अपने राज्य/ यू टी से प्रसिद्ध स्वदेशी खिलौनों / अधिगम सामग्री के बारे में सोचें और अपने विचार साझा करें कि आप इनके प्रयोग विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण-अधिगम में कैसे कर सकते हैं।
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Hamare yaha bachche mitti se khilouna banate hai aur kjelte hai.Is se bachcho me srijanatmak,rachnatmak,manspeshio ka bikash hota hai aur sath hi unme padne me ruchi bhi paida hoti hai.
ReplyDeleteHamare Yahan bacche Mitti Se Khilona banate hain aur khelte hain isase bacchon mein rachnatmak ta maspesi ka Vikas hota hai aur sath hi Sath usmein padhne ki Ruchi bhi badhati hai bacche Anand mein rahte hain dhanyvad
ReplyDeleteHamare yaha bachche mitti se khilouna banate hai aur kjelte hai.Is se bachcho me srijanatmak,rachnatmak,manspeshio ka bikash hota hai aur sath hi unme padne me ruchi bhi paida hoti hai.
ReplyDeleteG.M.S Pancha Premlata devi
Our children make the toys by the help of clay.By playing with these type of toys the mental level of the children increase. Sometimes they made the toys with the help of matches boxes and rappers of the article.
Deleteमिट्टी के खिलौनों में विभिन्न प्रकार के जानवर और ग्वालिन मिलते हैं जिनका प्रयोग हम जानवरों की आकृति तथा नाम बताने मे कर सकते है। इन सब के अलावा छोटे छोटे मिट्टी के बरतन तथा अंधरा चुका भी बनाया जाता है जिससे बच्चे खाना पकाना सीखते हैं तथा पैसे की बचत करना सीखते हैं।
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,बांस,पत्ते जैसे इको-फ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित वैसे खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व-त्योहारों का चित्रण करता हो।साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षियों आदि से संबंधित खिलोने जिससे बच्चे भली-भांति परिचित हों।
ReplyDeleteमिट्टी लकड़ी पांच पत्ते जैसे वस्तुओं से निर्मित ऐसे खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व त्योहारों का चित्रण करता हूं साथ ही विभिन्न जानवरों पक्षियों आदि से संबंधित खिलौने जिससे बच्चे भली-भांति परिचित हो
DeleteMitti se khilona banate hai or janwar fool fal sabji ka vikaas orusme padhene ki ruchi anand or khushi ka fill apne dimaag me karte hai
ReplyDeleteझारखण्ड एक अनुपम राज्य हैं।यहाँ विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है।इसका प्रयोग हमसभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण-अधिगम में कैसे कर सकते हैं।
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,पत्थर,बांस,पत्ते,पलास पेड़ से लाह,पारंपरिक वाद्ययंत्रों,कद्दू/कोहड़े का खाल,जैविक अवशेष आदि कई शून्य या फिर अल्प निवेश के द्वारा कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम को सार्थक बना सकते हैं।बहुत-बहुत धन्यवाद।
कौशल किशोर राय,
सहायक शिक्षक,
उत्क्रमित उच्च विद्यालय पुनासी,
शैक्षणिक अंचल:- जसीडीह,
जिला:- देवघर,
राज्य:- झारखण्ड
मिट्टी,लकड़ी,बांस,पत्ते जैसे इको-फ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित वैसे खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व-त्योहारों का चित्रण करता हो।साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षियों आदि से संबंधित खिलोने जिससे बच्चे भली-भांति परिचित हों
ReplyDeleteबच्चे खिलोखिलोने के प्रति बड़ा अचानक होता है| इसे खेल- खेल करे दिखाकर, गिनती कर कर, इस्के कार्य कलाप कोबताकर, इसमे बारे में बताकर इतनादि द्वारा विभीन प्रत्ययों कोशलों के शिक्षण अधिगम कर सकते हैं।
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र के प्रकृति से जुड़े होने की वजह से इन्ही से समन्धित खिलौना बनाते हैं।खास कर पत्तियों से,लकड़ी,बांस,आदि से ।जो बहुत आकर्षक भी लगते हैं।बच्चे इनसे जुड़ाव महसूस करते हैं।इसप्रकार के खिलौनों से बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है।मिट्टी से विभिन्न प्रकार के फल और सब्जी बनाते हैं।इससे विभिन्न प्रकार के कौशल का विकास होता है।
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र के प्रकृति से जुड़े होने की वजह से इन्ही से समन्धित खिलौना बनाते हैं।खास कर पत्तियों से,लकड़ी,बांस,आदि से ।जो बहुत आकर्षक भी लगते हैं।बच्चे इनसे जुड़ाव महसूस करते हैं।इसप्रकार के खिलौनों से बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है।मिट्टी से विभिन्न प्रकार के फल और सब्जी बनाते हैं।इससे विभिन्न प्रकार के कौशल का विकास होता है। Nitish kumar,M.S Narayanpur,Nawadih(Bokaro)
Deleteप्रकृति से ज़ुड़े होने की वजह सेबहुत सारि आकर्षक वस्तुए बनाने में मदद मिलती हैं।विभिन्न प्रकार के कौशलों का भी विकाश होता है।
DeletePRAMOD KUMAR THAKUR
M.S.UPAR SITUA,BLOCK JAMA
DIST DUMKA ,STATE JHARKHAND
हमारे क्षेत्र में मिट्टी से बने खिलौने पाए जाते हैं इसके अलावा लकड़ी बांस आदि से भी खिलौने नए जाते हैं जो प्रकृति प्रदत होते हैं इसके अलावा कागज कपड़ा आदि से भी खिलौने बनाए जाते हैं इनसे बने खिलौने सस्ते एवं आकर्षक होते हैं इन खिलौनों के द्वारा बच्चे अपने मनोरंजन के साथ बौद्धिक विकास करते हैं जो उन्हें सरलता से प्राप्त होती है खिलाना सीखने का एक सशक्त माध्यम है इसके द्वारा सारिक विकास होता है जो हमारे लिए महत्वपूर्ण है
ReplyDeleteमिट्टी के खिलौनों में विभिन्न प्रकार के जानवर और ग्वालिन मिलते हैं जिनका प्रयोग हम जानवरों की आकृति तथा नाम बताने मे कर सकते है। इन सब के अलावा छोटे छोटे मिट्टी के बरतन तथा अंधरा चुका भी बनाया जाता है जिससे बच्चे खाना पकाना सीखते हैं तथा पैसे की बचत करना सीखते हैं।
ReplyDeleteReply
हमारे यहां विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है। इसका प्रयोग हम सभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण अधिगम में एवं मिट्टी से विभिन्न प्रकार के खिलौने आदि बनाते हैं। मिट्टी, लकड़ी, –--------पत्थर,बांस,पत्ते, पारंपरिक वाद्ययंत्रों आदि कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम का सार्थक बना सकते हैं।Oman khan UMS Tikuldiha (Meral) Garhwa
ReplyDeleteThere are many toys which are used in rural Jharkhand.Some of them are below:-
ReplyDelete1.SAGDI(सगड़ी)-It is a type of cart made by wood. It comprises of two wheels adjucently connected and a long stick or one can better say it lathi or (डंडा) attached to it.One can suppose it as a small Bullock cart.
It can be used to clear speed,movement,displacement,motion, weight etc.
2.PUDUH/ POOH (पुड़ु:/ पू'उ:)- You can name it utensils.These are made with leaves.
These are of different sizes and purposes.
These can be used to teach children early maths,communication skills, socialization,helping each other ctc.
3.MURUTU (मुरुतु)- It can be termed as clay idols.These are of different sizes and characters- humans,animals,birds and non living materials too.
These can be used to attract little ones attention towards the beauty of nature,honour every being whether it bears life or not.Early seeds of humanity and different branches of knowledge can be sown in child's unconscious mind.Later on these can be grown big trees that can supply oxygen to human race and world will be a better place for living.
झारखंड प्रदेश हरियाली से भरा प्रदेश है। अतः रहा पेड़-पौधो के विभिन्न अंगो से बच्चे स्वंय विभिन्न प्रकार कै खिलौने बना कर खेलते हैं। जिससे उनमे समस्या समाधान, सृजनात्मकता,सूक्ष्म गत्यात्मक कौशल,आत्म अभिव्यक्ति आदि गुणो और कौशल का विकास होता है।
ReplyDeleteहमारे यहां विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है। इसका प्रयोग हम सभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण अधिगम में एवं मिट्टी से विभिन्न प्रकार के खिलौने आदि बनाते हैं। मिट्टी, लकड़ी, –--------पत्थर,बांस,पत्ते, पारंपरिक वाद्ययंत्रों आदि कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम का सार्थक बना सकते हैं। kumardungi West Singhbhum
ReplyDeleteOur children make the toys by the help of clay.By playing with these type of toys the mental level of the children increases.sometime they made the toys with the help of match boxes and rappers of the article.
ReplyDeletePuna Singh Ranchi 8 March 2022हमारे क्षेत्र के प्रकृति से जुड़े होने की वजह से इन्ही से समन्धित खिलौना बनाते हैं।खास कर पत्तियों से,लकड़ी,बांस,आदि से ।जो बहुत आकर्षक भी लगते हैं।बच्चे इनसे जुड़ाव महसूस करते हैं।इसप्रकार के खिलौनों से बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है।मिट्टी से विभिन्न प्रकार के फल और सब्जी बनाते हैं।इससे विभिन्न प्रकार के कौशल का विकास होता है।
ReplyDeleteReply
झारखंड प्रदेश हरियाली से भरा प्रदेश है। अतः रहा पेड़-पौधो के विभिन्न अंगो से बच्चे स्वंय विभिन्न प्रकार कै खिलौने बना कर खेलते हैं। जिससे उनमे समस्या समाधान, सृजनात्मकता,सूक्ष्म गत्यात्मक कौशल,आत्म अभिव्यक्ति आदि गुणो और कौशल का विकास होता है
ReplyDeleteBachche mitti,lakri tatha bans aadi se khilona banate hain jisse uska srijatmak,gatyatmak,abhibeakti tatha bivinn kousal ka vikash hota hai.
ReplyDelete........MS KUSUNDA MATKURIA DHANBAD-1
Hamara rajya jarkhand hariyali se bhara Pradesh hai .tatha yahan tarah tarah Ke khanij bhi paye jaate Hain. yahan Ke log baans se bade hi Sundar khilaune banate hain. kuchh sabji Jaise Loki aur falon se bhi sukhakar khilaune banae jaate Hain. pathar aur tatha mitti se bhi khilona bana sakte hain. khilauna ko sajane ke liye prakritik rang aur abhrak yani mica ka bhi upyog kiya ja sakta hai .isase bacchon ko Anand bhi aaega aur uanmay srijnatmakta ka Vikas hoga .saath saath sharirik Vikas bhi hoga .yewam
ReplyDeleteatma abhivyakti Kaushal ka Vikas bhi hoga.
Manju Kumari
UPG PS PURANA SALDIH BASTI
Adityapur saraikela kharsawan.
मिट्टी,लकड़ी,बांस,पत्ते जैसे इको-फ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित वैसे खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व-त्योहारों का चित्रण करता हो।साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षियों आदि से संबंधित हो।
ReplyDeleteलकड़ी, मिट्टी,पत्तियाँ जैसे वस्तुओं से निर्मित खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व त्योहारों का चित्रण करते हैं जो बच्चों को सीखने में काफी मददगार साबित होते हैं।
Deleteझारखण्ड एक अनुपम राज्य हैं।यहाँ विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है।इसका प्रयोग हमसभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण-अधिगम में कैसे कर सकते हैं।
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,पत्थर,बांस,पत्ते,पलास पेड़ से लाह,पारंपरिक वाद्ययंत्रों,कद्दू/कोहड़े का खाल,जैविक अवशेष आदि कई शून्य या फिर अल्प निवेश के द्वारा कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम को सार्थक बना सकते हैं।बहुत-बहुत धन्यवाद
In our JHARKHAND state toys are made up of stone ,soil, bamboo, wood, leaf ,etc.
ReplyDeleteWe all teachers can also make and use these toys as TLM in primary level class.
In our state (JHARKHAND)many types of toys are made from bamboo ,leaf, stone
ReplyDeletewood etc.
S
We can also use it as our TLM.
मिट्टी,लकड़ी,बांस,पत्ते जैसे इको-फ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित वैसे खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व-त्योहारों का चित्रण करता हो।साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षियों आदि से संबंधित खिलोने जिससे बच्चे भली-भांति परिचित हों। रणजीत प्रसाद, मध्य विद्यालय मांडू, रामगढ़।
ReplyDeleteOur children are make some toyes from mud leaf stone etc these are TLM.
ReplyDeleteOur children are make some toyes from mud leaf stone etc these are TLM.
DeleteAnjani Kumar Choudhary. 8809058368
ReplyDeleteझारखण्ड एक अनुपम राज्य हैं।यहाँ विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है।इसका प्रयोग हमसभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण-अधिगम में कैसे कर सकते हैं।
मिट्टी,लकड़ी,पत्थर,बांस,पत्ते,पलास पेड़ से लाह,पारंपरिक वाद्ययंत्रों,कद्दू/कोहड़े का खाल,जैविक अवशेष आदि कई शून्य या फिर अल्प निवेश के द्वारा कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम को सार्थक बना सकते हैं।बहुत-बहुत धन्यवाद।
हमारे क्षेत्र के प्रकृति से जुड़े होने की वजह से इन्ही से समन्धित खिलौना बनाते हैं।खास कर पत्तियों से,लकड़ी,बांस,आदि से ।जो बहुत आकर्षक भी लगते हैं।बच्चे इनसे जुड़ाव महसूस करते हैं।इसप्रकार के खिलौनों से बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है।मिट्टी से विभिन्न प्रकार के फल और सब्जी बनाते हैं।इससे विभिन्न प्रकार के कौशल का विकास होता है। KISHOR KUMAR ROY UHS.KATHGHARI ,DEOGHAR
ReplyDeleteहमारे यहां बच्चों के खिलौने के रूप में मिट्टी और मिट्टी से बने आकृतियां कपड़े एवं कड़ी से बने गुड़िया आदि का प्रयोग बच्चे खेलने तथा अपने ज्ञान को आगे बढ़ाने में उपयोग करते हैं । लकड़ी से बनी तीन पहिया गाड़ी बच्चों को चलने में सहायता करती है वही यह गति समन्वयक स्थापित करने में भी मदद करती है। बच्चे टूटे हुए चूड़ियों , पत्थर टूटे हुए कपड़े के टुकड़े आदि का भी प्रयोग विभिन्न प्रकार के खेल ले करते हैं। यह सभी लगभग कम दाम एवं अनुपयोगी चीजों से बने होते हैं। की सहायता से वे जहां अपने वातावरण से परिचित होते हैं इसके अलावा उनमें गत्यात्मक कौशल था तथा गणितीय सोच को न करने में भी सहायता मिलती है।
ReplyDeleteOur children are make some toyes from mud leaf ston etc these
ReplyDelete01:49
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,बांस,पत्ते जैसे इको-फ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित वैसे खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व-त्योहारों का चित्रण करता हो।साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षियों आदि से संबंधित खिलोने जिससे बच्चे भली-भांति परिचित हों
Jharkhand ek sundar state h.Is state me hme bohut sare khilona dekne ko milta hai.Bina kharch kiye hum prakite se lekar khilona bana sakte hai
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र के प्रकृति से जुड़े होने की वजह इन्हीं से संबंधित खिलौना बनाते हैं खासकर पतियों से, लकड़ी,बांस आदि से। जो बहुत ही आकर्षक भी लगते हैं। बच्चे इन से जुड़ाव महसूस करते हैं। इस प्रकार के खिलौनों से बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है। मिट्टी से विभिन्न प्रकार के फल और सब्जी बनाते हैं। इससे विभिन्न प्रकार के कौशल का विकास होता है।
ReplyDeleteमिट्टी, लकड़ी, बांस से बने खिलौने जिससे बच्चे जुड़ाव महसूस करते हैं| इससे बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है और विभिन्न कौशलों का विकास होता है|
ReplyDeleteमिट्टी, लकड़ी पत्ते, कागज जैसे इकोफ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित वैसे खिलौने जो स्थानीय संस्कृति एवं पर्व त्यौहार का चित्रण करते हैं। साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षिओ आदि से सम्बंधित खिलौने जिससे बच्चे भली भांति परिचित हों.
ReplyDeleteHamare Kshetra Prakriti se Jude hone ke Karan ISI sambandhit khilaune banate hain jaise Bans Patti Aadi se inhin sabse bacchon ko Kaushal Vikas Sambhav hai
ReplyDeleteबच्चे खिलौने के प्रति बडा आकर्षित होते हैं। जिससे वे अपने आस-पास में उपलब्ध मिट्टी, लकड़ी, बाँस, पते,फल,फूल, कंकड़ का प्रयोग बहुत अच्छी तरह से करने में माहिर होते हैं।क्योंकि वे खेल-खेल कर एवं दिखाकर, गिनती कर इसके कार्य कलाप को बतलाकर, प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से विभिन्न कौशलों के शिक्षण अधिगम कर सकते हैं।बच्चे खिलौने से स्थानीय संस्कृति तथा पर्व-त्योहार का चित्रण करते और अलग-अलग जानवरों, पक्षियों, वस्तुओं से संबंधित खिलौने जिससे बच्चे अपने-अपने तरीकों से अच्छी तरह परिचित होते हैं। DEOCHARAN ORAON,GUMS LALGANJ,LAPUNG,RANCHI
ReplyDeleteहमारे यहां बच्चे पत्ते और पुराने कपड़े से गुड़िया, मिट्टी से विभिन्न प्रकार के खिलौना, जानवर,फल बनाकर खेलते हैं बच्चे लकड़ी, बांस,फुल आदि से खिलौना बनाते हैं खाना बनाते हैं इससे बच्चे जुड़ाव महसूस करते हैं। इससे विभिन्न प्रकार के कौशल का विकास होता है।
ReplyDeleteबचपन से ही बच्चे खिलौने से जुड़े होते हैं, क्योकि ऐसा देखा गया है कि प्रत्येक बच्चा अपने घर में उनके अभिवावक व घर के अन्य सदस्य उनका मन बहलाते हैं व ज्ञान देने की कोशिश करते हैं| विद्यालय में उन बच्चों की खेल आधारित शिक्षा या यों कहें खेल-खेल में सीखने की ललक को विभिन्न प्रकृति से जुड़े खिलौने के साथ भाषा, गणित व अन्य विषय में विभिन्न खेल आधारित कार्य कलापों के द्वारा उनके साथ करके उनकी पढाई को आगे ले जाते हैं | हिमांशु, दुमका
ReplyDeleteआस-पास की सहज रूप से उपलब्ध वस्तुओं से स्व हस्त निर्मित खिलौने से बच्चों मे सृजनात्मक,रचनात्मक विकास की सम्भावनाओं तथा कौशल में वृद्धि स्वाभाविक होगी।
ReplyDelete
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र के प्रकृति से जुड़े होने की वजह से इन्ही से समन्धित खिलौना बनाते हैं।खास कर पत्तियों से,लकड़ी,बांस,आदि से ।जो बहुत आकर्षक भी लगते हैं।बच्चे इनसे जुड़ाव महसूस करते हैं।इसप्रकार के खिलौनों से बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है।मिट्टी से विभिन्न प्रकार के फल और सब्जी बनाते हैं।इससे विभिन्न प्रकार के कौशल का विकास होता है
मिट्टी, लकड़ी, बांस पत्तबने स्वहस्त निर्मित खिलौने जिससे बच्चे का जुड़ाव महसूस किया जा सकता है । इससे बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है / और विभिन्न कौशलो का विकास होता है ।
ReplyDeleteबांस,मिट्टी,कागज,विभिन्न प्रकार के पत्ते,पत्थर इत्यादि से बने हस्त निर्मित खिलोनों से बच्चों मे विभिन्न कौशल विकसित होते हैं।
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,बांस,पत्ते जैसे इको-फ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित वैसे खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व-त्योहारों का चित्रण करता हो।साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षियों आदि से संबंधित खिलोने जिससे बच्चे भली-भांति परिचित हों।
ReplyDeleteSonamani Soren
NPS-BERAHATU
Ghatsila
मिट्टी,लकड़ी,बांस से बने खिलौने जिससे बच्चे जुड़ाव महसूस करते हैं।इससे बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है और विभिन्न कौशलों का विकास होता है।
ReplyDeleteKhel Jise bacche Apne Man Se. Man Ke anusar, Anand ke liye Karte Hain Vahi Khel hai .Mitti Lakadi kagaj Bans se bane khilaune jisse bacche judav mahsus Karte Hain .Iske dwara Hamen bacchon ke vikasatmak pahlu ko udrit karne mein sahayata milati hai. Jaise Mitti ke Mitti Se fal Jaise Aam ,kela ,save, sarifa, Chhota Kursi ,gadi ka Aakriti banana bacchon ko ine chijon Ka Aakar samajhne Mein sahayata deta hai. kagaj se a NAV ,kamal ka phool, Dawat banvane se ,bacchon bacchon mein kagaj ke modane ,ungliyon ka activity sikhane mein, Main Bata deta hai Jis bacche Anand Aata Hai hai aur aur sikhane Padhne Mein Main Ruchi Lene Lagte Hain .
ReplyDeleteARCHNA SINHA UMS PACHFERI MERAL GARHWA
ReplyDeleteबच्चों को अभिरुचि खेल, खिलौने इत्यादि में रहती है तो इन्हें पढ़ाई आधारित खेल में गतिमान बनाने के लिए कागज़ , गत्ते, मिट्टी व अन्य इको फ्रेंडली वस्तुओं द्वारा विभिन्न आसानी खेल की चीजों का निर्माण कर रूचिकर पढ़ाई का वातावरण का निर्माण कर उनमें कला-कौशल का भी निर्माण आधारित शिक्षा नि:संदेह उत्पन्न की जा सकती है | हिमांशु, दुमका |
ReplyDeleteहमारा राज्य झारखंड सांस्कृतिक एवं कलात्मक रूप से बहुत ही समृद्ध है।यहां ग्रामिण क्षेत्रों में पुराने कपड़ों से कन्या पुतरी बनाने की प्राचीन परंपरा रही है।कन्या पुत्री का खेल बच्चों को अपने रीति रिवाजों एवं परंपराओं से जोड़ती है।इसंके साथ ही मिट्टी एवं बांस से विभिन्न तरह के खिलौने बनाये जाते हैं।ये खिलौने बच्चों को अपने रीति रिवाजों एवं परंपराओं से जोड़ती हैं।साथ ही बच्चों में बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान की अवधारणा को मजबूत बनाने में मदद मिलती है।
ReplyDeleteअनिल तिवारी
सहायक शिक्षक
रा म विद्यालय दुलदुलवा, मेराल, गढवा।
हमारे देश में विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है इनका उपयोग हम शिक्षकों द्वारा विभिन्न प्रत्य. कौशल के शिक्षण अधिगम में कर सकते जैसे मिट्टी के बर्तन लकड़ी बांस के खिलौने मिट्टी के मनी बैंक आदि उदाहरण है जिनमें अल्प निवेश के द्वारा कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम को सार्थक बना सकते हैं धन्यवाद
ReplyDeleteहमारे झारखण्ड में लोकनृत्य की भाव भंगिमा वाले कठपुतली, बांस लकड़ी इत्यादि से निर्मित खिलौने, पत्ता बांस की कमाची से तथा मिट्टी से निर्मित खिलौने का प्रयोग ज्यादातर किया जाता है।
ReplyDeleteइसके द्वारा हम प्रकृति प्रेम तथा परिवेश के प्रति जागरूक नागरिक बनाने में मदद ले सकते हैं '
हमारे राज्य में बच्चे मिट्टी बांस ,पुराने कपड़े ,लकड़ी आदि से खिलौना बनाते हैं और खेलते हैं इससे उनमें सृजनात्मकता , रचनात्मकता आदि का विकास होता है एवं पढ़ाई भी जारी रहता है । इसमें खर्च शून्य के बराबर होता है। बच्चे ठीक-ठाक सीखते भी है और उसका मनोरंजन भी होता है।
ReplyDeleteMitti, lakri, bans se bane khilaune jisse bacche juraw mehsush karte hai. isse bacchon ko s
ReplyDeleteikhane me madad milti aur bibhinn kaushlon ka vikash hota hai
मिट्टी, बाँस,लकडी़, पत्ते जैसे वस्तुओं से खिलौने बनाकर बच्चे अपने स्थानीय संस्कृृतिएवं पर्व त्योहारों का चितर्ण करता हो| तथा बच्चे कई तरह के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम को सार्थक बना सकते है|
ReplyDeleteहमारे राज्य के हमारे क्षेत्र के बच्चे कन्या-पुत्री का खेल खेलते हैं। कन्या-पुत्री में अलग-अलग रंगों के कपड़ों को लपेटकर गुड्डे-गुड्डियोन का अनेक सुंदर-सुंदर रुप दिया जाता है। बच्चे उन गुड़ियों के साथ शादी विवाह,राजा-रानी आदि खेल खेला जाता है। बच्चे आनंदमग्न होकर क्षेत्रीय भाषाओं में गीत गाते हैं, नाचते हैं। इस तरह के खेल को शिक्षा के साथ जोड़कर शिक्षण को मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक बनाया जा सकता है। बच्चे चुड़ियाला, मिट्टी के बर्तन, एवं घरों की दीवारों पर सुन्दर- सुन्दर चित्रकारी में बड़ों को सहयोग करते हैं। इसे शिक्षा के साथ चित्रकारी के रुप में विषयवस्तु से जोड़ा जा सकता है। इससे बच्चों में संप्रेषण, समस्या-सामाधान, आत्म-अभिव्यक्ति,सूक्ष्मगत्यात्मक कौशल, सामाजिक भावनात्मक एवं सृजनात्मकता को बढ़ावा मिलता है।
ReplyDeleteसुरेन्द्र कुमार
उ.म.विद्यालय:-घोड़दाग,
प्रखण्ड:-काण्डी,(गढ़वा)
मेरे विचार से अपने राज्य स्वदेशी और पारंपारिक खिलौना आधारित शिक्षण को अपना कर कम लागत और सरलता से बच्चों में मनोरंजक एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षण प्रदान कर सकते हैं । हमारे स्वदेशी खिलौनों का प्रयोग भारतीय संस्कृति और लोकाचार से मेल करती है । राज्य विशेष में क्षेत्रीय संस्कृति से जुड़ाव एवं बच्चों की आयु , विकास तथा सुरक्षा के अनुकूल है बच्चों में मनप्रेरणा और अन्य जीवन कौशल विकसित करने में मदद मिलती है । सामान्य तौर पर स्वदेशी खिलौने बनाने में लकड़ी, बांस, मिट्टी, पत्ते, रूई, कपड़े, अखबार और अन्य व्यर्थ सामग्री का प्रयोग करते है। इसमें बच्चों का रंग , बुनावट, आकार , आकृति,सेट-पजल, नेस्टिंग डॉल्स, से गणितीय प्रत्यय-क्रमबद्धता, गिनती, छोटा -बड़ा प्रत्यय, स्थानिक अवधारणा आदि सीखने को सुदृढ़ करने के लिए किया जा सकता है। जिससे समस्या समाधान , सृजनता, कहानी बनाना, आत्म अभिव्यक्ति सूक्ष्म गत्यात्मक कौशल को विकसित करने में सहायता करता है । .. धन्यवाद ।
ReplyDeleteप्रा.वि.भैरवपुर(धालभूमगढ़)
पूर्वी सिंहभूम, झारखंड ।
Children in our state and locality usually use different materials available in the surrounding to make different types of toys and other useful things.They use clay,plants, plastic, Tyre etc-etc.These activities enhance their creativity and also their learning.
ReplyDeleteमिट्टी लकड़ी बांस पत्ते जैसे इको फ्रेंडली वास्तु से निर्मित खिलौने स्थानीय संस्कृति parb त्योहार का चित्रण करते हैं सब से परिचित होते हैं zero investment रहता बच्चे व्यस्त रहते हैं साथ ही नया जानकारी प्राप्त करते हैं
ReplyDeleteबच्चे खेल खिलौनों के प्रति बड़े ही आकर्षक होते हैं इसलिए उन्हें प्रकृति में पाए जाने वाले वस्तु जैसे मिट्टी, लकड़ी, बांस जैसे वस्तुओं से निर्मित खिलौने पर आधारित खेल के माध्यम से बच्चों को सिखाया जाना चाहिए।
ReplyDelete18:39
ReplyDeleteमिट्टी के खिलौनों में विभिन्न प्रकार के जानवर और ग्वालिन मिलते हैं जिनका प्रयोग हम जानवरों की आकृति तथा नाम बताने मे कर सकते है। इन सब के अलावा छोटे छोटे मिट्टी के बरतन तथा अंधरा चुका भी बनाया जाता है जिससे बच्चे खाना पकाना सीखते हैं तथा पैसे की बचत करना सीखते हैं।
हमारा झारखंड प्रदेश हरियाली से भरा प्रदेश है। अतः यहां पेड़ पौधों के विभिन्न अंगों से बच्चे स्वयं विभिन्न प्रकार के खिलौने बनाकर खेलते हैं जिसमें उन्हें समस्या समाधान, सृजनात्मकता, सूक्ष्मा गत्यात्मक कौशल, आत्म अभिव्यक्ति आदि। गुणो और कौशल का विकास होता है
ReplyDeleteChildren in our state and locality always use different materials available in the surrounding to make different types of toys and other useful things .they use clay , plants , plastics, tyres , etc
ReplyDeleteBacche khilaune ke Prati ruchikar Hote Hain Lakadi Mitti Aadi vastuon se vibhinn Prakar ke khilaune Banakar use ginti AVN vastuon ke pahchan kara sakte hain
ReplyDeleteझारखण्ड एक अनुपम राज्य हैं।यहाँ विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है।इसका प्रयोग हमसभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण-अधिगम में कैसे कर सकते हैं।
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,पत्थर,बांस,पत्ते,पलास पेड़ से लाह,पारंपरिक वाद्ययंत्रों,कद्दू/कोहड़े का खाल,जैविक अवशेष आदि कई शून्य या फिर अल्प निवेश के द्वारा कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम को सार्थक बना सकते हैं।बहुत-बहुत धन्यवाद।
In Jharkhand soil, bamboo, leaf etc are used to make toys. These can be used as TLM
ReplyDeleteहमारे यहां बच्चे पत्ते और पुराने कपड़े से गुड़िया, मिट्टी से विभिन्न प्रकार के खिलौना, जानवर,फल बनाकर खेलते हैं !बच्चे लकड़ी, बांस,फुल आदि से खिलौना बनाते हैं ,इससे बच्चे जुड़ाव महसूस करते हैं। इससे उनके विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास होता है।
ReplyDeleteखेल विधि के दौरान यदि हम स्वनिर्मित खिलौने जो मिट्टी,पुराने कपड़े,रद्दी ,लकड़ी,बांस इत्यादि से बने खिलौने का प्रयोग करते हैं तो बच्चे उनसे एक अलग आत्मिय जुड़ाव महसुस करते हैं चूकी इन सब चीजों से वह प्रतिदिन रुबरु होता है जिसके कारण वो विषय वस्तु को आसानी से आत्मसात कर पाता है |
ReplyDeleteशिक्षण के समय बाँस, मिट्टी, रूई, कपडे, लकड़ी आदि से बने स्वदेशी खिलौने का उपयोग बहुत सी गतिविधियों में किया जा सकता है जैसे- पर्व-त्योहार, पशु-पक्षी की जानकारी, फल, सब्जियों, क्रमबद्धता,छोटा-बड़ा बगैर की जानकारी सरलता से दिया जा सकता है ।
ReplyDeleteझारखंड की संस्कृति बहुभाषी एवं बिभिन्न परंपराओं का एक अद्भुत संगम है. यहाँ पहाड़ तथा जंगलों की अधिकता के कारण बच्चे प्रकृति से जुड़े होते हैं. इसलिए बच्चे प्रकृति से जुड़े खिलोने जैसे मिट्टी, लकड़ी,बांस फूल पत्ति आदि से बने खिलोने अधिक पसंद करते हैं और ये आसानी से प्राप्त भी किया जा सकता है. इसे हम बच्चों को तरह तरह के खिलोने घर से बनाके लाने को कह सकते हैं. इसके उपयोग से वे अपने अधिगम कौशल, सृजनात्मक कौशल, भावात्मक कौशल, गत्यात्मक कौशल, भाषा सम्प्रेषण आदि को बढाने में सक्षम हो सकतें है.
ReplyDeleteमिट्टी, लकड़ी, बांस, पत्ते जैसे इकोफ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित वैसे खिलौने जो स्थानीय संस्कृतिऔर पर्व त्योहारों को चित्रण करता है साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षियों आदि से संबंधित खिलौने जिससे बच्चे भली भांति परिचित हो।
ReplyDeleteSUBHADRA KUMARI
ReplyDeleteRAJKIYAKRIT M S NARAYANPUR
NAWADIH BOKARO
स्वदेशी खिलौने के क्षेत्र में हम अपने छात्र- छात्राओं के रुचि के अनुरूप जो सामग्री आसानी उपलब्ध होता है।
जैसे-पत्ता, लकड़ी, मिट्टी, गिट्टी,आदि से खिलौने बनवाते हैं। उदाहरण-पत्ते से विभिन्न प्रकार के चिड़िया या जानवरों की आकृति , मिट्टी से वाहन या वर्तनो की आकृति आदि। इसके माध्यम से बच्चों में विभिन्न प्रकार के कौशल का विकास आसानी से होता है।
धन्यवाद
SUBHADRA KUMARI
ReplyDeleteRAJKIYAKRIT M S NARAYANPUR
NAWADIH BOKARO
स्वदेशी खिलौने के क्षेत्र में हम अपने छात्र-छात्राओं के रुचि के अनुरूप जो सामग्री आसानी से उपलब्ध होता है। जैसे-पत्ता, लकड़ी, मिट्टी, गिट्टी आदि से संबंधित गतिविधियों द्वारा खिलौने बनवाते हैं। उदाहरण-पत्ते से विभिन्न प्रकार के चिड़िया या जानवरों का आकृति, मिट्टी से वाहन या वर्तनो की आकृति आदि। इसके माध्यम से बच्चों में विभिन्न प्रकार के कौशल का विकास आसानी से होता है।
धन्यवाद
मिट्टी , बास, पते की खिलौने से झारखंड राज्य की संस्कृति को समझे में बच्चों को सहुलियत होती है
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,बॉस से बने खिलौने जिससे बच्चे जुड़ाव महसूस करते हैं। इससे बच्चों को सीखने में मदद मिलती है। और विभिन्न कौशलों का विकाश होता है।
ReplyDeleteBachchon ka khilono ke prati atyant lagav hota hai.Mitti, lakri, Baans, patthar aur patton se bane khilono se unko sikhne me madad milti hai.Isse unka sikchan adhigam sambhav ho pata hai aur unka sarvangin vikas hota hai.
ReplyDeleteअपने छेत्र के बने खिलौने से बच्चा खेल के माध्यम से यहां के सांस्कृतिक वरासतों के बारे में बचपन से ही सीख सकते हैं।
ReplyDeleteऔर यह सस्ता और सुगम हो सकता है।
मिट्टी, लकड़ी, बांस, पत्ते जैसे इको- फ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित वैसे खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व त्योहारों का चित्रण करता हो। साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षियों आदि से संबंधित खिलौने जिससे बच्चे भली भांति परिचित हो।
ReplyDeleteझारखंड की संस्कृति बहुभाषी एवं बिभिन्नझारखंड की संस्कृति बहुभाषी एवं बिभिन्न परंपराओं का एक अद्भुत संगम है. यहाँ पहाड़ तथा जंगलों की अधिकता के कारण बच्चे प्रकृति से जुड़े होते हैं. इसलिए बच्चे प्रकृति से जुड़े खिलोने जैसे मिट्टी, लकड़ी,बांस फूल पत्ति आदि से बने खिलोने अधिक पसंद करते हैं और ये आसानी से प्राप्त भी किया जा सकता है. इसे हम बच्चों को तरह तरह के खिलोने घर से बनाके लाने को कह सकते हैं. इसके उपयोग से वे अपने अधिगम कौशल, सृजनात्मक कौशल, भावात्मक कौशल, गत्यात्मक कौशल, भाषा सम्प्रेषण आदि को बढाने में सक्षम हो सकतें है. परंपराओं का एक अद्भुत संगम है. यहाँ पहाड़ तथा जंगलों की अधिकता के कारण बच्चे प्रकृति से जुड़े होते हैं. इसलिए बच्चे प्रकृति से जुड़े खिलोने जैसे मिट्टी, लकड़ी,बांस फूल पत्ति आदि से बने खिलोने अधिक पसंद करते हैं और ये आसानी से प्राप्त भी किया जा सकता है. इसे हम बच्चों को तरह तरह के खिलोने घर से बनाके लाने को कह सकते हैं. इसके उपयोग से वे अपने अधिगम कौशल, सृजनात्मक कौशल, भावात्मक कौशल, गत्यात्मक कौशल, भाषा सम्प्रेषण आदि को बढाने में सक्षम हो सकतें है.
ReplyDeleteझारखण्ड एक अनुपम राज्य हैं।यहाँ विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है।इसका प्रयोग हमसभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण-अधिगम में कैसे कर सकते हैं।
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,पत्थर,बांस,पत्ते,पलास पेड़ से लाह,पारंपरिक वाद्ययंत्रों,कद्दू/कोहड़े का खाल,जैविक अवशेष आदि कई शून्य या फिर अल्प निवेश के द्वारा कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम को सार्थक बना सकते हैंRavindra prasad mahto ups haraiya tandwa chatra jharkhand
मिटटी से बने खिलौने आसानी से उपलब्ध हो सकता है। इसका उपयोग भी बार बार हो सकता है।
ReplyDeleteमिट्टी लकड़ी बांस से बने खिलौने जिसमें बच्चे जुड़ाव महसूस करते हैं इसमें बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है और विभिन्न कौशलों का विकास होता है।
ReplyDeleteमिट्टी,बांस, लकड़ी,पत्ते,पंख आदि स्थानीय रुप से उपलब्ध सामग्रियों से बने खिलौने बच्चों को काफी प्रचलित लगती है। विभिन्न प्रकार के फल , जानवर बनाकर उसका नाम आकृति से परिचित कर सकते हैं। साथ ही उनके सामाजिक सांस्कृतिक एवं स्थानीय परिवेश की जानकारी दी जा सकती है।
ReplyDeleteमिट्टी, लकड़ी, बांस, पत्ते जैसे इको- फ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित वैसे खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व त्योहारों का चित्रण करता हो। साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षियों आदि से संबंधित खिलौने जिससे बच्चे भली भांति परिचित हो।
ReplyDeleteकालेश्वर प्रसाद कमल
प्रा विधालय झण्डापीपर गादी (द)
धनवार गिरिडीह
हमारा राज्य झारखंड प्राकृतिक,सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से एक समृद्ध राज्य है|यहां प्रकृति से जुड़े बहुत सारे खेल /खिलौना का प्रयोग बच्चों के शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में उपयोग किया जाता है,जैसे -पत्तों ,मिट्टी ,पौधे के तने ,कपड़ों, बांस इत्यादि से बनी सामग्रियां |मिट्टी से बने बहुत सारी कलाकृतियां, बर्तन,मूर्तियों का प्रयोग हम शिक्षण अधिगम के लिए कर सकते हैं| बच्चे प्रारंभिक अवस्था में इन सामग्रियों को बनाने में स्वयं बहुत रूचि लेते हैं,जो उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम बन जाता है| इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है, पूर्व गणितीय अवधारणाओं को मजबूती मिलती है और भाषाई तथा पर्यावरणीय समझ भी विकसित होती है| भाषा,गणित और पर्यावरण की कक्षा में बने खेल खिलौनों के कोने में हम इन सामग्रियों प्रदर्शन या उपयोग लर्निंग आउटकम्स के लिए कर सकते हैं|
ReplyDeleteझारखंड राज्य में वन संपदा की अधिकता के कारण बच्चे प्रकृति से काफी जुड़ाव महसूस करते हैं।इसका प्रयोग हम सभी शिक्षकों द्वारा विभिन्न कौशलों के शिक्षण अधिगम में कर सकते हैं।स्वदेशी खिलौने बनाने में लकड़ी,बाँस,,पत्ते,मिट्टी,पत्थर,रूई आदि कई शून्य निवेश के द्वारा तरह-तरह के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम के सार्थक बना सकते हैं।
ReplyDeleteबच्चे खिलौने के प्रति बहुत ज्यादा आकर्षित होते हैं। चाहे वह बाजार का खिलौना हो या गांव देहात में मिट्टी, पत्तियों, लकड़ी आदि के द्वारा बनाया जाने वाला हो। इन सब खिलौनों से बच्चों में सुक्ष्म गत्त्यातमक कौशल, सृजनात्मक कौशल, भावनात्मक कौशल आदि का विकाश होता है।
ReplyDeleteICT upkaran ke antargat radio,TV, video, DVD, landline ya mobile phone satellite Pranali computer Videocon facing email or blocks Aadi Sabhi network AVN software Aate Hain ine Sabhi upkaranon ka upyog Ham duras Raksha ke dauran kar Shiksha adhigam prakriya ko interactive Jaise bacchon ke bich radio ka shaikshik karykram TV per a raha hai shaikshik karykram ko bacchon ke bich dikhayenge ya mobile ke Madhyam Se bacchon Ke padhaayenge to to bacche samajhne mein bacche samajhne mein Ruchi Lenge Iske alave mobile se bacchon ko nikal kar Jankari ki baten batai Ja sakti hai yadi समाल Samajh Mein Na Aaye To Videocon pressing ya email Bhi Ek Aisa Madhyam Hai Jiski sahayata se Chhatra ko sikhai ja rahi Mul samagri ko samajhne Mein madad milegi Archana Sinha ums Pachpedi meral Garhwa Jharkhand thank you
ReplyDeleteमिट्टी, रुई और रंगीन कागज या कपड़े के छोटे छोटे टूकड़े को मिलाकर बच्चों के साथ मिलकर रुचिकर खिलौने बनाए जा सकते हैं जिसका उपयोग 3 से 9 वर्ष के बच्चों में बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान कौशल विकास में किया जा सकता है|
ReplyDeleteमिट्टी, लकड़ी,बांध आदि से शून्य निवेश अथवा अल्हप निवेश से बहुत सारे पारंपरिक खिलौने बना सकते हैं तथा बच्चों का ज्ञान बर्धन कर सकते हैं।
ReplyDeleteझारखण्ड एक अनुपम राज्य हैं।यहाँ विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है।इसका प्रयोग हमसभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण-अधिगम में कैसे कर सकते हैं।
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,पत्थर,बांस,पत्ते,पलास पेड़ से लाह,पारंपरिक वाद्ययंत्रों,कद्दू/कोहड़े का खाल,जैविक अवशेष आदि कई शून्य निवेश या फिर अल्प निवेश के द्वारा कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम को सार्थक बना सकते हैं।
हमारा झारखंड प्रदेश हरियाली से भरा प्रदेश है। अतः यहां पेड़ पौधों के विभिन्न अंगों से बच्चे स्वयं विभिन्न प्रकार के खिलौने बनाकर खेलते हैं जिसमें उन्हें समस्या समाधान, सृजनात्मकता, सूक्ष्मा गत्यात्मक कौशल, आत्म अभिव्यक्ति आदि। गुणो और कौशल का विकास होता है.
ReplyDeleteकच्चे खिलौने यानी मिट्टी के खिलौने,लकड़ी,बांस और पत्तियों यानी इको-फ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित खिलौने तथा स्थानीय संस्कृति एवं पर्व-त्योहारों को चित्रण करने वाले खिलौने, साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षियों आदि से संबंधित खिलौनों जिससे बच्चे भली-भांति परिचित हों उनका उपयोग करना अत्यंत ही लाभदायक होगा।
ReplyDeleteहमारे स्वदेशी खिलौनों का प्रयोग भारतीय संस्कृति और लोकाचार से मेल करती है । राज्य विशेष में क्षेत्रीय संस्कृति से जुड़ाव एवं बच्चों की आयु , विकास तथा सुरक्षा के अनुकूल है बच्चों में मनप्रेरणा और अन्य जीवन कौशल विकसित करने में मदद मिलती है । सामान्य तौर पर स्वदेशी खिलौने बनाने में लकड़ी, बांस, मिट्टी, पत्ते, रूई, कपड़े, अखबार और अन्य व्यर्थ सामग्री का प्रयोग करते है। इसमें बच्चों का रंग , बुनावट, आकार , आकृति,सेट-पजल, नेस्टिंग डॉल्स, से गणितीय प्रत्यय-क्रमबद्धता, गिनती, छोटा -बड़ा प्रत्यय, स्थानिक अवधारणा आदि सीखने को सुदृढ़ करने के लिए किया जा सकता है।
ReplyDeleteअपने राज्य झारखंड के प्रसिद्ध स्वदेशी खिलौने मुख्यतः यहां की लोक भावना तथा आवश्यकता से जुड़ा है जो बच्चों से लेकर पूर्व-प्राथमिक/प्राथमिक स्कूली छात्र-छात्राएं अपने खेल के दरमियान अक्सर जाने अनजाने में अधिगम करते हैं। उदाहरण के तौर पर सिंहभूम की स्वदेशी खिलौनों को ही लेते हैं :
ReplyDeleteयहां के बच्चे मुखौटा,मिट्टी का बनाया हुआ बर्तन,पतली घास से बनाई गई टोकरी,खजूर/ताड़/नारियल के पत्तों की चटाई,लकड़ी की गुड़िया,मिट्टी के घरेलू व्यवहार की भांति सामान आदि को अपने खेल में शामिल करते हैं और सक्रियता के साथ उन्हें प्रयोग भी करते हैं।
हम शिक्षकद्वय अपने विद्यालय में हमारे बच्चों को उन खिलौनों से भी खेलने हेतु प्रोत्साहित करते हैं तथा आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं,जिससे उनमें मुखोटे के प्रयोग से भाषा विकास (छऊ नृत्य के अनुकरण से),स्टेज प्रदर्शन पर आरूढ़ की प्रस्तुति,बोलने का साहस,कथन शैली का विकास,लोक साहित्य की जानकारी में वृद्धि,दूसरों को प्रेरित करने में सहायक सिद्धि, मांस पेशियों का विकास आदि होता है।
मिट्टी के बर्तनों को देख प्रयोग विधि, निर्माण विधि तथा नए-नए डिजाइन प्रदान करने हेतु सोच का विकास में सहायक और साथ ही संख्यात्मकता का विकास में भी सहायक सिद्ध होता है।
पतली घास से बनी टोकरी को खिलौने के रूप में व्यवहार करने से हस्तशिल्प की और रूचि में रुझान बढ़ती है,आवश्यक पदार्थों के बारे में सोचने में सहायता मिलती है ,विभिन्न आकृति प्रदान करने में तथा निर्माण में प्रेरणा की प्राप्ति होती है। आकृति की जानकारी लेने में रुचि की वृद्धि में सहायक होता है एवं सूक्ष्म मांसपेशियों का विकास भी होता है।
चटाई का प्रयोग से झारखंड की पहचान और अस्मिता पर गर्व का अनुभव करता है। चटाई में बनी खांचों ( घरों/ बक्सों)को देख आकृतियों की पहचान तथा गिनती एवं क्षेत्र (क्षेत्रफल)की अंदाजा का विकास भी होता है।
गुड़ियों से खेलने पर विभिन्न व्यक्तित्वों की पहचान, आकृति प्रदान करने हेतु चिंतन,संवाद शैली का विकास एवं संख्यात्मक ता का भी विकास होता है।
मिट्टी के सामानों का प्रयोग से संख्यात्मकता का विकास,आवश्यक सामग्रियों की पहचान,नाम से परिचय, उनके प्रयोग तथा निर्माण हेतु प्रेरित होते हैं। साथ ही सूक्ष्म मांस पेशियों का विकास भी होता है।
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ReplyDeleteहमारे राज्य झारखंड में बाल सुलभ खेलों और खिलौनों का समृद्ध इतिहास रहा है। हम अपने बचपन में कई तरह के खेल और खिलौने प्रयोग में लाया करते थे, जैसे गुड़िया-पुतली, चिंया-चूड़ी, छू-कितकित, सत घरवा, गद गोटी, डोल पात, आदि।
ReplyDelete1)गुड़िया-पुतली या कनिया-गुडरो छोटी और बड़ी बच्चियों के बीच बहुत ही लोकप्रिय खेल और खिलौने थे। इनकी लोकप्रियता आज भी है किंतु मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक गेम्स के कारण बच्चे इस ओर अब कम ही रुझान रखते हैं। कनिया गुडरो, घर के पुराने कपड़ों या नए कपड़ों के कतरन की मदद से तैयार की जाती और इसमें पूरे परिवार के पुतले बनाए जाते हैं जैसे माता-पिता, वर-कन्या, भाई-बहन, पंडित-नाई, यानी गुड़ियों का पूरा परिवार बनाकर खेलते। गर्मियों के दिनों में बच्चे इनका विवाह कर करवाते। एक टोले की बच्चियां कन्या पक्ष और दूसरे टोले की वर पक्ष के होते। विवाह के सारे रस्म अदा किए जाते और कई दिनों तक कार्यक्रम चलते। विवाह के दिन बड़ी महिलाएं भी गीत संगीत के कार्यक्रम सम्मिलित होती और घरों से कुछ कुछ चना चबेना जुटाकर कुछ भोजन का भी प्रबंध होता था। ये गतिविधियां खेल स्थानीय रीति रिवाजों से, लोकगीतों से और विविध संस्कारों से बच्चों को अवगत कराने वाली थीं।
2) चियां चूड़ी:- यह बच्चों के बीच एक लोकप्रिय खेल रहा है। इमली के बीजों को एक ओर से घीस कर पासे बनाए जाते हैं और पांच गुणा पांच घर का बोर्ड जमीन पर लकड़ी के कोयले या गेरु या दूधी मिट्टी से बनाए जाते और चूड़ी की गोटी बना कर खेल होता। दो खिलाड़ी या चार खिलाड़ी अलग अलग या दो दो के टीम बनाकर बच्चे खेलते। इस खेल से बच्चों में हाथ और आंखों का समन्वय,गिनने का कौशल और धैर्य का विकास होता।
3)सत घरवा एक बेहद लोकप्रिय खेल रहा है, इस खेल में दो खिलाड़ी होते और जमीन में सात सात गोल-गोल गड्ढे बनाते, उन गड्ढों को लीप कर चिकना रखा जाता। हर गड्ढे में बारह-बारह चिकने चिकने पत्थरों की गोटियों होती। इस खेल से बच्चों में सहज ही गिनती और जोड़ घटाव, अनुमान लगाना, रिजनिंग आदि कौशल विकसित हो जाते।
4) डोल पात, थोड़े बड़े बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय खेल था। इस खेल में बच्चे कम ऊंचाई वाले पेड़ों पर चढ़ते और कूदकर एक निर्धारित स्थान पर रखे डंडे को दूर फेकते। दूसरा खिलाडी उस डंडे को लेकर आता और निर्धारित स्थान पर रखकर पेड़ पर चढ़ कर पहले पक्ष के बच्चे को छूता। अगर उसके छूने से पहले पहला बच्चा पेड़ से कूद कर डंडे को फिर से उठा कर दूर फेंक देता तो चोर बना बच्चा फिर डंडे को लेकर आता और यह खेल जारी रहता। यदि चोर बना बच्चा दूसरे बच्चे को छू लेता तो इस बार दूसरा बच्चा चोर बनता और खेल आगे बढ़ता।
5) छू कितकित :- यह जमीन पर कई तरह के खाने बनाकर खेला जाता है। इस खेल में खपडे़ के टुकड़े (झिकटी) का प्रयोग होता है खिलाड़ी एक टांग पर कूद कूद कर पांव से झिकटी ढकेल कर एक खाने से दूसरे खाने तक ले जाते हैं, साथ ही बिना सांस टूटे कित कित बोलते रहते हैं। जो खिलाड़ी पहले घर से शुरू कर आखिरी घर तक ले जाता है वह अपनी पसंद का एक घर जीत लेता है। बड़ा इंगेजिंग, मजेदार और स्टैमिना बनाने वाला खेल है यह।
ऐसे ही अन्य अनेक खेल और खिलौने रहे हैं जो मज़े मज़े में, अनेक कौशलों और क्षमताओं के विकास में सहायक होते हैं।
हमारे क्षेत्र में मिट्टी से बने खिलौने पाए जाते हैं इसके अलावा लकड़ी बांस आदि से भी खिलौने नए जाते हैं जो प्रकृति प्रदत होते हैं इसके अलावा कागज कपड़ा आदि से भी खिलौने बनाए जाते हैं इनसे बने खिलौने सस्ते एवं आकर्षक होते हैं इन खिलौनों के द्वारा बच्चे अपने मनोरंजन के साथ बौद्धिक विकास करते हैं जो उन्हें सरलता से प्राप्त होती है खिलौना सीखने का एक सशक्त माध्यम है इसके द्वारा शरीरिक एवं मानसिक विकास होता है जो बच्चों की अधिगम प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है। धन्यवाद
ReplyDeleteANIL KR SINGH
AMS RANCHI ROAD, RAMGARH
हमारे क्षेत्र में मिट्टी से बने खिलौने पाए जाते हैं ।इसके अलावा लकड़ी बांस आदि से भी खिलौने बनाए जाते हैं ।जो प्रकृति प्रदत होते हैं ।इसके अलावा कागज ,कपड़ा आदि से भी खिलौने बनाए जाते हैं ।इनसे बने खिलौने सस्ते एवं आकर्षक होते हैं ।इन खिलौनों के द्वारा बच्चे अपने मनोरंजन के साथ -साथ बौद्धिक विकास करते हैं ,जो उन्हें सरलता से प्राप्त होती है, खिलौना सीखने का एक सशक्त माध्यम है ।इसके द्वारा शारीरिक विकास भी होता है जो हमारे लिए महत्वपूर्ण है
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,बांस,पत्ते जैसे इको-फ्रेंडली वस्तुओं से निर्मित वैसे खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व-त्योहारों का चित्रण करता हो।साथ ही विभिन्न जानवरों, पक्षियों आदि से संबंधित खिलोने जिससे बच्चे भली-भांति परिचित हों।MANOJ THAKUR RUPG MS CHANAIGIR LESLIGANJ PALAMAU JHARKHAND
ReplyDeleteइसमें कोई दो राय नहीं कि बच्चों को खिलौनों में बहुत मजा आता है। चाहे वह बाजार में खिलौना हो या ग्रामीण इलाकों में खिलौना, इसे मिट्टी, पत्ते, लकड़ी आदि से बनाया जा सकता है। ये सभी खिलौने बच्चों को रचनात्मकता, भावनात्मक कौशल आदि विकसित करने में मदद करते हैं।
ReplyDeleteबच्चों के अधिगम विकास के लिए खिलौने काफी महत्वपूर्ण है हमारे यहां का क्षेत्रीय खिलौना गुड्डा गुड़िया है जिससे बच्चों में संवाद विकसित होता है इसके अतिरिक्त बच्चे रसोई की सामग्रियों वाले खिलौनों आदि से खेलते हैं जिससे उनमें ज्यामितीय आकृतियों की समझ है एवं प्रबंधन का बोध विकसित होता है
ReplyDeleteहमारे राज्य के हमारे क्षेत्र के बच्चे कन्या-पुत्री का खेल खेलते हैं। कन्या-पुत्री में अलग-अलग रंगों के कपड़ों को लपेटकर गुड्डे-गुड्डियोन का अनेक सुंदर-सुंदर रुप दिया जाता है। बच्चे उन गुड़ियों के साथ शादी विवाह,राजा-रानी आदि खेल खेला जाता है। बच्चे आनंदमग्न होकर क्षेत्रीय भाषाओं में गीत गाते हैं, नाचते हैं। इस तरह के खेल को शिक्षा के साथ जोड़कर शिक्षण को मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक बनाया जा सकता है। बच्चे चुड़ियाला, मिट्टी के बर्तन, एवं घरों की दीवारों पर सुन्दर- सुन्दर चित्रकारी में बड़ों को सहयोग करते हैं। इसे शिक्षा के साथ चित्रकारी के रुप में विषयवस्तु से जोड़ा जा सकता है। इससे बच्चों में संप्रेषण, समस्या-सामाधान, आत्म-अभिव्यक्ति,सूक्ष्मगत्यात्मक कौशल, सामाजिक भावनात्मक एवं सृजनात्मकता को बढ़ावा मिलता
ReplyDeleteuna Singh Ranchi 8 March 2022हमारे क्षेत्र के प्रकृति से जुड़े होने की वजह से इन्ही से समन्धित खिलौना बनाते हैं।खास कर पत्तियों से,लकड़ी,बांस,आदि से ।जो बहुत आकर्षक भी लगते हैं।बच्चे इनसे जुड़ाव महसूस करते हैं।इसप्रकार के खिलौनों से बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है।मिट्टी से विभिन्न प्रकार के फल और सब्जी बनाते हैं।इससे विभिन्न प्रकार के कौशल का विकास होता है।
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में बच्चे प्रकृति से बड़ा लगाओ रखते हैं जिसके कारण प्रकृति प्रदत वस्तुओं से संबंधित खिलौने ही बनाते हैं खासकर पतियों लकड़ी बांस मिट्टी से बच्चों का जुड़ाव ज्यादा होने के कारण इन्हीं से संबंधित खिलौना बनाते हैं इस प्रकार के खिलौनों से बच्चों को सीखने में मदद मिलती है और विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास उनके अंदर होता है
ReplyDeleteझारखंड राज्य में अनेकों तरह के खिलौने और गेम्स प्रचलित है। यहां के खिलौनों में बांस और लाह के खिलौनों का अत्यधिक महत्व है। जिससे विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाई जाती है। इन खिलौनों को विभिन्न रंगों में रंगा जाता है। बच्चे देखकर आकर्षित होते हैं। इन खिलौनों का उपयोग बच्चों के विभिन्न कौसलों को विकसित करने में किया जा सकता है। लाह से बनी गुड़िया और बांस से बनी गुड़िया और अन्य प्रकार के खिलौने बच्चों को काफी आकर्षित करते हैं। यहां के गेम्स में गोबर लाठी, आसपास, कंचा, बुढ़िया चू इत्यादि प्रसिद्ध हैं ।
ReplyDeleteधन्यवाद
अंजय कुमार अग्रवाल
मध्य विद्यालय कोयरी टोला, रामगढ़
bachhe ke adhigam ke vikas ke liye khilona mahatyapurn hota.hai kyonki bachhe khel pasand karye.hai tatha khrtrio khilona se bachhe parichit rahte hai unka ruchi badta hai isme buniyadi siksa ka.vikas hota hai
ReplyDeleteहमारा विद्यालय वन क्षेत्र से जुड़ा है!जहां विभिन्न प्रकार के फूल-पत्ती अलग-अलग मौसम में मिलते रहते हैं | विद्यालय के बच्चे फूलों को आपस में गूँथते हैं। जो की बहुत ही आकर्षक एवं सुंदर हुआ करता है। बच्चे इन फूल पत्तियों से अनेक प्रकार की वस्तुएं बनाते हैं। इससे बच्चे प्रकृति से जुड़ा का अनुभव करते हैं।
ReplyDeleteइस प्रकार के क्रियाकलाप से बच्चे आपस में प्रभावशाली संप्रेषण करते हैं ।वे रंग ,आकृति ,आकार के बारे में बातें करते हैं फिर फूल पत्तियों की गिनती करते हैं और गणितीय शब्दावली का प्रयोग करते दिखते हैं।
मिट्टी, लकड़ी,बांस आदि से शून्य अथवा अल्प निवेश से बहुत सारे पारंपरिक खिलौने बना सकते हैं, जिससे उनके ज्ञान में वृद्धि हो सके ।
ReplyDeleteमिट्टी, लकड़ी, बांस, पत्ते, पारंपरिक वाद्य यंत्रों आदि विभिन्न प्रकार के खिलौने बना कर शिक्षन अधिगम को साथृक बना सकते हैं।
ReplyDeleteझारखंड राज्य प्राकृतिक सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से एक समृद्ध राज्य है जहां प्रकृति से जुड़े बहुत सारे खेल खिलौना का प्रयोग बच्चों के शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में उपयोग किया जाता है जैसे पति मिट्टी पौधे के तने कपड़ों बांस इत्यादि से बनी सामग्रियां बच्चे प्रारंभिक अवस्था में इन सामग्रियों को बनाने में स्वयं बहुत रूचि लेते हैं इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है
ReplyDeleteKumari Vandana
ReplyDeleteR.U.M.S. Lahar banjari
Children play by making dolls from leaves and old clothes, different types of toys, animals, fruits from clay, children make toys from wood, bamboo, flowers, etc., children feel connected to it. This leads to the development of children. Gums khirabera Ormanjhi
ReplyDeleteMitto,banse,patte adi vastuon se khilone banaker shkikshan adhigam ko sarthak bana sakte hain.I sse bacchon mein srijanatmak,suksham-gatyatamak,samasya samadhan,atmaviyakti adi gunon aor koashal ka vikash hota hai.
ReplyDeleteBacche khilaune ke prati bada aakarshak hota hai use Khel khela kar ginti kara kar aajkal aap bulvakar koslon ke shikshan adhigam kar sakte hain
ReplyDeletePrakriti se Jude hone ki vajah se bahut sari aakarshit aakarshak vastuen banane mein madad milati hai vibhinn prakar ke vachanon ka bhi Vikas hota hai
ReplyDeleteझारखंड एक अनुपम राज्य है।यहाँ विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है।इसका प्रयोग हमसभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण-अधिगम में कर सकते हैं।
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,पत्थर,बांस,पत्ते,पलास पेड़ से लाह,पारंपरिक वाद्ययंत्रों,कद्दू/कोहड़े का खाल,जैविक अवशेष आदि कई तरह से या फिर अल्प निवेश के द्वारा कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम को सार्थक बना सकते हैं।बहुत-बहुत धन्यवाद, तारकेश्वर राणा उत्क्रमित मध्य विद्यालय रामु करमा, रामपुर, चौपारण, हजारीबाग
Hamare Yahan bacche Mitti Lakadi Pathar Baj Patte Lah paramparik vadya yantron kaddu se shaadi Kai Tarah Se ALP Nivesh ke dwara Kai Prakar ke khilaune Banakar Shiksha Adhikari ko Sarthak banaa sakte hain isase bacchon mein atmavishwas badhta hai aur Unki rachnatmakta Aur bhavnatmakta Ka Vikas Hota Hai
ReplyDeleteझारखण्ड एक अनुपम राज्य हैं।यहाँ विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है।इसका प्रयोग हमसभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण-अधिगम में कैसे कर सकते हैं।
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,पत्थर,बांस,पत्ते,पलास पेड़ से लाह,पारंपरिक वाद्ययंत्रों,कद्दू/कोहड़े का खाल,जैविक अवशेष आदि कई शून्य या फिर अल्प निवेश के द्वारा कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम को सार्थक बना सकते हैं।
Hamare Yahan bacche kagaj Ke Nav Ho Ya kagaj ke mendhak Banakar uski gatividhi uska rachnatmak Kriya Aadi ko samajhte Hain.
ReplyDeleteहमारे राज्य में क्षेत्रीय संस्कृति एवम पर्व त्योहारों को चित्रित करने वाले और कम लागत में बनने वाले खिलौने जैसे मिट्टी के बर्तन,हाथी घोड़े जैसे जानवर,दीप,गाड़ी,कार्डबोर्ड के घरौंदे, बांस के घरेलू उपयोग में आने वाले सामानों से मिलते जुलते खिलौने,लकड़ी की तिपहिया गाड़ी,डुगडुगी आदि बनते हैं हम इनके उपयोग से उनकी तकनीक की जानकारी,विभिन्न मॉडल का निर्माण कर शारीरिक एवम मानसिक विकास,इन सबके अतिरिक्त अपनी संस्कृति से जुड़ाव एवम अन्य जीवन कौशलों का विकास बच्चों में कर सकेंगे।
ReplyDeleteMitti,lakri,baans,clay se bane different cultures ko darshane
ReplyDeleteWale khilone se baccho ko different kaushal ko sikhne ka mauka milta hai.
Bacche usme intrest dikhate hain ar jaldi sikhten hain.
Binod kumar.
Mitti, lakrdi, baans se bane khilone Jis se bachhe jurdaw mahsus karte hain. Isse bachchon ko sikhane main madad milti hai aur vibhinn koushalon ka vikas hota hai.
ReplyDeleteमिट्टी लकड़ी पांच पत्ते जैसे वस्तुओं से निर्मित ऐसे खिलौने स्थानीय संस्कृति एवं पर्व त्योहारों का चित्रण करता हूं साथ ही विभिन्न जानवरों पक्षियों आदि से संबंधित खिलौने जिससे बच्चे भली-भांति परिचित हो
ReplyDeleteहम प्रकृति से जुड़े हुए/ से समन्धित खिलौना बनाते हैं।खास कर पत्तियों से,लकड़ी,बांस,आदि से ।जो बहुत आकर्षक भी लगते हैं।बच्चे इनसे जुड़ाव महसूस करते हैं।इसप्रकार के खिलौनों से बच्चों को सिखाने में मदद मिलती है।मिट्टी से विभिन्न प्रकार के फल और सब्जी बनाते हैं।इससे विभिन्न प्रकार के कौशल का विकास होता है।
ReplyDeleteहमारे राज्य में क्षेत्रीय संस्कृति एवम पर्व त्योहारों को चित्रित करने वाले खिलौने जैसे:मिट्टी से बनने वाले जानवर, दीप, गाड़ी,कार्डबोर्ड के घरौंदे,कम लागत में बनने वाले बांस के घरेलू उपयोग से मिलते जुलते खिलौने,लकड़ी का तिपहिया,डुगडुगी आदि बनते हैं। मैं बच्चों के साथ विभिन्न मॉडल और खिलौने बनाकर संबंधित ज्यामितीय आकृतियों, संख्या ज्ञान के आवधारणात्मक अधिगम के अतिरिक्त उनमें स्थूल और सूक्ष्म गत्यात्मक कौशल,संस्कृति से भावनात्मक जुड़ाव आदि कौशलों का विकास करूंगी।
ReplyDeleteKhilaune bacchon ke liye sabse Priya Hoti hai mitti lakadi kagaj plastic se Bane khilaune bacchon ko Apne aur aakarshit karte hain ine khilaunon ko DLM ke roop mein prayog karne se bacchon mein vibhinn kaushalon ka Vikas hota hai
ReplyDeleteअध्ययन की विभिन्न अवधारणाओं को स्पष्ट करने में खिलौनो की महत्वपूर्ण भूमिका होती है!
ReplyDeleteBunyadi Astar ke lye khilona adharit shichan kafi kargar sabit hoti h. Bachhe khel khel me bunyadi astar ke adhigam ko asani se prapat kr lete h. Khel adharit shichan se bachho ko mnoranjan ke sath shichan me kafi ruchi rekhte h.
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ReplyDeleteझारखण्ड एक प्राकृतिक राज्य हैं।यहाँ विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है।इसका प्रयोग हमसभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण-अधिगम में कैसे कर सकते हैं।
ReplyDeleteमिट्टी,लकड़ी,पत्थर,बांस,पत्ते,पलास पेड़ से लाह,पारंपरिक वाद्ययंत्रों,कद्दू/कोहड़े का खाल,जैविक अवशेष आदि कई शून्य या फिर अल्प निवेश के द्वारा कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम को सार्थक बना सकते है।
Hamare paramparik khilaune hame jiwan मे कुछ सीखदे सकते हैं यदि उसका इस्तेमाल शिक्षा के लिए किया जाय। ये हमे अपनी संस्कृति और परंपरा से जोड़ते हैं।
ReplyDeleteहमारे राज्य में मिट्टी एवं लकड़ी, पत्ते, इत्यादि के खिलौने प्रयुक्त किए जाते हैं।
ReplyDeleteMitti, lakdi. Patte avam eco-freindly chijon dwara banaye gaye khilane paramparik aur sanskriti se jude huye saral avamsaste hote hain. Khilaune aadharit shikshan me khilaunon ka aham bhumika hai.
ReplyDeleteहमारे राज्य में बच्चे मिट्टी और पुराने कपड़े से गुड़िया तथा लकड़ी,फूल, पत्ते,बांस आदि से खिलौना बनाते है। बांस, मिट्टी, कपड़े, लकड़ी आदि से बने स्वदेशी खिलौना का उपयोग शिक्षण के समय किया जा सकता है। इसके उपयोग से बच्चो में सृजनात्मक, भावात्मक, शारीरिक, मानसिक आदि का विकास आसानी से हो सकते है।
ReplyDeleteIn my state, toys are usually made up of clay,paper,wood and plastic. It helps in physical, emotional,social and cognitive development of the child and enhances his communication skills.
ReplyDeleteहमारे यहां बच्चे पत्ते और पुराने कपड़े से गुड़िया, मिट्टी से विभिन्न प्रकार के खिलौना, जानवर,फल बनाकर खेलते हैं !बच्चे लकड़ी, बांस,फुल आदि से खिलौना बनाते हैं ,इससे बच्चे जुड़ाव महसूस करते हैं। इससे उनके विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास होता है।
ReplyDeleteउत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय जिरहुलिया।
हम अपने आसपास के पेवेश में प्राप्त सामग्री एवम मिट्टी इत्यादि के खिलौनों का प्रयोग कर सकते हैं।
ReplyDeleteहमारे यहां विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खिलौनों का प्रचलन है। इसका प्रयोग हम सभी शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के शिक्षण अधिगम में एवं मिट्टी से विभिन्न प्रकार के खिलौने आदि बनाते हैं। मिट्टी, लकड़ी, –--------पत्थर,बांस,पत्ते, पारंपरिक वाद्ययंत्रों आदि कई प्रकार के खिलौने बनाकर शिक्षण अधिगम का सार्थक बना सकते हैं।
ReplyDeleteमिट्टी से बने खिलौने कागज की फिरकी बांस की घिरनी छोटे बड़े रंग के बटन पत्तियां से बच्चे के साथ खेल में रुचि पैदा करते हैं
ReplyDeleteमेरे राज्य के बच्चे अपने परिवेश से जुड़े पशु,पक्षियों,जानवरों,उत्सव एवं त्योहारों से परिचित होते हैं।उपरोक्त से संबंधित खिलौनों का उपयोग करके उनके सृजनात्मक कौशल एवं आत्माभिव्यक्ति को विकसित किया जा सकता है।
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