आपकी कक्षा के बच्चे जो भाषा/भाषाएँ दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते-समझते हैं, वह पाठ्यपुस्तकों में लिखी गई भाषा से किस प्रकार अलग है? लगभग 100 शब्दों में अपना उत्तर लिखें और उदाहरण के साथ समझाएँ।
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बच्चे सामान्यतः संथाली में बातचीत करते हैं जो पाठ्यपुस्तक से बिल्कुल भिन्न है।कुछ बच्चे खोरठा ,भोजपुरी बोलते हैं ।यह भी भिन्न है। कक्षा 3 तक छात्र स्कूली भाषा का उपयोग ठीकठाक से नही कर पाते।
ReplyDeleteकक्षा के बच्चे जो दैनिक जीवन मे अपनी भाषा का प्रयोग करते हैं,उनकी भाषा किताबोंमे लिखी भाषा से भिन्न तो जरूर होते हैं क्योंकि अधिकांश विद्यालय जो सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित हैं वहां के बच्चे ज्यादातर खोरठा भाषा का प्रयोग करते हैं।खोरठा भाषा किताबी भाषा से थोड़ा भिन्न तो जरूर है फिर भी शिक्षकों के सहयोग से बच्चे समझ जाते हैं।
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Deleteहमारे विद्यालय में मुख्यता हिंदी और क्षेत्रीय भाषा खोरठा बोलने वाले बच्चे पढ़ते हैं खोरठा भाषा एक स्थानीय भाषा है और इसके शब्द बहुत कुछ हिंदी से मिलते जुलते हैं अतः हमारे विद्यालय में इन बच्चों को बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होती है। फिर भी बहुत से स्थानीय शब्द ऐसे हैं जो हिंदी से मेल नहीं खाते हैं इन शब्दों के अर्थ जानने में बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteअंजय कुमार अग्रवाल
मध्य विद्यालय कोयरी टोला
रामगढ़
हमारे विद्यालय में अधिकांश बच्चे खोरठा बोलते हैं,लेकिन हिंदी भी ठीक-ठाक समझ लेते हैं। कुछ शब्द अलग भी हैं,जैसे:
ReplyDeleteकोर- बेर
डहर- रास्ता
दमगी- पहाड़ी
यद्यपि यह एक स्थानीय भाषा है और इस पर हिंदी और बांग्ला का स्पष्ट प्रभाव है,फिर भी अधिगम में ज़्यादातर दिक्कत नहीं होती है।
मु॰ अफ़ज़ल हुसैन
उर्दू प्राथमिक विद्यालय मंझलाडीह, शिकारीपाड़ा, दुमका।
हमारे विद्यालय में मुख्यता हिंदी और क्षेत्रीय भाषा खोरठा बोलने वाले बच्चे पढ़ते हैं खोरठा भाषा एक स्थानीय भाषा है और इसके शब्द बहुत कुछ हिंदी से मिलते जुलते हैं अतः हमारे विद्यालय में इन बच्चों को बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होती है.
ReplyDeleteHAmare shetr me mundari boli jati hai ar hindi ya kitabi bhasa se mail nhi khati hai kuch apwaad ko chorkrjisse bachon ko presaani hoti hai.
ReplyDeleteJaise:-
Mundari me boli Hindi me boli
Sim Murgi
Hora Rasta
Singi suraj
Bir jangal
Morai muli
Oproqt sabd alg alg hai pr kuch milte julte and v hai jo is prakaar hai.
Mundari me boli Hindi me boli
Chana chana
Matar matar
Gajar gajar
Ise ar kuch sbd hai jo pataypustak se milti julti v hai. Pr fir v bhut si and pataypustak se nhi mach krti bachon ke bhasa se.
हमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा खोरठा है।जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें धीरे-धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से कई शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है।इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है।बहुत-बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteकौशल किशोर राय,
सहायक शिक्षक,
उत्क्रमित उच्च विद्यालय पुनासी,
शैक्षणिक अंचल:- जसीडीह,जिला:- देवघर,
राज्य:- झारखण्ड।
हमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मात्री भाषा उड़िया है जब यह बच्चे अपने मात्री भाषा से ओतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहां इनको हिंदी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है हालांकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा और सहज महसूस किया जाता है परंतु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनु समर्थन से उन्हें धीरे धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है हम में से कई शिक्षक मात्रिभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनु समर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं बच्चों के साथ हम कई बार उनके मात्री भाषा में वस्तुओं की समाज बस लाने का कार्य किया जाता है इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है धन्यवाद
Deleteहमारे विद्यालय के अधिकतर छात्रों की मातृभाषा खोरठा या अंगिका है| अतः बच्चों को हिंदी पढ़ने में बहुत ज्यादा समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है लेकिन कुछ छात्र संथाली भाषा का भी प्रयोग करते हैं उन्हें जरूर अपने शुरुआती वर्षों में हिंदी पढ़ने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है|
ReplyDeleteHamhare school mi hindi teaching mi koi dikat nahi hai
ReplyDeleteUsha kumari
Mere Vidyalay ke adhiktar bacche Nagpuri bolate Hain Jo Hindi se kuch Milta julta Bhasha hai Fir Bhi bacchon ko Vidyalay Mein Hindi aur angreji samajhne Mein dikkat Hote Hain Jiske Karan bacche khulkar Baat Nahin Karte Hain Jise bacchon ko Apne Kshetriya bhashaon mein bhi Samjhana padta hai
Deleteहमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चे हो भाषा बोलते हैं हो क्षेत्रीय भाषा है जबकि विद्यालय में हिन्दी भाषा में पढ़ाई होती है। बच्चों को हिंदी समझने में थोड़ी दिक्कत होती है।
Deleteसामान्यतः हमारे विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों की घर अथवा मातृभाषा भोजपुरी एवं मगही का मिश्रण है परन्तु पाठ्यक्रम में हिंदी और अंग्रेजी भाषा माध्यम के रूप में होती है जिससे बच्चों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना करना पड़ता है।जैसे कुछ पूछने पर उसे अभिव्यक्त करने में हिचकते हैं।
ReplyDeleteसामान्यतः हमारे विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों की घर अथवा मातृभाषा भोजपुरी एवं मगही का मिश्रण है परन्तु पाठ्यक्रम में हिंदी और अंग्रेजी भाषा माध्यम के रूप में होती है जिससे बच्चों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना करना पड़ता है।जैसे कुछ पूछने पर उसे अभिव्यक्त करने में हिचकते हैं।
DeleteGenerally in our school all the teachers teach in hindi and English. But the students who comes from rural areas don't follow clearly the teachers teaching so they don't want to ask any question or reply the answers.
Deleteहमारे विद्यालय में मुख्यता हिंदी और क्षेत्रीय भाषा खोरठा बोलने वाले बच्चे पढ़ते हैं खोरठा भाषा एक स्थानीय भाषा है और इसके शब्द बहुत कुछ हिंदी से मिलते जुलते हैं अतः हमारे विद्यालय में इन बच्चों को बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होती है
DeleteHamare Vidyalay ke adhiktar chhatron ki matrabhasha Khortha hai lekin pathykram mein Hindi aur angreji Bhasha Madhyam ke roop Mein hoti hai padhaai Ke kram Mein Kuchh poochhne per bacche hichki channel Lagte Hain
ReplyDeleteमेरे क्षेत्र में बच्चे सामान्यतः संथाली में बातचीत करते हैं जो पाठ्यपुस्तक से बिल्कुल भिन्न है।कुछ बच्चे खोरठा तथा बंग्ला भी बोलते हैं। यह भी भिन्न है। कक्षा 3 तक छात्र स्कूली भाषा का उपयोग ठीकठाक से नही कर पाते।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के अधिकतर छात्रों की मात्रिभाषा अंगिका है अतः बच्चों को हिंदी पढ़ाने में ज्यादा समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में खोरठा और हिन्दी बोलने वाले बच्चे पढ़ते हैं। अत उनके लिए पाठ्यपुस्तक या विद्यालय की भाषा ज्यादा कठिन नहीं है।
ReplyDeleteहमारे विघालय का क्षेत्रीय भाषा संथाली है जो कि पाठ्यपुस्तक की भाषा से बिल्कुल अलग है। बच्चे को हिन्दी पढ़ाने मे समस्या होती है । जैसे-पढ़ना - पढ़ाव,लिखना -ओल ,बोलना-रोड़,सुनना-आजोम ।संथाली मे पढ़ा जाता जो कि हिन्दी भाषा से अलग है बच्चे को पाठ्यपुस्तक पढ़ने मे दिक्कत होती है।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में हिंदी पढ़ने और पढ़ाने में कोई परेशानी नहीं है।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में मुख्यता हिंदी और क्षेत्रीय भाषा खोरठा बोलने वाले बच्चे पढ़ते हैं खोरठा भाषा एक स्थानीय भाषा है और इसके शब्द बहुत कुछ हिंदी से मिलते जुलते हैं अतः हमारे विद्यालय में इन बच्चों को बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होती है.
ReplyDeletePremlata devi G.M.S Pancha Ormanjhi Ranchi
जो बच्चे अपने दैनिक जीवन मैं सहज रूप से भाषा/भाषाएं बोलते, समझते हैं वाह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से अलग होती है क्योंकि हमारे देश में मात्र 36 भाषाएं शिक्षण का माध्यम है जबकि 121 प्रमुख भाषाएं हैं और देश में 1369 भाषाएं बोली जाती है इस प्रकार बहुत सारे बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती, और उनकी शिक्षा बहुत हत्या पूरी तरह एक अपरिचित भाषा में ही होती है, जैसे- राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मगदी, हरियाणवी, खोरठा आदि भाषाएं हमारे देश में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती हैं फिर भी इन भाषाओं को स्कूलों के पाठ पुस्तकों में शिक्षण के माध्यम के रूप में जगह नहीं मिल पाई है
ReplyDeleteधन्यवाद
चंचला रानी
प्रधान पारा शिक्षिका
उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय जमुनियांटांड़ (पचडा)
प्रखंड केरेडारी
जिला हजारीबाग झारखंड
हमारे विधालय के बच्चे भूमिज भाषा एवं उड़िया भाषा बोलते हैं| विधालय हिन्दी माध्यम की है| बच्चे थोड़ा असहज तो जरूर महसूस करते हैं|
ReplyDeleteहमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा खोरठा है।जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें धीरे-धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से कई शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है।इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है।
ReplyDeleteहमारे विघालय का क्षेत्रीय भाषा ओडिया है जो कि पाठ्यपुस्तक की भाषा से बिल्कुल अलग है। बच्चे को हिन्दी पढ़ाने मे समस्या होती है । जैसे-पढ़ना - पडिव,लिखना -लिख,बोलना-कहो,सुनना-सुड़ ।ओडिया मे पढ़ा जाता जो कि हिन्दी भाषा से अलग है बच्चे को पाठ्यपुस्तक पढ़ने मे दिक्कत होती है।
ReplyDeleteGenerally in our school all the teachers teach in hindi and english But the student who comes from rural areas, do not follow clearly the teachers teachings So they do not want to ask any questions or reply the answer
ReplyDeleteमेरा विद्यालय गढ़वा जिले में स्थित है।इस क्षेत्र में हिन्दी भाषा की क्षेत्रीय भाषा मगही, छत्तीसगढ़ी एवं सासाराम बिहार के सीमावर्ती होने के कारण यहां के बच्चों की बोली मिश्रित है।
ReplyDeleteफिर भी अगर विद्यालय की भाषा को इनकी भाषा से जोड़कर देखा जाए तो अंग्रेजी बिल्कुल नयी भाषा है। हिन्दी की बात करें तो निम्न उदाहरण से समझ सकते हैं:-
मगही- हम जा थिया।(मैं जा रहा हूं।)
भोजपुरी आंशिक-रावा कहां जा तानि?(आप कहां जा रहे हैं? (पाठ्य-पुस्तकें)
एह लं आव( यहां आइए)। इत्यादि।
जब बच्चें विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा के लिए पहली बार कदम रखते हैं और उन्हें पुस्तक की भाषा में पठन-पाठन की जाती है तो वे असहज महसूस करते हैं।
Mere vidyalaya ke sabhi bachche hindibhashi hi hai .isliye yaha koi vishesh pareshani nahi hoti hai.
ReplyDeleteMere vidyalay pashchim Singhbhum jila me hai mera vidyalay sudur gramin kshetra me hai bachcho ki matrubhasha santhali or ho hai hindi bhasha se isko joda Jay to jaise santhali me hijume node durup me (iska hindi aao yahan baito) ho me hujum nenre dubme (iska hindi aao yahan baito) bachcho ko vidyalay me pathypushtak ki bhasha hindi se padaya Jata hai jo bachcho ko samajne kathin hoti ye badai se dur bhagti hai
ReplyDeleteमेरे विद्यालय ग्रामीण क्षेत्र में है. यँहा बच्चे अपने स्थानीय मातृभाषा में बातचित करते हैं. जब ये बच्चे विद्यालय आते हैं तो उसे हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का सामना करना पड़ता है. इसलिए यँहा उनको असहज महसूस होता है. परन्तु शिक्षकों के सकरात्मक प्रयास से उनकी मातृभाषा में बात करते हैं तो वे सहज और आनंद से सीखने लगता है.
ReplyDeleteमैं झारखंड प्रदेश के संथाल परगना प्रमंडल के जामताड़ा जिला में पदस्थापित एक शिक्षक हूॅ। हमारे विद्यालय क्षेत्र के अधिकतर बच्चों का मातृभाषा बंगला या संथाली है और
ReplyDeleteपाठ्यपुस्तकें हिन्दी में है , बच्चों की बोली जाने वाली भाषा से यह भिन्न है । हम शिक्षक हिन्दी पाठ्यपुस्तक के विषय वस्तुओं को हिन्दी में पठन या वाचन करते हुए उन्हे बंगला भाषा में समझाते हुए अवधारणा गठन में सहायक की भूमिका निभाते हैं। यह समस्या शुरुआती बर्षों में सर्वाधिक होता है और धीरे धीरे उपर के कक्षाओं में ह्रास होता जाता है। परन्तु यह तो सही है की हमारे स्कूली बच्चे धीरे धीरे हिन्दी सीख तो लेते हैं पर यह गुणवत शिक्षा को प्रभावित करती है, और यह भी सच है की बहुत से बच्चें ना तो ठीक से हिन्दी सीख पातें हैं ना ही बंगला या संथाली ।
हमारे स्कूल के पोषक क्षेत्र में जो बच्चे रहते हैं ,वह हिंदी बांग्ला तथा खोरठा भाषा का उपयोग करते हैं। इस प्रकार जिसका हिंदी घर में बोलचाल की भाषा है उसे कठिनाई अपेक्षाकृत कम होती है, बांग्ला बोलने वाले बच्चों का कठिनाई सर्वाधिक होती है, खोरठा बोलने वाले बच्चों का कठिनाई मध्यम स्तर की होती है, क्योंकि खोरठा के काफी शब्द हिंदी से मेल खाता है ,परंतु बांग्ला में ऐसा नहीं, जैसे बांग्ला में रुई मतलब रोहू मछली हिंदी में रुई मतलब तुला होता है, बांग्ला में धर यानी पकड़ना हिंदी में धर यानी रखना आदि।
ReplyDeleteकक्षा के बच्चे जो भाषा/भाषाएँ दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते-समझते हैं, वह पाठ्यपुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूर्णा या अंशिक से अलग हो| घर में घरेलू भाषाये या स्थानिये भासाय बोले हैं पर पद्य पुस्तक में हिंदी अंग्रेजी और संस्कृत में लिखी गई भा है| ये अलग भाषाए है|
ReplyDeleteMere vidyalaya ke sabhi bachche hindibhashi hi hai. Isliye koi pareshani nahi hoti hain.
ReplyDeleteहमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा खोरठा है।जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें धीरे-धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से कई शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है।इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है
ReplyDeleteहमारा विद्यालय ग्रमीण क्षेत्र मे स्थित है।इसलिए हमरे विद्यालय के बच्चे अपने मातृभाषा में बात करते है।विद्यालय में उन्हें हिन्दी तथा अन्ग्रेजी पढना पड्ता है।यह उनके लिए बहुत कठिन होता है।
ReplyDeleteUnknown3 January 2022 at 05:17
ReplyDeleteहमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा बांग्ला है।जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें धीरे-धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से प्रायः सभी शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है।इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है। भानु प्रताप मांझी.उ.उ.वि.चिपड़ी, ईचागढ़, सरायकेला खरसावां, झारखंड
मैं प्रदेश के कोल्हान प्रमंडल के सरायकेला खरसावां जिला में पदस्थ एक शिक्षक हू। विद्यालय क्षेत्र के अधिकतर बच्चों हमारे का मातृभाषा बंगला या कुरमाली है और
ReplyDeleteपाठ्यपुस्तकें हिन्दी में है, बच्चों की बोली जाने वाली भाषा से यह भिन्न है । हम हिन्दी में लिपि के विषय को हिन्दी में पठन या वाचन और बंगला भाषा में समझ में आने वाले आवरण में सहायक की नियंत्रक की जानकारी होती है। इस समस्या को हल करने में समस्या को हल करने में मदद मिलती है। यह अच्छी तरह से समझ में आता है। Bhanu Pratap Manjhi, UHS CHIPRI, ICHAGARH, SERAIKELLA-KHARSWAN, JHARKHAND
Hamare vidyalaya ke adhikansh bachche Nagpuri aur Hindi bolte hai. Unhe Hindi samajhne me koi mushkil nahi hoti hai. Lekin English me unhe kuch pareshani jaroor mahshoos hoti hai. Hum unhe manoranjak gatividhiyon ke dwara vishay ke prati aakarshit karte hai aur unki ruchi jagrat karne ka prayaas karte hai. Isse unka dar dhire dhire dur ho jata hai aur wo vishay ko sikhne ka prayaas karne lagte hai.
ReplyDeleteदैनिक जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अधिकतर बच्चे अपने स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषाओं में बातचीत करते हैं । भिन्न-भिन्न क्षेत्र विशेष में मिश्रित या स्थानीय बोलचाल की भाषाएं बोली जाती है जो पाठ्यपुस्तक में लिखी गई भाषा से बिलकुल अलग होती है । हमारे देश में शिक्षण का माध्यम केवल 36 भाषाएं ही है जबकि 121 प्रमुख भाषाएं और 1369 भाषाएं पूरे देश में बोली जाती है । इस तरह ग्रामीण सदूर इलाकों में बसने वाले बच्चों की भाषा विद्यालय की पाठ्यपुस्तक में लिखी भाषा कक्षा में जगह नहीं मिल पाती और उनकी शिक्षा में अपरिचित भाषा हो जाती है । जिस कारण से बच्चों को सीखने में अधिक समय लग जाते है । जैसे - संथाली, मुंडारी, हो, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मगही, हरियाणवी, खोरठा आदि भाषाएं हमारे देश में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती है । फिर भी इन भाषाओं के लिए विद्यालय के पाठ्यपुस्तकों में शिक्षण का माध्यम अबतक नहीं बन पाया है जो संचालित विद्यालय के पाठ्यपुस्तकों में लिखी गई भाषा से एकदम भिन्न है । .. धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुना राम सोरेन (स.शि.)
प्रा.वि.भैरवपुर , धालभूमगढ़ ।
पूर्वी सिंहभूम, झारखंड ।
मेरे विद्यालय में अध्ययनरत अधिकतर छात्र छात्राओं की मातृभाषा बंग्ला है। बच्चे अपने माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों को सर्वप्रथम इसी भाषा में बात करते सुनते आए हैं। बाद में वे स्वयं भी अपने परिवार एवं समुदाय के सदस्यों के साथ बंग्ला में ही बात करते हैं। परंतु विद्यालय आते ही उन्हें अपने मातृभाषा से अलग,अपरिचित हिन्दी भाषा का प्रयोग करना पड़ता है। एक ऐसी भाषा, जिसके गिने-चुने शब्दों से ही वे परिचित हैं, के माध्यम से उन्हें शिक्षक के बातों को समझने एवं अपने भावों को व्यक्त करने की अपेक्षा की जाती है। अब उन्हें औपचारिक रूप से भाषा सीखना पड़ता है तथा पढ़ने एवं लिखने के लिए लिपि सीखना पड़ता है। अर्थात उन्हें नए वातावरण के साथ-साथ भाषा के नए स्वरूप का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteAnjani Kumar Choudhary. 8809058368
ReplyDeleteजो बच्चे अपने दैनिक जीवन मैं सहज रूप से भाषा/भाषाएं बोलते, समझते हैं वाह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से अलग होती है क्योंकि हमारे देश में मात्र 36 भाषाएं शिक्षण का माध्यम है जबकि 121 प्रमुख भाषाएं हैं और देश में 1369 भाषाएं बोली जाती है इस प्रकार बहुत सारे बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती, और उनकी शिक्षा बहुत हत्या पूरी तरह एक अपरिचित भाषा में ही होती है, जैसे- राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मगदी, हरियाणवी, खोरठा आदि भाषाएं हमारे देश में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती हैं फिर भी इन भाषाओं को स्कूलों के पाठ पुस्तकों में शिक्षण के माध्यम के रूप में जगह नहीं मिल पाई है
Mera vidyalaya Jamshedpur shahri Kshetra se satawa vidyalay hai yahan vibhinn Bhasha bolane wale log karya karte hain yahan ke adhiktar bacche Hindi bhasha ka hi prayog bol chaal mein karte Hain parantu yah bacche Apne gharon mein yah janjati samuday ke bacche bhi Apne gharon mein Santali mundari Ho Bangla udiya meghi Bhojpuri h Di Bhasha kabhi prayog karte Hain atah bacchon ko Hindi madhyam se padhai karne mein Vishesh kathinai nahin Hoti hai ham shikshak padhaai ke kram mein Anya bhashaon ko bhi samjhane ke liye Shamil karte Hain utkramit prathmik vidyalay purana saldih basti adityapur gamharia ek jila saraikela kharsawan dhanyvad.
ReplyDeleteघर में बच्चे स्थानीय भाषा का प्रयोग करते हैं। उनकी भाषा बातचीत करने, पढ़ाने, से वे आसानी से समझ जाते हैं। पुस्तकों की भाषा उन्हें समझने में थोड़ी कठिनाई होती है।
ReplyDeleteMere bidyalay me Ho bhasa ke bachhe hey parantu Hindi samajh jate he. P. S. Refugee colony Chakradharpur
ReplyDeleteMere bidyalay me ho bhasha ke bachhe hai parantu Hindi samajh jate hain p.s. refugi colony chakradharpur.
Deleteहमारे विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे स्थानीय भाषा खोरठा बोलने वाले हैं। यह हिन्दी से मिलती जुलती भाषा है। इसके कारण बच्चों को विद्यालय में पढ़ाई जा रही विषय वस्तु को सुनकर समझने में कम परेशानी होती है लेकिन जब चीजों को लिखने की बात आती है तो उन्हें परेशानी होती है। इसके साथ ही अंग्रेजी भाषा बच्चों के लिए अधिक परेशानी उत्पन्न करती है।
ReplyDeleteभारत में कुल 36 भाषा शिक्षण का माध्यम है जबकि 121 प्रमुख भाषाएं तथा कुल 1369 भाषाएं बोली जाती है। बच्चे जिस परिवेश से आते हैं वहां की भाषा तथा पाठ्य पुस्तक में वर्णित भाषा में अंतर होता है जिसे बच्चे को समझने में परेशानी होती है। मान लिया जाए की खोरठा एवं हिंदी भाषा में अंतर देखा जाता है।
ReplyDeleteजैसे:-
खोरठा- तोर नाम कि लागो ?
हिंदी-तुम्हारा नाम क्या है?
अब यहां यह समझना जरूरी है कि खोरठा के कुछ शब्द का हिंदी रूपांतरण बच्चों के समझ से परे होता है।
खोरठा -हिंदी
तोर -तुम्हारा
कि-क्या
लागो - है
मातृभाषा बच्चे सहज रूप से समझ लेते हैं किंतु विद्यालय के पाठ्यपुस्तक की मानक भाषा के साथ उनका तालमेल कर पाना मुश्किल हो जाता है। आज हम लोग बहुभाषिकता की ओर बढ़ रहे हैं जबकि किसी भी भाषा की कड़ी उनकी मातृभाषा ही होती है। मातृभाषा ही वह नैया है जिस पर सवार होकर बहुभाषिकता रूपी समंदर पार कर सकते हैं।
प्रायः घर में बोली जानेवाली भाषा व्याकरण की शुद्धता पर आधारित ण होकर समझ को स्पष्ट करने से समृद्ध है फिर चाहे उनकी अपनी क्षेत्रीय मातृभाषा ही क्यों न हो | किताबों में छपी भाषा व्याकरण समृद्ध होती हैं जिससे उसमें समझ की जटिलता आ जाती है | बच्चों के लिए घरेलु बोल्चाल्की भाषा जिससे वे परिचित हैं में किसी तथ्य को समझना आसान होता है |हाँ आगे चल कर परिष्कृत भाषा को जोकि उनके किताब की भाषा भी हो सकती है को अपनी मातृभाषा से जोड़कर वे सीख लेंगे यदि इनका सम्मिश्रण सही किया जाए |
ReplyDeleteहमारा विद्यालय ग्रामीण क्षेत्र में है और वहां पर बोली जाने वाली भाषा संथाली है। पाठ्य पुस्तक में लिखी गई भाषा हिंदी और अंग्रेजी है बच्चों को पढ़ने और लिखने में काफी परेशानी होती है, फिर भी हम उन्हें उनकी मातृभाषा में समझा देते हैं तो बच्चे मस्ती के साथ सुनते हैं और व्यक्त करते हैं। बच्चों को उनकी मातृभाषा में बोलने का अवसर देना चाहिए जिससे वह बच्चे अपना विचार हमारे सामने रख सकेंगे और हिंदी और अंग्रेजी सिख भी लेंगे ।
ReplyDeleteबच्चे माता-पिता के साथ घर में बोलने वाली भाषा-जिसे हम उनकी मातृभाषा भी कहते हैं , में ही बोलना पसंद करते हैं।
ReplyDeleteअतः बालवाटिका से प्रारंभिक कक्षाओ में प्रवेश के समय शिक्षकों के लिए यह चुनौती का विषय है कि कैसे सहजता से उन्हें घर की भाषा एवं विद्यालय की भाषा में सामंजस्य बिठाने में उनको सहयोग करें।
बच्चे अपनी शिक्षण के शुरुआत में विद्यालय में दिक्कत का सामना करना पड़ता है क्योंकि उसका भाषा विद्यालय की भाषा से बिल्कुल अलग होती है। उसे बलवाटिका से ही घर के भाषा मे शिक्षा देना चाहिए।धीरे धीरे उसके मातृभाषा से विद्यालय की भाषा मे सामंजस्य बिठाने का प्रयास कर चाहिए।
ReplyDeleteStudents of our school talk in Nagpuri language. No one in their locality speak hindi. During starting days of school Students just stare at teachers face in misunderstanding , and are not able to aanswer any question like..what did u have for breakfast?,what did you do at home?,did you take bath or not.They are unable to reply to anytime.But they talk to their friends properly.
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में अधिकतर बच्चे खोरठा भाषी क्षेत्रों के है जो हिन्दी में बात कर लेते हैं कभी कभी कुछ अपरिचित जब नहीं समझ पाते हैं तो मै खोरठा में बोलकर समझाता हूँ। परंतु कुछ बच्चे संथाल है जो हिन्दी में बात करने में सक्षम नहीं हैं वे हिन्दी शब्द समझ नहीं पाते हैं तो मै बड़े बच्चों से उनकी समस्या का समाधान करता हूँ जो बच्चे हिन्दी समझते है चूंकि मैं संथाली भाषा नहीं जानता हूँ, और न अन्य शिक्षक जो मेरे विद्यालय में है ।
ReplyDeleteझारखंड के दुमका जिले मे मेरे स्कूल में आने वाले संथाली बच्चे को स्कूल की भाषा मे काफी कठिनाई होती हैं, क्लास तीन- चार तक बच्चे को दिक्कत होती है
ReplyDeleteUms Baridari block GOMIA dist bokaro
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में जिस क्षेत्र के बच्चे पढ़ने आते हैं उनकी मातृभाषा खोरठा है। शुरू शुरू में विद्यालय की भाषा को पकड़ने में दिक्कत होती है, फिर धीरे धीरे ठीक हो जाते हैं।
ReplyDeleteजो बच्चे अपने दैनिक जीवन मैं सहज रूप से भाषा/भाषाएं बोलते, समझते हैं वाह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से अलग होती है क्योंकि हमारे देश में मात्र 36 भाषाएं शिक्षण का माध्यम है जबकि 121 प्रमुख भाषाएं हैं और देश में 1369 भाषाएं बोली जाती है इस प्रकार बहुत सारे बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती, और उनकी शिक्षा पूरी तरह एक अपरिचित भाषा में ही होती है, जैसे- ओडिया, बंगला,हो, कुरमाली आदि भाषाएं हमारे देश में अनेक लोगों द्वारा बोली जाती हैं फिर भी इन भाषाओं को स्कूलों के पाठ पुस्तकों में शिक्षण के माध्यम के रूप में जगह नहीं मिल पाई है।
ReplyDeleteहमारा विद्यालय शहरी क्षेत्र में है। यहाँ पर बोली जाने वाली भाषा हिन्दी से मिलती जुलती है पाठ्य पुस्तक में लिखी गई भाष हिन्दी और अंग्रेजी है। जो बच्चे को सीखने में दिक्कत नहीं होगी फिर भी उन्हें उनकी मातृभाषा में समझा देते हैं तो बच्चे मस्ती से सुनते हैं और समझते हैं बच्चो को उनकी मातृभाषा में बोलने का अवसर देना चाहिए जिससे बच्चे अपना विचार स्वर्तंत्र रूप से रख सके और हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं को सीख लेंगें।
ReplyDeleteHamare vidyalay ke bacche santhali bhasha bolte hain jo pathyapustak mein likhi gayi bhasha se alag hai.Jab pathyapustak mein likhi gayi bhasha mein shiksha di jati hai to bacche bolne -samajhne mein asahaj mahsus karte hain.Jaise:-kitab ko santhali mein puthi ,padhna ko padhao kaha jata hai joki pathyapustak mein likhi gayi bhasha se alag hai.
ReplyDeleteदैनिक जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अधिकतर बच्चे अपने स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषाओं में बातचीत करते हैं । भिन्न-भिन्न क्षेत्र विशेष में मिश्रित या स्थानीय बोलचाल की भाषाएं बोली जाती है जो पाठ्यपुस्तक में लिखी गई भाषा से बिलकुल अलग होती है । हमारे देश में शिक्षण का माध्यम केवल 36 भाषाएं ही है जबकि 121 प्रमुख भाषाएं और 1369 भाषाएं पूरे देश में बोली जाती है । इस तरह ग्रामीण सदूर इलाकों में बसने वाले बच्चों की भाषा विद्यालय की पाठ्यपुस्तक में लिखी भाषा कक्षा में जगह नहीं मिल पाती और उनकी शिक्षा में अपरिचित भाषा हो जाती है । जिस कारण से बच्चों को सीखने में अधिक समय लग जाते है । जैसे - संथाली, मुंडारी, हो, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मगही, हरियाणवी, खोरठा आदि भाषाएं हमारे देश में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती है । फिर भी इन भाषाओं के लिए विद्यालय के पाठ्यपुस्तकों में शिक्षण का माध्यम अबतक नहीं बन पाया है जो संचालित विद्यालय के पाठ्यपुस्तकों में लिखी गई भाषा से एकदम भिन्न है । .. धन्यवाद ।
ReplyDeleteमेरे विद्यालय के बच्चे अपने क्षेत्र में स्थानीय भाषा का उपयोग करते हैं और स्कूल में हिंदी भाषा से हम लोग पढ़ाते हैं। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में खोरठा भाषा और हिंदी भाषा में बहुत अंतर है। भाषा का अर्थ बिल्कुल अलग है हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है और खोरठा भाषा को भी देवनागरी लिपि से लिखते हैं किंतु भाषा की अर्थ भिन्न भिन्न है उदाहरण के लिए हिंदी भाषा में बिल्ली स्थानीय भाषा में बिल्ली को बिलाईर बोलते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हिंदी भाषा और खोरठा भाषा में बहुत अंतर है इसलिए विद्यालय में स्थानीय भाषा को प्राथमिकता देते हुए बच्चों को मुख्य भाषा से जोड़ना चाहिए जो निपुण भारत के अंतर्गत FLN में जोड़ा गया है
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के पोषक क्षेत्र में मुख्य रूप से खोरठा, अंगिका और भोजपुरी मिली जुली रूप में बोली जाती है तथा कुछ बच्चे जो संताली भाषायी क्षेत्र से भी होते हैं।घर की बोली और भाषा से सम्रद्ध होकर स्कूली भाषा में शिक्षण ग्रहण करना उनके लिए प्रारम्भिक वर्षो में थोड़ी कठिनाई भरी होती है क्योंकि हिंदी के मानक स्वरूप से घर की बोली अलग है।जैसे- 1.हमें ई समझे ले नै पारलियो। ( मैं इसे समझ नहीं पाया/पायी।)
ReplyDelete2.आय खिन बडी जाड़ लागे छो।(आज बहुत ठंड लग रही है।)
3.वॉन्ग बुझुकना- (समझ नही पाया/पायी)
4.दका-(चावल, भात) जोम -खाना
5.मिनागिया - पास में है, है।
ऐसी स्थिति में बच्चों को अधिगम प्रक्रिया के क्रम में घर की बोली से जुड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए सीखने-सिखाने की प्रकिया को सहज और बाल केंद्रित बनाये रखने का प्रयास होता है।
hamare school ke bachhe kortha bhasha wale parivesh se aate hain.unke kuch shabd jo hindi se bhinn hain.ex_ 1.baccha -githar,changer.2.rona-kando .3.monkey-hulmana.4.khana pakana_rando hiyo etc
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के पोषक क्षेत्र में मुख्य रूप से दो तरह की भाषाएँ बोली जाती है, मुण्डा और सादरी भाषा|सादरी भाषा जानने वाले बच्चे हिन्दी भाषा अच्छी तरह समझ जाते हैं, क्योंकि सादरी भाषा के शब्द हिन्दी भाषा के शब्दों के साथ मेल खाते हैं, जैसे-मोय घर जात हों-मै घर जा रहा हूँ|मोर माय बाजार जाहे-मेरी माँ बाज़ार गयी है|लेकिन कुछ बच्चे जिनकी मातृभाषा मुण्डारी है, जो कि हिन्दी भाषा से बिल्कुल अलग है जैसे-मांडी जोम ताना, -भात खा रहा हूँ|चीना उतू- क्या सब्जी है|इस प्रकार मुण्डारी मातृभाषा वाले बच्चों को हिन्दी भाषा की शिक्षा में लाने के लिए, उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए कुछ समय लगता है |हालांकि हमारे विद्यालय क्षेत्र में हिन्दी भाषा का प्रयोग प्रायः सभी घरों में किया जाता है, इसलिए बच्चों को विद्यालय में पाठ्यपुस्तकों में लिखी हिन्दी भाषा से जोड़ने में ज्यादा समय समय नहीं लगता है |
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में मुख्यता हिंदी और क्षेत्रीय भाषा खोरठा बोलने वाले बच्चे पढ़ते हैं खोरठा भाषा एक स्थानीय भाषा है और इसके शब्द बहुत कुछ हिंदी से मिलते जुलते हैं अतः हमारे विद्यालय में इन बच्चों को बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होती है। रणजीत प्रसाद मध्य विद्यालय मांडू, रामगढ़।
ReplyDeleteMeri kaksha ke bacche Jo Bhasha Dainik jivan mein sahaj roop se bolate samajhte hain vah pathyapustak mein likhi gai Hindi bhasha hai Jharkhand ke gaon mein paraayaa Sadri aur Nagpuri bhashaen boli jaati hai Jo Hindi se kuchh kuchh milati julti hai .Jo lagta hai inhin ka Parivartan roop Hindi hai jaise sadari mein main -tohin kahan jatha? Nagpuri mein -Raure Kahan thiyai Hindi -aap log kahan ja rahe hain?
ReplyDeleteहम बच्चों को बेहतर बनाने और पढ़ाई को रुचि लाने के लिए शिक्षक तथा अभिभावक बात करें , खेल विधी से अध्ययन रुचि लाने सकते हैं।
ReplyDeleteमेरे स्कूल की कक्षा में बच्चे भिन्न-भिन्न समुदाय के हैं जिनकी अपनी बोलचाल की भाषा अलग-अलग है ।वे दैनिक जीवन में मुख्य रूप से पंचपरगानिया, मुंडारी या नागपुरी भाषा का प्रयोग करते हैं ।इनमें से कुछ बच्चे शुद्ध हिंदी भाषी भी हैं ।विद्यालय की पाठ्य पुस्तकों की भाषा हिंदी या अंग्रेजी है जिन्हें समझने में बच्चों को कठिनाई होती है तथा वे अपनी कक्षा के सीखने के प्रतिफल को प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं। यह उनकी अपनी भाषा तथा पाठ्य पुस्तकों की भाषा अलग-अलग रहने के कारण होती है। अपनी भाषा तथा पाठ्यपुस्तक की भाषा अलग अलग होने के कारण बच्चे तथा शिक्षक दोनों सीखने - सिखाने की प्रक्रिया में समान रूप से भागीदार नहीं हो पाते हैं । कुछ बच्चे तो जल्दी ठीक जाते हैं पर अधिकांश बच्चों को पठन-पाठन कुछ समय अंतराल पर बोझिल लगने लगता है। सीखने- सिखाने की प्रक्रिया आसान बनाने के लिए बच्चों के लिए प्रिंट सामग्री का उपयोग करना ज्यादा उपयुक्त होता है जहां किसी की पहचान बच्चों की अपनी भाषा तथा पुस्तक की भाषा में भी दी गई हो ।बच्चे धीरे- धीरे गतिविधियों में शामिल होकर सामूहिक चर्चा कर तथा अवलोकन इत्यादि के द्वारा अपने विचार विभिन्न तरीके से प्रकट करते हैं तथा पुस्तक की भाषा को सीखने की ओर भी अग्रसर होते जाते हैं
ReplyDeleteअक्सर हमारे विद्यालय में बंगला,खोरठा,कुड़माली जैसे क्षेत्रीय बोली बोली जाती है एवं विद्यालयी भाषा हिंदी एवं अंग्रेजी है।जो शिक्षकों के लिए चुनौतीपूर्ण भरा शिक्षण कार्य है।
ReplyDeleteफूल चाँद महतो
UMS GHANGHRAGORA
CHANDANKIYARI
BOKARO
जो बच्चे अपने दैनिक जीवन मैं सहज रूप से भाषा/भाषाएं बोलते, समझते हैं वाह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से अलग होती है क्योंकि हमारे देश में मात्र 36 भाषाएं शिक्षण का माध्यम है जबकि 121 प्रमुख भाषाएं हैं और देश में 1369 भाषाएं बोली जाती है इस प्रकार बहुत सारे बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती, और उनकी शिक्षा बहुत हत्या पूरी तरह एक अपरिचित भाषा में ही होती है, जैसे- राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मगदी, हरियाणवी, खोरठा आदि भाषाएं हमारे देश में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती हैं फिर भी इन भाषाओं को स्कूलों के पाठ पुस्तकों में शिक्षण के माध्यम के रूप में जगह नहीं मिल पाई है LALIT KUMAR SAWANSI KUMARDUNGI
ReplyDeleteमेरे विद्यालय के बच्चों की मातृभाषा बांगला, संधाली और हो है। बांग्लाभाषी बच्चों को स्कूल की भाषा हिन्दी बोलने समक्षने मे कठिनाई नहीं होती परन्तु संथाली और हो भाषी बच्चों को काफ़ी कठिनाई होती है। क्योंकि संथाली और हो भाषा हिन्दी से बिल्कुल अलग है।
ReplyDeleteSUBHADRA KUMARI
ReplyDeleteRAJKIYAKRIT M S NARAYANPUR
NAWADIH BOKARO
हमारे विद्यालय में खोरठा और संथाली भाषा बोलने वाले बच्चे पढ़ते हैं। स्कूल के शुरुआती दौर में इन बच्चों को किताबी भाषा समझने में काफी कठिनाई होती है। चूंकि इसकी घर कि भाषा और पुस्तकों कि भाषा बिल्कुल अलग है। विद्यालय में हिंदी और अंग्रेजी भाषा के माध्यम से पढ़ाई होती है। जिससे बच्चो को समझने में काफी दिक्कत होती है। इसलिए बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही देनी चाहिए। वे धीरे-धीरे राज्य की भाषा को आसानी से सीख जाएंगे।
धन्यवाद
Hamare vidyalay ke bachhon ki martribhasha nagpuri hai.jyadatar bachhe hindi wakyon ko nagpuri mila kar bolte hain.jiske karan suruwati kathinai hoti hai.
ReplyDeleteGhar mein bache sthaniya bhasha ka prayog karte hain unki bhasha batchit karne karne se ve asani se samjh jate hain pustakon ki bhasha mein thori kthinai hoti hai.
ReplyDeleteहमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा बांग्ला है।जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है।
ReplyDeleteअपनी शिक्षण के शुरुआत में विद्यालय में दिक्कत का सामना करना पड़ता है क्योंकि उसका भाषा विद्यालय की भाषा से बिल्कुल अलग होती है। उसे बलवाटिका से ही घर के भाषा मे शिक्षा देना चाहिए।धीरे धीरे उसके मातृभाषा से विद्यालय की भाषा मे सामंजस्य बिठाने का प्रयास कर चाहिए
ReplyDeleteमै पलामू जिला से हूँ।यहां के बच्चों की क्षेत्रीय भाषा मगही है।विद्यालय मे आने वाले बच्चों के अनुरुप पुस्तक की भाषा नही है।कुछ उदाहरण इस प्रकार है-खड़े हो जाओ-डिड़ी होख,डई होख।।छोटा रद्दी कपड़ा लाओ- चिरकुट लान।स्वास्थ्य ठीक नहीं है-जी बेश नइखे।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे अधिक आते हैं वे घरेलू भाषा और परिवेश की भाषा सीख कर आते हैं उन्हें बहुत प्रयासे हिन्दी-अंग्रेजी सीखते हैं ।
ReplyDeleteJitendra Kumar Singh
ReplyDelete+२upg high school deokuli,Ichak,H.Bag
भाषा संबंधी चुनौतियां तो अवश्य हैं जहां 1369 भाषा के मुकाबले मात्र 36 भाषा में ही अध्यापन कार्य किया जाता है जरूरी है प्रारंभिक वर्षों में स्थानीय भाषा को h8 शिक्षा का माध्यम बनाया जाय।
हमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा खोरठा है।जब ये बच्चें अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें धीरे-2वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से कई शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है।इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता हैं।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के अधिकतर छात्र,छात्रों की matri भाषा संथाली या बंगला h बच्चों को हिन्दी पढ़ने में बहुत ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है दोस्त जो पहले से विद्यालय आते आते हैं उनके मदद के द्वारे बच्चों हिन्दी जान जाते हैं साथ ही शिक्षकों का पूर्ण समर्थन रहता है कि बच्चा किसी तरह हिंदी जान जाय लेकिन शुरुआती मे हिन्दी बोलने या समझ ने मे कठिनाई होती है लेकिन shiksh कठिन से सरल में बदल देते हैं
ReplyDeleteहमारे विद्यालय का क्षेत्रीय भाषा संथाली, खोरठा और बंगला है । खोरठा और बंगला भाषा ,पाठ्यपुस्तक की भाषा से लगभग मिलती - जुलती है जिससे उस समुदाय के बच्चे को उतनी परेशानी नहीं होती है लेकिन आदिवासी (संथाल) समुदाय के बच्चे को हिन्दी समझने और पढ़ने में काफी समस्या होती है क्योंकि उनकी घर की भाषा (मातृभाषा) पाठ्य-पुस्तक की भाषा से बिल्कुल अलग है जैसे-पढ़ना - पढ़ाव,लिखना -ओल ,बोलना-रोड़,सुनना-आंजोम ,आओ-हिजुक् में,बैठो-दुड़ुप में,उठो-तेंगोन में ,संथाली में बोला और पढ़ा जाता है जो कि हिन्दी भाषा से बिल्कुल अलग है जिससे बच्चे को पाठ्य-पुस्तक की भाषा समझने, बोलने और पढ़ने में काफी दिक्कत होती है। जिसके कारण बच्चे विद्यालय आने से कतराते हैं और अभिभावक द्वारा विद्यालय पहुंचा दिया जाता है तो अपने आपको असहाय या असहज महसूस करते हैं।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में अधिकतर ऐसे बच्चे आते हैं जिनका घरेलू या मातृ भाषा अलग अलग है। खोरठा,नागपुरी, संथाली , कुरमाली एवं कुछ बच्चे बंगला भी बोलते हैं। जब बच्चे विद्यालय से जुड़ते हैं तो उन्हें विद्यालयी भाषा अर्थात हिन्दी से सामना होता है।शरुआत में बच्चे इस भाषा से काफी असहज लगते हैं और खुल कर अपनी बात को रखने से डरते या संकोच करते हैं।ऐसी परिस्थितियों में हमे उनके भाषा को महत्व देकर उन्हें हम धीरे धीरे विद्यालयी भाषा से जोड़ते हैं।
ReplyDeleteउदाहरण के लिए जब हम कोइ कहानी बताएं ओर उससे संबंधित कुछ प्रश्न बच्चों से पूछें तो बच्चे विद्यालयी भाषा मे जवाब देने में थोड़ा असहज महसूस करते हैं परंतु वही प्रश्न बच्चों से उसकी अपनी घरेलूभाषा मे बोलने की स्वतंत्रता देते हैं तो बच्चे उत्तर बोलने के लिए उत्साहित हो जाते हैं।
ANIL KUMAR SINGH
AMS PANCHI ROAD ,RAMGARH
हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों के घर की भाषा या तो हिंदी है या क्षेत्रीय भाषा खोरठा है। खोरठा भाषा में प्राथमिक कक्षाओं में पुस्तकें उपलब्ध नहीं है लेकिन खोरठा भाषा बोलने वाले बच्चे हिंदी भाषा को भी समझ लेते हैं। हालाकी खोरठा में भी कुछ ऐसे शब्द प्रयुक्त किए जाते हैं जो हिंदी में नहीं प्रयुक्त किए जाते हैं। हमारे विद्यालय में अंग्रेजी भाषा की भी पढ़ाई होती है जिसे समझने में बच्चों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteI am a teacher of West Singhbhum dist of Jharkhand.I taught here since seventeen yrs.Here in this area Sadri,Mundari,ho languages are mostly used.Our students also speaks in these languages as their parents do.Text books are written in Hindi & Roman in English subject,so there is a learning gap between what we taught in the class & what they understand the subject matter.generally our students face lot of problems in understanding subject matter of book they have to learn.So I want to express my view that in primary section midium of instruction should be in mother language along with Rastra bhasa Hindi.English should addopt latter on as they develop their understanding.
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में आनेवाले अधिकांश बच्चे सादरी भाषा बोलते हैं जो हिन्दी से मिलता जुलता है । हमारे विद्यालय के सभी शिक्षक उनकी भाषा जानते हैं तो दिक्कत नहीं होता हैं . I
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में पढ़ने वाले अधिकांश विद्यार्थी खोरठा भाषी है ।।विद्यालय में हिंदी बोली जाती है लेकिन बहुत सारे ऐसे शब्द हैं खोरठा के शब्द है और वह हिंदी से मिलते जुलते हैं ऐसी परिस्थिति में बच्चों को सीखने में आसानी होती है और वह हिंदी के साथ-साथ खोरठा में तालमेल बिठा पाते हैं।
ReplyDeleteBachhon ki shiksha ka suruat unki mother tongue hi hona chahiye nhi to bachh sahi se Sikh nhi payega
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में अधिकांश बच्चे संथाली बोलने वाले हैं |इस स्थिति में उनमें पाठ्यपुस्तक की भाषा हिन्दी को समझने में दिक्कत होती ही है परन्तु जब बच्चों को उनकी भाषा में अनुवाद कर पाठ्यपुस्तक में लिखी गई बातें बताई जाती हैं तो वे विषय वस्तु को आसानी से समझने लगते हैं |
ReplyDeleteHamare vidualay me bahut sare bachche aadibasi hai jinki ghar ki bhasha vidyalay ki bhasha se bilkul alag hai.Jis karan unko padai me ruchi nahi hoti,we vidyalay aana nahi chahte,unme aaymabiswas ki kami hoti hai.Jis karan we padai me pichhar jate hai.
ReplyDeleteIn my school which is located in Baliapur of Dhanbad district of Jharkhand, children come from rural areas speak in Khortha,Santhali, Bengali etc. but in our school the medium of instruction is Hindi. Therefore at the earlier classes they get problem to follow our instruction. Therefore language is a great problem in their steady growth of learning. If they taught in their mothertongue first then it will help them their understanding better. They learn better.Their education will become enjoyable.
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में मुख्यता हिंदी और क्षेत्रीय भाषा बोलने वाले बच्चे पढ़ते हैं खोरठा भाषा स्थानीय भाषा है और इसके शब्द बहुत कुछ हिंदी से मिलते जुलते हैं अतः हमारे विद्यालय में इन बच्चों को बहुत ज्यादा दिक्कतें नहीं होती है।
ReplyDeleteविद्यालय के सभी बच्चों की मातृभाषा में असमानता होने पर प्रारंभ में यह समस्या आती है, जिससे बच्चे धीरे धीरे समायोजन कर लेते हैं/हिमांशु, दुमका /
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के सभी बच्चे आदिवासी हैं। वे केवल "हो" तथा "संथाली" भाषा में ही बातचीत करते हैं। जबकि विद्यालय की भाषा हिन्दी है। इससे प्रारंभिक विद्यालय के बच्चों को भाषा समझने में दिक्कत होता है। जिससे कुछ बोलने में झिझक महसूस करते हैं और वे चुप रहते हैं
ReplyDeleteविद्यालय के सभी बच्चे आदिवासी हैं। वे केवल "हो" तथा "संथाली" भाषा में ही बातचीत करते हैं। जबकि विद्यालय की भाषा हिन्दी है। इससे प्रारंभिक विद्यालय के बच्चों को भाषा समझने में दिक्कत होता है। जिससे कुछ बोलने में झिझक महसूस करते हैं और वे चुप रहते हैं
Deleteहमारे क्षेत्र की ग्रामीण बच्चे आम तौर पर अपने दैनिक जीवन में सहज रूप से भाषाएं बोलते और समझते हैं लेकिन उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा से पाठ्य पुस्तक में लिखी गई भाषा एकदम अलग होती है बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती और उनकी शिक्षा पूरी तरह एक अपरिचित भाषा में होती है जैसे खोरठा संथाली मग ही भोजपुरी भाषा लोगों द्वारा बोली जाती है पर इन भाषाओं को स्कूलों के पाठ पुस्तकों में शिक्षण के माध्यम के रूप में जगह नहीं दिया गया है
ReplyDeleteमेरे स्कूल की कक्षा में ज्यादातर बच्चों की मातृभाषा खोरठा और संथाली है, जो विद्यालय की पाठ्यपुस्तक की भाषा से भिन्न है ।खोरठा के कुछ बच्चे पाठ्य पुस्तक की भाषा को समझ सकते हैं लेकिन संथाली भाषी बच्चे असहज होते हैैं। परंतु बच्चों को उनकी भाषा में ही पाठ्यपुस्तक में लिखे शब्दों का अर्थ बताने पर उन्हें आसानी होती है।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में अधिकांश बच्चे बंगला बोलने वाले हैं।इस स्थिति में उनमें पाठयपुस्तक की भाषा हिन्दी को समझने में दिक्कत होती है। परंतु जब बच्चों को उनकी भाषा में अनुवाद कर पाठयपुस्तक में लिखी गई बातों को बताई जाती है तो वे विषय वस्तु को आसानी से समझने लगते हैं ं
ReplyDeleteIn our school children come to school with regional languages like bhojuri and mixed hindi (khadiboli).we have to motivate them to talk and work in school language that's khadi boli
ReplyDeletehindi.
Children from different origins come to school with theirs different languages.we have to prepare them for the school language that's khadi boli hindi by and by.
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के बच्चे का मातृभाषा हिंदी,बांग्ला,खोरठा है। जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से ओतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते है तो यहाँ इनको हिंदी भाषा का भी सामना करना पड़ता है।जिसका मातृभाषा हिंदी है उसे अपेक्षाकृत कठिनाई कम होती है । खोरठा बोलने वाले को कठिनाई कम होती है क्योंकि खोरठा भाषा बोलनेवाले बच्चे हिंदी भाषा को भी समझ लेते है।बांग्ला बोलनेवाले बच्चे को कठिनाई सर्वाधिक होती है।हालांकि शुरूआती अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है।परंतु जब बच्चों को उनकी भाषा में अनुवाद कर पाठ्यपुस्तक में लिखी गई बातों को बताई जाती है तो वे विषयवस्तु को आसानी से समझने लगते है।
ReplyDeleteमेरे विद्यालय में सिर्फ संताली बोलने वाले बच्चे हैं।कोई एक दो बच्चा बंगाली समझ पाता है।सुदूर देहात होंने की वजह से लगता है हिन्दी कभीकाल ही सुन पाता है।इसलिए इन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteइस प्रकार की समस्या झारखंड के वैसे बच्चे जिनकी मातृभाषा संथाली भाषा है,के साथ होती है।हिंदी माध्यम के स्कूल में उनकी भाषा किसी प्रकार भी मेल नहीं खाती है।परिणामस्वरूप मेरे जैसे हिंदी भाषी शिक्षक के लिये एक कठिन समस्या के रूप में सामने आती है।उदाहरण के लिए ती,में,कटुप इत्यादि क्रमशः हाथ,आँख और उँगली के नाम होते हैं।अतः समस्या समाधान के लिये शिक्षकों को आवश्यक रूप से संथाली भाषा सीखनी आवश्यक है।
ReplyDeleteमेरा विद्यालय मुण्डारी भाषी क्षेत्र में स्थित है।उपर की कक्षाओं के छात्र भी हिन्दी ठीक से समझ नहीं पाते हैं।जिस कारण बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इंग्लिश और संस्कृत पढ़ाते समय तीन भाषाओं का प्रयोग करना पड़ता है। पढ़ाते समय मुण्डारी भाषा नहीं बोलने पर बच्चे कक्षा में ध्यान नहीं देते है।5% बच्चे जो नागपुरी बोलते हैं वे ही हिन्दी समझ पाते हैं। तीन भाषाओं में जैसे -vegetable-सब्जी-उतु। Ox-बैल-हडा। अतः समस्या के समाधान के लिए शिक्षकों को को आवश्यक रूप से पदस्थापित क्षेत्र की भाषा सीखनी ही होगी।
ReplyDeleteजिन बच्चों की स्कूल की भाषा घर की भाषा और मातृभाषा से अलग होती है उनके लिए स्कूल बोझिल होते हैं ,शिक्षक बोझिल होते हैं, पुस्तके बोझिल होती हैं। कुल मिलाकर उनकी सारी शिक्षा बोझिल होती है। Jay park ash Singh ups hraiya
ReplyDeleteमेरा विद्यालय झारखण्ड राज्य के खूंटी जिले के मुरहू प्रखंड में स्थिथ है। हमारे विद्यालय में हिंदी, मुण्डारी और नागपुरी भाषाएं बोलने वाले बच्चे पढ़ने आते हैं। वैसे तो सभी बच्चे हिन्दी बोल और समझ लेते हैं। हिन्दी भाषी बच्चों को पढ़ाने में कोई परेशानी नहीं है। लेकिन पढ़ाने के क्रम में मुण्डारी और नागपुरी भाषाएं बोलने वाले बच्चे कुछ चीजों के नाम मुण्डारी एवं नागपुरी में बोलते हैं।हम सब विकर्षक यहां की स्थानीय भाषा से भलीभांति परिचित हैं इसलिए बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही समझा देते हैं
ReplyDeleteजैसे__
मुण्डारी में____
________
ओड़ाअ:__घर
मेरोम __बकरी
कुड़ी ___औरत
सदोम __ घोड़ा
नागपुरी में___
_________
छगरी____ बकरी
बंदरा____ बंदर
गाछ____ पेड़
गरु____ गाय
इस प्रकार दोनों ही मात्रृभाषा में बच्चों को पढ़ाते हैं।हम शिक्षक हैं और हमारा उद्देश्य है बच्चों को उनकी मातृभाषा में बेहतर ढ़ंग से पढ़ाना और समझाना।
Mere Vidyalay ke bacche Santali bhashan Kshetra hai inke Karan unko Hindi samajh mein nahin aati hai
ReplyDeleteहमारे स्कूल के बच्चे खोरठा भाषा वाले परिवेश से आते हैं।उनके कुछ शब्द जो हिंदी से भिन्न हैं। जैसे बच्चा- गिदर, रोना- कांदना, खाना पकाना -रांधो हियो।
ReplyDeleteHam uprokt coments se sahmat hun.
ReplyDeleteजो बच्चे अपने दैनिक जीवन मैं सहज रूप से भाषा/भाषाएं बोलते, समझते हैं वाह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से अलग होती है क्योंकि हमारे देश में मात्र 36 भाषाएं शिक्षण का माध्यम है जबकि 121 प्रमुख भाषाएं हैं और देश में 1369 भाषाएं बोली जाती है इस प्रकार बहुत सारे बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती, और उनकी शिक्षा बहुत हत्या पूरी तरह एक अपरिचित भाषा में ही होती है, जैसे- राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मगदी, हरियाणवी, खोरठा आदि भाषाएं हमारे देश में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती हैं फिर भी इन भाषाओं को स्कूलों के पाठ पुस्तकों में शिक्षण के माध्यम के रूप में जगह नहीं मिल पाई है
ReplyDeleteधन्यवाद
हमारे विद्यालय एक आदिवासी बहुल ग्रामीण क्षेत्र में अवस्थित होने के कारण विभिन्न परिवार से भिन्न भिन्न शैक्षिक माहौल से आते हैं। उनमें से कुछ बच्चों को भाषा सिखाने में परेशानी नहीं होती है।वे विद्यालय के हिन्दी भाषा में लिखने पढ़ने तथा बोलने में माहिर होते हैं। लेकिन कुछ बच्चों को हिंदी भाषा बिल्कुल नहीं आता है। उनके घरवालों तथा परिवार और परिवेश के भाषा संथाली ,भूमिज आदि होते हैं। मां पिताजी कभी विद्यालय ग्रे नहीं,अक्षर ज्ञान रहता नहीं ।वे सब बच्चों को विद्यालय में असहज महसूस होता है। शिक्षक जो भी पढ़ाते हैं समझ से परे होता है।अगर समझते भी है तो अपने मुंह से समझा नहीं सकते है। विद्यालय का परिवेश कैदखाने जैसे अनुभव करते हैं। धीरे धीरे तीन-चार साल बाद रटते रटते विद्यालय के भाषा का ज्ञान आता है और पढ़ाई में मन लगने लगता है।
ReplyDeleteSHAKIL AHMAD
ReplyDeleteR M S BAREPUR HUSSAINABAD PALAMU
दरअसल पूरे देश में शहरी क्षेत्रों को छोड़ कर किताबी भाषा की लिपि और बोली (बोल चाल की भाषा) में अंतर पाया जाता है। हमारे देश की विविधता या सुन्दरता ऐसी है जो कुछ किलोमीटर पर बोली बचन बदल जाती है। परिणामस्वरूप किताबी भाषा और मातृभाषा में सर्वदा अंतर पाया जाना स्वाभाविक है।
हम शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है कि किस प्रकार सामंजस्य स्थापित करते हुए बच्चों को उनके घर में बोली जाने वाली बोली और विद्यालय में शिक्षण का ताल मेल बैठाते हुए शिक्षण अधिगम को आगे बढ़ाया जाए।
कुछ उदाहरण
पढ़े जइबे -पढ़ने जाओगे/जाओगी
एखनी का अंटी करअ हथू- ये सब क्या बदमाशी कर रहे हैं?
अंग्रेजी भाषा का सीखन अभी भी कठिन है।
हमारे विद्यालय के बच्चों का मातृभाषा पचपरगणिया है बच्चों को हिंदी पढ़ने और पढ़ाने कोई परेशानी भी होती है।
ReplyDeleteसमान्यतः हमारे बिद्यालय में जो भाषा का उपयोग किया जाता है वह मातृभाषा हिंदी एवं अंग्रेज़ी है एवं बच्चों की भाषा क्षेत्रीय भाषा खोरठा है जो दोनो भाषा में काफी अंतर है और वह किताबी भाषा को समझने में थोड़ा समय लगता है
ReplyDeleteSamanyata humare vidyalaya me jo bhasha ka upyog kiya jata hai wah matiribhasha hindi avam angreji hain avam bacchon ki bhasha cheteriye bhasha ho hain jo dono bhasha me kafi antar hain aur wah kitabi bhasha ko samajhe me tora samay lagta hai
Deleteमेरे क्षेत्र की कोई भाषा नहीं, बल्कि एक बोली है।यह बंगला,उड़िया,कुरमाली तथा पंच परगनिया भाषा के शब्दों का मिला -जुला रूप है। विद्यालय की भाषा अलग होने से प्राथमिक स्तर पर पठन-पाठन में कठिनाई तो होती ही है, पर धीरे-धीरे अलग भाषाओं पर भी अच्छी पकड़ बना लेते हैं। मातृभाषा सीखने एवं अभिव्यक्ति का सबसे अच्छा माध्यम है इसे नहीं भूलना चाहिए।
ReplyDeleteमेरे विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों का मातृभाषा बांग्ला और संथाली है।इस स्थिति में उन्हें पाठ्यपुस्तक की भाषा हिन्दी को समझने में कॉठिनाई होती है।परन्तु जब बच्चों को उनकी मातृभाषा में अनुवाद कर पाठ्यपुस्तक में लिखी गई बातों को बताई जाती है तो वे विषयवस्तु को आसानी से समझने लगते हैं।
ReplyDeleteजैसे:-मेरोम - बकरी
बाहा-फूल
आयो-माँ।
मेरे विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों मातृभाषा बांग्ला और संथाली है। इस स्थिति में उन्हें पाठ्यपुस्तक की भाषा हिन्दी को समझने में कठिनाई होती है।परन्तु जब बच्चें को उनकी मातृभाषा में अनुवाद कर पाठ्यपुस्तक में लिखी बातों को बताई जाती है तो वे विषयवस्तु को आसानी से समझने लगते हैं। जैसे:-
ReplyDeleteआयो- माँ
ओड़ा-घर
छागल-बकरी(बांग्ला)
मेरे विद्यालय में पढ़ाई कर रहे बच्चों की भाषा अपभरांश हिन्दी एवं मगही, उरांव का मिश्रण है. किताब की भाषा शुद्ध हिन्दी है जो बच्चों के लिए अपरिचित सा लगता है. बच्चे किताबी शब्दों के अर्थ समझ नहीं पाते. बच्चे मईयाँ समझते हैं परन्तु बालिका नहीं, छौआ समझते हैं बालक नहीं. बच्चे पूर्व ज्ञात भाषा में अच्छी समझ रखते हैं. स्पष्ट है की बच्चों की मातृभाषा को प्राथमिक स्तर पर शिक्षण का माध्यम भाषा के रूप में प्राथमिकता दी जानी चाहिए. आचार्य राजेंद्र प्रसाद, प्रभारी प्रधानाध्यापक, उत्क्रमित मध्य विद्यालय ऊपरलोटो, लातेहार.
ReplyDeleteHamare vidyalay ttha ghar taraf khortha
ReplyDeletehindi bhasha boli jati hai Phir bhi Bachon ko kitaben padhne aour unke arth ko samjhne me dikkaten hoti hai. Kyon ki bacbon ki apni matribhasha khortha hai.
हमारे विद्यालय में बच्चे संथाली और बंगली भाषा बोलते है जो पाठ्यक्रम से अलग है कक्षा 3तक स्कुली भाषा का उपयोग ठीकठाक नहीं कर पाते!
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के पोषक क्षेत्र में बच्चों की स्थानीय भाषा (मातृभाषा) मगही, भोजपुरी तथा पलामू की भाषा है। बच्चें जब विद्यालय में आते हैं तो किताब की भाषा (हिन्दी और अंग्रेजी) उन्हें उबाऊ और नीरस लगती हैं फलस्वरूप वे विद्यालय आने से हिचकने लगते हैं। ऐसी स्थिति में शिक्षकों को बच्चो के साथ स्मानवाया बनाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता हैं।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में मुख्यतः हिंदी और नागपुरी भाषा का प्रयोग किया जाता है।नागपुरी और हिंदी के बहुत शब्द काफी मिलते जुलते है।इसलिए बच्चों को बहुत अधिक कठिनाई नही होती है।परंतु एक और बोली जाने वाली भाषा उराँव बिल्कुल ही अलग भाषा है।कील इस भाषा मे बात करने एले बच्चों के लिए हिंदी समझना काफी कठिन होता है।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में मुख्यता हिंदी और क्षेत्रीय भाषा खोरठा बोलने वाले बच्चे पढ़ते हैं खोरठा भाषा एक स्थानीय भाषा है और इसके शब्द बहुत कुछ हिंदी से मिलते जुलते हैं अतः हमारे विद्यालय में इन बच्चों को बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होती है। फिर भी बहुत से स्थानीय शब्द ऐसे हैं जो हिंदी से मेल नहीं खाते हैं इन शब्दों के अर्थ जानने में बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteHamare school mein 90% students ho bhasa ar 10%o odia jaise kshetriya bhasa bolne wale bacche padhte hain. Vidyalaya ki bhasa hindi hai jo upar ke dono bhasa se alag hai. Is karan class 1-3 ke baccho ko siksha grahan krne mein difficulty hoti hai ar sikshakon ko bhi padhane mein kathinai hoti hai. Lekin local teacher ki madad se baccho ko dono bhasa ke madhyam se unhe padahne ki kosis ki jati hai ar bht had tak bacche samajh pate hain.
ReplyDeleteBinod kumar
भारत में कुल 36 भाषा शिक्षण का माध्यम है जबकि 121 प्रमुख भाषाएं तथा कुल 1369 भाषाएं बोली जाती है। बच्चे जिस परिवेश से आते हैं वहां की भाषा तथा पाठ्य पुस्तक में वर्णित भाषा में अंतर होता है जिसे बच्चे को समझने में परेशानी होती है। मान लिया जाए की खोरठा एवं हिंदी भाषा में अंतर देखा जाता है।
ReplyDeleteजैसे:-
खोरठा- तोर नाम कि लागो ?
हिंदी-तुम्हारा नाम क्या है?
अब यहां यह समझना जरूरी है कि खोरठा के कुछ शब्द का हिंदी रूपांतरण बच्चों के समझ से परे होता है।
खोरठा -हिंदी
तोर -तुम्हारा
कि-क्या
लागो - है
मातृभाषा बच्चे सहज रूप से समझ लेते हैं किंतु विद्यालय के पाठ्यपुस्तक की मानक भाषा के साथ उनका तालमेल कर पाना मुश्किल हो जाता है। आज हम लोग बहुभाषिकता की ओर बढ़ रहे हैं जबकि किसी भी भाषा की कड़ी उनकी मातृभाषा ही होती है। मातृभाषा ही वह नैया है जिस पर सवार होकर बहुभाषिकता रूपी
मेरे विद्यालय के अधिकांश बच्चों के माता-पिता ज्यादा पढ़ें लिखे नहीं है तथा उनकी मातृभाषा भी स्कूल की भाषा से काफी भिन्न है। कितना बार संप्रेषण में कठिनाई होती है एवं इसको समझने के लिए बड़े बच्चों की मदद ले नहीं पड़ती है। इसलिए स्थानीय भाषाओं की जानकारी भी वैसे परिवेश रहने वाले शिक्षकों के लिए आवश्यक होगा।
ReplyDeleteMere vidyalay ke adhikansh bachchon ke mata-pita jyada padhe likhe nahin hai tatha unki matribhasha bhi school ko bhasha se kaphi bhinn hai. Sampreshan me kai kathinai hoti hai avam isko samajhne ke liye bade bachchon ki madad leni padti hai. Isliye sthaniy badhaon ki jankari bhi waise parivesh me rahane wale shikshakon ke liye aawsayak hai.
ReplyDeleteहमारे आस-पास पचंपरगनिया भाषा बोली जाती है जो कि हिन्दी भाषा से भिन्न है, और विद्यालय में हिन्दी एवं अंग्रेज़ी भाषा से पठान पाठन होता है। इस कारण बच्चों को पढने में परेशानी होती है,पंरतु बच्चों को उनके मातरी भाषा के साथ समंवय किया जाता है।
ReplyDeleteJin bacchon ki Vidyalay ki bhasha ghar Ki aur matrubhasha se alag hoti hai unke liye School bojhil hote Hain shikshak bojhil hote हैँ pustake bojhil hoti kul milakar unki sari Shiksha bojhil hoti hai. Oman Khan , ums Tikuldiha,(Meral)Garhwa.
ReplyDeleteमेरे विद्यालय ग्रामीण क्षेत्र में है, यहां बच्चे अपने स्थानीय
ReplyDeleteमातृभाषा में बात चीत करते हैं, जब ये बच्चे विद्यालय आते हैं तो उसे हिंदी अंग्रेजी भाषा का सामना करना पड़ता है। इसलिए यहां उनको असहज महसूस होता है, परंतु शिक्षकों के सकरात्मक प्रयास से उनकी मातृभाषा में बात करते हैं, तब वे सहज और आनंद से सीखने लगते हैं।
बच्चों द्वारा आम बोलचाल की भाषा और किताबों की भाषा में काफी अन्तर होता है। हम जिस परिवेश में हैं वहां की समान्य भाषा खोरठा है । कक्षा में एवं घर पर तथा अपने मित्रों से बच्चे खोरठा एवं हिंदी में बातेँ करते हैं। खोरठा की तो विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती पर हिन्दी की होती है। जब बच्चे हिन्दी में बातें करते हैं तो वहाँ उस बातचीत में व्याकरण पर ध्यान नहीं देते पर किताबों की भाषा पूर्णतः व्याकरण पर आधारित होती है।
ReplyDeleteमेन वूमेन वॉच बच्चे जिस परिवेश में है वहां की सामान्य भाषा कोठा है। बच्चे कक्षा में घर में तथा अपने मित्रों के साथ खोरठा एवं हिंदी में बातें करते हैं। खोरठा की तो विद्यालय में पढ़ाई नहीं होती लेकिन हिंदी की पढ़ाई होती है । जब बच्चे हिंदी में बातें करते हैं तो वहां उस बातचीत में व्याकरण पर ध्यान नहीं देते पर किताबों की भाषा पूर्णता व्याकरण पर आधारित होती है ।
ReplyDeleteहमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा खोरठा है।जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें धीरे-धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से कई शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है।इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है।बहुत-बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteHamare school ke adhiktar chhatron ki matribhasha khortha hai.Atah bachchon ko Hindi padhne me bahut jyada sasyaon ka samna nahi karna padta hai lekin kuch Chhatra santhali bhasha ka bhi prayog karte hain.Unhe jarur apne shuruaati varshon me Hindi padhe me kathinaiyon ka samna karna padta hai
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र की ग्रामीण बच्चे आम तौर पर अपने दैनिक जीवन में सहज रूप से भाषाएं बोलते और समझते हैं लेकिन उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा से पाठ्य पुस्तक में लिखी गई भाषा एकदम अलग होती है बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती और उनकी शिक्षा पूरी तरह एक अपरिचित भाषा में होती है जैसे खोरठा संथाली मग ही भोजपुरी भाषा लोगों द्वारा बोली जाती है पर इन भाषाओं को स्कूलों के पाठ पुस्तकों में शिक्षण के माध्यम के रूप में जगह नहीं दिया गया हैl किशोर कुमार राय, उत्क्रमित उच्च विद्यालय kathghari
ReplyDeleteमेरे विद्यालय के सभी छात्रों की मातृभाषा बांग्ला है।वे आपस में बातचीत भी बांग्लाभाषा में करते हैं।इसका सबसे बड़ा कारण है विद्यालय पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र में अवस्थित है। चूँकि पाठ्यपुस्तकों की भाषा हिन्दी है और उनकी बोलचाल की भाषा बांग्ला है।
ReplyDeleteपरंतु अधिकांश बच्चे हिंदी समझते हैं। हिंदी और बांग्ला की मिलीजुली भाषा का प्रयोग शिक्षण के दौरान करते हैं।पर हिंदी के कठिन शब्द जहाँ आते हैं,उन्हें समझने में कठिनाई होती है। इस परिस्थिति में हमारे विद्यालय के अन्य शिक्षक जो कि वहाँ के स्थानीय हैं। वे लोग कठिन शब्दों के अर्थ समझाने में,अर्थ बताने में काफी मदद करते हैं। इस तरह शिक्षण कार्य सुलभ हो जाता है।
हमारे पोषक क्षेत्र के कई बच्चे खोरठा भाषा बोलते हैं।उनको विद्यालय की भाषा समझने में कठिनाई होती है।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय मे पढ़ने वाले बच्चे अपने घरों में बंगला,खोरठा तथा संताली भाषा बोलते हैं। विद्यालय की भाषा हिन्दी है। कक्षा 3 तक के बच्चों को को पढ़ने समझने में बहुत कठिनाई होती है। चूंकि मैं बंगला और खोरठा दोनों भाषाएँ जानता हूँ तथा बच्चों को पढ़ाने के दौरान इन भाषाओं का प्रयोग भी करता हूँ जिससे बच्चों को बहुत सहुलियत होती है।
ReplyDeleteविश्वनाथ मंडल , मध्य विद्यालय बरवा पूर्व ,धनबाद।
Hamhare school mi hindi teaching mi koi dikat nahi hai
ReplyDeleteThere is no problem of teaching Hindi in my school
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में मुख्यतः हिंदी और नागपुरी भाषा का प्रयोग किया जाता है।नागपुरी और हिंदी के बहुत शब्द काफी मिलते जुलते है।इसलिए बच्चों को बहुत अधिक कठिनाई नही होती है।परंतु एक और बोली जाने वाली भाषा उराँव बिल्कुल ही अलग भाषा है।कील इस भाषा मे बात करने एले बच्चों के लिए हिंदी समझना काफी कठिन होता है
ReplyDeleteबच्चों की मातृभाषा व विद्यालय का शिक्षण भाषा अलग-अगल होने के कारण बच्चों को पढ़ने,लिखने तथा समझने मे काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में बच्चे अधिकतर क्षेत्रीय भाषा मुण्डारी बोलते हैं |कुछ बच्चे हिन्दी भाषा टुटी पुटी बोलते हैं लेकिन पहला और तीसरा वर्ग के बच्चे हिन्दी समझने में कठिनाई होती है| बच्चों के साथ हम कई बार उनके मात्रीभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाते हैं|
ReplyDeleteमै बोकारो जिला के चंदनकियआरी प्रखंड के अंतर्गत मध्य विद्यालय कोरिया में पदस्थापित हूं। यहां मूर्खता यहां यहां मुख्य रूप से झारखंडी बांग्ला एल्बम खोरठा भाषा बोली जाती है यहां के बहुसंख्यक बांग्ला भाषी जो भाषा बोलते हैं वह पाठ्य पुस्तकों की भाषा से नहीं मिलता है एक बार एक महिला अपनी बच्ची बच्चे की नामांकन कराने आई । वह अपने नाम हिंचा देवी बोल रही थी जबकी उनका नाम पाठ्य पुस्तकों के भाषा के अनुसार इच्छा देवी होना चाहिए।
ReplyDeleteहमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में चारो ओर जंगल से घिरा हुआ है। मेरा विद्यालय बाकी दुनिया से बहुत हद तक अलग है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा खोरठा है।जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें धीरे-धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से कई शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है।इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में अधिकांश बच्चे खोरठा बोलते हैं,लेकिन हिंदी भी ठीक-ठाक समझ लेते हैं। कुछ शब्द अलग भी हैं,जैसे:
ReplyDeleteकोर- बेर
डहर- रास्ता
दमगी- पहाड़ी
यद्यपि यह एक स्थानीय भाषा है और इस पर हिंदी और बांग्ला का स्पष्ट प्रभाव है,फिर भी अधिगम में ज़्यादातर दिक्कत नहीं होती है।
हमारे विद्यालय में ज्यादातर बच्चे खोरठा भाषा और कुछ बच्चे संताली बोलते है। उन्हे हिन्दी समझने पढ्ने मे ज्यादा दिक्कत नही होती है। अनिल कुमार मध्य विद्यालय तेलौ बोकारो
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के अधिकतर छात्रों की मातृभाषा मुंडारी है कुछ बच्चे सादरी बोलते हैं ,जो हिंदी भाषा से मिलती जुलती है अतः बच्चों को हिंदी पढ़ने में ज्यादा समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है लेकिन जो छात्र मुंडारी भाषा का प्रयोग करते हैं, उन्हें हिंदी समझने एवं पढ़ने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के अधिकतर छात्रों की मातृभाषा मुंडारी है ,अतः बच्चों को हिंदी पढ़ने में ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।जो छात्र मुंडारी भाषा का प्रयोग करते हैं उन्हें हिंदी समझने एवं पढ़ने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteहमारे राज्य राज्य झारखंड में अनेक भाषा बोली जाती है जैसे संथाली मुंडारी पंचपड़गानिया खोरठा इत्यादि हमारे विद्यालय मैं सुदूरवर्ती जंगली इलाके से बच्चे आते हैं उनकी अपनी मातृभाषा अलग है उनको हिंदी एवं अंग्रेजी पढ़ने लिखने में और समझने में कठिनाई होती है हम शिक्षक भी स्थानीय भाषा अच्छी तरह जानते हैं अच्छा हमें प्रयास करना चाहिए की बच्चों को उनकी भाषा में ही जो भी समझते हो उसी के माध्यम से पढ़ाई लिखाई सीखने सिखाने का कार्य किया जाना चाहिए सभी बच्चे आसानी से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अपनी सहभागिता दे पाएंगे और आनंद का अनुभव करेंगे बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteहमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता हैं। हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चो का मातृभाषा खोरठा है, जब ये बच्चे अपनी मातृभाषा से ओतप्रोत होकर हमरे विद्यालय में आते हैं तो यहां इनको हिंदी भाषा सहति अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है। हालांकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसुस किया जाता हैं, परंतू हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता हममें से प्रायः सभी शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा उनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य करते हैं। इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है। जैसे हिंदी में मैं जा रहा हूं। अंग्रेजी में आई एम गोइंग। खरोठा में हम जा रहल हियाओ, आदि आदि (तारकेश्वर राणा, सहायक शिक्षक, उत्क्रमित मध्य विद्यालय रामु करमा, चौपारण, हजारीबाग
ReplyDeleteThere is difference between local languages and a standard language written in books in many ways like many words are spoken differently by people in differentlocalities. They are not well acquainted with different words. That's why they hesitate to speak or write.
ReplyDeleteHamara vidyalay villager chhetra m aata hai. Yahan ka asthaniae bhasa khortha hai.Bachhe School aate hain to unka samna Hindi tatha English se hota hai.Khortha aur Hindi k sabd m bahut hud tak samanta hoti hai faltah unhen adhik dikatto ka samna nahi karna padta hai kintu bisham prasthiti m hum teacher unhen bharpur madad karte hain kyonki hum teacher ko
ReplyDeleteashthaniae bhasa ki samajh achhi hai.
............MS KUSUNDA MATKURIA DHANBAD-1
सामान्यतः हमारे विद्यालयों मे पढ़ने वाले बच्चों के लिए घर की भाषा तथा विद्यालयों की भाषा अलग अलग होती है तथा पाठ्यक्रम भी हिन्दी तथा अंग्रेजी में होती है जिससे बच्चों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है|उससे कुछ पुछने पर अभिब्यक्त करने में हिचकते हैं|
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के बच्चे मुंडारी और सादरी भाषा बोलते हैं। मुंडारी भाषा, विद्यालय की पाठयपुस्तक की भाषा से भिन्न है और इस भाषा को बोलने वाले बच्चों को हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में ही समस्या होती है।इसके बावजूद वे अपनी भाषा में हिंदी और अंग्रेजी के मिलते जुलते शब्द उपयोग करते हैं जैसे इसकुल, कित्तब, उफीस,पेंशुल आदि जो क्रमश: स्कूल,किताब,ऑफिस,और पेंसिल के लिए बोलते हैं। दूसरी भाषा सादरी है जो हिंदी भाषा से मिलती जुलती है अत:इस भाषा को बोलने वाले बच्चे हिंदी भाषा में अधिक समस्या का सामना नहीं करते। जैसे मोय इसकूल जा थों का अर्थ है कि मैं स्कूल जा रही हूं। मुख्य समस्या अंग्रेजी भाषा के साथ है जिससे वे किसी भी तरह से अपनी भाषा से संबंध स्थापित नही कर पाते हैं। इस भाषा के साथ वे डरा हुआ महसूस करते हैं और दूर भागते हैं। अत:अंग्रेजी का डर समाप्त करने के लिए शिक्षक को बच्चे की भाषा को माध्यम बना कर सिखाना आवश्यक है।
ReplyDeleteबच्चों की घर की भाषा विद्यालय की भाषा से अलग हो सकती है जो विद्यालय में पढ़ाई नहीं जाती है।जैसे -खोरठा, मंजीरा, नागपुरी,संथाली,कुडमाली।बच्चा घर पर रास्ता शब्द बदले डहर कहता है ।ऐसे में सामंजस्य बनाना उनके लिए कठिन हो जाता है । पटरी पर लाने के लिए
ReplyDeleteउनकी मातृभाषा को स्थान देने आवश्यकता है ।
सामान्यतः मैं गढवा जिला के जिस विद्यालय में रहा हूं,उस गांव की मातृभाषा मगही या मगही मिश्रित भोजपुरी रही है।ये दोनों भाषायें हिंदी की उप भाषा में हैं। फिर भी विद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली भाषा एवं गांव में बोली जाने वाली भाषा में बहुत अधिक भिन्नता होती है। गांव में बोली जाने वाली भाषा में गवांरपन एवं निर्भिकता होती है।बहुत सारे शब्दों के बनावट एवं उच्चारण में भिन्नता होती हैं।जैसे-
ReplyDeleteमगही भाषा. हिंदी भाषा
गोंड पैर
माटी. मिट्टी
बाबुजी. पिताजी
बिलाई बिल्ली
सुघर. सुंदर
ढोडा. नाला
हिंदी की उपशाखा होते हुए भी बहुत सारे शब्दों के बनावट एवं उच्चारण में भिन्नता होती है।
गांवों, जंगलों में बहुत सी ऐसी भाषाओं काम प्रयोग होता है,जिनका विद्यालय में पढ़ाई जाने वाली भाषा से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं होता है।बच्चों के लिए ये विद्यालयी भाषा बिल्कुल ही नयी एवं अपरिचित भाषा होती है।विद्यालय की भाषा उनके लिए विद्यालय से दूरी बनाने का एक कारण हो जाता है।
यदि बच्चों को प्राथमिक शिक्षा बच्चों की मातृभाषा में दी जाये तो ,वे कक्षा में ठहरने लगेंगे।शिक्षक से वे अपनापन महसूस करेंगे।
बच्चों को अपनी मातृभाषा में बोलने, लिखने एवं अपना विचार साझा करने की अनुमति दी जाये तो वे, बहुत ही जल्दबाजी में सीखते हैं।
अनिल तिवारी
सहायक शिक्षक
रा म विद्यालय दुलदुलवा
मेराल, गढवा झारखंड।
मैं जिस विद्यालय में पढ़ाता हूं वहां के लोगों की मातृभाषा खोरठा और संथाली है, बच्चे और बड़े सभी अपनी भाषा में बात करते और समझते हैं मेरी मातृभाषा भी खोरठा है और सीखने-सिखाने की भाषा हिन्दी रही है पर संथाली मेरे पल्ले नहीं पड़ती,न समझता हूं और न समझा पाता हूं।
ReplyDeleteबच्चे माता-पिता के साथ घर में बोलने वाली भाषा-जिसे हम उनकी मातृभाषा भी कहते हैं , हो में ही बोलना पसंद करते हैं।
ReplyDeleteअतः बालवाटिका से प्रारंभिक कक्षाओ में प्रवेश के समय शिक्षकों के लिए यह चुनौती का विषय है कि कैसे सहजता से उन्हें घर की भाषा एवं विद्यालय की भाषा में सामंजस्य बिठाने में उनको सहयोग करना चाहिए।
विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा खोरठा है।जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें धीरे-धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से कई शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है।इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है
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ReplyDeleteHamare vidyalay mein Hindi aur Chhetri Bhasha khortha bolane wale bacche padhte Hain pata bataye kastani Bhasha hai aur iske Shabd bahut Hindi se milte julte Hain atah hamare vidyalay mein ine bacchon ko samajh mein a jaate Hain
ReplyDeleteग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ आदिवासी बाहुल्य हैं वहाँ के बच्चे अधिक क्षेत्रीय भाषाओं(sangali)का प्रयोग करते हैं।स्कूलों में भाषा का माध्यम हिंदी होने के कारण उन्हें सीखने मे कठिनाई होती है।
ReplyDeleteजैसे -हिंदी - संथाली
माता - गोगो
पानी - दाक्
खाट - पारकोम
Kuchh bacche Khortha Santhali Bhojpuri bolate Hain Hamari pathya Pustak Hindi bhasha mein hoti hai bahut se are sthaniya Shabd Hindi Se Alag Hote Hain shabdon ke Arth Janam Mein bacchon ko kathinai hoti Jaise core ko Rasta bacche Jab Ghar Se Aate Hain To Unki apni matrubhasha hoti aur Vidyalay Mein Hindi aur angreji padhaayaa jata hai jo unke Bhasha se bhinn hai Shiksha ko sakaratmak anusar samarthan se Shiksha Kone Murti Roop Dete Hain Shikshak ko bacchon ko matrubhasha ke sath sath Hindi padhani Hindi angreji padhna Chahta ke bacchon se samajh sake aur Vidyalay Mein 3rd sal ke bacchon ko matrubhasha Mein batane se samajh Banane Mein Aasan Nahin Hoti Hai Aur bacche ke bich Apnapan ka bhav Paida Hota Hai
ReplyDeleteहमारी कक्षा के बच्चे मुख्यत: दो भाषाओं को दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते-समझते हैं जो हैं - संथाली और बंगाली जबकि कुछ बच्चों की मातृभाषा बंगाली तथा कुछ के संथाली हैं। वे बचपन से ही साथ-साथ खेलते,रहते और बातचीत करते हैं बोलकर, उनकी ऐसी स्थिति है। उनकी पाठ्यपुस्तक की भाषा हिंदी है परंतु आज के परिवेश में हमारे बच्चे इस भाषा ( हिंदी) से पूर्व परिचित अवश्य है। भले ही वे दैनिक जीवन में हिंदी को सहज रूप से न बोलते हो पर थोड़ा बहुत जरूर समझते हैं परंतु बोलने में वे झिझक महसूस करते हैं। बच्चे मोबाइल से अपने परिवेश में सिनेमा, नाटक, कार्टून ,प्रचार,कहानी,समाचार आदि को यूट्यूब के माध्यम से अक्सर हिंदी भाषा के सहारे देखना, सुनना एवं समझना हासिल कर ही लेते हैं।
ReplyDeleteफिर बच्चे जब विद्यालयी परिवेश में आते हैं तो उन्हें एक तृतीय औपचारिक भाषा के रूप में हिंदी को सुनने, बोलने, पढ़ने तथा लिखने का मौका मिल ही जाता है। हमारे यहां बच्चों को उपर्युक्त भाषाओं में से किसी का भी इस्तेमाल करने की पूरी छूट दी जाती है जिसके कारण बच्चे एक शब्द को विभिन्न भाषाओं में जान लेने की अधिगम प्राप्त करते हैं जो शायद उनके भावी जीवन का एक मजबूत नींव साबित हो सकता है।
जहां तक पाठ्यपुस्तकों में लिखी गई भाषा की भिन्नता की बात है,जो उदाहरण के तौर पर निम्नवत है :
१) हिंदी शब्द - ( माताजी, माता ,जननी); बंगाली शब्द-(मां,माता, जननी) ; संथाली शब्द - (आयो,गोगो) ; अंग्रेजी शब्द - (mother, mom, momma, mommy)|
२) हिंदी शब्द-( पिताजी, पिता ,पापा) ; बंगाली शब्द -(पिता ,बाबा) ; संथाली शब्द- (बा,जानाम-दाता) ; अंग्रेजी शब्द - (father, dad, dada, daddy) |
३) हिंदी शब्द- ( शिक्षक ,गुरुजी ,अध्यापक ); बंगाली शब्द- (शिक्षक ,गुरु ,अध्यापक) ; संथाली शब्द- ( महाशय ,मास्टार) ; अंग्रेजी शब्द (teacher) |
४) हिंदी शब्द- ( किताब ,पोथी ,पुस्तक ); बंगाली शब्द - ( पुंथि,बइ, पुस्तक); संथाली शब्द- (कितेब, पुंथि); अंग्रेजी शब्द- (book) |
हमारा विद्यालय में मुख्यतः बच्चे संथाली भाषा में बात करते हैं और समझते हैं परंतु पाठ्यक्रम में इस भाषा को शामिल नही किया गया है । इस कारण से बच्चे कक्षा में पढ़ने में रुचि भी नही लेते और आपस में ही बात करते रहते हैं।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में अधिकांश विद्यार्थी हिंदी भाषी ही है और कुछ बच्चे खोरठा भाषी है, जिन्हें हिंदी समझने में कोई परेशानी नहीं होती किन्तु हिंदी बोलने के दौरान कुछ त्रुटियाँ अवश्य होती है जिन्हें हम शिक्षक सदैव त्रुटि रहित करने का सफल प्रयास करते रहते हैं।
ReplyDeleteयद्यपि अधिकांश बच्चे हिंदी भाषी है फिर भी किताबी शुद्ध हिंदी और बोलचाल में प्रयोग होने वाली हिंदी भाषा में कुछ भिन्नता होती है जिसको समझने में बच्चों को कुछ परेशानियों का सामना अवश्य करना पड़ता है, जिन्हें हम शिक्षक समझाने का भरसक प्रयास करते रहते हैं।
बच्चों की शैक्षणिक विकास के लिए भाषा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.पर बिशेष रूप से भारत में आधिकतर क्षेत्र में विद्यालयी भाषा एवं घर की भाषा में अंतर होता है.इस कारण से बच्चे की अधिगम क्षमता का ठीक से विकास नहीं हो पता है. जैसे कि झारखंड में मुख्य भाषा संथाली, कुरमाली, खोरठा, बंगला, भुमिज, हो आदि हो आदि है, पर विद्यालय की भाषा इससे भिन्न होता है जिसके कारण बच्चों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
ReplyDeleteहमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा खोरठा है। जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें धीरे-धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से कई शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है। इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है।
ReplyDeleteMost students speak HO language and some speak ODIYA in my school.As I am accquinted with both the languages little or more,I have no difficulty in conversing with them and it seems that they feel easy with me.
ReplyDeleteसतेन्द्र कुमार सिंह
ReplyDeleteउत्क्रमित मध्य विद्यालय कुरुम, दुलमी, रामगढ़।
मेरा विद्यालय रामगढ़ जिले के एक गांव कुरुम में स्थित है। मिश्रित आबादी के इस गांव में बच्चों की मातृभाषा खोरठा है। संयोगवश हम सभी शिक्षक भी खोरठाभाषी ही हैं। पहले शिक्षक कक्षाओं में और बच्चों के साथ हिन्दी में ही बात करते और पढ़ाते थे। छोटे बच्चों को कठिनाई होती थी और वो असहज महसूस करते थे, किन्तु हाल के वर्षों में विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होने के बाद, जिनमें कक्षाओं में खासकर शुरुआती कक्षाओं में बच्चों के घर की भाषा/बोली में बात करने के लाभ बताए गए और प्रेरित किया गया, तब से बच्चों के साथ खोरठा में शुरुआत करते हुए उन्हें हिंदी और अंग्रेजी की पढ़ाई से जोड़ने की कोशिश की जाती है।
मेरे विद्यालय के 25% बच्चे किताब की भाषा को नहीं समझते हैं । इस कारण उन्हें काफी कठिनाई होती है । वे अपनी मातृभाषा में बात करना ज्यादा पसंद करते हैं । इसलिए उन्हें उनकी भाषा में ही समझाया जाता है ताकि वे असहज महसूस ना करें ।
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के बच्चों की मातृभाषा बांगला। बांग्लाभाषी बच्चों को स्कूल की भाषा हिन्दी बोलने समझने मे कठिनाई नहीं होती परन्तु संथाली और हो भाषी बच्चों को काफ़ी कठिनाई होती है। क्योंकि संथाली और हो भाषा हिन्दी से बिल्कुल अलग है।पहले शिक्षक कक्षाओं में और बच्चों के साथ हिन्दी में ही बात करते और पढ़ाते थे। छोटे बच्चों को कठिनाई होती थी और वो असहज महसूस करते थे, किन्तु हाल के वर्षों में विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होने के बाद, जिनमें कक्षाओं में खासकर शुरुआती कक्षाओं में बच्चों के घर की भाषा/बोली में बात करने के लाभ बताए गए और प्रेरित किया गया, तब से बच्चों के साथ खोरठा में शुरुआत करते हुए उन्हें हिंदी और अंग्रेजी की पढ़ाई से जोड़ने की कोशिश की जाती है।Motiur Rahman, UPS-Chandra para, Pakur
ReplyDeleteहमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा "हो" है। जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें धीरे-धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से कई शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है। इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है।
ReplyDeleteहमारा विद्यालय ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा संथाली और बंगला है।जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक सहयोग से उन्हें धीरे-धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से कई शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है।इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है।
ReplyDeleteहमारी कक्षा के बच्चे जो भाषा बोलते और सुनते हैं वह किताबो की भाषा से बहुत अलग होती है । बच्चे जिस भाषा का उपयोग करते हैं वह उनकी मातृभाषा अर्थात घर की भाषा होती है । उसके शब्द स्थानीय प्रचलित भाषाओं के शब्द होते हैं जबकि किताबों में खडी हिन्दी का औपचारिक स्वरूप होता है। बच्चों के बोल चाल की भाषा में अधिकांश शब्द अपभ्रंश होते हैं जबकि किताबों में मानक शब्द एवं भाषा का प्रयोग किया जाता है । किताबों की भाषा में व्याकरण के नियमों का कड़ाई से पालन किया जाता है जबकि दैनिक प्रयोग की भाषा चलताउ होती है।
ReplyDeleteHamare vidyalay me adhikansha bochchon janjatiya bhasha bolte hain jabki vidyalay me Hindi bhasha me padai hoti hai.Bochchon ko Hindi samajhne me dikkat hoti hai.
ReplyDeleteकक्षा के बच्चे जो दैनिक जीवन मे अपनी भाषा का प्रयोग करते हैं,उनकी भाषा किताबोंमे लिखी भाषा से भिन्न तो जरूर होते हैं क्योंकि अधिकांश विद्यालय जो सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित हैं वहां के बच्चे ज्यादातर खोरठा भाषा का प्रयोग करते हैं।खोरठा भाषा किताबी भाषा से थोड़ा भिन्न तो जरूर है फिर भी शिक्षकों के सहयोग से बच्चे समझ जाते हैं
ReplyDeleteहमारा विद्यालय गुमला जिले के घाघरा प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्र में आता है। हमारी कक्षा के अधिक तर बच्चे कुँड़ुख़ एवं नागपुरी(सादरी)भाषा में बात चीत करते हैं । पाठयपुस्तक की भाषा हिंदी एवं अग्रेंजी है ।अतः बच्चों को समझने में कठिनाई होती । पाठयपुस्तक पढ़ाते समय मैं बच्चों की भाषा मे समझाती हूँ जिससे बच्चे समझ पाते हैं। जैसे-
ReplyDeleteहिंदी कुँड़ुख़ नागपुरी(सादरी)
बकरी ए-ड़ा छगरी
आम टटखा अम्बा
रोटी अस्मा रोटी
सब्जी अमखी तियन
इस प्रकार से समझा ना पड़ता है।
हमारे विद्यालय के बच्चे खोरठा भाषा बोलते हैं जिससे उनको हिंदी भाषा के शब्दों को सहज से बोलने में कठिनाई होती है यहां तक कि वह किसी के द्वारा बोले गए हिंदी शब्दों को अपनी भाषा के साथ तालमेल बैठाकर उसका आशय भी नहीं समझ पाते हैं बच्चे किसी भी वस्तु के नाम को जो उनकी अपनी भाषा में होती है वह हिंदी भाषा या अंग्रेजी भाषा के नामों के साथ तालमेल बैठाने में कठिनाई का अनुभव करते हैं जैसे किसी भी जले हुए हैं पदार्थ के अवशेष को हिंदी में राख कहा जाता है जबकि खोरठा फांसी बच्चे उसको वाइन के नाम से जानते हैं अब उन्हें राख कहने पर समझने में दिक्कत होती है कि रात असल में क्या चीज है जिसे वे नहीं जानते। इस प्रकार अनेक चीजों के नाम और क्रियाओं के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्दों को अपनी भाषा के बल पर वे समझने में दिक्कत का अनुभव करते हैं।
ReplyDeleteभाषा मे भिन्नता,वस्तुओ,व्यक्ति,स्थान के नामो के उच्चारण मे भिन्नता,भाषा की अशुद्धि,इत्यादि घर तथा विद्यालयीय परिवेश मे सामान्यतः पायी जाती है।अभ्यास से बच्चे धीरे_ धीरे सीख लेते है।
ReplyDeleteAdhiktar jaghon par school ki bhasha sir Ghar ki bhasha ek hi Hoti hai
ReplyDeleteमेरा विद्यालय सुदुर्वर्ती ग्रामीण क्षेत्र मे अवस्थित होने के कारण कक्षा की भाषा एवं बच्चों की भाषा में बहुत अधिक अंतर है । अधिकांश बच्चों की घर की भाषा संथाली है, जबकि कुछ बच्चों की भाषा बांग्ला है। शुरुआत में तो विद्यालय की भाषा, जो कि हिन्दी है, को बच्चे कुछ भी नहीं समझ पाते हैं । सामान्य शब्दों जैसे- सब्जी,टमाटर,आँख, नाक, कान,बैठना, खाना, किताब, आदि भी नहीं समझ पाते हैं। हम उनकी अधिगम- आवश्यकताओं को सहजता से नहीं पहचान पाते हैं। इसके लिए हमने संथाली, बांग्ला सीखने की कोशिश की है और बहुत हद तक सिखा भी है। मैं प्रायः शिक्षण- अधिगम प्रक्रिया में जहां तक संभव हो, संथाली, बांग्ला भाषाओं के शब्दों का प्रयोग कर इस समस्या से निपटने का प्रयास करता हूँ। हमें इसमे बहुत हद तक सफलता भी मिली है।
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र के बच्चे खोरठा भाषी हैं।घरों में खोरठा भाषा का प्रयोग करते हैं।स्कूल की भाषा
ReplyDeleteखोरठा से भिन्न है किन्तु हिन्दी भाषा शिक्षकों के सहयोग से बच्चे समझ जाते हैं।
हमारे विद्यालय के पोषक क्षेत्र के बच्चे खोरठा भाषा से आते हैं। जो पुस्तक की भाषा से थोड़ा भिन्न है।लिपि देवनागरी ही है।लेकिन बच्चे लिपि को जानकर उनकी भाषा में बच्चो से बातचीत करके उनके परिवेश के बारे में बातचीत करके उनकी भाषा में प्रचलित कहानियों कविताओं इत्यादि का प्रयोग करते हुए उन्हें पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी जगा कर बाद में पुस्तक की भाषा पर धीरे धीरे ले आते हैं जिससे बच्चे पुस्तक की भाषा और चित्रों की भाषा से अपनी भावनाओं का तालमेल बैठा लिए हैं और स्वेच्छा से प्रिंट के प्रति आकर्षित हो जाते हैं।उनकी जिज्ञासाओं कोशंट करते हुए खेल खेल में उन्हें पुस्तक की भाषा समझ में आने लगती है।
ReplyDeleteHamare aaspaas ke bacche Jo apni bhashaen bolate Hain vah Vidyalay ke path Pustak ki Bhasha se thoda alag hote hain jisse mein samajhne mein thoda kathinaiyon ka Samna karna padta hai. Jaise bacche ped ko garch Kahate Hain Jab ki pustak Mein vriksha likha rahta hai.
ReplyDeleteहमारे विद्यालय में आने वाले अधिकतम बच्चे वैसे घरों से आते हैं जो हमेशा अपनी मातृभाषा में ही और उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम और माहौल भी मातृभाषा या क्षेत्रिये भाषा का उपयोग करते हैं। और दूसरी ओर हमारे विद्यालय में उनके लिए एकदम नये भाषा का माहौल हो जाता है हमें यह जरूरी हो जाता है कि उन्हें सहज महौल प्रदान करना चाहिए ताकि उन्हें विद्यालय में असहजता महसूस ना हो। उदाहरण के तौर पर मेरे विद्यालय में आने वाले बच्चे वहां के क्षेत्रीय भाषा के माहौल से आते हैं जैसे हम हिंदी भाषा में सूर्य को कई नामों से जानते हैं पर जब मैंने पुछा तो उन्हें इस बारे मालूम ना था किन्तु मैंने सूरज की ओर इशारा कर पुछा इसे तुम क्या बोलते हो तो कुछ ने मातृभाषा में"बेएर,बेरा"और सिंगी"इत्यादि।वे बड़े उत्साह से बता रहे थे अतः मातृभाषा की पुल हम तक बच्चों की अतिआवश्यक माध्यम है।
ReplyDeleteहमारे विधालय में पढ़ने वाले बच्चे स्थानीय भाषा खोरठा बोलने वाले है.यह हिन्दी से मिलती जुलती भाषा है. इससे पढाई जा रही विषय वस्तु को सुनकर समझने में कम परेशानी होती है.
ReplyDeleteHamare vidyalay main hindi pathan pathan main sirf 5% ki dikkat chhatraon main hoti hai jise Kuchh hi samay main sikshakon aur chhatraon ke paraspar sahyog se duur ho jata hai.
ReplyDeleteबच्चे समानता संथाली में बातचीत करते हैं जो पाठ पुस्तक से बिल्कुल भिन्न है कुछ बच्चे खोरठा बोलते हैं यह भी भिन्न है कक्षा तीन तक छात्र स्कूली भाषा का उपयोग ठीक-ठाक से नहीं कर पाते
ReplyDeleteWhen the children come to school for the first time, no one knows what they are feeling.Children have fear and curiosity in their mind.They have heard somewhere that they have to study in schools and they have to interact with teachers. They don't reply even if the teachers talk with them in their own language. They become very shy in the staring but after few days they become comfortable and starts responding.
ReplyDeleteKUMARI SANDHYA RANI GUMS KHIRABERA
There are several students in my school who speak tribal languages especially khortha, santhali or mundari.Though these languages are similar to hindi but still there are many hindi words which these students face difficulty to grasp and understand.
ReplyDeleteहमारा विद्यालय एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है।हमारे विद्यालय के अधिकांश बच्चों का मातृभाषा खोरठा है।जब ये बच्चे अपने मातृभाषा से औतप्रोत होकर हमारे विद्यालय आते हैं तो यहाँ इनको हिन्दी भाषा सहित अंग्रेजी का भी सामना करना पड़ता है।हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में उनके द्वारा थोड़ा असहज महसूस किया जाता है परन्तु हम शिक्षकों के सकारात्मक अनुसमर्थन से उन्हें धीरे-धीरे वास्तविक रूप से मूर्त रूप दिया जाता है।हममें से कई शिक्षक मातृभाषा को जानते हैं तथा इनको पूरा अनुसमर्थन सभी लोग प्रदान करते हैं। बच्चों के साथ हम कई बार उनके मातृभाषा में वस्तुओं की समझ बतलाने का कार्य किया जाता है।इससे बच्चों के बीच अपनापन का भाव पैदा होता है।बहुत-बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteमेरी कक्षा में आने वाले अधिकांश बच्चे घर में खोरठा का प्रयोग करते हैं जबकि स्कूल में पढ़ाई का माध्यम हिन्दी है। बच्चे खोरठा में जिसे मइया कहते हैं किताब में माता लिखा हुआ होता है। अतः पढाने के क्रम में हमें यह बताना होता है कि माता मतलब मइया होता है।
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