विश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। आपके विचार से इन बच्चों को किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा?
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संथालपरगना के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में छात्र घर मे संथाली बोलते हैं ।खोरठा भी कुछ कुछ समझते है।जब स्कूल आते है।उन्हें हिंदी भाषा मे बात करने में समस्या आती है।फलतः अधिकांश छात्र चुप रहते हैं।जिससे छात्रों के सीखने का प्रतिफल पता नहीं चलता।
ReplyDeleteजिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं ,शिक्षक बोझिल होते हैं, पुस्तके बोझिल होती हैं। कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती है।
ReplyDeleteअंजय कुमार अग्रवाल
मध्य विद्यालय कोयरी टोला रामगढ़
विश्व बैंक के रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में एक तिहाई से अधिक बच्चे अपनी मातृभाषा से बिल्कुल अलग भाषा में पढ़ने-लिखने को मजबूर हैं।यह एक बहुत गंभीर विषय है।
ReplyDeleteवैसी भाषा जो बिल्कुल समझ मे न आती हो उस में पढ़ाई बोझ है,और बिल्कुल निरर्थक है।दुनियाभर की सरकारों को इस समस्या का समाधान ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए।
मु॰ अफ़ज़ल हुसैन
उर्दू प्राथमिक विद्यालय मंझलाडीह, शिकारीपाड़ा, दुमका।
जिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं ,शिक्षक बोझिल होते हैं, पुस्तके बोझिल होती हैं। कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती है.
ReplyDeleteजिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा अलग-अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं शिक्षक दिवस समझ जाते हैं उसकी पुस्तक के भी बोझिल होती है कुल मिलाकर उनके लिए शिक्षा बोझजैसा लगता है ।
Deleteजिन बच्चों की विद्यालय की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा अलग-अगल होती है उनके लिए विद्यालय बोझिल लगने लगता है।
Deleteजिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं ,शिक्षक बोझिल होते हैं, पुस्तके बोझिल होती हैं। कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती
Deletejin baccho ka school ki vasha or ghar ki vasha alag hoti haì unki lea shìksha bojhil hai.
DeleteJin baccho ka school ki bhasa aur ghar ki bhasa alag hoti hai unke liye school bojhil ho jati hai.
DeleteJin baccho ka school ki bhasha aur ghar ki bhasha alag hoti hai unke liye school bojhil ho jati hai.
Deleteजिन बच्चों की विद्यालय की भाषा और घर की भाषा अलग अलग होती है उन बच्चों के लिए विद्यालय बोझिल हो जाती है।
DeleteHan hmen shikshkon presaani hoti hai kyonki jis shetr me hm pdate hai whan ke bachon ki matribhasha mundari hai ar o Hindi bolne ya pdne me ashanta mahsus krte hai jiske karn o chup hi rhte hai.
ReplyDeletePrakash Mundu
Middle school Rowauli
Bandgaon, west Singhbhum
विश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।जैसे:--
ReplyDelete01) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
02)इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है।
03)बच्चे असहज महसूस करते हैं।
04)बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है।
05)बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी नहीं बन पाते हैं।आदि-आदि।
कौशल किशोर राय,
सहायक शिक्षक,
उत्क्रमित उच्च विद्यालय पुनासी,
शैक्षणिक अंचल:-जसीडीह,
जिला:- देवघर;झारखण्ड।
विद्यालय में ऐसे भाषा का प्रयोग जिसको ना बच्चे ठीक से बोल पाते हैं और ना ही समझ पाते हैं ऐसे में बच्चों को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है विशेषता जब बच्चे प्रथम बार विद्यालय आते हैं और उन्हें किसी ऐसी भाषा से सामना करना पड़ता है जिससे वह अभी तक अपरिचित है तो वह अपने आप को विद्यालय में असहज महसूस करते हैं| विद्यालय की गतिविधियों में उनकी निष्क्रियता स्पष्ट दिखाई पड़ती है| वे अपने आप को विद्यालय में व्यक्त नहीं कर पाते है| अतः विद्यालय के शुरुआती वर्षों में शिक्षार्थियों के शिक्षण का भाषा उनकी
ReplyDeleteमातृभाषा अवश्य होनी चाहिए| एक बार मातृभाषा इससे जब पढ़ाई आरंभ करते हैं तो बाद में उन्हें अन्य भाषाओं को सिखाने में आसानी होगी|
जिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं ,शिक्षक बोझिल होते हैं, पुस्तके बोझिल होती हैं। कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती
ReplyDeleteजिन बच्चों की विद्यालय एवं पाठ्य भाषा अपरिचित होती है वैसे बच्चों को पढ़ना अरुचि पूर्ण लगता है जिसके चलते लर्निंग आउटकम कम होता है तथा ब बच्चे दिन प्रतिदिन विद्यालय एवं कक्षा से दूर होने लगते हैं।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में अलग-अलग प्रांत के बच्चे आते हैं ऐसे बच्चों को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जब बच्चे पहली बार विद्यालय आते हैं और उन्हें अपने घर की भाषा से अलग भाषा का सामना करना पड़ता है तब वह विद्यालय में असहज महसूस करते हैं उन्हें हिंदी भाषा में बात करने में समस्या आती है
ReplyDeleteस्कूली शिक्षा में सीखने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम भाषा को कहा गया।भारत मे 35% बच्चे प्राथमिक शालाओं में ऐसी भाषा के माध्यम से सीख रहे हैं। जिनसे वे परिचित नहीं है। ऐसी स्थिति में प्राथमिक शालाओं के बच्चे को निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।
ReplyDelete*शिक्षण से सम्बंधी दिशा निर्देश न हीं समझ पाते होंगे न ही पढ़ पाते होंगे।
*उन्हें विद्यालय की भाषा बोलने में कठिनाई होगी।
*अपने प्रत्येक कार्य के लिए अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
*समझ के साथ धाराप्रवाह पढ़ने स्वतंत्र लेखन में कठिनाई होगी।
*अपनी बात कहने में संकोच महसूस करेंगे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राथमिक स्तर पर ही वे पिछड़ जाते हैं। ये बच्चे प्रारंभिक वर्षों में ऐसी भाषा सीखने को मजबूर हो जाते हैं जो वे बोलते हैं न ही समझते हैं। इस प्रकार कक्षा में वे डरा हुआ,अपमानित और लाचार महसूस करते हैं।एवं पुरी शिक्षा एक बोझ बन कर रह जाती है।
संथालपरगना के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बच्चे घर मे संथाली बोलते हैं ।खोरठा एवं बंग्ला भी कुछ कुछ समझते है।जब स्कूल आते है।उन्हें हिंदी भाषा मे बात करने में समस्या आती है।फलतः अधिकांश छात्र चुप रहते हैं।जिससे छात्रों के सीखने का प्रतिफल पता नहीं चलता।
ReplyDeleteMaine dekha hai ki adiwasi student Hindi me bat Karne me sankoch karte hai unhe sahaj hone me samay lagta hai
ReplyDeleteMaine dekha hai ki adiwasi vidyarthi Hindi language me bat karne me sankoch karte hain unhe sahaj hone me samay lagta hai .
DeleteJab bachche school panhunchte apni matribhasha ko sath leker aate hain.school me boli jane wali bhasha se koso dur rahta hain,aisi isthithi me unhe kai samashiya samna karna padta hain.bchche school me apne apko ashahai mahshus karte Bachche chup chup rahte koi bat ka jawab dena nahi chahte hai. Jab teacher kuch kahta hai bachche teacher ki our tak tak dekhte rahte samajhte kuch nahi, isliye bachche class room se bhag jate.
Deleteबच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा से अलग होने के कारण बच्चों के सीखने के प्रतिफल का पता नहीं चलता।a अत उनके लिए शिक्षा बोझिल प्रतीत होती है।
ReplyDeleteप्राथमिक कक्षाओ में एवं प्रारंभिक वर्षो में अगर शिक्षण का माध्यम बच्चों की परिचित भाषा न हो तो बच्चे बहुत ही असहज महसूस करेंगे । वे न तो शिक्षक की बातों को समझ पायेंगे और न ही पढने लिखने में रूचि दिखायेगे।बच्चे किसी भी गतिविधि में भाग नहीँ लेंगे । बच्चों में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कोशलो का विकास नहीं हो सकेगा ।
ReplyDeleteबच्चे घर और परिवेश की भाषा से परिचित होते हैं । जब वह विद्यालय जाते हैं तो वहां की भाषा से अपरिचित होते हैं जिससे बोलने मे असहज महसुस करते और अन्य गतिविधियों मे भाग नहीं ले पाते हैं । अपनी अभिव्यक्ति व्यत करने कठिनाई होती है ।
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने लिखने के लिए मजबूर हैं जो अपनी मात्री भाषा एवं परिचित भाषा ना होकर एक अपरिचित भाषा होती है वैसे बच्चों को पढ़ना लिखना अरुचि पूर्ण लगता है जिसके कारण लर्निंग आउटकम कम हो जाता है तथा वह बच्चे दिन प्रतिदिन स्कूल एवं कक्षा से दूर होने लगते हैं
ReplyDeleteधन्यवाद
चंचला रानी
प्रधान पारा शिक्षिका
उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय जमुनियांटांड़ (पचडा)
प्रखंड_केरेडारी
जिला-हजारीबाग, झारखंड
जिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं ,शिक्षक बोझिल होते हैं, पुस्तके बोझिल होती हैं। कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती है।
ReplyDeleteआजकल ज्यादातर बच्चे अपने मातृभाषा के स्थान पर किसी दूसरे भाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करते हैं। प्राथमिक स्तर से ही बच्चों के पढ़ाई में पिछड़ने का यह एक महत्वपूर्ण कारण है। ऐसे बच्चे अक्सर विद्यालय में पढ़ाए जानेवाले विषयवस्तु् को ठीक से समझ नहीं पाते हैं तथा न तो कोई प्रश्न पुछते हैं और न ही किसी प्रश्न का जबाब देते हैं। इस प्रकार शिक्षा में अरूचि उत्पन्न होता है और बच्चे पढ़ाई से दूर भागने लगते हैं।
ReplyDeleteBacche Apne Ghar Ki Bhasha Se Kar Vidyalay Aate Hain lekin Vidyalay Mein Unki bhasha Hindi angreji Ho Jaate Hain Jise bacche a r Sahaj mahsus Karte Hain
Deleteजिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं ,शिक्षक बोझिल होते हैं, पुस्तके बोझिल होती हैं। कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती
Deleteइन बच्चों को भाषा एवं संख्यानात्मक ज्ञान अर्जित करने में अन्य बच्चों की तुलना में काफी कठिनाई होगी|वे ज्ञानार्जन में पिछड़े चले जाएंगे|
ReplyDeleteजिन बच्चों का घर में बोली जाने वाली भाषा एवं स्कूल की भाषा अलग होती है , उन्हे स्कूल में पढ़ाई बोझिल लगता हैं। वह सक्रिय भागीदारी नहीं निभा पाते ।वह काफी असहज महसूस करते हैं । फलत वह चुप रहना पसंद करते हैं। उन्हें कुछ समझ में नहीं आता है।
ReplyDeleteJab bachche Vidyalay pahunchte apni matrubhasha ko sath lekar aate hain vidyalay me bolijane wali bhasha se koso dur rahte hain aisi isthithi me unhe Kai samashiya ka samna karna padta hai bachche school me apne apko ashahai mahshus karte bacche chup chup rahte koi baat ka jawab dena nahi chahta hai jab teacher kuch kahata hai bachcha teacher ki our tak tak dekhte rahte samajhte kuchh nahi isliye bachche class room se bhag jate school aana padai karna unhe bojh lagne lagta hai
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में अलग-अलग प्रांत के बच्चे आते हैं ऐसे बच्चों को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जब बच्चे पहली बार विद्यालय आते हैं और उन्हें अपने घर की भाषा से अलग भाषा का सामना करना पड़ता है तब वह विद्यालय में असहज महसूस करते हैं उन्हें हिंदी भाषा में बात करने में समस्या आती है।
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार 37%बच्चें जो दुसरी भाषा में पढ़ने, लिखने एवं बोलने के लिए मजबुर हैं उन्हें निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा:-
ReplyDelete1) बच्चों को हीन भावना से गुजरना,
2)मुक एवं संकुचित रहना,
3)अपनी समस्याओं को रखने में परेशानी,
4) अवधारणा को न समझ पाना,
5)अपने आप को असहज महसूस करना,
एवं
6) अपने, सामाजिक, राजनैतिक जीवन आदि में सफल न हो पाना जिससे अधिगम स्तर में कमी आना जिसके कारण भविष्य में मुख्यधारा से भटक जाना।
सुरेन्द्र कुमार,
उ.म.वि.घोड़दाग,
काण्डी, गढ़वा(झारखण्ड)
jin bachcho ke school ki bhasha unke ghar ki bhasha se alag hoti hai ,waise bachche school me apne aap ko unbalance sa mahsoos karte hai Unke liye school ki sari gatibidhi bojh sa lagta hai.yaha tak ki unka lagaw school, kitab aadi se dur dur tak nahi rahta hai.parinamswaroop unka vikash hi badhit ho jata hai.
ReplyDeleteजिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा से अलग होते हैं उनके लिए स्कूल की भाषा, शिक्षक की भाषा, और पुस्तक बोझ जैसा लगता है यानी उनके लिए पूरी शिक्षा बोझ जैसा लगता है.
ReplyDeleteSUBHADRA KUMARI
ReplyDeleteRAJKIYAKRIT M S NARAYANPUR
NAWADIH BOKARO
सीखने का महत्वपूर्ण माध्यम भाषा है। बच्चें अगर भाषा को समझ नहीं पाएंगे या बोलने में कठिनाई होगी तो वे अपने अन्दर छिपी प्रतिभा को उजागर नहीं कर पाएंगे। जिसके कारण वह हमेशा निराशा जनक सिस्थि मे रहेगें। और धीरे धीर पढ़ाई से दूर होते जाएंगे।
धन्यवाद
भारत के झारखण्ड राज्य में संथाल परगना प्रमंडल के एक तिहाई स्कूली छात्र छात्राओं में यह समस्या प्रकट है।
ReplyDeleteविद्यालयों में निर्देशन की भाषा हिन्दी है और इन बच्चों की मातृभाषा संथाली या बंगला है जिस कारण हिन्दी में पढ़ाई गयी विषय सामग्रियों को वे समझ नही पाते हैं।कुछ बच्चें अगर थोड़े-बहुत समझ भी लेते हैं पर स्पष्ट अवधारणा गठन करने में अपने आपको अक्षम पाते हैं,जिससे पढ़ाई उनके लिए बोझिल हो जाता है या फिर गुणवत शिक्षा प्रभावित होता है। हिन्दी में 'घुमाना'to rotate ,roam around आदि शब्द बांग्ला भाषा में' सोने के लिए कहना ' जैसा हो जाता है , शिक्षक के निर्देश इनके लिए अलग अर्थ प्रकट करते है। इस तरह भाषाई समस्या स्कूली शिक्षा में वाहक होता आ रहा है।
वाहक को कृपया बाधक पढ़ा जाय।
ReplyDeleteबच्चों के घर की भाषा क्षेत्र विशेष पर अलग अलग होतीहै जबकि स्कूल की भाषा अलग होतीहै,| एसे मे छात्र शिक्षक के साथ वार्तालाप नहीं करते हैं जिसके कारण सीखने का प्रतिफल नहीं प्राप्त होता है|
ReplyDeleteSUBHADRA KUMARI
ReplyDeleteRAJKIYAKRIT M S NARAYANPUR
NAWADIH BOKARO
सीखने का महत्वपूर्ण माध्यम भाषा है। बच्चें अगर भाषा को समझ नहीं पाएंगे या बोलने में कठिनाई होगी तो वे अपने अन्दर छुपी प्रतिभा को निखार नहीं पाएंगे। और पढ़ाई के दौरान निराशा जनक सिस्थि मे बने रहेगें। एवं धीरे धीरे पढ़ाई से दूर होते जाएंगे ।
धन्यवाद
SUBHADRA KUMARI
ReplyDeleteRAJKIYAKRIT M S NARAYANPUR
NAWADIH BOKARO
सीखने का महत्वपूर्ण माध्यम भाषा है। बच्चें अगर भाषा को समझ नहीं पाएंगे या बोलने में दिक्कत होगा तो वे अपने अन्दर छुपी प्रतिभा को निखार नहीं पाएंगे। जिसके कारण वे पढ़ाई के दौरान निराशा जनक सिस्थि मे बने रहेगें। और धीरे धीरे पढ़ाई से दूर होते जाएंगे।
धन्यवाद
सिखने, सीखाने की भाषा एवं मातृभाषा यदि अलग हो तो बच्चे के लिए शिक्षा बोझिल बन जाता है |भाषा समान होने पर सीखने के अवसर स्वतः बनने लगते हैं |बच्चे पाठ्यक्रम में निहित उद्देश्य को समझ लेते हैं |बच्चे को शिक्षा से जोड़ने के लिए उनको उनकी अपनी मातृभाषा में यदि शिक्षण कराया जाय तो वे बेहतर समझ विकसित कर पाऐंगे |अतः शिक्षक को विभिन्न माध्यम से उनकी मातृभाषा सीखने को प्रयासरत रहना उचित प्रतीत होता है |
ReplyDeleteजिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा अलग-अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं शिक्षक दिवस समझ जाते हैं उसकी पुस्तक के भी बोझिल होती है कुल मिलाकर उनके लिए शिक्षा बोझजैसा लगता है ।
ReplyDeleteबच्चे ऐसी भाषा मैं पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। इसी बच्चे को पढाई लिखाई समझ में नहीं आती| पुस्तक और स्कूल बोझिल लगते हैं| ना वो उस भाषा में तूरंत बोल पाते हैं और ना ही समझ पाते हैं|
ReplyDeleteविद्यालय में ऐसे भाषा का प्रयोग होता है जिसको बच्चे ठीक से समझ नहीं पाते, बच्चे इस भाषा सेअपरिचित होते हैं क्योंकि वे अपनी मातृभाषा बोलते हैं।ऐसी स्थिति में उन्हें स्कूल एवं किताबें बोझिल लगने लगता है ,बच्चे असहज महसूस करते हैं। इस तरह बच्चे का लगाव पढा़ई -लिखाई से दूर होने लगता है।
ReplyDeleteJin bachchon kee skool kee bhaasha ghar kee bhaasha aur maatrbhaasha se alag hote hain inaka lie skool bojhil hote hain, shikshak bojhil hota hain. Kul milaakar unkee saaree shiksha bojhil lagta hain.
ReplyDeleteमेरे विचार से वैसे बच्चे जो अपनी मातृभाषा में पढ़ने -लिखने के अलावे विद्यालय की भाषा में पढ़ने को मजबूर हो तो अवश्य ही उनको बहुत सारे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । जिसके कारण बच्चों में पढ़ने -लिखने में कठिनाई के साथ-साथ कक्षानुसार कौशलों को हासिल नहीं कर पाते हैं । अन्य बच्चे की तुलना सीखने में पीछे रह जाते एवं सर्वांगीण विकास में बाधा उत्पन्न होते है । धीरे-धीरे बच्चों को शिक्षा में अरुचि महसूस करते है और अंतत: पढ़ाई में अत्यधिक बोझिल आने पर बच्चे का लगाव पढ़ाई -लिखाई छोड़कर विद्यालय से बाहर (OOSC) दूर हो जाते है ।
ReplyDeleteअत: वैसे बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए प्राथमिक स्तर में उनकी मातृभाषा से सीखने की जरूरत होगी । ... धन्यवाद ।
सुना राम सोरेन (स.शि.)
प्रा.वि.भैरवपुर, धालभूमगढ़ ।
पूर्वी सिंहभूम , झारखंड ।
जिन बच्चों की मातृभाषा और स्कूल की भाषा अलग अलग होती है उन्हें स्कूल बोझ लगता है, शिक्षक भी बोझ महसूस होते हैं, वे स्कूल से दूर भागते हैं।
ReplyDeleteApne ghar ki bhasha aur matribhasha se alag school ki bhasha me sikhne me Bachchon ko kafi kathinaiyon ka samna karna parta hai. Apni baat kehne me unhe sankoch hota hai. Padhai bojh lagne lagti hai.Isse unka vikas abrudh ho jata hai.
ReplyDeleteAnjani Kumar Choudhary. 8809058368
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।जैसे:--
01) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
02)इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है।
03)बच्चे असहज महसूस करते हैं।
04)बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है।
बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं ,शिक्षक बोझिल होते हैं, पुस्तके बोझिल होती हैं। कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती
Deleteहर स्तर पर और हर-एक विषय में ज्ञान अर्जित करने का आधार भाषा होती है और जब शिक्षा दीक्षा की शुरुआत में ही अनजानी भाषा के अबूझ अजनबी शब्दों और बातों से पाला पड़ता है जिसे बिना समझे नीरस मशीनी तरीके से रट्टा मारना होता है तो पढ़ाई की नींव, बुनियाद ही कमजोर हो जाती है और शिक्षा का भवन अधूरा रह जाता है।
ReplyDeleteअतः यह अत्यावश्यक है कि FLN के लिए घर की भाषा, मातृभाषा से शुरू कर संपर्क भाषा और अन्य भाषाओं की शिक्षा दी जाए।
अफ्रीकी देश किनिया में आरंभ से ही स्थानीय स्वाहिली और अंग्रेजी की पढ़ाई होती है और वहां 99.9% साक्षरता है। वहां तेजी से और समरसता के साथ विकास हो रहा है।
एक बड़ी आवश्यकता शिक्षा में ईमानदारी से निवेश को बढ़ाने की, इसे व्यावसायिक धंधेबाजी से बचाने की।
Jin bacchon ke ghar mein alag Bhasha boli jaati hai hai aur school mein dusri bhasha mein padhai Hoti hai vaise bacchon ko samajhne mein kuchh kathinai to jarur hoti hai parantu Mera manana hai ki bacche chauki bahut jaldi Sikh jaate Hain isliye vah dusri bhashaon ko sikhane mein bhi e adhik samay nahin lete hain agar ham sabhi shikshak unke Mata pita ko bhi dusri bhashaon ka jo school ki Bhasha hai unka thoda Parichay Kara de to ve Ghar mein bhi is tarah ki Bhasha Ko bhul payenge aur vidyalay ki Bhasha ko acchi tarah samajh payenge yani ki hamen vidyalay aur ghar donon mein donon hi Bhasha ka prayog karna padega dhanyvad.
ReplyDeleteI think it's a tough task
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार दुनिया में लगभग 37 प्रतिशत बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोल सकते हैं,न ही समझते हैं। इन प्रकार के बच्चों में बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे - बच्चे किसी के कही हुई बात को सुनते तो है लेकिन समझते नहीं है, उन्हें बोलने ,उत्तर देने या अपने विचार साझा करने में कठिनाई होती है, पढ़ने और लिखने में भी दिक्कत आती है, पढ़ाई बोझिल होने लगता है, पठन-पाठन से दूर होने होते जाते हैं, परिणाम स्वरूप विद्यालय के गतिविधियों में अरुचि होती है ,वे मानसिक /भावनात्मक तनाव से गुजरते हैं क्योंकि उन्हें रूचि के अनुसार कार्य करने में यह सीखने में कठिनाई होती है। बच्चे विद्यालय की भाषा को भी समझ नहीं पाते हैं, उनमें सहयोग की भावना भी कम होते जाती है। अतः बच्चों को जहां तक हो सके उनके प्रारंभिक वर्षों में अपनी मातृभाषा में ही सीखने-सिखाने का अवसर देना ज्यादा ठीक होगा ताकि वे धीरे-धीरे विद्यालय की भाषा से परिचित होकर अपने ज्ञान को समृद्ध कर सकें।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में आने वाले लगभग सभी बच्चों की मातृभाषा तथा परिचित भाषा विद्यालय में प्रयोग होने वाली भाषा से भिन्न होती है। हिन्दी से मिलती जुलती भाषा से परिचित बच्चों को विद्यालय में आपसी बातचीत में थोड़ी परेशानी कम होती है लेकिन इससे परे अधिकांश बच्चों को पढ़ाई बोझिल लगती है।
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार के 37% बच्चे ऐसे हैं जो विद्यालय की ऐसी भाषा पढ़ने और लिखने के लिए मजबूर हैं जो ना तो बोलते हैं और ना ही समझते हैं। इस प्रकार की समस्या होने पर बच्चे विद्यालय की भाषा को समझ नहीं पाते हैं परिणामस्वरूप विद्यालय से बच्चों का लगाव कम होने लगता है। बच्चों का पढ़ना लिखना बोझिल सा लगने लगता है। ऐसी स्थिति में बच्चे का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है। ऐसी समस्या ड्रॉपआउट का भी एक बहुत बड़ा कारण माना जाता है। यही कारण है की आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बहुभाषिकता पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
ReplyDeleteJis bhasha mein bacchon ko school mein padhaya jata hai way apni matribhasha nahin hoti.Jis karan padhne-lekhne mein asahaj mahsus kartein hain aor aisi bhasha padhne-lekhne ke liye majbur ho jatein hai Jise way na bolte hain aor na samajhte hain.
ReplyDelete01) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
ReplyDelete02)इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है।
03)बच्चे असहज महसूस करते हैं।
04)बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है।
05)बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी नहीं बन पाते हैं।आदि-आदि।
जिन बच्चों की मातृभाषा और शिक्षा की भाषा अलग होतीहै तो प्रारंभ में शिक्षा प्राप्त करने में अनेक प्रकार समस्या आती है|यदि बच्चों के शिक्षा प्राप्त करने की भाषा ऐसा हो, जिसे बच्चे बिल्कुल न समझ सकें तो ऐसी शिक्षा उनके लिए निरर्थक हो जाती है|विद्यालय के प्रति निराशा का भाव उतपन्न होने लगता है, कक्षा में भी उन्हें मन नहीं लगता है|इसलिए बच्चों को उनकी रूचियो एवं समझ की भाषा में ही शिक्षा देने का प्रयास किया जाना चाहिए |ताकि वे अच्छे ढंग से शिक्षा प्राप्त कर सकें |
ReplyDeleteजिन बच्चों की मातृभाषा अलग और स्कूल की भाषा अलग होती है, उन बच्चों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteसीखने का सहज सोपान मातृभाषा है| बच्चे मातृभाषा में किसी घटना या तथ्यों को सहजता के साथ समझाते और आत्मसात करते हैं जबकि अन्य भाषा को मातृभाषा से जोड़ कर देखते और समझाते हैं|मातृभाषा के बिना अन्य भाषा उनके लिए क्या बड़ों के लिए भी एक बेकार की चित्रकारी मात्र रहती है और वह उन्हें बोझिल और थकाऊ बनता है जिससे वे पढ़ना ही छोड़ देते हैं }
ReplyDeleteजिन बच्चों की मातृभाषा और स्कूल में पढ़ाई जाने वाली की भाषा अलग होती है उन बच्चों के लिए पढ़ाई बोझिल हो जाती है। उन्हें अपने विचारों को व्यक्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस कारण से वह ठीक से नहीं सीख पाते हैं।
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने लिखने के लिए मजबूर हैं जो अपनी मात्री भाषा एवं परिचित भाषा ना होकर एक अपरिचित भाषा होती है वैसे बच्चों को पढ़ना लिखना अरुचि पूर्ण लगता है जिसके कारण लर्निंग आउटकम कम हो जाता है तथा वह बच्चे दिन प्रतिदिन स्कूल एवं कक्षा से दूर होने लगते हैं !
ReplyDeleteजिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा अलग अलग होती है उनके लिए लिए स्कूल बोझिल होते हैं और बच्चे असहज महसूस करते हैं और पढ़ाई में मन नहीं लगता है इस प्रकार बच्चे का लगाव है पढ़ाई में लिखाई से दूर होने लगता है ।
ReplyDeleteChildren are filled with curiosity, they have the ability to learn by listening and watching others . New language is difficult for children so they take studies as burden and eventually lose interest in academics. Even for parents it becomes difficult to motivate their children to study.
ReplyDeleteबच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देना चाहिए ।स्कूल की भाषा के प्रयोग करने से असहज महसूस करते हैं।
ReplyDeleteबच्चों को अपनी मातृभाषा से अलग दूसरी भाषा में पढा़ने से उन्हें समझने मे कठिनाई होती है, पढने मे रूचि पैदा नहीं होती है। विद्यालय में रहने का मन नहीं लगता है,जिससे बच्चे छीजीत हैं।
ReplyDeleteमेरे विचार मे जिन बच्चों को सिखने कि प्रारंभिक अवस्था में जब वैसी भाषा का सामना करते हैं जो न तो कभी सुने है और न ही बोलने या समझने का मौका मिला है तो बच्चे डरा हुआ महसूस करते हैं और कक्षा बोलने मे झिझकते हैं।अतः एक शिक्षक को हमेशा ऐसे बच्चों के साथ उसी के भाषा का प्रयोग करते हुए नयी भाषा की शब्दावली से परिचित कराना चाहिए।
ReplyDeleteजिन बच्चों की विद्यालय एवं पाठ्य भाषा अपरिचित होती है वैसे बच्चों को पढ़ना अरुचि पूर्ण लगता है जिसके चलते लर्निंग आउटकम कम होता है तथा ब बच्चे दिन प्रतिदिन विद्यालय एवं कक्षा से दूर होने लगते
ReplyDeleteविश्व बैंक के सर्वे के अनुसार37% बच्चे पूरे संसार में ऐसीभाषा के माध्यम से पढ़ने के लिए मजबूर है जिसे वे नतो समझते हैं और न ही बोलते हैं। ऐसी की कुछ समस्या हमारे क्षेत्र संताल परगना के उन विद्यालयी क्षेत्रों में है जहां बच्चों के घर की भाषा संताली,खोरठा, बंगला है।प्रारम्भिक स्तर पर कक्षा मेंऐसे बच्चे ज्यादा तर चुप रहते हैं या बहुत कम खुलते हैं। सामंजस्य स्थापित करने में इन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteयह सवाल बिल्कुल सत्य है कि विश्व बैंक के सर्वे के अनुसार 37% बच्चे ऐसी भाषा के माध्यम से पढ़ने के लिए मजबूर है जिसे वह ना ही समझते हैं और ना ही अपने घर में बोलते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों को विद्यालय में बहुत से कठिनाई और समस्या का सामना करना पड़ता है। जब बच्चे स्कूल की भाषा नहीं समझते हैं तो उसे पढ़ने में उत्साह की कमी हो जाती है। वह एक दूसरे से बात करने से डरते हैं। बच्चे असहज महसूस करते हैं। वह विद्यालय में जल्दी सीख नहीं पाता किस प्रकार बच्चे पढ़ाई के प्रति रुचि कम रखने लगते हैं और धीरे-धीरे वह विद्यालय छोड़ देते हैं और ड्रॉप्ड आउट हो जाते हैं।
ReplyDeleteAise bacche adhikanshtah school me chupchap hi rahenge.apni baat kehne se darenge.we khulker kisi bhi gatividhi me bhaag nahi le payenge.jiske Karan unke sikhne ki prakriya me baadha pahuchegi.
ReplyDeleteMatri bhasha ek aisi bhasha h jis se bachhe bohut hi aasani se kuch bhi samjhane se samajh jate h
ReplyDeleteस्कूली शिक्षा में सीखने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम भाषा को कहा गया।भारत मे 35% बच्चे प्राथमिक शालाओं में ऐसी भाषा के माध्यम से सीख रहे हैं। जिनसे वे परिचित नहीं है। ऐसी स्थिति में प्राथमिक शालाओं के बच्चे को निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।
ReplyDelete*शिक्षण से सम्बंधी दिशा निर्देश न हीं समझ पाते होंगे न ही पढ़ पाते होंगे।
*उन्हें विद्यालय की भाषा बोलने में कठिनाई होगी।
*अपने प्रत्येक कार्य के लिए अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
*समझ के साथ धाराप्रवाह पढ़ने स्वतंत्र लेखन में कठिनाई होगी।
*अपनी बात कहने में संकोच महसूस करेंगे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राथमिक स्तर पर ही वे पिछड़ जाते हैं। ये बच्चे प्रारंभिक वर्षों में ऐसी भाषा सीखने को मजबूर हो जाते हैं जो वे बोलते हैं न ही समझते हैं। इस प्रकार कक्षा में वे डरा हुआ,अपमानित और लाचार महसूस करते हैं।एवं पुरी शिक्षा एक बोझ बन कर रह जाती है।रणजीत प्रसाद मध्य विद्यालय मांडू, रामगढ़।
Vishva Bank ke anusar sansar mein 37% bacche jinhen aisi bhasha mein padhne likhane ke liye majbur Hain jise Na we bolate hain na samajhte Hain unhen vidyalay mein muk darshak Banna padta hai .Bhasha nahin samajhne se padhne me
ReplyDeleteasahaj mahsus hota hai.Apne vicharon Ko kaksha mein batane mein asamarth hote Hain padhaai jaane Wale vishayon Ko Sahi Sahi nahin samajh payenge unhen ek ek Shabd aur awaaz ko Dhyan se sunna padega.Bhasha na samajhne ke Karan sah pathi bhi unse Lagav nahin rakhte Hain.jisse aise bacchon ko vidyalay aane ki Ruchi ghati hai aur aise mein
Unka sarvangin vikas ny ho pata hai.
घर से अलग भाषा होने पर बच्चे सहज रूप से अध्ययन में अरूचि होता है।
ReplyDeleteजैसा कि हम सभी जानते हैं हमारे प्रांत में कुल 22 भाषाएं मान्यता प्राप्त है तथा प्रत्येक राज्य में अपनी अपनी क्षेत्रीय भाषाएं एवं बोली अलग अलग पाए जाते हैं अर्थात भाषा एवं बोली में प्रत्येक राज्य की अपनी अपनी भिन्नता व्याप्त है।
ReplyDeleteयही हमारे राज्य के बच्चों के साथ बहुत बड़ी चुनौतियां के रूप में सामने उबर के आती है कि घरेलू भाषा एवं विद्यालय भाषा या शैक्षणिक भाषा भिन्नता के कारण शिक्षकों तथा छात्रों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ।
धन्यवाद
PHULCHAND MAHATO
UMS GHANGHRAGORA
CHANDANKIYARI
BOKARO
सीखने का महत्वपूर्ण माध्यम भाषा है बच्चे अगर भाषा को समझ नहीं पाएंगे यह बोलने में कठिनाई होगी तो वे अपने अंदर छिपी प्रतिभा को उजागर नहीं कर पाएंगे जिस कारण वहहमेशा निराशाजनक स्थिति में रहेंगे और धीरे-धीरे पढ़ाई से दूर होते जाएंगे।
ReplyDeleteआजकल ज्यादातर बच्चे अपने मातृभाषा के स्थान पर किसी दूसरे भाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करते हैं। प्राथमिक स्तर से ही बच्चों के पढ़ाई में पिछड़ने का यह एक महत्वपूर्ण कारण है। ऐसे बच्चे अक्सर विद्यालय में पढ़ाए जानेवाले विषयवस्तु् को ठीक से समझ नहीं पाते हैं तथा न तो कोई प्रश्न पुछते हैं और न ही किसी प्रश्न का जबाब देते हैं। इस प्रकार शिक्षा में अरूचि उत्पन्न होता है और बच्चे पढ़ाई से दूर भागने लगते हैं Lalit Kumar Sawansi KUMARDUNGI JHARKHAND
ReplyDeleteबच्चे घर और परिवेश की भाषा से परिचित होते हैं ।जब वे विद्यालय आते हैं तो वहाँ की भाषा से अपरिचित रहते हैं जिससे बोलने में असमर्थ मह्सूस करते और अन्य गतिविधियों में भाग नहीं ले पाते हैं अपनी अभिव्यक्ति नहीं व्यक्त करने में कठिनाई होती है अर्थात् बच्चों को उनकी भाषा में स्वतंत्रता देनी चाहिए ।
ReplyDeleteजिन बच्चों की घर और विद्यालय की भाषा अलग-अलग होती है,उन्हें बातों को समझने में कठिनाई होती है। वे विद्यालय में चुप रहते है। इससे शिक्षक भी उनके सीखने की क्षमता को समक्ष नहीं पाते।
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।जैसे: बच्चे अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
ReplyDeleteऐसी परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है साथ ही बच्चे असहज महसूस करते हैं।
जब बच्चों को भाषा समझने में कठिनाई होती है तो उनके अधिकतर समय व्यर्थ ही निकल जाता है जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है और वे बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी नहीं बन पाते हैं।धन्यवाद
ANIL KUMAR SINGH
AMS RANCHI ROAD, RAIGARH
ReplyDeleteJin bachong kischool kibhasha Ghar ki bhasha alag hoti hai unke liye school bojhil hote hain shikshak bojhil hote hain pustaken bojhil hote hain!kul milakar unki sari shiksha bojhil hoti hai.
Bachhon ke ghar ki bhasha aur school ki bhasha me antar hota hai jiske karan bachhon ko bhasha sambandhit kathinai hoti hai.
ReplyDeleteअपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं
ReplyDeleteइस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता है।बच्चे असहज महसूस करते हैं।बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है।बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी नहीं बन पाते।
According to world Bank, 37 percent of children are not learning in their mother tongue. It is a big problem for those children. Children admit in schools with their own mother tongue and in schools they face other languages. So they cannot understand the new language used by schools. So we should encourage them to express their ideas in their mother tongue. In schools, we should start teaching in their own language in primary classes otherwise they can't learn, they cannot speak, they become fearful about school.
ReplyDeleteJitendra Kumar Singh
ReplyDelete+2 upg high school deokuli
विश्वबैंक सर्वे के अनुसार विश्व 37प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो ऐसी भाषा में सीखने के लिए बाध्य हैं जो उनकी मातृभाषा नहीं है। यथार्थ है।हम अपने कार्य क्षेत्र में देखते हैं बच्चे खोरठा भाषी होते है और हम उन्हें जब अधिकृत भाषा में पढ़ाते हैं तो असहज हो जाते हैं उन्हें शिक्षकों के साथ खुलने में काफी समय लग जाता है।
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ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।जैसे:--
01) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
02)इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है।
03)बच्चें असहज महसूस करते हैं।
04)बच्चोंं का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता हैं।
05)बच्चें शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहभागिता नहीं बन पाते हैं।
नीतीश कुमार, राजकीयकृत मध्य विद्यालय नारायणपुर, बोकारो, नावाडीह।
Wastb में बच्चों को जब schoolभाषा समझ नहीं आता होगा तो उनके लिए वर्ग बोझिल लगता होगा इसलिए पहले मातृभाषा में ही वर्ग शुरू होना चाहिए
ReplyDeleteप्राथमिक कक्षाओ में एवं प्रारंभिक वर्षो में अगर शिक्षण का माध्यम बच्चों की परिचित भाषा न हो तो बच्चे बहुत ही असहज महसूस करेंगे । वे न तो शिक्षक की बातों को समझ पायेंगे और न ही पढने लिखने में रूचि दिखायेगे।बच्चे किसी भी गतिविधि में भाग नहीँ लेंगे । बच्चों में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशलों का विकास नहीं हो सकेगा ।
ReplyDeleteबच्चों की घर के भाषा या मातृभाषा तथा विद्यालय की भाषा अलग होने पर शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बच्चे विद्यालय में मूक बनकर रह जाता है। अपने मन में उद्गार व्यक्त करने में सफल नहीं हो सकता।मन की भावना जबतक प्रकट नहीं कर सकते हैं तबतक शिक्षा अपूर्ण रहता है। ये विषय बहुत ही गंभीर माना जा रहा है पर शत-प्रतिशत सही है। सरकार बदलते रहते हैं, मातृभाषा में शिक्षा का अधिकार है पर क्रियान्वयन के लिए किसी भी सरकार अपने पुरजोर कोशिश करने की रोल नहीं निभाते हैं।
ReplyDeleteबच्चों की मातृभाषा और विधालय की भाषा अलग होने पर बच्चों में सीखने के प्रतिफल को हासिल करने में बहुत कठिनाई होती है!बच्चे अपनी भावनाओं को सही तरीके से रखने में सक्षम नहीं हो पाते हैं!प्रारंभिक कक्षा बच्चों की मातृभाषा होने से भाषा संप्रेषण की समझ में विकास होता है!
ReplyDeleteबच्चे घर या आसपास के परिवेश में बोले जाने वाली भाषा से परिचित होते हैं। किसी बात को भी अपने घर में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा में आसानी से व्यक्त कर सकते हैं। यदि घर की भाषा में उन्हें सिखाया जाए तो उसे आसानी से ग्रहण कर पाते हैं। जब वे विद्यालय जाते हैं और घर से अलग भाषा का सामना करते हैं तो वे असहज महसूस करते हैं। शिक्षक द्वारा बताई जाने वाली बातों को ठीक से समझ नहीं पाते हैं तथा विद्यालय जाने में रूचि नहीं लेने लगते हैं। हमें चाहिए कि बच्चों से उनके घर में बोली जाने वाली भाषा मैं बातचीत करनी चाहिए तथा धीरे-धीरे विद्यालय में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा से जोड़ना चाहिए।
ReplyDeleteRadha kumari GMS Murkunda Gumla
ReplyDeleteबच्चों का घर और विद्यालय की भाषा अलग होती है जिसके कारण विद्यालय का भाषा सीखने पढ़ने मैं असहज महसूस करते हैं अतः विद्यालय मैं भी मातृभाषा का स्थान होना चाहिए ।
इस प्रकार के अधिकांश बच्चो कक्षा में चुप रहते हैं । वे निर्देश को समझ नहीं पाते और कक्षा में पिछड जाते हैं । उनके लिए कक्षा का वातावरण बोझिल हो जाता है और विद्यालय आने से कतराते हैं।
ReplyDeleteAsst.teacher UMS Kurnabera Block Anandpur.
ReplyDeleteAccording to World bank 37% of world population faces problem in understanding there book content because language of teaching are not in favour of known language of the students,so they face problems of understanding As subject matter is difficult to understand they loose interest as they loose interest Subject become booring so our Government should focus in this problem and have to find a way in this regard.
जिन बच्चों की मातृभाषा खोरठा है, स्कूल की भाषा हिंदी है ऐसीपरिस्थितियों में हिंदी भाषा सीखने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteJin bachcho ki ghar ki bhasha,school ki bhasha,matribhasha alag alag hoti hai unke lie siksha bojhil ho jati hai.Bachcho me nirasa utpanna ho jati hai,unme padai ko bina samajhkar ratne ki aadat par jati hai.Jis karan unka gyan apurn hota hai.
ReplyDeleteWhitout understanding the language and thought of the content one can never understand the though .
ReplyDeleteAs a teacher we should try to conduct the class in the children's home languages .So that the can understand the content properly.as well as we should let them know and learn the other language also.
ReplyDeleteजिन बच्चो के स्कूल की भाषा उनके घर की भाषा से अलग होती हैं। वैसे बच्चे स्कूल में अपने आप को असहाय महसूस करते हैं।उनके लिए स्कूल की सारी गतिविधि बोझ लगता हैं। उनका लगाव स्कूल किताब आदि से दूर दूर तक नहीं रहता हैं।परिणामस्वरूप उनका विकास बाधित हो जाता हैं।
ReplyDeleteAgar bachhoki Ghar kl matrivasha our school ki Vasa alag hoti hai to bachho ka sikhne ka khatma me bahit hota hai our sampurna sikhne ka prayifal ki Kami hota hai
ReplyDeleteमातृभाषा और विद्यालय की पुस्तक की भाषा प्रायः बच्चों की अलग होने से उनके सीखने के स्तर को प्रभावित करने लगती है शिक्षक इस ओर ध्यान देकर इस समस्या को दूर करते हैं और बच्चों की शिक्षा प्रभावित नहीं होती/ फिर भी सामंजस्य का प्रभाव नौनिहालों पर पडता है, हिमान्शु दुमका
ReplyDeleteविद्यालय में ऐसे भाषा का प्रयोग जिसको ना बच्चे ठीक से बोल पाते हैं और ना ही समझ पाते हैं ऐसे में बच्चों को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है विशेषता जब बच्चे प्रथम बार विद्यालय आते हैं और उन्हें किसी ऐसी भाषा से सामना करना पड़ता है जिससे वह अभी तक अपरिचित है तो वह अपने आप को विद्यालय में असहज महसूस करते हैं| विद्यालय की गतिविधियों में उनकी निष्क्रियता स्पष्ट दिखाई पड़ती है| वे अपने आप को विद्यालय में व्यक्त नहीं कर पाते है| अतः विद्यालय के शुरुआती वर्षों में शिक्षार्थियों के शिक्षण का भाषा उनकी
ReplyDeleteमातृभाषा अवश्य होनी चाहिए| एक बार मातृभाषा इससे जब पढ़ाई आरंभ करते हैं तो बाद में उन्हें अन्य भाषाओं को सिखाने में आसानी होगी
बच्चे घर और परिवेश की भाषा से परिचित होते हैं ।जब वे विद्यालय आते हैं तो वहाँ की भाषा से अपरिचित रहते हैं जिससे बोलने में असमर्थ मह्सूस करते और अन्य गतिविधियों में भाग नहीं ले पाते हैं अपनी अभिव्यक्ति नहीं व्यक्त करने में कठिनाई होती है। और बहुत सारे शिक्षक भी उस क्षेत्र में बोली जाने वाली क्षेत्रीय भाषाओं से अपरिचित होते हैं जिसके कारण वे बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ा ने , समझाने या गतिविधियां कराने में असमर्थ होते हैं।अर्थात् बच्चों को उनकी भाषा में अभिव्यक्ति देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए ।
ReplyDeleteजब बच्चे अपनी मातृभाषा को साथ लेकर विद्यालय पहुंचते हैं और विद्यालय में बोली जाने वाली भाषा को नहीं समझते हैं तो ऐसी स्थिति में उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है बच्चे स्कूल में अपने आप को असहाय महसूस करते हैं बच्चे चुपचाप रहते हैं क्योंकि स्कूल की भाषा को बच्चे समझ नहीं पाते जिस कारण स्कूल की गतिविधि में भाग नहीं लेते हैं और बच्ची को पढ़ाई करना बोझ लगने लगता है
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार 37%बच्चें जो दुसरी भाषा में पढ़ने, लिखने एवं बोलने के लिए मजबुर हैं उन्हें निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा:-
ReplyDelete1) बच्चों को हीन भावना से गुजरना,
2)मुक एवं संकुचित रहना,
3)अपनी समस्याओं को रखने में परेशानी,
4) अवधारणा को न समझ पाना,
5)अपने आप को असहज महसूस करना,
एवं
6) अपने, सामाजिक, राजनैतिक जीवन आदि में सफल न हो पाना जिससे अधिगम स्तर में कमी आना जिसके कारण भविष्य में मुख्यधारा से भटक जाना।
बच्चों की घर की भाषा और स्कूल की भाषा में भिन्नता होती है ।जिससे उनके सीखने के स्तर में आशातीत प्रतिफल नहीं मिल पाता है।
ReplyDeleteप्राथमिक कक्षाओं में एवं प्रारंभिक वर्षों में अगर शिक्षण का माध्यम बच्चों की परिचित भाषा न हो तो बच्चे बहुत ही असहज महसूस करेंगे। वे न तो शिक्षक की बातों को समझ पायेंगे और न ही पढ़ने-लिखने में रुचि दिखायेंगे। बच्चों में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशलों का विकास नहीं हो सकेगा।
ReplyDeleteशिक्षण के प्रारंभिक वर्षों/प्राथमिक कक्षाओं में यदि शिक्षण का माध्यम बच्चों की जानने वाली भाषा न हो तो बच्चे सीखने, पढ़ने ,लिखने तथा समझने मे असहज महसूस करते हैं, जिससे बच्चों के बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक कौशलों का बाधित होता है।
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते है, न समझते है।हमारे विचार से इन बच्चों को निम्नप्रकार की समस्याओ का सामना करना पड़ता है-घर की भाषा विद्यालय की भाषा से अलग होने से बच्चे विद्यालय की भाषा को समझ नहीं पाते है, वे असहज महसूस करते है, वे सक्रिय भागीदारी नहीं निभा पाते, उनको पढ़ना-लिखना बोझिल लगने लगता है आदि।
ReplyDeleteप्रश्नानुसार मेरे विचार से इन बच्चों को निम्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा :
ReplyDelete१) मस्तिष्क की ग्राह्यता न्यूनतम होती है |
२) मस्तिष्क को अनुवाद की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
३) विचारों को ग्रहण तथा व्यक्त करते समय उसे अपनी मातृभाषा में बदलना पड़ता है।
४) भावों या विचारों को ग्रहण तथा व्यक्त करना मुश्किल होता है।
५) पाठ में रूचि तथा ध्यान (एकाग्रता) की कमी बनी रहती है।
६) ज्ञान अर्जन करने में अधिक प्रयास तथा समय की बर्बादी होती है।
७) किसी पाठ की उद्धार में परेशानी होती है ।
८) अधिगम में सदा एक बोझिल सा अनुभव बना रहता है।
९) पाठ को पढ़ने,लिखने ,समझने, व्यक्त करने या याद करने पर आत्मविश्वास की कमी रहती है तथा संतोष प्राप्त नहीं होता है।
१०) भाषा पर आत्मीयता का अभाव बना रहता है।
११) दूसरों को प्रेरित करने पर भी कुंठा बोध करते हैं।
१२) गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाने में परेशानी महसूस करते हैं।
१३) भाषा की उन्नति पर उदासीनता बना रहता है।
१४) तकनीकी शिक्षा से आसानी से जोड़ने में बाधक का अनुभव करते हैं तथा इसे अपनाने में हिचकिचाते हैं।
१५) उच्च शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करते हैं।
जिन बच्चों मैं भाषा को थोपा जाताहै यानी मजबूर किया जाता है वे उससे दूर भागते है। उनकी रुचि घट जाती है।उसे बोझ समझते है।
ReplyDeleteसामान्यतः विद्यालय की शिक्षण की भाषा मानक हिन्दी, अंग्रेजी होती हैं. प्राथमिक स्तर पर बच्चे मानक भाषा से अनजान होते हैं जिससे वे वर्ग में चुप रहकर सिर्फ सुनते हैं, कुछ भी प्रतिक्रिया या अपना विचार साझा नहीं करते हैं. धीरे धीरे बच्चों में पढ़ाई के प्रति अरुचि प्रबल होने लगती है. बच्चे दबाव महसूस करते हैं. अधिगम का स्तर निम्न हो जाता है. शिक्षक उन्हें मंद बुद्धि समझने लगते हैं और उन्हें नजरंदाज करते हैं. बच्चों को पढ़ाई एक बोझ सा लगता है. परिवार की भाषा से शिक्षण प्रारम्भ कर विद्यालय की भाषा का सफर लाभदायक होगा. आचार्य राजेंद्र प्रसाद, प्रभारी प्रधानाध्यापक, उत्क्रमित मध्य विद्यालय उपरलोटो, लातेहार.
ReplyDeleteSikhane sikhane ke Bhasha AVN matrabhasha ka yadi alag ho to bacchon ke liye Bojh Utha Tha Mera Ban Jata Hai Bhasha Saman hone par sikhane ke avsar sweater Banane Lagte Hain bacche pathyakram Mein Nahin uddeshya ko samajh lete hain bacchon ko Shiksha se jodne ke liye unko Unki apni matrubhasha Mein yadi Shiksha karaya Jaaye to vah behtarin Samajh viksit Kar Payenge Pata Shikshak ko vibhinn Madhyam se Unki marthya Bhasha sikhne ko Prayas shrart Rahana uchit pratit hota hai thank u
ReplyDeleteविद्यालय की भाषा बच्चों की मातृभाषा से अलग होने के कारण उन्हें पढाई के प्रति रुचि उत्पन्न नहीं होती है।उनके लिए विषय वस्तु की समझ तो दूर भाषा सीखना बहुत बड़ी समस्या बनकर सामने आ जाती है।
ReplyDeleteI agree with all above comments. Thank you.
ReplyDeleteजिन बच्चों की विद्यालय की भाषा घर की भाषा से अलग होती है उनके लिए विद्यालय की भाषा, शिक्षक की भाषा और पुस्तक बोझ जैसा लगता है यानि उनके लिए पूरी शिक्षा ही बोझ जैसा लगता है ।
ReplyDeleteभाषा का वह रूप जब बच्चों के समझ से बिल्कुल ही परे हैं, वह बच्चों के मस्तिष्क पर शिक्षा, पुस्तक, विद्यालय, शिक्षक, सभी से उसे दूर करने का कार्य करती है बच्चों को शिक्षा बोर्ड लगने लगती है एवं वर्ग कक्ष बोझिल लगने लगता है। बच्चों को मजबूरी में सीखना पड़ता है।
ReplyDeleteSHAKIL AHMAD
ReplyDeleteR M S BAREPUR HUSSAINABAD PALAMU
जब 37% बच्चों को उस भाषा के माध्यम से शिक्षा दी जा रही है जिसे वे न बोल पाते हैं और न ही समझते हैं तो उन्हें विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।
* पढ़ना लिखना एक बोझिल कार्य
* विद्यालय परिसर एक कैदखाना लगना
* शिक्षक दूसरे ग्रह के प्राणी लगना
* पुस्तकों में आकर्षन के बावजूद रोचकता की कमी
* तत्पश्चात उनकी प्राकृतिक प्रतिभा धूमिल पड़ जाना
* अपने परिवार,समाज के प्रति विश्वास में कमी
* मंद बुद्धि, कुंठा, अपराधिक प्रवृत्ति का विकास होने का खतरा है।
शकील अहमद रा म विद्यालय बड़ेपुर हुसैनाबाद पलामू झारखंड
जिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं ,शिक्षक बोझिल होते हैं, पुस्तके बोझिल होती हैं। कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती हैlउनका शैक्षिक स्तर निम्न हो जाता है।
ReplyDeleteजिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं,शिक्षक भी बोझिल होते हैं,पुस्तकें बोझिल होती है।कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती है उनका शैक्षिक स्तर निम्न हो जाता है।
ReplyDeleteJab bachche school aakar apnimatribhasha me kuchh bhi sunte hsi to pahle unka judaw hota hai..tabhi we kahi gayi baaton ko samajh pate hain..aur yadi aisa nhi hota to nishchit hi wo apne aap ko aparichit mahoul me pate hain.Unhe oob hone lagti hai aur kuchh seekhane ki bajay we bahar nikalne ka raasta dekhne lagte hain...
ReplyDelete37% बच्चे भाषा पढने लिखने के लिए मजबूरन बच्चे न पढ़ पाते है न लिख पाते हैं कारण बिद्यालय की भाषा एवं बच्चे के क्षेत्रीय भाषा भिन्न होता है जिसके कारण पढने लिखने मे बच्चों को बोझिल लगने लगता है
ReplyDeleteKolhan mein jyadatar bacche apne gharo ya gaon mein ho bhasa ka prayog krte hain. Jab bacche school mein padhne atte hain tab school mein unka sammna ek alag bhasa hindi ya English se hota hai jo unki samnjh ke alag hoti hai.iss karan baccho ko padahi lo samnjhne mein kast hota hai ya nhi asamnjh patte hain.
ReplyDeleteBinod kumar.
वैसे बच्चों के लिए स्कूल एवम शिक्षक बोझिल होते हैं।वे अपनी बात रखने में काफी झिझकते हैं।अवधारणा ग्रहण करने की क्षमता काफी क्षीण हो जाती है।
ReplyDeleteविश्व बैंक के रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में एक तिहाई से अधिक बच्चे अपनी मातृभाषा से बिल्कुल अलग भाषा में पढ़ने-लिखने को मजबूर हैं।यह एक बहुत गंभीर विषय है।
ReplyDeleteवैसी भाषा जो बिल्कुल समझ मे न आती हो उस में पढ़ाई बोझ है,और बिल्कुल निरर्थक है।दुनियाभर की सरकारों को इस समस्या का समाधान ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए।
विश्व बैंक के रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में एक तिहाई से अधिक बच्चे अपनी मातृभाषा से बिल्कुल अलग भाषा में पढ़ने-लिखने को मजबूर हैं।यह एक बहुत गंभीर विषय है। हमारे गांवों में रहने वाले बच्चों के माता-पिता को भी स्कूल की भाषा समझ नहीं आती है।जब कभी माता-पिता को स्कूल बुलाया जाता है तो भाषा एक समस्या बन जाती है। इससे हम समझ सकते हैं कि स्कूल की भाषा बच्चों के लिए एक बोझ बन जाती है। विद्यालय की गतिविधियों में बच्चे की निष्क्रियता साफ दिखाई देती है।अधिगम में वे पिछड़ जाते हैं।इस का समाधान सभी को मिलकर करना होगा।
ReplyDeleteबच्चों की घर की भाषा एवं स्कूल की अधिगम की भाषा में अंतर रहने के कारण बच्चे जानते हुए भी अपनी अभिव्यक्ति को शिक्षकों के सामने नहीं रख पाते। इसके लिए बच्चों को अपनी बात आरंभिक कक्षा में अभिव्यक्त करने की छूट अपनी मातृभाषा में होनी चाहिए।साथ ही शिक्षकों को भी उनकी भाषा का इस्तेमाल आना चाहिए।
ReplyDeleteWaise bacchon ke liye school avam shikshak bojhil hote hain oye apne baat rakhe me kafi jijakte hain awdharna grahan karne ki chamta kafi cheen ho jati hain
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।जैसे:--
ReplyDelete01) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
02)इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है।
03)बच्चे असहज महसूस करते हैं।
04)बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है।
05)बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी नहीं बन पाते हैं।आदि-आदि।Ravindra prasad mahto ups haraiya tandwa chatra jharkhand
Ese bachche ka basic knowledge thik nahi rahta hai kyonki bhasha ka problem ko ye bhesh karte hai
ReplyDeleteऐसे बच्चे जिनको उनकी मातृभाषा से अलग भाषा में पढ़ाई जाती है उन्हें निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा ।
ReplyDelete(1) विद्यालय में वे असहज महसूस करते हैं ।
(2) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया एवं गतिविधि में सक्रिय भागीदारी में कमी।
(3) पठन-पाठन में लगाव की कमी।
(4) किताबों, शिक्षकों एवं विद्यालय में रोचकता की कमी।
(5)कुल-मिलाकर शिक्षण अधिगम में अभिरुचि का अभाव।
Aise bachche jinko unki matribhasha se alag bhasha me padhai jati hai to anek samasyaon ka samna karna padta hai. Jaise:- vidyalay me we asahaj mahsus karna,shikshan adhigam prakriya avam gatividhi me sakriy bhagidari me kami, pathan-paathan lagaw ki kami, rochakta ki kami, kul milakar shikshan adhigam me abhiruchi ka abhav.
ReplyDeleteJin bachchon ki school ki bhasha ghar ki bhasha aur matribhasha alag-alag hoti hai,unke liye school bhoghil hote hain, shikshak bhojhil hote hain,pushtake bhoghil hote hain.Kul milakar unki sari shiksha bhojhil hoti hai.
ReplyDeleteAise students jinko unki matribhasha s alag bhasham padhai jati h to anek problems ko face Krna parta h .
ReplyDeleteJin bachcho ki school ki bhasha ghar ki bhasha or matriya bhasha alag -alag hoti hai unke leye school teacher book shiksha bhar(boj)lagta hai.
ReplyDeleteजिन बच्चों की घर में बोली जाने वाली भाषा और स्कूल में बोली जाने तथा पढ़ने लिखने की भाषा अलग होती है, जिसे बच्चे समझ नहीं पाते हैं, वैसे बच्चों को स्कूल की गतिविधियां बोझिल लगती हैं। उनके सीखने के प्रतिफल भी कम होते हैं।वे चुप रहते हैं। अपनी समस्या भी व्यक्त नहीं कर पाते। पढ़ाई,लिखाई से उनका लगाव कम हो जाता है।
ReplyDeleteवैसे बच्चों को भाषा समझने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है जिससे वे उस भाषा को बोझिल महसूस करने लगते हैं।
ReplyDeleteवैसे बच्चों को भाषा समझने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है जिससे वे उस उस भाषा को बोझिल महसूस करने लगते हैं।
ReplyDeleteJin bachchon Ki school ki bhasa aprichit hoti hai, waise bacche suru se hi sankochi, chupchap rehne wale awam darey hue hote hain.
ReplyDeleteVe apne aap ko swatantra abhiwyakti nhi de patey hain.
Sikhshak ttha school k mahol k prati asahaj mehsoos krte hai. Aise me unka buniyadi aadhar majboot nhi honge parinaam swaroop unke sampurn vikash pr bura asar padega. Unhe swatantra roop se padhne aur likhne me kathinai hogi.
अधिकतर बच्चों में घर के भाषा।और स्कूल की भाषा में अंतर होती है ।बच्चों जो भाषा का प्रयोग घर मे करते ,स्कूल और किताब की भाषा उससे भिन्न होती है, बच्चे जिस भाषा को न तो ठीक से बोल पाते हैं और ना ही समझ पाते हैं, जिससे उनके आत्म विश्वास में कमी हो जाती है।
ReplyDeleteफलतः बच्चों के सीखने के प्रतिफल पर प्रभाव पडेगा बच्चे ठीक से सिख नही पाते।
Ashutosh kumar pandey umsurduchandrikalan pratap our chatra jharkhand
Unknown1 January 2022 at 17:48
ReplyDeleteविश्व बैंक के रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में एक तिहाई से अधिक बच्चे अपनी मातृभाषा से बिल्कुल अलग भाषा में पढ़ने-लिखने को मजबूर हैं।यह एक बहुत गंभीर विषय है।
वैसी भाषा जो बिल्कुल समझ मे न आती हो उस में पढ़ाई बोझ है,और बिल्कुल निरर्थक है।दुनियाभर की सरकारों को इस समस्या का समाधान ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए।
मु॰ अफ़ज़ल हुसैन
जिन बच्चों की मातृभाषा हिन्दी नहीं है और विद्यालय में उन्हें हिन्दी से पढाई जाती है तो वे कक्षा में असहज महसूस करते हैं। वे अपने भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते हैं।
ReplyDeleteसिखने, सीखाने की भाषा एवं मातृभाषा यदि अलग हो तो बच्चे के लिए शिक्षा बोझिल बन जाता है |भाषा समान होने पर सीखने के अवसर स्वतः बनने लगते हैं |बच्चे पाठ्यक्रम में निहित उद्देश्य को समझ लेते हैं |बच्चे को शिक्षा से जोड़ने के लिए उनको उनकी अपनी मातृभाषा में यदि शिक्षण कराया जाय तो वे बेहतर समझ विकसित कर पाऐंगे |अतः शिक्षक को विभिन्न माध्यम से उनकी मातृभाषा सीखने को प्रयासरत रहना उचित प्रतीत होता है
ReplyDeleteजिन बच्चों का मातृ भाषा और स्कूल की भाषा अलग अलग होती है उन्हें स्कूल बोझ लगता है शिक्षक भी बोझ महसूस होते हैं फिर बच्चे स्कूल जाना नहीं चाहते हैं अतः बच्चों का विकाश मे प्रभावित होता है।
ReplyDeleteबच्चों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हॉग,उनमें कुछ निम्न प्रकार हैं:-
ReplyDelete1.अपनी बात को रखने में झिझक।
2.विषय वस्तु को आत्मसात करने में अधूरापन।
3.सीखने के उत्साह का कम हो जाना।
4.विद्यालय और अपने आस -पास के वातावरण के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण से देखने को मजबूर होना।
जब बच्चों के घर की भाषा से उनके स्कुल की भाषा अलग होती है तो उनके लिए पढ़ना एक नीरस प्रक्रिया बन कर रह जाता है। वह पाठ्य वस्तु को समझ नहीं पाता है तथा अपना भाव व्यक्त नहीं कर पाता है।
ReplyDeleteकक्षा में वे चुप रहते हैं तो शिक्षक भी यह समझ नहीं पाता है कि वह बच्चा सीख रहा है या नहीं।
विश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।जैसे:--
ReplyDelete01) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
02)इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है।
03)बच्चें असहज महसूस करते हैं।
04)बच्चोंं का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता हैं।
05)बच्चें शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहभागिता नहीं बन पाते! किशोर कुमार राय, उत्क्रमित उच्च विद्यालय kathghari
TIMUTHIUS SANJAY TIRKEY
ReplyDeleteविद्यालय के शुरुआती दिनों में बच्चों को भाषा संबंधी बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बच्चे ही नहीं हम शिक्षकों को भी इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। स्थान परिवर्तन,नये चेहरे,सब अपरिचित और अकेलापन किसे सुनाऊं ?, कैसे सुनाऊं ?अपनी ज़ुबानी। विद्यालय में प्रवेश कर समस्या ही समस्या नज़र आता है। कुछ बातें हैं जो इस प्रकार है-
*अपने आप में हीन-भावना का होना।
*असहज महसूस करना।
*किसी भी प्रकार का काम हो दूसरों पर निर्भर रहना।
*डरा सहमा सा रहना।
*अपनी बात कहने में संकोच करना।
*दुर्लभ भाषा का सामना।
इन सारी छिपे हुए दास्तां के बाद भी माता-पिता, अभिभावक गण अपने बच्चों को विद्यालय में छोड़कर चले जाते हैं।इस कारण विद्यालय की शुरुआती दौर में क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए। क्षेत्रीय भाषाओं में बुनियादी सुविधाओं को परोसना चाहिए जिसे बच्चे बिना झिझक के ग्रहण कर पाएं।
विश्व बैंक के अनुसार 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं न समझते हैं, हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा, जैसे _ 1) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से अलग भाषा का प्रयोग यदि विद्यालय में होता है तो बच्चे विद्यालय की भाषा को समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं। 2) इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई लिखाई से दूर होता चला जाता है। 3) बच्चे असहज महसूस करते हैं। 4) बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है। 5) बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग नही ले पाते हैं, आदि आदि। (तारकेश्वर राणा, उत्क्रमित मध्य विद्यालय रामु करमा, चौपारण, हजारीबाग)
ReplyDeleteBachman ko sikhne ke darmayanjab unhe bahubhasaon ka samna karna padta hai to adhigam per nakaratmak prabhaw padta hai.
ReplyDelete...........MS KUSUNDA MATKURIA DHANBAD 1
जिन बच्चों की विद्यालय की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा अलग-अगल होती है उनके लिए विद्यालय बोझिल लगने लगता है
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।जैसे:--
ReplyDelete01) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
02)इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है।
03)बच्चे असहज महसूस करते हैं।
04)बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है।
05)बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी नहीं बन पाते हैं।
06)बच्चों को मानसिक दुर्बलता का एहसास और अपने निजी भागीदारी नहीं होने के कारण काफी तनावपूर्ण स्थिति महसूस होता है।
जिन बच्चों की विद्यलयी भाषा घर की भाषा से मातृभाषाअलग होती है उन्के लिये शिक्षक पुस्तक विद्यालय बोझिल लगने लगता है जिससे बच्चों का विकास अवरुद्ध हो जाता है। अनिल कुमार मध्य विद्यालय तेलौ बोकारो
ReplyDeleteग्रामीण छात्रों जी मातृभाषा और विद्यालय की भाषा में अंतर होता ही है। जिसके कारण प्रारंभिक कक्षाओं में उनकी शैक्षणिक उपलब्धि कम होती है। यहां बहु भाषा शिक्षण उनकी शैक्षणिक उपलब्धि को बढ़ाने में बहुत सहायक होती हैं। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि शिक्षक भी उनकी मातृभाषा एवं विद्यालय की भाषा के बीच अच्छी सेतु बना सके।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में शत-प्रतिशत छात्र ऐसे हैं जिनकी मातृभाषा या तो खोरठा है या फिर संथाली। शिक्षण का माध्यम हिंदी है ।साथ ही साथ उन्हें अंग्रेजी और संस्कृत भी एक अन्य भाषा के रूप में पड़ती है । अर्थात एक छात्र को विद्यालय में पढ़ने के लिए कम से कम चार भाषाएं आनी चाहिए। इन चार भाषाओं का भार उनकी शैक्षणिक उपलब्धि को एवं उनकी मानसिक स्थिति को बुरी तरह प्रभावित करता है । संथाली भाषा छात्रों के साथ समस्या यह है कि अधिकांश शिक्षकों को संथाली आती ही नहीं। तो उन्हें संपर्क भाषा के रूप में हिंदी आनी ही चाहिए । यहां उनके परिवेश के कारण खोरठा भाषा का ज्ञान सेतु भाषा हिंदी के प्रति समझ बनाने में अहम भूमिका निभाती है। यही कारण है कि जिन छात्रों को संथाली के साथ साथ खोरठा भाषा आती है उनकी शैक्षणिक उपलब्धि सामान्यता अच्छी होती है। लेकिन उनकी कठिनाइयों एवं समस्याओं को निश्चय ही समझने का प्रयास करना चाहिए। प्रारंभिक कक्षाओं में भाषा शिक्षण पर जोर देना अति आवश्यक है। अगर उन्हें भाषा की समझ अच्छी होगी तो वे स्वभाव का अन्य विषयों में अच्छा प्रदर्शन करने में सक्षम होंगे।
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे ना वह बोलते हैं ,ना समझते हैं मेरे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा जैसे पहला बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं। दूसरे बच्चे असहज महसूस करते हैं। तीसरा बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है। चौथा बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी नहीं बन पाते हैं। पांचवा अपनी बात स्वतंत्र रूप से कह नहीं पाते हैं, आदि।
ReplyDeleteविश्व बैंक के रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में एक तिहाई बच्चे अपनी मातृभाषा को छोड़कर अन्य भाषा में पढ़ने लिखने को मजबूर है यह एक गंभीर समस्या है बच्चों को पढ़ाई बुझी लगता है पढ़ाई लिखाई बच्चों को मुश्किल कार्य लगता है यह आनंददायक भी नहीं होता इसलिए हम सबों को यह प्रयास करना चाहिए की स्कूल की पढ़ाई लिखाई बच्चों की मातृभाषा में हो और धीरे धीरे दूसरी भाषाओं का भी ज्ञान कराया जाए धन्यवाद
ReplyDeleteयह बात सही है कि विश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं और न समझते हैं,विद्यालय में ऐसे भाषा का प्रयोग जिसको ना बच्चे ठीक से बोल पाते हैं और ना ही समझ पाते हैं ऐसे में बच्चों को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है विशेषता जब बच्चे प्रथम बार विद्यालय आते हैं और उन्हें किसी ऐसी भाषा से सामना करना पड़ता है जिससे वह अभी तक अपरिचित है तो वह अपने आप को विद्यालय में असहज महसूस करते हैं| विद्यालय की गतिविधियों में उनकी निष्क्रियता स्पष्ट दिखाई पड़ती है| वे अपने आप को विद्यालय में व्यक्त नहीं कर पाते है| अतः विद्यालय के शुरुआती वर्षों में शिक्षार्थियों के शिक्षण का भाषा उनकी
ReplyDeleteमातृभाषा अवश्य होनी चाहिए| एक बार मातृभाषा इससे जब पढ़ाई आरंभ करते हैं तो बाद में उन्हें अन्य भाषाओं को सिखाने में आसानी होगी|
Jagannath Bera
Oriya Middle School Arong, Baharagora, East Singhbhum.
भाषा सुनकर,हावभाव,और अभ्यास से बच्चे सीखकर अपना भाव व्यक्त बोलकर करने में अत्यधिक कठिनाई नहीं होती।लिखने में वैयाकरण त्रुटि अभ्यास से शक्य है।
ReplyDeleteजिन बच्चों के लिए मातृभाषा अलग और विद्यालय की भाषा हिन्दी हो तो ऐसी परिस्थितियों में हिन्दी भाषा सीखने में बच्चों को काफी परेशानी होती है|
ReplyDeleteघर की भाषा और विद्यालय की भाषा में विभिन्नता होने से बच्चे बहुत तरह की समस्याओं से रूबरू होते हैं जैसे 1.वे अलग भाषा बोलने वाले बच्चों से दोस्ती नहीं कर पाते जिससे वे हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं। 2.अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त नहीं कर पाते। 3. कक्षा की गतिविधियों में सक्रिय रूप से सहभागी नही होते जिससे उनकी रुचि पढ़ाई से हट जाती है। 4.वे अवधारणा को समझ नही पाते। 5.उन्हें विद्यालय का वातावरण बोझिल लगने लगता है जिससे वे पढ़ाई न करने के बहाने करते हैं और विद्यालय में अनुपस्थित रहने लगते हैं। उपर्युक्त परिस्थितियों के कारण बच्चों की ड्रॉपआउट की समस्या उत्पन्न होती है।
ReplyDeleteजिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं ,शिक्षक बोझिल होते हैं, पुस्तके बो
ReplyDeleteझिल होती हैं। कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती है ।
कालेश्वर प्रसाद कमल
प्रा विधालय झण्डापीपर गादी (द)
धनवार ( गिरिडीह )
वैसे बच्चे जिनकी घर की भाषा और स्कूल की भाषा अलग होती है ।विद्यालय में शिक्षक के द्वारा दिये गये दिशा निर्देश को समझ नहीं पाते हैं।ऐसे में पढ़ाई उनको बोझिल लगती है । वे विद्यालय की गतिविधि में शामिल नहीं हो सकते हैं ।
ReplyDeleteसंसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।जैसे:--
ReplyDelete01) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
02)इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है।
03)बच्चे असहज महसूस करते हैं।
04)बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है।
05)बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी नहीं बन पाते हैं।आदि।
संजीव कुमार माराण्डी
प्राथमिक विद्यालय दूधपानी
हाटग्मरिया
पश्चिमी सिंहभूम
विश्व बैंक की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 33% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने के लिए बाध्य हैं , जिसे न तो वे बोलते हैं और न ही समझते हैं।
ReplyDeleteयह स्थिति बहुत ही विचित्र है।ऐसी स्थिति छात्र एवं शिक्षक दोनों के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ वाली हो जाती है।छात्र तो अपने को बिल्कुल ही नये परिस्थिति में घिरा हुआ महशुस करता है। कक्षा में उसे घुटन महसूस होने लगती है।शिक्षक से उसे अपनापन या निकटता का अनुभव बिल्कुल ही नहीं होता है।धीरे धीरे उसे पढ़ाई से वितृष्णा सी अनुभूति होने लगती है। वह धीरे-धीरे विद्यालय से दूरी बनाने लगता है।
प्रारंभिक कक्षाओं में प्रवेश करने वाले बच्चों की उलझनें चौगुनी बढ़ जाती होगी।उनका दिमाग चकरा जाता होगा। एक तो अपनी ही मातृभाषा में पकड़ ढीली,उपर से अनजान शख्स शिक्षक या शिक्षिका द्वारा अन्य अनजान भाषा में कुछ बतलाने सिखाने का प्रयास सर के ऊपर-ऊपर ही गुजर जाता होगा, कक्षा में उन्हें मन नहीं लगेगा।
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।जैसे:--
ReplyDelete01) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
02)इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है।
03)बच्चे असहज महसूस करते हैं।
04)बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है।
05)बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी नहीं बन पाते हैं।आदि-आदि।
हमारे विद्यालय में अलग-अलग परिवेश के बच्चे आते हैं ऐसे बच्चों को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जब बच्चे पहली बार विद्यालय आते हैं और उन्हें अपने घर की भाषा से अलग भाषा का सामना करना पड़ता है तब वह विद्यालय में असहज महसूस करते हैं उन्हें हिंदी भाषा में बात करने में समस्या आती है।
ReplyDeleteJin bacchon ki school ki Bhasha Ghar ki Bhasha aur matrubhasha se alag Hoti hai unke liye you school boli hote hain school shikshak mujhe jaate Hain kuchh to bhi Hoti hai kul milakar sare lagta hai
ReplyDeleteJin Jin bacchon ki school ki Bhasha tatha Ghar Ki Bhasha alag alag Hoti Hai unko School Bojh lagta hai unhen school Shiksha Bojh Lagti Hai bacche apni matrabhasha Se Alag Bhasha padhne ke liye majbur hote hain vah Vidyalay ke Bhasha ko Sahi dhang se tarike se nahin samajh sakte hain unhen Vidyalay Mein Asad mahsus hota hai aur ve Shikshan prakriya Mein sakriy sahbhagi Nahin Ho paate Hain
ReplyDeleteसंथाल परगना के आदिवासी क्षेत्र मैं रहने वाले अधिकांश बच्चे संथाली समझते और बोलते हैं परंतु विद्यालय में शिक्षा हिंदी भाषा में दी जाती है। इस कारण से बच्चे कक्षा में पढ़ाए जाने वाले विषय समझ ही नही पाते और कोई प्रश्न पूछना भी नहीं चाहते।
ReplyDeleteविश्वबैंक की रिपोर्ट अत्यंत ही महत्वपूर्ण और गंभीर समस्या की ओर इंगित करती है, इसे सभी विद्यालयों और शिक्षकों को भी गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है अन्यथा आज तक जैसी समस्याओं से बच्चों को जूझना पड़ा है आगे भी वैसे ही समस्याओं से जूझते रहना होगा। विद्यालयों में ऐसे भाषा का प्रयोग जिसको ना बच्चे ठीक से बोल पाते हैं और ना ही समझ पाते हैं ऐसे में बच्चों को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, बच्चे ना ही ठीक से पढ़ पाते हैं और ना ही लिख पाते हैं और ना ही कुछ समझ ही पाते हैं।
ReplyDeleteऐसे में पढ़ाई उस बच्चे के लिए किसी बोझ से कम नहीं होता , और यही कारण है कि बच्चों में धीरे धीरे पढ़ाई से रुची ही समाप्त हो जाती है।
सबसे सही और उपयुक्त सभी शिक्षकों के लिए यही होगा कि वे बच्चों से उनकी मातृभाषा में ही ज्यादा से ज्यादा संवाद करें ताकि बच्चों को पढ़ाई में रुचि जागृत हो सकें।
फिर जब बच्चों में शैक्षणिक भाषा की समझ विकसित हो जाये तब उनसे शैक्षणिक भाषा मे संवाद करनी चाहिए।
जिन बच्चों का मातृभाषा और विद्यालय में पढ़ाई की जाने वाला भाषा अलग है ,उन बच्चों को बहुत ज्यादा तकलीफ होती है ,उन्हें पढ़ाई कुछ समझ में नहीं आता वह क्लास में हमेशा चुपचाप रहते हैं और धीरे-धीरे पढ़ाई के प्रति उनका इंटरेस्ट कम हो जाता है |वह दब्बू टाइप का बन जाता है |
ReplyDeleteParticularly in tribal language dominant areas we notice this problem vastly.Elementary level students are bound to learn through the language other than their mother tongue.This results in learning gap,lack of interest in school education,growing inferiority complex,increasing dropout rate and ultimately the overall development of society,village and nation affects inversely.I have keenly noticed this problem in my school catchment area where most students speak "HO" tribal language and medium of instruction in school is HINDI.This adversely affects children in their early learning stage.
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।जैसे:--
ReplyDelete01) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
02)इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है।
03)बच्चे असहज महसूस करते हैं।
04)बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है।
05)बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी नहीं बन पाते हैं।
इस समस्या का निराकरण के लिए प्राथमिक स्तर के बच्चों को उनके मातृभाषा में उन्हें शिक्षा प्रदान करना चाहिए ।
ReplyDeleteबच्चे घर और परिवेश की भाषा से परिचित होते हैं ।जब वे विद्यालय आते हैं तो वहाँ की भाषा से अपरिचित रहते हैं जिससे बोलने में असमर्थ मह्सूस करते और अन्य गतिविधियों में भाग नहीं ले पाते हैं अपनी अभिव्यक्ति नहीं व्यक्त करने में कठिनाई होती है। और बहुत सारे शिक्षक भी उस क्षेत्र में बोली जाने वाली क्षेत्रीय भाषाओं से अपरिचित होते हैं जिसके कारण वे बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ा ने , समझाने या गतिविधियां कराने में असमर्थ होते हैं।अर्थात् बच्चों को उनकी भाषा में अभिव्यक्ति देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए ।हमारे विचार से इन बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।जैसे:--
ReplyDelete01) अपने घरेलू भाषा/ मातृभाषा से इतर बच्चे विद्यालय के भाषा को सही तरीके से समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
02)इस परिस्थिति में बच्चों का लगाव पढ़ाई-लिखाई से दूर होता चला जाता है।
03)बच्चे असहज महसूस करते हैं।
04)बच्चों का सर्वांगीण विकास प्रभावित होता है।
05)बच्चे शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोगी नहीं बन पाते हैं।
06)बच्चों को मानसिक दुर्बलता का एहसास और अपने निजी Motiur Rahman, UPS-Chandra para, Pakur
जिन बच्चों की घर की भाषा या मातृ भाषा विद्यालय के शिक्षण की भाषा से अलग होती है उन बच्चों में शुरुआती कक्षाओं मेंअपनी अभिव्यक्ति ठीक से नहीं कर पाते हैं और कक्षा में बिछड़ते जाते हैं।
ReplyDeleteसंथालपरगना के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में छात्र घर मे संथाली बोलते हैं ।खोरठा भी कुछ कुछ समझते है।जब स्कूल आते है।उन्हें हिंदी भाषा मे बात करने में समस्या आती है।फलतः अधिकांश छात्र चुप रहते हैं।जिससे छात्रों के सीखने का प्रतिफल पता नहीं
ReplyDeleteहमारे परिवार के बच्चे जो भाषा घर पर अक्सर बोलते हैं और गिन भाषा को पहचानते हैं उस भाषा को विद्यालय जा कर भाषा के पुर्व ज्ञान के साथ जोड़ते हैं और अगर बिद्यालय की भाषा अलग लगती है तो बच्चों को कठिनाई से सिखते हैं
ReplyDeleteबहुत सारे बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं ,शिक्षक बोझिल होते हैं, पुस्तके बोझिल होती हैं। कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती है। और धीरे धीरे कक्षा में अन्य बच्चों से पिछड़ जाते हैं, उनकी प्रगति बाधित हो जाती है।
ReplyDeleteस्कूल की भाषा अलग होने से अघिकांश बच्चे चुपचाप रहते हैं एवं अपनी बात रखने पर भी हिचकिचाते हैं।
ReplyDeleteऐसे बच्चों को शिक्षक की बातों एव पुस्तकों की सामग्री से पर्याप्त समझ नहीं बन पाती है । वे अपनी बातों प्रश्नों एवं विचारों को ठीक से अभिव्यक्त नहीं कर पाते । शिक्षक के द्वारा पूछे प्रश्नों का जबाब देने से घबराते हैं । उन्हें कक्षा का माहौल अजनबी सा लगता है और बहुत ज्यादा संभावना है कि ऐसे बच्चे छिजित हो जाएँ ।
ReplyDeleteपीयूष पाणि
उत्क्र.म.वि. थाम
प्रखण्ड चन्दवारा
जिला कोडरमा
Jis bachchon ki school ki bhasha,gharki bhasha,matribhasha se alag hoti hai unke liye school shikshak pustakein bojhil hoti hai.Kulmilakar unki sari shiksha bojhil hoti hai.
ReplyDeleteभाषा मे अन्तर स्वाभाविक ही है।बच्चे परिवेश तथा अभ्यास से सूखे गे।
ReplyDeleteAide bachhon ke liye padhai bojh ban Jayega.
ReplyDeleteSchool ki Bhasha alag hone se bacche bilkul hi chupchap baithe rehte hain aur sari chijen Jo class mein bataiye jaati Hain vah samajh mein aata hai
ReplyDeleteजब विद्यालय की भाषा और घर की भाषा अलग-अलग होती है, तब सीखने-सिखाने की प्रक्रिया सुचारु ढंग से नहीं चल पाती है । बच्चे सीखने की प्रक्रिया का अंग नहीं बन पाते हैं और वे अधिगम की प्रक्रिया में अपने आप को, अपने परिवेश को, समुदाय को नहीं जोड़ पाते हैं । इससे हम सभी शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पाते हैं, और बच्चों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है ।
ReplyDeleteजब घर की भाषा और विद्यालय की भाषा अलग होती है तो बच्चे बोलने से बचते हैं।वे विद्यालय में हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं।उनका अधिगम शुन्य होता है।
ReplyDeleteBhasha alag hone se bacchon ko Vishay Vastu samajhne Mein kathinai ka Samna karna padta hai jisse vah kaksha mein chup rahte hain.
ReplyDeleteसबसे पहले तो बच्चे नए माहौल में आते हैं विद्यालय का वातावरण उनके लिए एकदम से अलग परिवेश प्रदान करता है जहां बच्चों को ढलने में थोड़ा सा समय लगता है और दूसरी उनको भाषा से संबंधी कुछ नए माहौल भी मिलते हैं जिससे उनमें निम्न समस्याओं का होना स्वाभाविक है
ReplyDelete*विद्यालय के प्रति रूझान कम होना।
*सीखने में समस्या होना।
*मन में भय पैदा होना।
*पढ़ने के प्रति रूचि कम होते जाना।
*संकोची स्वभाव को बढ़ावा मिलना।
विद्यालय की भाषा जिसे बच्चे न बोलते हैं न समझते हैं ऐसी भाषा में बच्चों को पढ़ने लिखने में बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है इस कारण बच्चे वर्ग में अपमानित लाचार और डरा हुआ महसूस करते हैं और शिक्षण अधिगम में सार्थक रूप से नहीं जुड़ पाते हैं।
ReplyDeleteअगर शिक्षा बच्चों की अपनी मातृभाषा में न हो तो बच्चों में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। उन्हें समझ में कठिनाई होगी। पढ़ने में रुचि नहीं होगी।
ReplyDeleteजिन बच्चों की विधालय की भाषा और मातृभाषा अलग अलग होती है उनके लिए विधालय बोझिल लगने लगता है.
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