञान के आधार से भाषा सीखाने की शुरुआत करने की कोशिश करना चाहिए।
ReplyDeleteहमें बच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णों, वर्णक्रम से कदापि नहीं करनी चाहिए । इस तरह पढाने से बच्चों को पढ़ाई बोझ लगने लगती है । हमें छोटी-छोटी कहानियों, बालगीत, तुकबंदी और रोचक गतिविधियों का उपयोग करना चाहिए । इस प्रकार से बच्चे मूर्त से अमूर्त की ओर लौटते हैं और अधिगम की प्रक्रिया सरल हो जाती है ।
ReplyDeleteअनिमा रा उ म वि मकरा गुमला
Banchon ko bhasha sikhane ki suruaat varmala se na karke apni bhasa se aananddayi balgit, kahaniya ttha rochak gatividiyon ke dwara karna chahiye.
ReplyDeleteवर्णमाला से शुरुआत करते हुए भाषा की पढ़ाई एक परंपरागत रीति रही है और इस तरीके से भी असंख्य विद्वान बहुविध विधाओं में हुए किंतु आधुनिक शोधों एवं खोजों के पश्चात भाषा विशेषज्ञों और शैक्षणिक जगत के विद्वानों ने यह पाया कि वर्णमाला से भाषा के शिक्षा की शुरुआत उचित नहीं है। यह एक यंत्रात्मक प्रक्रिया हो जाती है और सामान्य तौर पर बच्चे अर्थ को ग्रहण किए बिना रटते चले जाते हैं। आधुनिक शोधों के अनुसार बच्चे को उसके परिवेश में ज्ञात और उपयोग में आ रहे शब्दों, चाहे वो उसकी मातृभाषा के हों या घर में बोली जाने वाली भाषा के, उन शब्दों का इस्तेमाल करते हुए, उसे स्थूल वस्तुओं से जोड़ते हुए यदि हम वर्णों तक का सफर तय करें और वर्ण से शब्द और वाक्य या बात को अभिव्यक्त करना सीखें तो इस प्रकार शब्दों में उपयुक्त वर्ण और उनके विविध प्रयोगों को बच्चों के स्मृति में स्थाई करने का प्रयास करें। इसके साथ ही बच्चे को अधिक से अधिक अवसर अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का देकर और कहानियां, कविताएं, तुकबंदी, आदि ऐसे ही विविध प्रयोगों के द्वारा उसकी भाषा को समृद्ध करने का प्रयास करें तो यह अधिक सार्थक सिद्ध हो सकता है।
ReplyDeleteWe should not teach the students serially alphabet. We should try to show them pictures and then we should ask the names of that pictures and their initial sound of first letters. After that we should write that letter on black board. Practice makes their learning easier. Finally, we should teach them alphabet.
ReplyDeleteShashi Kesh Munda, M.S.BERAKENDUDA ANANDPUR, West Singhbhum Bachchon ko path achchhi trah samajh mein aaye isliye jarurat padne per bachchon ko isle ghar ka bhasha mein bhi sajjan chahiye
ReplyDeleteहम बच्चों को वर्णमाला सिखाने के बंधन में नहीं बांध सकते।बल्कि उन्हें उनके परिवेश में पाए जाने वाले भाषा के शब्दों के आधार पर वर्ण की पहचान कराते हुए उनके रुचि को ध्यान में रखकर वर्णों की पहचान कर सकते हैं ना कि क्रमानुसार वर्णमाला। ज्ञान के चक्कर मे उलझन पैदा करना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चा शुरुआती दौर में सुनना और बोलना इन दो कौशलों में पारंगत रहता है। बाद में पढ़ना और लिखना इन्हीं दो कौशलों को विकसित करने की आवश्यकता होती है। बच्चों को भाषा सिखाने के क्रम में कभी भी वर्णमाला से शुरुआत नहीं करनी चाहिए। नई शिक्षा नीति 2020 में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है की बच्चों को भाषा शिक्षण में चित्र शब्द, कविता, कहानी के माध्यम से शुरुआत करनी चाहिए। बच्चों को भाषा शिक्षण में ज्यादा से ज्यादा समृद्ध मुद्रण सामग्री का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि बच्चा चित्र को शब्द से जोड़कर समझ सके। जब बच्चा शब्द को समझ ले तो फिर अंत में उन्हें अक्षर का ज्ञान करवाना चाहिए ताकि बच्चा समझ के साथ पढ़ सके और उन्हें बेहिचक अपनी भाषा में व्यक्त भी कर सके। कहने का तात्पर्य है की बच्चों को मूर्त से अमृत की ओर ले जाना चाहिए।
ReplyDeleteराजेंद्र पंडित सहायक शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय चांदसर, महागामा गोड्डा।
बच्चों को उनके आसपास के माहौल, उनके परिचित भाषा आधारित वाक्यों कहानियों, शब्दों, मिलते-जुलते शब्दों आदि के माध्यम से विद्यालय में प्रयुक्त होने वाली भाषा सिखाने की ओर अग्रसर करना चाहिए। मेरे अनुसार क्रमवार वर्णमाला, शब्द, वाक्य आदि आदि सिखाने की प्रक्रिया बच्चों में नहीं लागू करनी चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से नहीं करनी चाहिए l उनके परिवेश पर आधारित शब्दों वाक्यों कहानियां के माध्यम से भाषा का ज्ञान और परिचय कराना चाहिए l अंत में शब्द में किन वर्णों का प्रयोग हुआ है उसको रखना चाहिए l उसके बाद वर्णमाला का ज्ञान कराया जाना चाहिए l
ReplyDeleteSHAKIL AHMED
ReplyDeleteR M S BAREPUR HUSSAINABAD PALAMU
बच्चों को भाषा सीखने की शुरुआत वर्नमाला से नहीं करनी चाहिए बल्कि उनके मातृभाषा पर आधारित शब्दों से करनी चाहिए।साथ ही घरेलू माहौल में प्रयुक्त वस्तु, जानवरों, अनाजों, सब्जियों, फलों के चित्रों के माध्यम से शब्दों के परिचय कराने के बाद वर्णमाला सिखाया जाए।
शकील अहमद रा म विद्यालय बड़ेपुर हुसैनाबाद पलामू
हमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी नहीं करनी चाहिए ।हमें बच्चों को उनके परिवेश के मुताबिक शब्दों से ,वाक्य से ,कहानियों से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए
ReplyDeleteवर्णमाला से भाषा सिखाने की शुरुआत अधिकांश बच्चों के लिए बोझिल और उबाऊ होता है| इसके बनिस्बत हमें उनके परिवेश में मौजूद गीतों,बालगीतों,कहानियों,बालसाहित्य आदि से शुरुआत कर उन्हें धीरे- धीरे लक्ष्य भाषा की ओर ले चलना चाहिए|
ReplyDeleteBachhon ko bhasha sikhane ki shuruaat varnamala se nahin karni chahiye. Use chhote-chhote shabdon chhoti-chhoti kahaniyan, kavita, balgeet, tukbandi,rochak geet dwara padhaya Jana chahiye.~Aruna Sinha,UMS kanya Gidhour,Chatra
ReplyDeleteहमे बच्चों को भाषा सीखने के लिए वर्णमाला सीखने से कतई शुरुआत नहीं करनी चाहिए। बच्चे विद्यालय में कोई ना कोई भाषा सीख कर ज़रुर आते हैं। जानने वाली भाषा को एक सहायक माध्यम के रूप में उपयोग करते हुए उनके परिवेश से
ReplyDeleteजुड़े शब्दों, कहानियों, लोक गीतों आदि से भाषा सीखने की शुरुआत की जा सकती है।
हम जानते है हैं कि बच्चों में भाषा सीखने और उसका अधिकतम उपयोग करना उसकी स्वाभाविक क्षमता होती है।
ReplyDeleteमेरे विचार से बच्चों को भाषा सीखाने की शुरुआत चित्रात्मक कहानी/तुकबंदी/बालगीत/बालकथा/पहेली आदि के साथ करनी चाहिए।
भाषा सीखने की शुरुआत वर्णमाला के यथाक्रम परिचय देने का सुझाव नहीं दिया जाता है। ऐसा तब करना उचित है। जब बच्चे भाषा के यांत्रिक पहलू को सीखने के लिए तैयार हो और अर्थ के साथ पढ़ने के लिए पहले से निर्मित संदर्भ हो। एवं बच्चे लिखित भाषा का उपयोग करने का प्रयास करते हों। जैसे कहीं पर भी आड़े तिरछे लकीर खिंचना दीवार फर्श पर लिखना आदि। तब यह स्वभाविक रूप से पता चल जाता कि उन्हें यह जानने की आवश्यकता है कि अक्षर और ध्वनि में क्या संबंध है और अक्षर पढ़ने लिखने में कैसे कार्य करते हैं ,तब बच्चों को क्रमानुसार वर्णमाला से परिचय कराना चाहिए।
रणजीत यादव,
उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय जिरहुलिया, सी.आर.सी- म.वि.बांका, प्रखंड- हंटरगंज, जिला- चतरा, झारखण्ड।
हमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी नहीं करनी चाहिए ।हमें बच्चों को उनके परिवेश के मुताबिक शब्दों से ,वाक्य से ,कहानियों से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए ताकि बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भलीभांति परिचित हो और उन शब्दों के उच्चारण कर पाए ।बारंबार उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में हमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी नहीं करनी चाहिए ।हमें बच्चों को उनके परिवेश के मुताबिक शब्दों से ,वाक्य से ,कहानियों से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए ताकि बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भलीभांति परिचित हो और उन शब्दों के उच्चारण कर पाए ।बारंबार उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है। अंत में जिन वर्णों से उन शब्दों का निर्माण होता है उन वर्णों को बच्चों के सामने रखना चाहिएRavindra
ReplyDeleteहमें बच्चों को भाषा सिखाने के लिए वर्ण या वर्ण क्रम से प्रारंभ नहीं करना चाहिए ऐसे करने से बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि घट जाएगा | बच्चों को ऐसे किताब देना चाहिए जहां पर कुछ चित्र हो और चित्र के नीचे कोई छोटे-छोटे वाक्य लिखे हो जो चित्र से संबंधित हो| बच्चे चित्र को देखकर ही कुछ हद तक समझ लेते हैं कि उसके नीचे जो लिखा हुआ है वह चित्र से संबंधित है और वह क्या लिखा है वह चित्र को देखकर ही कुछ हद तक समझ लेते हैं
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने के लिए पहले मौखिक रूप से छोटे-छोटे कहानियां बाल गीत कविताएं अपने क्षेत्र के लोकगीत के माध्यम से शुरू करना चाहिए इससे बच्चे रुचि के साथ देखते हैं सुनते हैं और करते हैं ध्वनियों को सीख ने समझने के बाद बच्चों को डिकॉर्डिंग सिखाना चाहिए ।
ReplyDeleteBachchon ko bhasha sikhane ke liye maukhik rup se chhote-chhote khaniyon, bal geet, kavitayen avam apne kshetra ke lokgeet ke madhyam se shuru karna chahiye, isse bachche ruci ke sath dekhte, sunte aur karte hain. Dhwaniyon ko sikhne-samajhne ke bad bachchon ko decoding sikhana chahiye.
ReplyDeleteHamen bacchon ko sikhane mein wr ka Dhyan rakh kar kahani Kavita Chitra Katha geet Vidyarthi se karna chahie
ReplyDeleteहमें बच्चों को भाषा सिखाने के लिए सबसे पहले बाल गीत छोटे-छोटे कहानियां क्षेत्रीय लोकगीत स्थानीय भाषाओं का प्रयोग करते हुए उन्हें भाषा सिखाना चाहिए ताकि वह आसानी से सीख सके बच्चों को अधिक से अधिक बोलने और सुनने का अवसर देना चाहिए इससे बच्चे सुनकर और बोलकर भाषाओं का ज्ञान अर्जन कर सकता है
ReplyDeleteKisi bhi bhasha ko sikhane ke liye barnmala ki jrurat hoti hai is liye bachcho ko khel khel me barnmala sikhane chahiye
ReplyDeleteबच्चों की शिक्षा को वर्ण माला से कभी नहीं सीखना चाहिए । ऐसे में उन्हें बोझ महसूस होता है । उन्हें छोटी छोटी कहानियों से पढ़नी चाहिए । धीरे-धीरे सरल शब्दों को बताना चाहिए । तब छोटे छोटे वाक्यों को पढ़ाना चाहिए । कविताओं के माध्यम से विभिन्न प्रकार की गतिविधियों कराने से बच्चे भली भांति सीख पाएंगे । सुखलाल मुर्मू धनबाद ।
ReplyDeleteकिसी भाषा को पढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका वर्णमाला से शुरू करना नहीं है। भाषा बोलने और सुनने के माध्यम से सिखाई जानी चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सीखने की शुरुआत वर्णमाला से नहीं बल्कि ऐसी गतिविधियों से करनी चाहिए जो मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो।
ReplyDeleteबच्चा शुरुआती दौर में सुनना और बोलना इन दो कौशलों में पारंगत रहता है। बाद में पढ़ना और लिखना इन्हीं दो कौशलों को विकसित करने की आवश्यकता होती है। बच्चों को भाषा सिखाने के क्रम में कभी भी वर्णमाला से शुरुआत नहीं करनी चाहिए। नई शिक्षा नीति 2020 में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है की बच्चों को भाषा शिक्षण में चित्र शब्द, कविता, कहानी के माध्यम से शुरुआत करनी चाहिए। बच्चों को भाषा शिक्षण में ज्यादा से ज्यादा समृद्ध मुद्रण सामग्री का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि बच्चा चित्र को शब्द से जोड़कर समझ सके। जब बच्चा शब्द को समझ ले तो फिर अंत में उन्हें अक्षर का ज्ञान करवाना चाहिए ताकि बच्चा समझ के साथ पढ़ सके और उन्हें बेहिचक अपनी भाषा में व्यक्त भी कर सके। कहने का तात्पर्य है की बच्चों को मूर्त से अमृत की ओर ले जाना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चे को भाषा सीखाने के लिए उसके परिवेश के अनुसार कहानी, कविता , वाक्य , शब्द या बात चीत से करना चाहिए।तब उसे भाषा सीखाने में बोझ नहीं लगेगा।भाषा सीखने की शुरुआत वर्णमाला के यथाक्रम परिचय देने का सुझाव नहीं दिया जाता है। ऐसा तब करना उचित है। जब बच्चे भाषा के यांत्रिक पहलू को सीखने के लिए तैयार हो और अर्थ के साथ पढ़ने के लिए पहले से निर्मित संदर्भ हो। एवं बच्चे लिखित भाषा का उपयोग करने का प्रयास करते हों। जैसे कहीं पर भी आड़े तिरछे लकीर खिंचना दीवार फर्श पर लिखना आदि। तब यह स्वभाविक रूप से पता चल जाता कि उन्हें यह जानने की आवश्यकता है कि अक्षर और ध्वनि में क्या संबंध है और अक्षर पढ़ने लिखने में कैसे कार्य करते हैं ,तब बच्चों को क्रमानुसार वर्णमाला से परिचय कराना चाहिए।रणजीत प्रसाद मध्य विद्यालय मांडू,रामगढ़।
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णों से कभी भी नही करनी चाहिए।ऐसा करने से बच्चे बोझिल महसूस करने लगते हैं।बच्चों को छोटी छोटी कहानिया,रोचक गीत इत्यादि द्वारापढाया जाना चाहिए।
ReplyDeleteजी नहीं। हमें बच्चों को क्रमिक रूप से वर्णमाला का ज्ञान देना चाहिए।
ReplyDeleteहमें भाषा सीखाने की शुरुआत वर्णमाला से करने की कतई आवश्यकता नहीं है। बच्चें सर्वप्रथम सुनकर भाषा सीखना प्रारंभ करते हैं, अतः हमें बच्चों को उनके परिवेश में उपयोग किए जाने वाले सरल शब्द, वाक्य, कहानी, कविता आदि से भाषा सीखाने की शुरुआत करने की आवश्यकता है।
ReplyDeleteबच्चों को चित्र कार्ड के माध्यम से शब्दों को दर्शाना चाहिए। जब बच्चे पूर्ण रूप से वर्णमाला से परिचित हो जाएं, तो ही उन्हें क्रमानुसार वर्णमाला की जानकारी प्रदान करना चाहिए।
Ki shuruaat shuruaat varnamala se nahin karni chahie bhasha sikhane ke liye bacchon ke parivesh mein paye jaane wale chijon ke naam Jo chhote chhote shabdon se Bane Hain unka istemal karna chahie is bacche ka purv Anubhav bhi Shamil Ho jaega aur bacche shabdon ke sath sath vanmala bhi six lenge
ReplyDeleteBhasha sikhane ki suruwat barnmala se nahin karni chahiye.Bacchon ko chitra kard,parivesh mein upyog karnewale wastuwon adi sebhasha sikhne ki suruwat ki ja sakti hai.
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सीखने के की शुरुआत वर्णों से नहीं करनी चाहिए,इससे बच्चे बोझिल महसूस करेंगे।मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो,ऐसी गतिविधि करनी चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णों से नहीं करनी चाहिए,इससे बच्चे बोझिल महसूस करेंगे।मौखिक रूप से भाषा के प्रति जुड़ाव हो ऐसी गतिविधि करनी चाहिए।
ReplyDeleteभाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला सिखाने से करने की आवश्यकता नहीं है परंतु कालांतर में बच्चों को क्रमानुसार वर्णमाला से भी परिचित कराना चाहिए
ReplyDeleteबच्चों को भाषा सिखाने की शुरुआत रोचक कहानी कविताएं और परिवेश में पाए जाने वाले उन शब्दों से जिससे बच्चे पहले से परिचित हो इन शब्दों से करना चाहिए क्योंकि इससे बच्चे उत्सुकता दिखाएंगे और हुए अक्षरों को जल्द पहचान सकेंगे।
ReplyDeleteनहीं, हमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे बच्चें निरस महसूस करेंगे /
ReplyDeleteनहीं बच्चों को क्रमानुसार वर्णमाला परिचित नहीं कराना चाहिए क्योंकि बच्चें इस गतिविधि से असहज नीरस अरुचि का भाव उत्पन्न होता है। उन्हें परिवेश से जुड़े कहानी, कविता, चित्रकला गीत आदि एवं बातचीत से भाषा सीखानी चाहिए /
हमें बच्चों को भाषा सिखाने के लिए वर्णमाला से शुरुआत नहीं करना चाहिए। हमें बच्चों के परिवेश जो बच्चे परिचित हैं, छोटी-छोटी कहानियां बालगीत, तुकबंदी,रोचक गतिविधियों का उपयोग कर अक्षर या वर्णमाला सिखाना चाहिए। बच्चों को सुनना बोलना पढ़ना लिखना के क्रमानुसार अभ्यास से सिखाना चाहिए।
ReplyDeleteहमें भाषा सिखाने की शुरुआत वर्णमाला से कभी नहीं करनी चाहिए ।हमें बच्चों को उनके परिवेश के मुताबिक शब्दों से ,वाक्य से ,कहानियों से भाषा की शुरुआत करनी चाहिए ताकि बच्चे पहले उन सारे शब्दों से भलीभांति परिचित हो और उन शब्दों के उच्चारण कर पाए ।बारंबार उन शब्दों का उच्चारण करके उनके साथ तुकबंदी वाले शब्दों का मिलान करके बच्चों में भाषा के प्रति जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है। अंत में जिन वर्णों से उन शब्दों का निर्माण होता है उन वर्णों को बच्चों के सामने रखना चाहिए
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